विश्व पर्यावरण दिवस पर सलूट…ऐसे वीरों को जिन्होंने उजडती मसूरी की गोद में हरियाली भर दी!
विश्व पर्यावरण दिवस पर सलूट…ऐसे वीरों को जिन्होंने उजडती मसूरी की गोद में हरियाली भर दी!
(मनोज इष्टवाल)
गगन को चूमती धूल और माइनिंग से वीरान खंडहर चमकते मसूरी के पहाड़ व गर्मियों में 40 डिग्री तक छूता मसूरी का तापमान! यही वह कटु सत्य है जिसने 1960-70 के दशक में मसूरी की आवोहवा को ऐसा ग्रहण लगा दिया था कि इसके जहरीले प्रदूषण ने देहरादून तक की फिजा ख़राब कर दी थी. ये वही वक्त था जब देहरादून के दिल से बहने वाली सदावाहिनी रिस्पना और बिंदाल नदियाँ धरती के गर्भ में समा गयी. दून घाटी में खिलखिलाकर हंसने वाली बासमती चावल की खुशबु में इन नदियों का दूषित जल-मल ही अब सिंचाई के लिए शेष बचा था. ट्यूबबेल धरती का सीना चीरकर धरती में समाई बिंदाल, रिस्पना सहित कई छोटी छोटी नदी नालों के पुनर्जीवन की कथा का बखान करते फिर भी मनुष्य की भूख कैसे शांत हो. रोजगार के नाम पर मसूरी के आस-पास का सारा इलाका छूना खदान में बदल चुका था और यही खूबसूरत शहर बुढ़िया के खोखले पीले दांतों की तरह दिखने लगा था.
मसूरी का यह दर्द जिसने सबसे पहले समझा वह व्यक्ति हिन्दुस्तानी नहीं बल्कि विदेशी था जिनका नाम था वैज्ञानिक डॉ. नार्मन बोर्लोक (नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्व में हरित क्रान्ति के जन्मदाता) ! इन्होने जब इस सम्बन्ध में चेताया तब कई बुद्धिजीवि उठ खड़े हुए और उन्होंने इस सम्बन्ध में कई पीआईएल कोर्ट में डाली. डॉ. नार्मन वोडो ने इस सम्बन्ध में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी अपनी रिपोर्ट सौंपी! देहरादून के डॉ. अवधेश कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में मसूरी क्षेत्र में हो रही माइनिंग से खत्म होते शहर की दास्ताँ बयान की उन्होंने कहा कि अगर यही चलता रहा तो वे सिर्फ मसूरी ही नहीं खूबसूरत देहरादून भी तबाह कर देंगे. उनकी पीआईएल के बाद माइनिंग बंद हुई और उन्हें इसी सम्बन्ध में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया!
(मलारी घाटी में ग्रामीण सहभागिता से फलदार वृक्षारोपण करती इको फ़ोर्स)
पर्यावरण पर भले ही चिपको आन्दोलन से जुड़े नेता चंडी प्रसाद भट्ट व डॉ. अवधेश कौशल पद्मश्री के सम्मान से सम्मानित हो चुके हों. उनके ऐसे कृत्य को सलाम ! लेकिन ये कोई नहीं जानता कि राजपुर से मसूरी हाथीपाँव तक लगभग 3400 हेक्टेअर जमीन को हरा भरा करके मसूरी को पर्वतों की रानी व राजपुर को राजधानी देहरादून का सबसे महंगा पाश क्षेत्र बनाने के पीछे कौन हाथ थे जिन्होंने 1984 से लेकर 1994 तक अथक प्रयासों से उजड़ते मसूरी को हरियाली से ढक दिया!
(विश्व पर्यावरण दिवस पर देहरादून में पत्रकारों को वृक्षारोपण करवाते कर्नल राना व उनकी टीम)
हैरत तो इस बात की होती है कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह पता चलता है कि मसूरी की माइनिंग ने पूरे शहर की आवोहवा खराब कर दी और वहां चारों और माइनिंग ही माइनिंग हो रही है तब वे हैलीकाप्टर से क्षेत्र का जायजा लेने आई तो पता चला तत्कालीन उत्तर प्रदेश के जंगलात विभाग के शेरों ने साड़ी माइनिंग क्षेत्र को हरे रंग से ढककर यह जता दिया कि वे कितने काबिल हैं लेकिन किसी व्यक्ति द्वारा जब इस क्षेत्र के फोटो पीएमओ पहुंचाए गए तब हकीकत सामने आई.
