वीरान गॉव और बंजर खेतों में बोई इंसानियत की फसल, विलेज टूरिज्म के लिए वर्ल्ड रिकॉर्डधारी मनीष जोशी ने कसी कमर!

वीरान गॉव और बंजर खेतों में बोई इंसानियत की फसल,  विलेज टूरिज्म के लिए वर्ल्ड रिकॉर्डधारी मनीष जोशी ने कसी कमर!
(मनोज इष्टवाल)

क्या आप यकीन कर सकते हैं कि पौड़ी की सरजमीं पर पैदा एक 14 साल के बच्चे ने एक माइक्रो लाइट एयरप्लेन उस युग में बना दिया था जब साइंस एवं टेक्नोलॉजी अपने शुरूआती दौर से गुजर रही थी. यह अपनी किस्म का एकऐसा एयर प्लेन था जिसमें एक इंजन और दो आदमियों के बैठने की जगह थी. सैंट थॉमस स्कूल पौड़ी से मात्र 10 बर्ष की अवस्था में दून स्कूल आने वाले पौड़ी गढ़वाल के जोशियाना निवासी मोहन जोशी के पुत्र मनीष जोशी ने जब यह एयर प्लेन ईजाद किया तब दून स्कूल में पढने वाले संभ्रांत घरानों के जिनमें कई उद्योगपतियों के पुत्र भी शामिल थे सबको दांतों तले अंगुली दबानी पड़ी. क्योंकि पौड़ी जैसे छोटे शहर से दून स्कूल में आये 14 साल के बच्चे का यह करिश्मा रातों -रात वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया था.

पौड़ी शहर में मनीष जोशी के पिता मोहन जोशी भी अपना मोहन एंड मोहन करके जहाँ लीसा फैक्ट्री चलाते थे वहीँ मांडाखाल में उनका उस जमाने में स्टोनकर्सर था जब पहाड़ की वादियाँ यह नहीं जानती थी कि इन पत्थरों को पीसने से भला क्या हासिल होने वाला है. मनीष जोशी का प्रोफाइल उठाएंगे जरुर लेकिन पहले मुख्य मुद्दे पर आते हैं कि किस तरह मनीष जोशी अपना बसंत बिहार देहरादून का ऐशोआराम त्याग रिवर्स माइग्रेशन करते हुए अपने पुरखों की बंजर जमीन को आबाद करने अपने पैत्रिक गॉव जोशियाना जा पहुंचे जहाँ बमुश्किल बचपन में उनके कभी कभार कदम पड़े रहे होंगे.

सारे भौतिक संसाधनों का उपभोग करने वाले मनीष ने आखिर क्यों यह दर्द लिया कि वे बंजर में उगी झाड़ियों के कंटीले दंश झेलें. यह प्रश्न न मैंने मनीष जोशी से पूछा और न ही उन्होंने बताया लेकिन वे इस बात से बर्षों से हताश व परेशान लगते थे कि गॉव से निकला व्यक्ति बड़े शहरों में 8 से 10 हजार की नौकरी करने को तो राजी है शहर में 30 गज या 50 गज में मकान बनाकर रातदिन मेहनत करने को भी राजी है लेकिन अपने पहाड़ की कई हेक्टेअर जमीन कई नाली जमीन पर बने पैत्रिक मकान व साग सगोड़े जल जंगल और जमीन त्यागकर शहरी बन रहा है.

