विक्टोरिया क्रास दरबान सिंह नेगी के पौत्र निर्विरोध प्रधान चुने गए!
चमोली 20 सितम्बर 2019 (हि. डिस्कवर)

यह सचमुच सुखद पहलु होता है जब कोई ग्राम सभा अपना प्रतिनिधि निर्विरोध नामांकित करती है लेकिन उससे बड़ी बात यह होती है कि ग्राम सभा जिसे निर्विरोध ग्राम प्रतिनिधि चुन रही है उसका पारिवारिक व सामाजिक स्तर कैसा है! ऐसा ही एक प्रकरण विकासखंड नारायण बगड जिला चमोली के ग्राम सभा कफारतीर का प्रकाश में आया है जहाँ ग्रामीणों द्वारा उत्तराखंड के पहले विक्टोरिया क्रॉस दरबान सिंह नेगी के पौत्र सुदर्शन सिंह नेगी को अपनी ग्राम सभा से निर्विरोध ग्राम प्रधान नामित किया है!
पत्रकार शिव प्रसाद सती बताते हैं कि सुदर्शन सिंह नेगी ग्राम कफारतीर जो विक्टोरिया क्रॉस दरवान सिंह नेगी के पौत्र हैं को आज खबर सुनी कि गांव वालों ने निर्विरोध प्रधान चुन लिया है। सुदर्शन सिंह नेगी मेरा सहपाठी भी रह चुका है। कफारतीर की बुद्धिजीवी जनता को हार्दिक बधाइयां चुना उन्होंने अपना निर्विरोध प्रधान सुदर्शन सिंह नेगी सन ऑफ स्व राजेंद्र सिंह जी, नारायणबगड़ चमोली गढ़वाल विक्टोरिया क्रॉस दरवान सिंह नेगी के पैतृक गांव व परिवार से हैं। मेरी तरफ से ग्राम कफारतीर वालों और सुदर्शन सिंह नेगी को बधाई एवं शुभकामनाएं। सभी लोग कोशिश करें की निर्विरोध प्रधान चुनने की कोशिश करें।

आपको जानकारी दे दें कि विक्टोरिया क्रॉस विजेता दरबान सिंह नेगी (नवम्बर 1881 – 24 जून 1950 ) चंद पहले भारतीयों में से थे जिन्हें ब्रिटिश राज का सबसे बड़ा युद्ध पुरस्कार मिला था। वे करीब 33 साल के थे और 39th गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में नायक के पद पर तैनात थे। उन्हें 4 दिसम्बर 1914 को विक्टोरिया पुरस्कार प्रदान किया गया।
प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस में उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों पर धावा बोला ! युद्ध में दोनों तरफ से भयंकर गोली बारी हुई। इनकी टुकड़ी के कई साथी गह्यल और शहीद हो गये। इन्होने खुद कमान अपने हाथ में लेते हुए दुश्मनों पर धावा बोल दिया। इनके सर में दो जगह घाव हुए और कन्धे पर भी चोट आई, परन्तु घावों की परवाह न करते हुए अदम्य साहस का परिचय देते हुए आमने सामने की नजदीकी लड़ाई में गोलियों और बमों की परवाह ना करते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।
ये सूबेदार के पद से सेवानिवृत हुए ! विक्टोरिया क्रॉस ग्रहण करने के समय इनसे अपने लिए कुछ मांगने की मांग रखी गई, इन्होने कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बनाने की मांग की। जिसको मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1924 में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का सर्वे कार्य पूरा करा लिया।