वाह कामरेड…..21वीं सदी की पत्रिकारिता पर जो कह गए वह अक्षरत: सच!
(मनोज इष्टवाल)
*ग्रामीण पत्रकारिता उत्तराखंड में बाल, भालू, सुअर पर केन्द्रित होगी!
*पहाड़ सिमटकर मैदान में आ जाएगा और परिसीमन रही सही विधायकों की सीटें भी मैदान में ले आया!
*बड़े मीडिया घराने पत्रकारिता की जगह व्यवसाय में उतर आयेंगे!
*21वीं सदी में सोशल मीडिया प्रभावशाली होगा और पत्रकारिता जगत के लिए आइना भी साबित होगा!

ऐसे बिरले पत्रकार ही देखने सुनने को मिलते हैं जो सामाजिक मूल्यों के साथ सर्वपक्षीय पत्रकार कहलायें हों! और अगर कोई पत्रकार कामरेड हो वह सर्वपक्षीय बात कहे तो वह और भी आश्चर्यजनक कहा जा सकता है! वह ऐसा बिरला व्यक्तित्व रहा जिसने खुलकर जनमंच के माध्यम से आये दिन हर सरकार पर हल्ला बोला! हर एक की लड़ाई को आन्दोलन के रूप में खड़ा किया लेकिन फिर भी कभी उसके दामन पर एलआईयू रिपोर्ट या किसी सरकार ने अर्बन नक्सल या नक्सलाइट कामरेड का तमगा नहीं लगाया ! ऐसा मेरा मानना है! 65 साल के इस पत्रकार ने पत्थर भी फोड़े तो अपनी कलम उठाकर कई सत्तासीन नेताओं व मजबूत अफसर लॉबी की खूब बखिया भी उड़ाई! फिर भी कभी खुलकर किसी ने ये दाग नहीं लगाया कि यह सब करने के लिए इसका हथियार ब्लैकमेलिंग रहा है!
यही कारण भी है कि इस विलक्षण प्रतिभा के धनि पत्रकार राजेन टोडरिया के पुण्यस्मृति दिवस पर पत्रकारिता जगत के सभी वर्गों के प्रबुद्ध पत्रकार आज प्रेस क्लब के सभागार में उपस्थित थे! आज से लगभग 10 बर्ष पूर्व अर्थात 09 सितम्बर 2011 में दिया गया उनका वह उदबोधन वर्तमान की पत्रकारिता ही नहीं बल्कि सामाजिक मूल्यों एवं सांस्कृतिक विपन्नताओं का वह आइना है जिसे आज हम सब स्वीकार कर रहे हैं! उनके तब के दिए गए बयान ने 21वीं सदी में क्या होने वाला है! ऐसा लगा मानों कोई दिव्य पुरुष उत्तराखंड का भविष्य पूर्व से ही जानता हो!
स्वतंत्र पत्रकार जे.पी. पंवार द्वारा चैनल माउंटेन तैयार किया गया राजेन टोडरिया पर वृत्त चित्र जिस तरह से आज की सच्चाई उजागर करता दिखाई दे रहा है वह सचमुच आश्चर्यजनक है! मुझे अच्छे से याद है कि यह संबोधन उन्होंने देहरादून स्थित हिंदी भवन के सभागार में “हिमालय दिवस” के रूप में दिया था व 21वीं सदी में होने वाले कायाकल्प पर बेहद गंभीरता से ये बातें रखी थी! तब मैं भी प्रत्यक्षदर्शी था और उन पर हंस रहा था कि कामरेड क्यों ऐसे खयाली पुलाव पकाते हैं! आज जब उसी बयान को बर्षों बाद सुना तो हतप्रभ रह गया कि यकीनन यह ब्यक्ति कितना बड़ा भविष्य वक्ता रहा है!
राजेन टोडरिया मेरे लिए बड़े भाई के समान रहे लेकिन यह भी सच है कि मैंने उनकी विचारधारा के उन तामसी तेवरों से हमेशा दूरियां बनाए रखी जिनकी उग्रता आन्दोलनों का रूप अख्तियार कर लेती थी! उनका हर लेख मैं इसलिए पढता था क्योंकि उनकी लेखन शैली से मुझे प्रतिस्पर्दा करने का मन होता था! वे मेरे आदर्श तो नहीं लेकिन वरिष्ठ थे! पत्रकारिता में भी और उम्र में भी..! इसलिए उनके लिए हमेशा मेरी आँखों में मान-सम्मान रहा और जब भी हम मिले बेहद विन्रमता पूर्ण हमारी आपसी बातचीत रही! वे कहते भी थे कि इष्टवाल भाई…कोई और चैनल देखो! इस चैनल में घर ग्रहस्थी का गुजारा हो जाता होगा मुझे संदेह है! तुम में ऊर्जा है और यह ऊर्जा एक दिन तुम्हे स्थापित जरुर करेगी बस इन्तजार है तो एक ऐसे मंच का जहाँ तुम्हे पढने वाले कद्रदान हों!
यकीनन आज राजेन जैसा लिख्वार अग्रज हमारी पत्रकारिता के क्षितिज का एक बिंदु जरुर बन गया है लेकिन उनकी कही बातें वर्तमान में अकाट्य साबित होती दिखाई दे रही हैं! उन्होंने सबसे बड़ा प्रहार तब पत्रकारिता के बदलते मूल्यों पर किया था व स्पष्ट सभी इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के बड़े घरानों को कटघरे में खड़े करते हुए जिस तरह विज्ञापन की पत्रकारिता पर तंज कसे वह रावण की नाभि भेदने जैसे थे! उन्होंने तब कहा था कि पत्रकारिता अब व्यवसाय में तब्दील होने लगी है! उत्तराखंड की बीती सरकारों या आने वाली सरकारों का 90 प्रतिशत विज्ञापन बजट बड़े मीडिया घरानों व 10 प्रतिशत छोटे पात्र-पत्रिकाओं के लिए होगा! कलम का जमीर बचेगा नहीं तो पत्रकारिता में पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन की समस्या व पत्रकारिता बाघ, भालू, सूअर पर केन्द्रित हो जायेगी!
राज्य निर्माण के बाद जिस तरह तेजी से जनसंख्या का घनत्व मैदानी भागों में बढ़ रहा है अगर 21वीं सदी में परिसीमन हुआ तो पहाड़ के भाग्य में मात्र 18-20 विधायक ही रह जायेंगे! उन्होंने सबसे सटीक बात जो कही वह पत्रकारिता के सचमुच लिए सचमुच ऐसा आइना है जिसमें पत्रकार अपनी शक्ल देखे तो शर्म महसूस करे! उन्होंने कहा था कि पत्रकारिता के बाजारीकरण से निराश होकर जहाँ मीडिया घराने अविश्वास के पात्र बनेंगे वहीँ सोशल मीडिया 21वीं सदी का दमदार हथियार बनेगा और जिसमें प्रतिभा होगी वह सरकारों को स्वयं ही अपने लेखों से आइना दिखाएगा क्योंकि प्रदेश की ही नहीं बल्कि राष्ट्र की पत्रकारिता का जब बाजारीकरण या व्यवसायीकरण हो जाएगा तब कोई भी ऐसा लेख आपको बड़े मीडिया घरानों में छपा नहीं दिखेगा जिस से किसी मंत्री विधायक या अफसर को अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़े या उन्हें हटाया जा सके!
लिखने के लिए राजेन टोडरिया जैसे विलक्षण पत्रकार पर बहुत कुछ है क्योंकि इतने शब्दों में ही उस सब पर लिखना एक अध्याय का अंत नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि आज ही के दिन यानि 5 फरवरी 2013 में आपका आकस्मिक अवसान जहाँ मीडिया जगत को हतप्रभ कर देने वाला था वहीँ पत्रकारिता के मूल्यों के साथ सर्वपक्षीय पत्रकारिता, लोकसमाज, लोकसंस्कृति की वकालत करने वाले आप जैसे प्रतिभावान पत्रकार वो भी कामरेड फिर कहीं दिखेंगे मुझे नहीं लगता! सादर नमन…!
क्या बोले थे हिमालयन दिवस पर राजेन टोडरिया आप भी सुनिये:-