वीर भड़ माधौ सिंह भंडारी…! जिस मलेथा के लिए बेटे की बलि दी, आखिर गूल पहुँचने के बाद क्यों छोड़ा मलेथा और जा बसे रवाई!
वीर भड़ माधौ सिंह भंडारी…! माधौ सिंह भंडारी की संतति हैं रवाई के भंडारी !
जिस मलेथा के लिए बेटे की बलि दी, आखिर गूल पहुँचने के बाद क्यों छोड़ा मलेथा और जा बसे रवाई!
(मनोज इष्टवाल)
“एक सिंह रणबण एक सिंह गाय का! एक सिंह माधौ सिंह और सिंह काहे का” यह कहावत एक ऐसे वीर के लिए प्रयुक्त हुई है जिसने राजा महिपत शाह की पुत्री रुकमा के दिए ताने के बाद राजा महिपत शाह द्वारा दी गयी मलेथा की जागीर में गूल लाने के लिए अपने बेटे की बलि ही दे डाली!
माधौ सिंह भंडारी का यशोगान यूँ तो काली कुमाऊ से लेकर तिब्बत दापा व हिमाचल रामपुर बुसेर तक फैला था लेकिन अपनी हठ पूरी करने के लिए इस महावीर ने मलेथा में गूल लाने के लिए अपने बेटे की ही बलि दे डाली. यहाँ तक का इतिहास तो सभी लोग जानते हैं लेकिन उस से आगे यह कोई नहीं जानता कि मलेथा तक गूल पहुंचाने वाले इस महान योद्धा ने जिद पूरी करने के बाद मलेथा में लहलहाती एक भी फसल नहीं खाई. और एक षडयंत्र के तहत इस वीर भड को रवाई विस्थापित होना पड़ा.
माधौ सिंह भंडारी जितना बड़ा सूरमा था उतना ही बड़ा फूलों का होशिया व औरतों का रसिया रहा है. वह पनघट में औरतों की घागर फोड़ देता था व पिंडलियाँ बेद देता था. कहा जाता है कि उनकी तीन रानियां गढ़वाल में एक भोटन्त में व एक बुसेर रामपुर की रवाई घाटी में हुई. रुकमा जिसे पांवड़े में राजा महिपत शाह की बेटी कहा गया है उसे पाने के लिए उसने अपने बेटे की बलि दे दी. उसे पाया भी लेकिन राजदरवारियों ने षडयंत्र कर उसे उस से दूर करने की ऐसी युक्ति लड़ाई कि माधों सिंह भंडारी ने मलेथा ही छोड़ दिया.
(माधौ सिंह भंडारी द्वारा निकाली गयी गूल )
माधौ सिंह भंडारी यूँ तो गढ़वाल सल्तनत में स्थित छोटी सी रियासत लखनपुर के राजा रायचंद का बेटा हुआ लेकिन वीर भड होने के कारण राजा महिपत शाह के दरवार में वह और भौं रिखोला व उनका पुत्र लोधी रिखोला राजा के फौंदार(सेनापति) हुआ करते थे. चाहे भोटन्त देश की जीत हो या रामपुर बुसेर व सिरमौर की.! इन भडो ने इन रियासतों को कब्जे में करने के लिए ऐसा आतंक कायम किया कि इनके नाम से ही बड़े बड़े राजा व योद्धा भय से थर्र-थर्र कांपते थे. कहा जाता है कि जब इन्होने सिरमौर राज्य जीतकर अपना राज्य क्षेत्र हाटेशवरी तक फैलाया तब तमसा व यमुना के मध्य के जौनसार बावर क्षेत व उसके पार बेहद क्रूरता से दमन किया. सिरमौर के राज घरानों की महिलाओं व इस क्षेत्र के बड़े थोकदारों ने पांडव पत्नी द्रोपदी की तरह प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक वे लोधी रिखोला व माधौ भंडारी के खून से अपने बाल नहीं धो लेते तब तक न अपने घाघरे पर नाडा डालेंगी और न बाल ही बांधेंगी. और न ही मकानों की धूर चूनेंगे! कहा जाता है कि लोधी रिखोला व माधौ भंडारी की मौत के बावजूद भी इन परिवारों की महिलाओं ने बर्षों बर्षो तक अपने बाल नहीं बांधे और न घाघरे पर ही नाडा डाला. आज भी इस क्षेत्र के मकानों की धूर के शीर्ष के पत्थरों को बेस नहीं दिया गया है. इसके पीछे यह कारण रहा कि इन दोनों भडों ने इस क्षेत्र के मकानों में छुपी औरतों के साथ उनकी छत्त तोड़कर बलात्कार किये. खूब लूटा खसोटा.
