वीरान विरासत के सिपाही नेगियों का भूतवा महल। ईड़ा क्वाठा (किला) खंडहर में तब्दील ।
वीरान विरासत के सिपाही नेगियों का भूतवा महल। ईड़ा क्वाठा (किला) खंडहर में तब्दील ।
- इस खंडहर में आज भी अकेली रहती हैं इस हवेली की अंतिम वारिस सम्पति देवी!
- ठा. इंद्र सिंह नेगी ने भी नहीं छोड़ा अपना घर जबकि पूरा परिवार रहता है दिल्ली!
(मनोज इष्टवाल)
एकेश्वर विकास खंड के अंतर्गत पट्टी गुराडस्यु का सिपाही नेगियों की गौरव गाथा का यह किला आखिर खण्डहर में तब्दील हो गया है।
ईड़ा गाँव सिपाही नेगी बड़े बड़े पदों पर पूरे विश्व भर में फैले हुए हैं। ईड़ा गाँव का यह क्वाठा सतपुली संगलाकोटी मार्ग पर रीठाखाल से लगभग 2 किमी. पहले सीला गाँव की सरहद से लगा हुआ है. यह सड़क मार्ग से लगभग 400 मीटर दूरी पर अवस्थित है. वर्तमान में अब भले ही यह ईड़ा तल्ला सिपाही नेगियों के वंशजों से शून्य हो गया है, क्वाठा के अंदर इस जर्जर मकान को आज भी नहीं छोड़ पाई है इसकी अंतिम वारिश ठकुराइन श्रीमती सम्पति देवी!
यहाँ शिल्पकार मोहल्ला खूब पनपा है और एक कच्चा सड़क मार्ग बहुत पहले यहाँ तक बन चुका था वर्तमान में हो सकता है वह तारकोल मिक्स हो गया हो. देहरादून में इस विरासत के कई बाशिंदे हैं लेकिन सबने यहाँ नजर फेर दी है। 1996-97 का वह भी दौर था जब यहाँ एक मात्र श्रीमती सम्पति देवी ही रहा करती थी। वह भी इसलिए क्योंकि उनके पति का देहांत हो गया था व बेटा नहीं था। उनकी बड़ी बेटी माया लखनऊ तथा दूसरी पुत्री शान्ति देहरादून रहती हैं.
(खंडहर होती ऐतिहासिक धरोहर ईड़ा किला)
सम्पति देवी बताती हैं कि बेटी ससुराल रहती हैं और वह नहीं चाहती कि वो किसी बेटी पर बोझ बने. इसलिए उनका एकमात्र जीवन यापन का जरिया यही किला है. जिसमे वह आज भी अकेली रहा करती हैं. मल्ला ईड़ा के इन्हीं के परिवार का हरी ओम नामक पागल देवर कभी कभार महीने भर में एक आध घड़ी के लिए शायद आकर 32 कमरोँ के इस मकान में किसी एक में भी लेट जाया करता था। जबकि सम्पति देवी बिलकुल इस प्रवेश द्वार के दुमाले पर रसोई पकाती थी व वहीँ रहती थी, आज यह दुमाला टूट गया है लेकिन ईड़ा तल्ला में क्वाठा बाहर रहने वाले इंद्र सिंह नेगी के चंडीगढ़ रहने वाले भाई गंगा सिंह नेगी बताते हैं कि आज भी सम्पति देवी इसी खंडहर में स्वस्थ मन चित्त से जीवन यापन कर रही हैं. । गेस्ट रूम उसी के बगल में था। जहाँ मैंने भी अपनी लगभग 6 निशाएँ गुजारी हैं। पूरा क्वाठा अंदर से एक बड़े आँगन से घिरा हुआ था आँगन में कम् से कम एक हजार लोग खड़े हो सकते थे। 32 कमरे दुमाले पर और लगभग इतने ही निचले माले पर थे। आयताकार इस किले का विशाल बरामदा कई खंबा तिबारियों से घिरा हुआ था। किले के पीछे घुड़साल थी। मुख्य द्वार जो आपको दिखाई दे रहा है उस पर सशस्त्र प्रहरी के लिए स्थान बना था।
(ईड़ा किले का मुख्य द्वार)
माता जी की छोटी बिटिया शांति की शादी देहरादून हो चुकी थी, माता जी बताती हैं कि जब शान्ति पेट में ही थी तभी उनके पति ठा. जयमळ सिंह की अक्सिडेंट में मौत हो गयी थी । बेटी व दामाद कई बार माता जी को कह चुके हैं क़ि छोड़ो यह घर , हमारे साथ देहरादून चलो लेकिन माता जी की जिद है इस किले में विवाह करके लायी गयी है। तब उनकी डोली आई थी अब अर्थी ही यहाँ से उठेगी।
(श्रीमती सम्पति देवी अपनी पुत्री माया व शान्ति के साथ मुख्य द्वार पर)
सम्पति देवी क्वाठा के बारे में बताया कि ये उन्हीं सिपाही नेगी का क्वाठा हुआ जिनके वंशजों में एक ठा. भवानी सिंह नेगी की गुराड़ गाँव के भूपू गोरला थोकदार की वीरांगना बेटी तीलू रौतेली से मंगनी हुई थी और वह शादी से पहले कत्यूरियों से कुमाऊँ में एक संघर्ष में वे शहीद हो गए थे। वो आगे बताती हैं कि हर किले की बुनियाद के साथ मानव बलि दी जाती थी उनके पूर्वजों ने भी इस किले की बुनियाद में दो मानव बलि दी हैं जो गढ़ नरेश के शत्रु थे।
(क्वाठा के अंदर की स्थिति)
वहीँ क्वाठा बाहर इंद्र सिंह नेगी एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने आज भी अपना गाँव नहीं छोड़ा उनका पूरा परिवार दिल्ली व अन्य शहरों में रहता है. उनके एक भाई चंडीगढ़ में रहते हैं जिनका नाम गंगा सिंह नेगी है. गंगा सिंह नेगी बताते हैं कि उनका गाँव मुख्यतः सीला है जो सड़क के नीचे बसा है. वे जाति से जीना नेगी हैं और उनके पुरखों ने यह जमीन सिपाही नेगियों से ही खरीदकर यहाँ अपनी बसागत की है.