(मलारी घाटी में ग्रामीण सहभागिता से फलदार वृक्षारोपण करती इको फ़ोर्स)
आखिर 1 दिसम्बर 1982 में भारत सरकार के गृह व रक्षा मंत्रालय के सानिध्य में गढ़वाल राइफल्स द्वारा गढ़वाल राइफल्स 127 (टीए) इको टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया जिसने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में मोहंड के वन विभाग में प्रशिक्षण लेकर वह क्षेत्र डेंस फारेस्ट में तब्दील कर दिया. जिसके लिए उन्हें 6 साल दिए गए थे वह कार्य इस फ़ोर्स ने मात्र दो साल में ही पूरा कर दिया. तदोपरांत इस इको फ़ोर्स को देहरादून के मसूरी क्षेत्र में 24 वैध व अवैध रूप से चल रही लगभग 400 माइनिंग को बंद करने व वह क्षेत्र जंगल में तब्दील करने की जिम्मेदारी दी गयी ! इन्होने बखूबी अपने कार्य को अंजाम दिया और 18-20 लाख वृक्ष लगाकर उनकी बच्चों के सामान देखभाल कर देहरादून व मसूरी में जलवायु परिवर्तन ला दिया. आज मसूरी अगर जीवित है या फिर राजपुर रोड पर्यावरणीय दृष्टि से शुकून देती है तो उसका श्रेय गढ़वाल राइफल्स 127 (टीए) को जाता है. लेकिन क्या हम यह सब जानते हैं? ज्यादात्तर का जवाब होगा नहीं! और वह इसलिए क्योंकि फ़ौज काम करती है नेतागिरी नहीं और यही कारण भी है कि बिना स्वार्थों के काम करने वाली हमारी यह फ़ोर्स आज भी हमको पर्यावरणीय सुरक्षा का आभास करवाती है.
विश्व पर्यावरण दिवस पर देहरादून के पत्रकारों के साथ इको टास्क फ़ोर्स के पार्क में वृक्षारोपण करने के पश्चात 127 इन्फैंट्री बटालियन (टीए) गढ़वाल राइफल्स के कमांडिंग अफसर कर्नल हरी राज सिंह राणा ने जानकारी देते हुए बताया कि यह पहली विश्व की पर्यावरणीय यूनिट है जिसकी सात बटालियन सिर्फ और सिर्फ यही कार्य देख रही हैं कि किस तरह पर्यावरणीय संतुलन के हिसाब से देश हमेशा आगे रहे. उन्होने बताया कि गंगा के लिए भी हमारे द्वारा दो इको टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है जो गंगा की स्वच्छता के लिए कार्य करती रहेगी.
उन्होंने जोर देकर कहा कि सिर्फ पेड़ खड़े कर देने से जंगल नहीं बना जाते बल्कि उन्हें हमने साथ अपना पूरा कुनवा चाहिए होता है जैसे मनुष्य या पशु पक्षी अपने परिवार के बिना जी नहीं पाता ठीक पेड़ की ग्रोथ के लिए भी वही सब काम होता है. उन्हें अपने आस पास घास हरियाली, कीट पतंगे तितली सांप सभी को महसूस करने की जरूरत होती है इसलिए स्वस्थ पेड़ के लिए उसके आस-पास यह सब होना अति आवश्यक है.
कर्नल एच आर एस राना ने बताया कि वे अब मिक्स फारेस्ट के लिए काम कर रहे हैं जिसमें फल भी हों फूल भी हों, चारापत्ति हो, इमारती लकड़ी भी हो और ईंधन वाली लकड़ी भी ताकि मनुष्य, जानवर व छोटे बड़े सांसारिक सभी जीवियों का लालन पालन चल सके. न तब जंगली जानवर आबादी का रुख करेंगे और न ही हमारा पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा.
ज्ञात हो कि बर्ष 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा यह यूनिट इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है. मसूरी क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए इको टास्क फ़ोर्स ने जहाँ इस क्षेत्र में 18-20 लाख वृक्ष लगाए वहीँ 3473 अवरोध बाँध, 417 प्र्तिधार्क दीवार, 26 अवरोधकों का निर्माण कार्य कर इसे खूबसूरत मसूरी में तब्दील कर डाला. इन जवानों ने बेहद तीखे ढालों पर वृक्षारोपण के लिए पौध अपनी पीठ पर लाधकर पहुंचाई और नियमित इन पौधों की देखभाल कर इन्हें जवान होते देखा.