वे कहते हैं वे भी वही सोचते हैं कि स्वास्थ्य शिक्षा और जरूरतें हर इंसान अपने परिवार के लिए ढूंढता है और शायद यही कारण भी रहा कि गॉव बंजर होने शुरू हुए लहलहाते खेतों में दूब उगने लगी और गॉव वीरान होने लगे. सियार गीदड़ भालू जंगली सूअर अब उन घरों के बाशिंदे होने लगे जहाँ कभी खिलखिलाती हंसी गूंजती थी. आंगनों की फटालें माँ बहनों के क़दमों की चाप से मुलायम व चिकनी हो जाती थी जिसके पत्थरों को सुरीले सुरों की आवाज़ व पायल की झंकार सुनने की आदत थी आज वही मूर्तवान पत्थर फिर से घर आँगन में जड़वत हो गए थे. मनीष जोशी की यह तीस बर्षों तक उन्हें सालती रही. वे किसी से कहें भी तो कहें कैसे कि गॉव वीरान मत करों वही खेत खलियान आपकी आय का मजबूत जरिया बन सकता है. मनीष के पारिवारिक पृष्टभूमि की अगर बात करें तो आपको ज्ञात होगा कि मनीष जोशी के चाचा कैलाश जोशी 1960 के पहले कंप्यूटर इंजिनियर में थे जिन्होंने भारतीय आईटी वालों को अमेरिका में काम करवाने की बुनियाद शुरू की थी. वे 1980 के मध्य तक वे आईबीएम युएसए के दक्षिण एशियाई निदेशक पड़ पर तैनात रहे. कैलाश जोशी ने टीआईई यानि द इंडस इंटरप्रेनुएर्स की स्थापना की जो पूरे दक्षिण एशिया की बेहद पावरफुल लॉबी मानी जाती है. यह लॉबी इतनी मजबूत बतायी जाती है कि बिल क्लिंटन जब भारत आये थे तब वे उस 15 सदस्यीय दल में सम्मिलित थे.
मनीष जोशी के पिता मोहन जोशी 1968 में बीएचईएल भोपाल में इलेक्ट्रिक इंजिनियर थे. उनका मकसद था कि क्यों न वे पौड़ी में ऐसा रोजगार पैदा करें जिससे गढ़वाल में रोजगार के स्रोत विकसित हों. उस दौर में पहाड़ों में सड़कें बिछनी शुरू हो गयी थी और तारकोल की कमी के चलते कच्ची सड़कें पक्की होने में बहुत समय ले रही थी. मोहन जोशी ने 1970 में पौड़ी के अपर चोपड़ा (पेट्रोल पम्प) में मोहन एंड मोहन करके एक लीसा फैक्ट्री लगाईं जिसका उदघाटन तत्कालीन उत्तर प्रदेश में शिक्षा मंत्री रहे शिवानन्द नौटियाल ने किया. यह पूरे गढ़वाल मंडल की पहली लीसा फैक्ट्री थी और अगर यह कहां जाय कि गढ़वाल मंडल की पहली फैक्ट्री तो कोई दोराय नहीं है.
. मनीष जोशी का परिवार कुमाऊं से उस दौर में आकर जोशियाना बसा जब कुमाऊं के राजसी ठाठ बाट उनके हाथ से छूटे और गढ़ नरेश ने उन्हें अंगीकार किया.

अटकिन्सन के अनुसार गोरखाली आक्रमण के समय कुमाऊं का कुशल राजनीतिज्ञ हर्षदेव जोशी को अल्मोड़ा की सियासत सौंप दी. और हर्षदेव जोशी व शिबदत्त जोशी ने बर्षों यहाँ शासन किया. उनका कुमाऊं आगमन बिशेषकर अल्मोड़ा आगमन 1790 के आसपास माना गया है. गढ़वाल राजा पराक्रम शाह के कहने पर हर्षदेव जोशी से अल्मोड़ा का न सिर्फ राज छीना गया बल्कि उन्हें कैदभी किया गया. संक्षेप में अगर बताएं तो हर्षदेव जोशी गढ़नरेश प्रधुम्नशाह के राजकाल में गढ़वाल आये और उनके कानूनी सलाहकार रहे. उन्हें जोशियाना की जागीर दी गयी. आज भी जोशियाना का बटुकनाथ भैरव इस बात का गवाह है कि वही गोल्जू देवता है जो हर्षदेव जोशी के साथ यहाँ आये थे. और उसीदौर का गोरिल कंडोलिया भी पौड़ी आया. मनीष जोशी की पारिवारिक पृष्टभूमि देखते हुए यह तो नहीं लगता था कि लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अलग अलग रिकॉर्ड बनाने वाले मनीष जोशी पीछे मुड़कर अपने गॉव में ही ग्रामीणों के लिए रोजगार तलाशने का जरिया बनेंगे. उन्होंने गरुडा एडवेंचर के नाम से एक कैंप शुरू किया और उनकी मेहनत उन्हीं के बंजरों को इन्सानियत की सुगबुगाहट से सौंधी मिटटी में तब्दील करने लगी जो लगभग आस छोड़ चुकी थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *