उत्तराखंड का वह 8 डॉलर का आदमी!
विश्व मानचित्र पर चमकता उत्तराखंड का वह 8 डॉलर का आदमी!
(मनोज इष्टवाल)
- तत्कालीन 8 डॉलर यानि चालीस रूपये में अमेरिका पहुंचे डॉ. कैलाश जोशी.
- बने IBM कंप्यूटर के वाईस चेयरमैन व TiE के अध्यक्ष व सह संस्थापक !
- पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे के समय देश भर में रहे बेहद चर्चित.
- 2005 में भारत के राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद ने डॉक्टर ऑफ़ साइंस की मानद उपाधि से किया शामिल.
- उत्तराखंड ही नहीं भारत के कई राज्यों को स्वास्थ्य सेवा 108 से जोड़ने वाले जनक.
(डॉ. कैलाश जोशी)
एक वह भी दौर था जब देश दुनिया की करेंसी बदलने के लिए भारत में कोई फॉरेन एक्सचेंज नहीं हुआ करता था. 1960 तक अपने देश की वैश्विक व आर्थिक स्थिति कितनी ख़राब रही होगी जब विदेश में जाने वाला देश का होनहार तब सिर्फ अपने साथ 8 डालर लेकर ही विदेश जा सकता था जबकि उस दौर में अमेरिका पहुँचने का हवाई टिकट तीन हजार रूपये का हुआ करता था.
तब स्थिति पूरे देश की इसलिए भी नाजुक थी क्योंकि तब देश को स्वतंत्र हुए बमुश्किल कुछ ही साल हुए थे और देश अपने आर्थिक सामजिक व राजनैतिक ढाँचे के सुधार में लगा हुआ था. ऐसे में पहाड़ की कन्धराओं से निकलकर विदेश की धरती में कदम रखना कितना बड़ा साहसिक फैसला रहा होगा यह कहना काफी कठिन है क्योंकि उस दौर में जब उत्तराखंड का पहाड़ी जनमानस नौकरी करना किसी पाप करने के सामान समझता था तब एक बाप माँ या सगे सम्बन्धी अपने कलेजे के टुकड़े को एक हवाई टिकट व मात्र आठ डालर यानि तत्कालीन 40 रुपये देकर अमेरिका पढने भेज देते हैं जब यहाँ के आम आदमी के लिए तन ढांकने के लिए कपडे तक नहीं होते थे. उन्होंने यह तक नही सोचा कि जिस देश पहुँचने के लिए तीन हजार रुपए की हवाई टिकट लगती है अगर वहां बेटे के साथ कोई घटना घट गयी तो मात्र 40 रूपये लेकर वह कहाँ अपने देश लौट पायेगा.
(डॉ. कैलाश जोशी लेखक मनोज इष्टवाल के साथ)
ये उदगार मेरे नहीं बल्कि उस महान शख्सियत के हैं जो वर्तमान में विश्व भर में अपने कर्मों से प्रसिद्ध हैं. पौड़ी गढ़वाल के पौड़ी शहर से लगभग 11 किमी दूरी पर पौड़ी कोटद्वार राजमार्ग से सटे पट्टी पैडूलस्यूं जोशियाणा में जन्मे डॉ. कैलाश जोशी से वार्ता के दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े वे तमाम राज साझा किये जिन्होंने उन्हें उनकी मेहनत के बूते पर देश प्रदेश की शान के रूप में एक ऐसा अनमोल व्यक्तित्व दे दिया है जो पूरे समाज के लिए बेहद बेशकीमती हैं.
यूँ तो मात्र एक बेटे हिमांशु पिता डॉ. कैलाश जोशी पलो-अल्टो अमेरिका में रहते हैं लेकिन आजकल देहरादून आये हैं. देहरादून आने का मकसद उनके बड़े भाई मोहन जोशी के स्वास्थ्य खराब होना बताते हैं. मोहन जोशी पौड़ी के पहले शख्स हैं जिनके दोनों बेटों ने दून स्कूल जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थान से शिक्षा प्राप्त की. इनके बड़े पुत्र मनीष ने मात्र आठवीं कक्षा का छात्र होते हुए एक ऐसा एरोप्लेन डिजाईन किया जो बड़ी आसानी से उड़ सकता था. मनीष का लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम अंकित है.
(डॉ. कैलाश जोशी व उनके बड़े भाई इंजिनियर मोहन जोशी लेखक मनोज इष्टवाल के साथ)
पारिवारिक पृष्ठभूमि से बाहर निकलकर जब हम डॉ. कैलाश जोशी की बात करते हैं तब पता चलता है कि डाउन टू अर्थ शब्द का ब्यापक स्वरूप क्या है. डॉ. कैलाश जोशी के रग रग में अपनी मातृभाषा के प्रति अटूट स्नेह व प्यार उनकी शुद्ध गढ़वाली में झलकता है. वे जब गढ़वाली बोलते हैं तो लगता है मानों शहद टपक पड़ा हो और जब अंग्रेजी फ्लो में बात करते हैं तो लगता है आप एक हाइली जेंटलमैन की बगल में बैठे हैं.
(पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से अनौपचारिक मुलाक़ात के दौरान डॉ. कैलाश जोशी )
उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से अनौपचारिक बैठक के दौरान जब ये दो शख्स आमने सामने बैठे तो प्रदेश के हर उस मुद्दे पर गहन चर्चा हुई जिससे प्रदेश की आर्थिकी बढ़ सके. सामजिक परिवेश बुलंदियों पर रहे व पहाड़ के रीते खंडहर गाँव आबाद हो सके. बंजर खेतों में हरियाली फसल लहलहा सके. उत्तराखंड की लोक संस्कृति व धर्मस्व पर्यटन विश्व मानचित्र पर अंकित हो सके. डॉ. कैलाश जोशी के इस प्रश्न पर मैं हतप्रभ रह गया जब उन्होंने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से कहा था कि आप बताओ कितने मिलियन डॉलर्स का इन्वेस्टमेंट उत्तराखंड में करवाना है मैं जिम्मेदारी लेता हूँ! आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि मैं कितना पैंसा उत्तराखंड में ला सकता हूँ लेकिन बदले में मुझे ऋषिकेश के आईडीपीएल की जमीन दिलवा दीजिये जहाँ मैं हर साल पांच हजार युवाओं का भविष्य संवार सकूँ! जहाँ मैं निरंतर हो रहे पलायन की लगाम थाम सकूँ क्योंकि मैं पलायन की पीड़ा बहुत भले से जानता हूँ! आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन वह खेत खलिहान गाँव का आँगन मुफीद नहीं है जहाँ मैंने अपने बचपन के कई कीमती बर्ष गुजारे थे. मैं हतप्रभ हूँ कि इतने बर्षों बाद भी मेरे गाँव में हालात ज्यों के त्यों हैं बल्कि बद से बदत्तर हो गए!
(पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के आवास में डॉ. कैलाश जोशी, लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्डधारी मनीष जोशी व चौबटटाखाल क्षेत्र के नीरज पांथरी)
पर्यटन मंत्री से मुलाक़ात के पश्चात डॉ. कैलाश जोशी बोले- पहली बार लग रहा है कि प्रदेश के किसी मंत्री के पास बेहतर सोच और कार्यप्रणालियाँ हैं लेकिन मुझे डर है कि इन्हें इम्प्लीमेंट करने के लिए हमारे पास हेल्पिंग हैंड होंगे भी या नहीं. क्योंकि अगर ये प्लान अपना मूल रूप ले लें तब हमें मान लेना चाहिए कि हम पर्यटन के माध्यम से हजारों लोगों को रोजगार प्रदान तो कर ही सकते हैं साथ ही सम्पूर्ण विश्व का पर्यटक बारहों माह उत्तरखंड की धरती को चूमने का मन बनाया रहेगा.
डॉ. जोशी ने अपने कैरियर की शुरूआती दौर की जानकारी देते हुए बताया कि मेरठ विश्वविद्यालय से बीएससी करने के पश्चात उनके परिजनों ने उन्हें बीईई करने के लिए आईआईएस बंगलोर भेज दिया. वे वहां से पढ़ाई करके अभी लौटे भी नहीं थे कि उनका बोरिया बिस्तर अमेरिका के लिए बंध गया. और 1963 में वे अग्रिम पढ़ाई के लिए अमेरिका चल दिए.
(डॉ. कैलाश जोशी लेखक मनोज इष्टवाल के साथ)
उन्होंने बताया कि उस समय अमेरिका की टिकट 3000 रुपये की थी जिसकी कीमत वर्तमान समय में लाखों रुपये हुई और उस दौर में तीन हजार रूपया किसी धनासेठ के पास भी बमुश्किल हुआ करता था ऐसे में कफोलस्यूं थापली में उनके मामा जोकि थपलियाल थे और उस जमाने के प्रसिद्ध लोगों में से थे, ने उनकी टिकट की व्यवस्था करवाई. तब पूरे हिन्दुस्तान से मात्र 100 छात्र ही अग्रिम पढ़ाई के लिए विदेश जा सकते थे. सबसे बड़ी बात तब यह थी कि कोई भी अपने साथ 8 डालर से अधिक रकम नहीं ले जा सकता था, और तब रुपये को डालर में बदलने के लिए रिजर्व बैंक कानपुर जाना पड़ता था.
(पर्यटन मंत्री के साथ डॉ. कैलाश जोशी व उनके भतीजे मनीष जोशी)
वे हँसते हुए कहते हैं कि उस समय माँ बाप कितने सीधे और सच्चे रहे होंगे या वह बेटा कितना साधारण रहा होगा जिसकी टिकट तो तीन हजार की है लेकिन उसे विदेश में जीवन यापन के लिए मात्र 40 रूपये ही खर्चे के लिए सरकारी फरमान के आधार पर ले जाने होते थे और माँ बाप ने एक बार भी नहीं सोचा कि अगर लड़का किसी कारणवश विदेश में रह नहीं पाया तो वापस अपने देश लौटेगा कैसे.
अपने संस्मरण याद करते हुए डॉ. जोशी बताते हैं कि उन्होंने एम एस वाशिंटन स्टेट यूनिवर्सिटी से करने के पश्चात पीएचडी कार्नेल यूनिवर्सिटी से की और मात्र 26 साल की उम्र में 4 ऐसी डिग्रीयां हासिल कर ली जो उस काल में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती थी. अपनी नौकरी की शुरुआत आईबीएम कम्प्यूटर से करने वाले डॉ. जोशी ने अपनी मेहनत के बूते पर इस कम्पनी के शीर्ष पद वाईस चेयरमैन तक अपनी सेवाएँ दी व वाईस चेयरमैन से सेवानिवृत्ति के पश्चात TiE (The Indus Entrepreneurs) नामक एक समूह की स्थापना की जिसके वह सह संस्थापक रहे व टाई सिल्लिकन वैली के अध्यक्ष व टाई ग्लोबल के 2001 से लेकर 2004 तक वाईस चेयरमैन बने.
(डॉ. कैलाश जोशी अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ 1998)
वे पहले ऐसे ब्यक्ति रहे जिन्होंने 1991 में भारत बर्ष को दुबारा आईबीएम कम्प्यूटर से जोड़ा और पहले ऐसे उत्तराखंडी जो 1998 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ दौरे पर आये डेलिगेट्स में प्रमुख रहे. वे तब सबसे ज्यादा चर्चा में आये जब भारत के गुजरात भुज में 2001 में भूकम्प ने तबाही मचाई तब उन्होंने अमेरिकन इंडियन फाउंडेशन नामक एक ऐसी संस्था का गठन करवाया जिसके चेयरमैन स्वयं तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन थे और वे स्वयं उसके अध्यक्ष बने. तब से लेकर अब तक यह संस्था हर बर्ष भारत में 400 से 500 करोड़ उन मदों में खर्च करती है जो आपातकाल से जुड़े हों. यूँ तो उनके व्यक्तित्व में जुड़े कई हीरे और भी हैं लेकिन 1988 में वे सह संस्थापक ब्लूग्रास इंडो-अमेरिकन सिविक सोसाईटी बने उन्होंने अमेरिका की भारतीय सामूहिक केंद्र (इंडियन कम्युनिटी सेंटर) के सह अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी कई सालों तक निभाई. 15 से अधिक बोर्ड, शैक्षिक संगठन, व्यापारिक संगठन और सहायतार्थ संस्थानों के लिए वे वर्तमान तक भी सेवारत हैं. वे 2004 से अमेरिकन असोशियशन ऑफ़ फिजिशियंस ऑफ़ इंडियन ओरिजिन ( American Association of Physicians of Indian Origin (AAPIO)) के ट्रस्टी भी हैं.
यही नहीं डॉ. कैलाश जोशी द्वारा एक चर्चित किताब को भी संपादित किया गया जिसका नाम एसेंशियल ऑफ़ इंटरप्रेंयूर्शिप (“Essentials of Entrepreneurship”) है. उनके समूह द्वारा संचालित (फाउंडेशन फॉर एक्सेलेंसी) 2001-2002 से वर्तमान तक लगातार उत्तराखंड में इंजीनियरिंग व एमबीबीएस के बच्चों को स्कालरशिप प्रदत्त कर रही है. यही नहीं वे 2008 से 2012 तक इस फाउंडेशन के अध्यक्ष रहे हैं और हंस फाउंडेशन के साथ मिलकर उत्तराखंड ही नहीं देश के कई हिस्सों में अपनी सेवाएँ प्रदत्त करते आ रहे हैं.
भले ही आज उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न राज्य स्वास्थ्य सेवाओं की आकस्मिक 108 का लाभ ले रहे हों लेकिन यह शायद बहुत कम को जानकारी होगी कि यह आईडिया डॉ. कैलाश जोशी ने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री जनरल खंडूरी को दिया था क्योंकि वे 2008 में इसे हैदराबाद व आंध्र प्रदेश में लागू करवा चुके थे जिसके काफी कारगर परिणाम सामने आये थे.
आपको बता दें कि तत्कालीन मुख्यमंत्री जनरल खंडूरी और तत्कालीन राज्यपाल बी एल जोशी से लम्बी बात के पश्चात आखिर 108 सेवा उत्तराखंड में शुरू हुई लेकिन इसकी शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के काल में हो सकी. आज पूरे राष्ट्र के लिए यह आकस्मिक स्वास्थ्य सेवा वरदान साबित हो रही है.
(डॉ. कैलाश जोशी लेखक मनोज इष्टवाल के साथ)
बर्ष 2005 में देश के महान राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा उन्हें हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल में उनके विश्व स्तरीय कार्यक्षेत्र को देखते हुए डॉक्टर ऑफ़ साइंस की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया गया.
डॉ. जोशी वर्तमान में 76 बर्ष के हो गए हैं. उनकी चिंता है कि प्रदेश में जितनी तेजी से पलायन हो रहा है उस पर अंकुश लगाने के लिए राज्य के पास कोई महत्वपूर्ण कार्ययोजना नहीं है. वे कहते हैं कि उनके पास ऐसी एक कारगर योजना है कि पलायन और बेरोजगारी एक साथ थमेगी. प्रदेश के पास भरपूर संसाधन हैं भी लेकिन वह किसी को दिखाई नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि विश्व भर के व्यवसायी उनके कहने पर अरबों रूपये का इन्वेस्टमेंट करने के लिए तैयार बैठे हैं यदि सरकार चाहे तो ईमानदारी के साथ अपनी इस समस्या को चुटकी में हल कर सकती है.
वे जहाँ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व सामाजिक स्तर पर आ रहे तेजी से गिरावट कि देखकर हतप्रभ हैं, वहीँ वर्तमान में अमेरिका में हिन्दूओं में अपने धर्म और संस्कारों में आ रही अरुचि को देखकर कांसलिंग की भूमिका भी निभा रहे हैं और पूरे अमेरिका के हिन्दू धर्मावलम्बियों में गीता का ज्ञान बाँट रहे हैं.
काश….उत्तराखंड सरकार ऐसे महान पुरुष को अपने प्रदेश में व्यापार का न्यौता देती ताकि विदेशी कम्पनियां व अन्य कई रोजगार यहाँ आते और 8 डालर के इस आदमी की भाँति पुन: नयी सदी में कोई उत्तराखंडी विश्व फलक पर यूँही सितारा बन टिमटिमाता जैसे डॉ. कैलाश जोशी ने आदिदेव महादेव के कैलाश क्षेत्र में जन्म लेकर पूरे देश व प्रदेश का नाम रोशन किया हुआ है.
Devbhoomi dhanya hai , hume garv hai ki joshi ji jaise Kohinoor hamri pavitra dharti se hain… Jinke kaaran na jane kitne bhartiya labhawnwit hue hain kisi na kisi roop me… Aur ab umar ke is padaaw me bhi devbhoomi ke liye kuchh behtreen karne ki echha rakhten hain …. Aaj jeewan me pahli baar inka parichay jaan kar garv ho raha hai ki aise laal bhi is dev bhoomi ne apni maati se janme hain … Mai uttrakhand sarkaar se apeel karunga ki joshi ji ke margdarshan me apne kadam agr barhayen jis se devbhoomi ka bhala ho sake….aur istwaal ji ka bhi bahut bahut dhanyawad ,
शुक्रिया जी!