(मलारी घाटी में ग्रामीण सहभागिता से फलदार वृक्षारोपण करती इको फ़ोर्स)
कर्नल एच आर एस राना ने बताया कि सैन्य प्रमुख विपिन रावत के आदेश पर उनके द्वारा नीति घाटी के मलारी से लेकर बाम्पा तक लगभग 10 किमी तक फैले गाँवों में 4000 फलदार वृक्षों का रोपण करवाया है जिसमें लगभग 50 जवानॉन ने अपनी भागीदारी निभाई. उन्होंने बताया कि ग्रामीण भागीदारी के तहत बेहद योजनाबद्ध तरीके से हर व्यक्ति को तीन चिलगूजे व तीन कागजी अखरोट के पेड़ दिए गए जिन्हें समझाया गया कि किस तरह पेड़ के लिए गड्ढाखोदना है कैसे खाद देनी है व किस तरह समय समय पर उसकी देख रेख बच्चे के समान करनी होती है. उन्होंने बताया कि मलारी, बाम्पा, मेहरगांव, कैलाशपुर इत्यादि में ये वृक्ष इसलिए भी ज्यादा लाभकारी हैं क्योंकि यहाँ का तापमान इसके लिए बेहद माकूल है. उन्हें उम्मीद है कि ये पेड़ आने वाले समय में यहाँ के लोगों के लिए आय का बड़ा जरिया साबित होंगे.
कर्नल एच आर एस राना ने ग्राम पाखी गरुड़ गंगा चमोली गढ़वाल के बूढ़े दम्पति श्रीमती व श्री भादू राम के बिषय में जानकारी देते हुए बताया कि वे इस पर्यावरण मित्र को आज समानित करना चाहते थे जिसने उन्हें लगभग डेढ़ कुंतल बीज उपलब्ध करवाया है जिस से हम झाजारो-हजार वृक्षों की पौध तैयार कर सकते हैं उन्होंने फ़ौज के उन जवानों से भी अनुरोध किया है कि वे आकर इको टास्क फ़ोर्स ज्वाइन करें जिनकी उम्र अभी 40 के आस-पास है और वे सेवानिवृत्ति लेकर या तो घर बैठे हैं या फिर किसी घर या कम्पनी में चौकीदारी कर रहे हैं.
वहीँ मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) एच.के. सिंह ने दूरभाष पर हुई बातचीत में काहा कि पर्यावरण पर अभी हम सबके द्वारा मुश्किल से 50 प्रतिशत काम हो पाया है इसके लिए हमें अपना 100 प्रतिशत देना होगा लेकिन इस सौ प्रतिशत के पीछे जब तक सौ प्रतिशत ईमानदारी नहीं होगी तब तक हम सफल नहीं हो पायेंगे. फ़ौज की यह यूनिट अपना काम बखूबी अंजाम दे रही है अब हम सिविलियंस को भी पर्यावरण को संतुलित रखने में उतना ही ईमानदार होना पडेगा जितना हम व्यक्तिगत रूप में अपने व अपने परिवार के लिए होते हैं. इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय के डॉ. दुर्गेश चन्द्र त्रिवेदी ने बताया कि विश्वविद्यालय के कुलपति ने आश्वस्त किया है कि पर्यावरणीय कार्यों के लिए विश्वविद्यालय व उसके छात्र हरदम तैयार हैं. ज्ञात हो कि वर्तमान में देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आवासीय सुविधाओं का लाभ उठाने वाले देश विदेश के लगभग 1276 विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जबकि इंटरमीडिएट तक स्कूल में सीबीएसई की पढ़ाई के लिए बच्चे बाहर रहकर यहाँ पढ़ाई कर रहे हैं. इस अवसर पर लेफ्टनेंट कर्नल ने स्लाईट शो के माध्यम से इको फ़ोर्स द्वारा हाल ही में मलारी बाम्पा क्षेत्र में किये गए फलदार वृक्षारोपण के बारे में जानकारी प्रदान की ! इको टास्क फ़ोर्स द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में हाई फीड के निदेशक उदित घिल्डियाल, देवभूमि मीडिया न्यूज़ पोर्टल के सीईओ राजेन्द्र जोशी, एचएनएन न्यूज़ चैनल के चैनल हेड अरुण शर्मा, राष्ट्रीय सहारा के वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन सिंह बिष्ट, टीवी लाइव के ब्यूरो चीफ़ (उत्तराखंड) मनोज इष्टवाल, लंबा सफ़र की संपादक गीता बिष्ट इत्यादि ने इको टास्क फ़ोर्स के जवानों के साथ वृक्षारोपण किया.