वाह….कमली! हमें तुम पर नाज है! तुम्हारी जिद ने आखिर मुकाम हासिल कर ही लिया!

*शिक्षा और अशिक्षा के झूले में झूलती एक लोमहर्षक गढ़वाली गीत नाटिका है कमली..!

*हिमालयी सरोकारों को एक सूत्र में पिरोती यह कहानी हर ताने-बाने को बुनती हुई जब आगे बढ़ी तो सबने खड़े होकर उसकी सफलता पर ऐसे तालियाँ बजाई जैसे कमली सचमुच डॉक्टर बन कर लौटी हो!

(मनोज इष्टवाल)

परसों की ही बात थी जब देहरादून प्रेस क्लब में गीतकार/कवि गिरीश सुन्द्रियाल ने एक आमंत्रण पत्र पकडाते हुए कहा – दिदा, जरुर आना है ! समय जरुर निकालना है आपको! बगल में ही उनकी बेटी खड़ी थी ! बोले- यही है इस नाटक की कमली! कमली ने पहाड़ी संस्कारों के आधार पर झट से पाँव छुवे और मेरे मन से भी उसके इस संस्कार पर निस्वार्थ दुआऐ निकली और आशीर्वाद के लिए उसके सिर्फ पर हाथ ! गिरीश बोले- ये मेरी बेटी है अनुप्रिया! पहली बार किसी मंच पर अपने अभिनय की जिद को साबित करने के लिए खड़ी होगी! यह सब बोलते हुए लग रहा था कि उनके चेहरे में जो आत्म स्वाभिमान है वह सचमुच बेटी रत्न पाकर धन्य हैं! पास ही खड़ी श्रीमती सुन्द्रियाल भी बोल ही पड़ी कि जरुर आइयेगा! मैंने अभिवादन के साथ कह तो दिया कि जरुर आऊंगा… लेकिन जानता था बहुत भुलक्कड़ हूँ! ऐन समय कहीं नाटक से वंचित न रह जाऊं! खैर …आज पहुँच ही गया आई आर डी टी सभागार सर्वे चौक! शुक्र ये था कि तब नाटक शुरू नहीं हुआ था और डीजीपी उत्तराखंड पुलिस उत्तराखंड शासन अनिल रतूड़ी,पद्मश्री श्रीमती बसंती बिष्ट, अपर मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन श्रीमती राधा रतूड़ी, सुश्री झरना कमठान (निदेशक महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास), साहित्यकार व रंगकर्मी मदन डुकलान व रमेंद्र कोटनाला मंचासीन थे और “कमली” गढ़वाली गीत नाटिका के लेखक निर्देशक कुलानन्द घनशाळा उद्घोषक की भूमिका में थे! आखिर पर्दा गिरा और नाटक शुरू हुआ ..!

सच कहूँ तो प्रथम दृष्टा जब गढ़वाली गीत नाटिका देखनी शुरू की तो लगा बेहद कमजोर कड़ियों में इसे प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है! क्योंकि इसके संगीत निर्देशक आलोक मलासी ने इसकी शुरुआत रामलीला मंचन की राधेश्याम धुन पर इसके पहले गीत को कम्पोज किया हुआ था लेकिन जैसे जैसे यह गीत नाटिका आगे बढती गयी और कभी बाजूबंद, कभी न्योली, छपेली तो कभी ठेठ पहाड़ी चिर परिचित्त लोक धुनों पर आलोक मलासी, सुप्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती रेखा धस्माना उनियाल, रेनू बाला, मिलन आजाद, विपिन डोभाल आदि की आवाज ने कमाल के अभिनय से सजी इस गढवाली गीत नाटिका “कमली” में अपना जादू बिखेरना शुरू कर दिया! अब लगा कि लेखक निर्देशक कुलानंद घनशाला व संगीत निर्देशक आलोक मलासी ने इस नाटिका को ठेठ पहाड़ी लोक धुनों के साथ क्यों मंच पर उतारा है! शायद इसलिए कि इस गढ़वाली गीत नाटिका का कंसेप्ट पहाड़ी परिवेश व मंच आवरण सज्जा से बाहर भटके नहीं! “कमली” के पिता घमंड सिंह के अभिनय में प्रेमबल्लभ गोदियाल के चेहरे के हाव-भाव ठेठ उस गंवार अनपढ़ बाप की तरह रहे जिसे सिर्फ बेटी अपनी लोक लाज व कामकाज के लिए बनी एक ऐसी मशीन दिखती है जिसे पराये घर जाकर चौका चूल्हा बर्तन संभालने हैं जबकि कमली की उड़ान तो उसकी आँखों में तैरते उन सपनों ने तभी पूरी कर दी थी जब उसने प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल पास कर लिया था! आहा…सरुली यानि कमली की माँ की भूमिका में जहाँ श्रीमती सुषमा रावत के चेहरे पर पतिव्रता नारी के धर्म में पति सर्वोपरि दिखा वहीँ पहाड़ी परिवेश में घिसती-पिटती उस माँ की सम्पूर्ण पीड़ा दिखी जिसने भूतकाल व वर्तमान की अनपढ़ महिलाओं की हर दशा और दिशा जिसने ख़्वाबों में पलते बढ़ते अपनी बेटी के बचपन के सपनों को उड़ते पंछी से पर लगाये हों! अब वह भी चाहती है कि उसकी बेटी पढ़ लिखकर ऐसा मुकाम हासिल करे कि आस पड़ोस दुनियादारी के लोग देखें व जलन महसूस करें! भला एक अशिक्षित माँ इस से ज्यादा सोच भी क्या सकती है! लेकिन उसके पति व कमली के पिता घमंड सिंह को भला कौन समझाए! पुरानी सभ्यता ग्रामीण तहजीब में पला बड़ा हुआ अशिक्षित घमंड सिंह को कौन समझाए कि बेटी चाँद पर पहुँच गयी बेटी फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं! “कमली” ने तो हर सम्भव प्रयास भी किये!