वहीँ कुसुम बिष्ट बताती हैं कि ईड़ा उनका मायका है व उनके पिता स्व. विक्रम सिंह नेगी बहुत पहले आकर कोटद्वार बस गए थे. गंगा सिंह नेगी उनके चाचा हुए उनके अलावा उनके चन्द्र सिंह व इंद्र सिंह भी चाचा ही हैं व इन सभी के परिवार हर साल छुट्टियों में गाँव जाया करते हैं. वह ससुराल की बेटी हैं इसलिए कम जा पाती हैं लेकिन मायका सभी बेटियों का प्यारा होता है. उन्हें भी दुःख होता है कि इतनी बड़ी ऐतिहासिक धरोहर इस तरह टूट कर खंडहरों में तब्दील हो रही है.
वीरांगना तीलू रौतेली के मंगेतर ठा. भवानी सिंह नेगी की मौत युद्ध स्थल में हि हो गयी थी और यह इन वीरों का इतिहास ही नहीं बल्कि गढ़वाल का इतिहास भी रहा कि मंगेतर यदि स्वर्ग सिधार जाए तो वह भी विधवा कहलाती है. आपके बता दें कि सिपाही नेगियों का यह कुनवा गुरदासपुर से आकर पौड़ी गढ़वाल के ईड़ा नामक स्थान पर आ बसा. ये दो भाई हुए जिनमें बड़े भाई का नाम मानमनोहर सिंह व दामदामोदर चंद का नाम प्रमुखता से आता है. इन्हीं में से एक के पुत्र राजा दुनी चंद ने मल्ला ईड़ा गुराड़स्यूं में अपनी बसागत की. आज भी इनका मल्ला ईड़ा में हवेली है जिसमें मात्र एक परिवार ठा. घियाल सिंह नेगी रहते हैं.
इन्हीं के वंशज कोटद्वार भावर के दुर्गापुरी क्षेत्र में रह रहे ठा. प्रेम सिंह नेगी बताते हैं कि राजा दुनी चंद के दो बेटे हुए जिनमें ठा.भगोत चंद नेगी व ठा. जसोध सिंह नेगी हुए ! आपसी कलह के चलते दोनों ने सरहद का बंटवारा घोड़ा दौड़ाकर किया. ठा. भगोत सिंह ने चौथी तथा जसोधसिंह ने जलन्यूं तक घोड़े से अपनी सीमा का क्षेत्रफल तय किया! ठा. जसोध सिंह के तीन पुत्रों में सबसे बड़े ठा. भवानी सिंह नेगी हुए जिनकी मंगेतर चौंदकोट गढ़ के गढ़पति भूपू गोर्ला की पुत्री वीरांगना तीलू रौतेली हुई जिसने इतिहास में स्वर्णिम आखरों में अपना नाम दर्ज करवाया.
तल्ला ईड़ा के अपने वंशजों की जानकारी देते हुए ठा. प्रेम सिंह बताते हैं कि कालान्तर में क्वाठा भित्तर लगभग उनके 15 परिवार रहते थे जिनके सदस्यों की संख्या 100 से अधिक हुआ करती थी, जिनमें ठा. गोबिंद सिंह नेगी, बलबीर सिंह नेगी, श्रीधारी सिंघी नेगी, हजारी सिंह नेगी, थाम सिंह नेगी, ठाकुर सिंह नेगी, जसवंत सिंह नेगी, बलवंत सिंह नेगी, बृजमोहन सिंह नेगी, सुरेन्द्र सिंह नेगी, भारत सिंह नेगी व हरेन्द्र सिंह नेगी प्रमुख हुए! आज ये सारे परिवार साधन सम्पन्न हैं और सब देश विदेशों में विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों एवं स्थानों में रह रहे हैं. ठा. हजारी सिंह नेगी के पुत्र ठा. जयमल सिंह ही वो अंतिम व्यक्ति थे जो इस किले में रहते थे व उनकी विधवा श्रीमती सम्पति देवी आज भी इस खंडहरनुमा किले में रहा करती हैं.