(माधौ सिंह भंडारी की मूर्ती को नमन करते जुगलान जी )
यह इतिहास में कहीं दर्ज है कि नहीं लेकिन भवा नन्द नैलवाल की पांडुलिपि में यह सब दर्ज है. माधौं भंडारी की पहली पत्नी लखनपुर रियासत, दूसरी जाख में रहती थी जबकि तीसरी के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार वह लालूड़ी में रहती थी जहाँ से माधौ सिंह ने पत्थर काट-काटकर गूल निकाली थी व इसी पत्नी से उत्पन्न बच्चे की बलि दी थी.
ज्ञात होकि कुमाऊं के राजा लक्ष्मी चंद (लखमी चंद) ने दिल्ली दरवार में तत्कालीन राजा अकबर व सिरमौर के राजा मौली चंद जिसे पांवड़े में मूल चंद कहा गया है के साथ कूटनीतिज्ञ वार्ता करके कहा कि राजा महिपत शाह तपोवन स्थित जीरी बासमती स्वयं खाता है जो बहुत खुश्बूदार होती है अत: हमें मिलकर उस से तपोबन छीनणा होगा. महिपत शाह को जब यह जानकारी हुई तब उन्होंने वीर भड माधौ सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी. गढ़वाल नरेश की विजय हुई तब महिपत शाह ने श्रीनगर के पास मलेथा की जागीर माधौ सिंह को दे दी. इसी दौरान राणियों का रसिया माधौ सिंह का दिल राजा महिपत शाह की पुत्री रुकमा पर आ जाता है और वह रुकमा को विवाह का आमन्त्रण देता है. रुकमा उलाहने देती है कि तेरे मलेथा में कोदा झंगोरा खाने कैसे आऊँ वहां पाणी है नहीं जो बासमती उग आये. पांडुलिपि में वर्णित पांवड़े में रुकमा महिपत शाह की पुत्री मानी गयी है जबकि इतिहास इस पर संदेह जताता है.
कहते हैं भड पर बुद्धि और ताकत एक साथ हो तो वह राजा बन जाय. यही माधौ सिंह की नाक लगी और उसने गूल खोदनी शुरू कर दी. कई पहलवान चट्टान छेनी हथोडी सबल से चट्टान काटते रहे लेकिन पानी आगे बढ़ने का नाम नहीं लेता. कुल देवी राजराजेश्वरी व देव माणिकनाथ का स्मरण करता है तब कुलदेवी सपने में आकर कहती है कि जब तक टू अपने पुत्र की बलि नहीं देगा पानी आगे नहीं बढेगा. माधौ सिंह ने पुत्र बलि दी. खून की धार के साथ सिर आगे लुडकता रहा और पाणी पीछे पीछे.
(माधौ सिंह भंडारी द्वारा निकाली गयी गूल व उनकी मूर्ती)
अब रुकमा को राणी बनाने की बात आई तो राजा महिपत शाह ने अपने कुछ ख़ास राजदरवारियों से सलाह मशविरा लिया. कहते हैं तब तत्कालीन डोभाल बंधुओं ने जिनमें राज दरवार के विद्याधर डोभाल (राजबख्शी) भाष्कर डोभाल (राज दफ्तरी), हरदास डोभाल (राज वजीर) व मानवधर डोभाल (दंडाधिकारी) ने मिलकर माधौ सिंह भंडारी को कहा कि अब धरती पुत्र दोष से शापित हो गयी है इसलिए तुम्हे यह स्थान ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए व स्वयं यमुना घाटी में बसकर माँ यमुना की शरण में रहना चाहिए. माधौ भंडारी ने मलेथा रहना यूँ भी उचित नहीं समझा क्योंकि ताना मारने वाली रुकमा ने कभी नहीं सोचा था कि माधौ भंडारी कभी वहां पाणी भी पहुंचा पायेगा. माधौ सिंह जिस प्यार में आशक्त था जब उसे लगा कि रुकमा उस से प्यार नहीं करती तब भंडारी उत्तरकाशी जनपद की गंगा घाटी में ब्रह्म्खाल के पास जुगणा गाँव में बसा जहाँ वह अपनी भोटन्त की राणी के साथ रहा . तदोपरांत वह यमुना घाटी में आ बसा जहाँ उसकी रामपुर बुसेर की राणी रहती थी. यहाँ आकर उनकी देवी की स्थापना भद्र पर्वत की देवी के रूप में भद्रकाली हुई जिसके आज भी गीत गाये जाते हैं. कहते हैं कि माधौ भंडारी ने सन 1717 में गंगा सलाण छोड़ दिया था व रवाई जा बसा.
(मलेथा गाँव टिहरी गढ़वाल)
बडकोट डिग्री कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ. विजय बहुगुणा, नेत्रपाल यादव व कांग्रेसी नेता विजयपाल रावत ने इस बात की पुष्टि की है कि इन गाँव में आज भी भंडारी रहते हैं लेकिन इन्हें यह पता है कि नहीं कि वे माधौ सिंह भंडारी की संतति है ये लोग नहीं जानते. विजयपाल रावत कहते हैं कि आज भी इन लोगों की रिश्तेदारी ऊँचे कुल के राजपूती जातियों में ही होती है. वहीँ डॉ. विजय बहुगुणा कहते हैं कि जब भी चुनाव हो यहाँ के राजपूत अपने अपने सामाजिक कद के अनुसार बंट जाते हैं. इन गाँव के अलावा रवाई के अन्य किन गाँव में भंडारी है यह तो पूरी जानकारी नहीं है लेकिन कुथनौर व सौंदाडी में भी माधौ भंडारी की संतति हैं यह कहा जाता है.
(भद्रकाली मंदिर पौंटी फोटो-विजयपाल रावत)
आज भी काला भंडारी जोकि माधौ भंडारी स्वयं थे अपने को राज घराने से आंकते हैं क्योंकि माधौ भंडारी ने जितनी भी शादियाँ वैध की वे सब राज्रघरानों से ही सम्बन्धित बताई जाति है. भद्रपर्वत पर बसे गाँव पौंटी व मोल्डा में आज भी सत्रहवीं सदी के भद्रकाली मंदिर हैं. कांग्रेसी नेता विजय पाल रावत ने माँ भद्रकाली के गीतों के कुछ बोल इस तरह सुनाये हैं-
(भद्रकाली मंदिर मोल्डा फोटो-विजयपाल रावत)
गेंहू जौ की ऊमी रे माई, गेहूं जौ की ऊमी रे
देवी माँ ऐ भद्रकाली, गेहूं जौ की ऊमी रे
ऊंचा भद्र डांडा रे माई तेरी जन्म भूमि ऐ
निसा मोल्डा गाँव रे माई तेरू भव्य मंदिर ऐ
Istwal sir jee ki kalm ko sat sat naman
आभार..
बहुत सुन्दर शोधपरक आलेख
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र
रुकमा, महीपति शाह जी की नौनी छै?
हाँजी।