अध्यापक केशवा नन्द (कुलानन्द घनशाला) के भी समझाने पर न मानने वाले हठी बाप की कमजोरी को भांपने वाली कमली यह जानती थी कि मेरी माँ की ज्यड जू (घमंड सिंह की बड़ी बहन जिसे आम गढ़वाली भाषा में कहीं जेठजू बोलते हैं लेकिन ठेठ चौन्दकोटि भाषा में ज्यड जू बोला जाता है) व मेरी फूफू सीमा (सरिता भट्ट) की बात मेरे पिता जी नहीं टाल पाएंगे! हुआ भी वही और पत्थरदिल घमंड सिंह आखिर पिघल ही गया! बेटी कमली जानती थी कि अब उसे करना क्या है! पहले उसने टॉप किया बाद में रिश्ता होने पर शर्त रखी कि वह जब तक डॉक्टर नहीं बन जाती तब तक शादी नहीं करेगी! वह डॉक्टर बनती है तो पूरा गाँव ख़ुशी से नाच पड़ता है! एक गरीब घमंड सिंह अचानक अपनी बेटी के डॉक्टर बन जाने पर सबसे अधिक खुश दिखाई देता है!पूरी गीत नाटिका की सबसे बड़ी खासियत उसकी शब्द सम्पदा को जोड़ते ताने-बाने में सम्माहित थी! कमली के माँ का डायलॉग “ज्यड जू” ठेठ गाँव की माटी का आभास करा रहा था तो गाँव के गल्दार झब्बर सिंह (बियर सिंह रावत) व गब्बर सिंह (मनवर सिंह रावत) ने अपने मंझे हुए अभिनय से खूब मनोरंजन करवाया! कमली के मंगेतर के रूप में राजेन्द्र (नवीन पोखरियाल) का छोटा सा किरदार था लेकिन उस किरदार में समाये शिक्षित समाज की सोच की बानगी दिखने को मिली! पातीराम (रतन सिंह रावत ) यानि पंडित की भूमिका भी पहाड़ी समाज के ताने-बाने को बुनती नजर आई! कमली के सहपाठी स्कूली दोस्त शम्भू (सुमित चतुर्वेदी), हरि (कार्तिक गोदियाल), रश्मि (ख़ुशी गोदियाल) भी अपनी अपनी भूमिका में खरे उतरे! अब आते हैं “कमली” का अभिनय निभा रही अनुप्रिया सुन्द्रियाल के अभिनय पर..! जो पहली बार देहरादून के इतने बिशाल मंच पर अभिनय के लिए उतरी थी! यह लड़की सचमुच कमाल के आत्मविश्वास के साथ पार्श्व गायन व डायलॉग की लिप्सिंग को मिलाकर जो चेहरे की भाव-भंगिमा प्रस्तुत कर रही थी! जो अभिनय के दौरान उसकी बॉडी लैंग्वेज थी ! दर्शक दीर्घा में बैठे उसके गीतकार गायक व कलाकार पिता गिरीश सुन्द्रियाल के पल पल बढ़ते रक्तचाप की खुशियों को अनंत उंचाइयां दे रही होगी यह मेरा मानना है! क्योंकि पूरा नाटक “कमली” के किरदार के इर्द-गिर्द घूमता दिखाई दे रहा था इसलिए यहाँ बतौर समीक्षक मैं अपने को ज्यादा बेचैन महसूस कर रहा था कि कहीं मंच पर पहली बार अभिनय की सीढ़ी चढने वाली इस बेटी पर इसके पिता मित्र गिरीश सुन्द्रियाल ने ज्यादा बोझ तो नहीं डाल दिया! लेकिन वाह “कमली” तेरे अभिनय की हर अदा ने सबको कायल बना दिया! “कमली” गढवाली गीत नाटक के समाप्त होने पर जिस कदर सर्वप्रथम अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी, डीजीपी अनिल रतूड़ी, सुश्री झरना कमठान (निर्देशक महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास) के साथ सम्पूर्ण सभागार की दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने खड़े होकर करतल ध्वनि से स्वागत किया यह साबित करता है कि जो इन सैकड़ों आँखों ने देखा वह प्रशंसनीय रहा! इस से पूर्व हिमालय लोक साहित्य एवं संस्कृति विकास ट्रस्ट के इस मंच से ही मंचासीन अथितियों द्वारा कुलानंद घनशाला के नाट्य संग्रह “रंगछोळ” का लोकार्पण किया गया! महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग उत्तराखंड सरकार द्वारा “बेटी बचाओ, बेटी पढाओ” अभियान हेतु प्रायोजित गढ़वाली गीत नाटक “कमली” का सफल मंचन अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा! मंच उदघोषक की भूमिका गिरीश सुन्द्रियाल ने निभाई!

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