ठा. प्रेमशंकर सिंह नेगी कहते हैं कि वे ठा. भारत सिंह नेगी के पुत्र हैं व उनके एक अन्य भाई है ठा. किशोर सिंह नेगी व ये दोनों ही कोटद्वार भावर में रहते हैं. इसी खानदान से ही एक परिवार ऐसा भी है जो भारतीय सेना में प्रतिष्ठित पदों पर रहे हैं जिनमें कर्नल गौर सिंह, कर्नल अरविन्द सिंह, कर्नल राजकुमार इत्यादि प्रमुख है.
बहरहाल आज यह किला जिस दुर्दशा में खंडहर खंडहर हो रहा है उसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं क्योंकि पहाड़ का जनमानस कभी उठा है तो कभी गिरा है. जब भी जमीनी सतह को छूकर इंसान ऊँचाइयों की ओर बढ़ा है उसने अतीत के काले आखरों को याद करना छोड़ दिया लेकिन यहाँ एक ऐसा इतिहास समावेशित है जिसने तलवार की धार पर गढ़-कुमाऊं में अपने आखरों को स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया फिर ऐसा क्या हुआ कि अपने सुनहरे दौर की अंतिम यादगार इस किले को यूँ टूटने के लिए ये सब छोड़ गए. आज भी वक्त है इसे सजाया संवारा जा सकता है.
माताजी श्रीमती सम्पति देवी कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि इन ठाकुरों ने अपने वजूद को आज भी मिटने दिया है लेकिन उन्हें दुःख इस बात का है कि जिन आँखों ने इस क्वाठा के समृधि के चरम तक पहुँचने वाले दिन देखों हों. जहाँ ख़ुशी की किलकारियां गूंजती रही हों आज वही बंजर वीरान क्वाठा तिल-तिल उनकी आँखों के आगे दम तोड़ रहा है! काश…कोई होता जो मेरे पुरखों की इस धरोहर को संवार लेता तो मैं शुकून से मर सकती! उनकी आँखें वीराने की आह से निकलकर जब वर्तमान में लौटी तो सजल थी!
माता जी हाथ में गजब का स्वाद था। दुर्भाग्य ही कहिये क़ि मैं उनका नाम भूल गया। वे गुन्देला (छोटे टमाटर) की जब चटनी बनाती थी तब उसकी महक का कोई जबाब नहीं था । और अगर आपने उनके हाथ का बनाया चैंसा खा लिया होता तो जिंदगी भर वह स्वाद आप भुला नहीं पाते।
उस दौर में मैं उत्तराखण्ड के इतिहास में थोकदारों की भूमिका नामक सब्जेक्ट पर रिसर्च कर रहा था। इसलिए मेरा यहाँ कई बार आना जाना हुआ। दुर्भाग्य से मेरी वह समस्त शोध पांडुलिपि किसी ने चुरा ली व् सालों की मेहनत यूँही बर्बाद हुई।
कहा तो यह भी जाता है कि बीजेपी नेता सतपाल महाराज ने इस किले की मुंहमांगी रकम देने की बात भी कही थी लेकिन इसके वंशजों ने नकार दिया। आज जाने वह वंशज कहाँ गए जिन्होंने वीरों की उस ऐतिहासिक धरोहर को यूँहीं बर्बाद कर दिया। काश….सरकार इसे स्वयं पहल कर हस्तगत करती व इसका जीर्णोद्वार कर उन वीरों के अस्तित्व को उसी तरह जीवंत बनाए रखती जैसे राजस्थान व हिमाचल सहित अन्य प्रदेशों के राजा महाराजाओं के किले/ गढ़ हैं जहाँ दुनिया भर के पर्यटक हर साल पहुँचते हैं!
बहुत रोचक जानकारी देते हो,धन्यबाद
धन्यवाद ..
Itihaas jaankaar bahut khushi hui par saath hi saath dukh hua ki vansajo ne apni dharohar ko yuhi chhod diya. Kya wo maata ji ab bhi hai? Agar me Delhi se jaana chahu to kaise kaise jaau?
लक्ष्मण आप दिल्ली से कोटद्वार, कोटद्वार से सतपुली व सतपुली से संगलाकोटी, बैजरो या पोखड़ा जाने वाली किसी भी गाड़ी में बैठकर सीला-कबरा नामक स्थान पर उतर जाना. वहीँ से कोई भी बता देगा कि क्वाठा कहाँ है.