लोकगायिका कबूतरी देवी…! जब उस लरजती खनकती आवाज से मिलने पिथौरागढ़ जा पहुंचा!

लोकगायिका कबूतरी देवी…! जब उस लरजती खनकती आवाज से मिलने पिथौरागढ़ जा पहुंचा!

(मनोज इष्टवाल)
अब उन्हें तीजन बाई कहूँ या अख्तरी बेगम! लेकिन लगता है उनको यह दोनों ही कहना ठीक नहीं है क्योंकि उनकी आवाज की लरज हो सकती है तीजन बाई सी हो और खनक हो सकता है बेगम अख्तर या अख्तरी बेगम सी हो लेकिन उनकी विधा दोनो की गायन विधा से अलग थी। छत्तीस गढ़ की तीजन बाई या फिर गजल ठुमरी गायन की मशहूर तीजन बाई अपनी अपनी विधाओं में मशहूर रही हैं लेकिन उत्तराखण्ड की लोकगायिका कबूतरी देवी ऐसी ठेठ लोकगायिका रही हैं जिन्होंने समसामयिक विषयों को बेहतरीन ढंग से उठाया है इसीलिए उन्हें ऋतुरैण की गायिका भी कहा जाता रहा है। उनकी आवाज में खनक के साथ जो माधुर्य था वह मरते दम तक उनके साथ रहा। उनके गीत वास्तविक जीवन की ऐसी कसौटी पर खरे उतरते नजर आते थे जो आम दिनचर्या को दर्शाने में सशक्त उदाहरण कहे जा सकते हैं।

 इस खनकती लरजती मधुर आवाज में कुमाऊं के लोकगीत इतने मधुर व कर्णप्रिय थे कि बस के सफर में एक कपोलकल्पना करते मन के कानों में रूणाट के रूप में जो गीत के बोल थिरकते वे “इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं” हुआ करते थे! समझ नहीं पाता था कि उनके वे बोल क्यों नहीं हृदय में उतरते जो अन्य वक्त में होंठ गुनगुनाया करते थे जिनमें – आज पनि जाऊं-जाऊं भोल पनि जाऊं-जाऊं, परसों तै न्हे जुला…..। व “पहाड़ को ठण्डो पाणि, के भली मीठी वाणी, टौण लै नि लागनि!” जैसे गीतों के बोल बचपन से ही हृदय पटल में मिश्री के घोल सामान गूंजते थे!

पहली बार मिलने जब गया तब बेहद आक्रोश में था क्योंकि कबूतरी देवी एक साल पहले अपना उज्जवला योजना के तहत गैस कनेक्शन के बाबत आवेदन दे चुकी थी और कई बार अपनी बेटी हेमंती के साथ गैस कार्यालय के चक्कर काट चुकी थी! अमर उजाला पिथौरागढ़ ने जब यह खबर उठाई और उसमें गैस कार्यालय पिथौरागढ़ के प्रबन्धक डी के जोशी ने साफ़ किया था कि किसी कारणवश उनका नाम इस योजना में शामिल नहीं हो पाया इसलिए उन्हें पुनः पूरी प्रक्रिया से निबटना होगा! शायद मई 2017 के मध्याहन की यह बात है! मैं यह शिकायत लेकर वित्त मंत्री प्रकाश पन्त जी के पास जा पहुंचा और उनसे बोला यह हम सबके लिए बेहद शर्मसार करने वाली बात है कि उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी एक साल से गैस कनेक्शन के लिए भटक रही हैं! तब प्रकाश पन्त जी ने अपने वरिष्ठ निजी सचिव एम.सी. जोशी को तत्काल फोन पर जिलाधिकारी पिथौरागढ़ सी. रविशंकर से बात करवाने को कहा और उन्होंने आश्वासन दिलाया कि कल उन्हें गैस कनेक्शन मिल जाएगा!
मैं भला कहाँ मानने वाला था रात को ही बस पकड़ी और सुबह 8 बजे पिथौरागढ़ पहुँच गया! गैस गोदाम व कार्यालय का पता किया और पूछा कि क्या कबूतरी देवी के नाम का गैस कनेक्शन जारी हो गया! गोदाम कर्मी बोला- अरे साब इस बुढ़िया के कारण सारा स्टाफ परेशान है कल वह यहाँ हंगामा करवाकर लौट गयी! डीएम साहब के तत्काल आदेश हुए कि उसे गैस दो लेकिन देते कहाँ वह तो क्वीतड चली गयी! मैंने पूछा यह क्वीतड़ क्या बला है वह बोला- यह उसका गाँव है साहब! मूनाकोट के पास ! है तो पिथौरागढ़ में ही!
खैर इन्तजार किया और आखिर लगभग ११ बजे के आस-पास कबूतरी देवी अपनी बेटी हेमंती के साथ पहुँच ही गयी! जो ब्यक्ति उन्हें उनके गाँव लेने गया था उसे यह जानकारी मिली कि वह गाँव नहीं गयी बल्कि रात पिथौरागढ ही अपनी बेटी के घर वड्डा रही! अब समस्या ये थी कि उनसे अपने परिचय कैसे दूँ! मैंने कहा – चलो देर से ही सही कनेक्शन तो मिल गया है! वह बोली- कान कम सुनती हूँ! उनकी बेटी बस कागज पत्र भरने में रही! फिर उन्हें गैस क्या मिली वो जल्दी से निकल ली! बोली- अभी जल्दी में हूँ फिर मिलती हूँ तुम्हे! मैं ठगा सा रह गया कुछ बोल भी नहीं पाया! और मुंह लटकाया वापस लौट आया! खैर देहरादून पहुंचकर मैंने मंत्री जी के दोनों निजी सचिव एमसी जोशी व भूपेन्द्र बसेड़ा का दिल से आभार व्यक्त किया और चलता बना!
दूसरी बार पिथौरागढ़ में उनसे मिलने के लिए छटपटाहट थी! कुमार कैलाश के एक नाटय समारोह में मुझे व वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल को सम्मानित करने के लिए बुलावा था! मैंने तय कर लिया था कि इस बार चाहे वह मूनाकोट अपने गाँव क्वीतड हों या फिर अपनी बेटी हेमंती के घर ! उनसे मिलकर जरुर आउंगा। उनकी लरजती खनकती आवाज में तीजन बाई, शमशाद बेगम या फिर अख्तरी बेगम (बेगम अख्तर) की रूह शामिल करूंगा!  लेकिन हे रे दुर्भाग्य …! कुमार कैलाश से जानकारी मिली कि वह भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित थी लेकिन अचानक तबियत खराब होने के कारण उनकी बेटी उन्हें लेकर हल्द्वानी सुशीला देवी अस्पताल ले गयी हैं!
यूँ आस कब किसकी पूरी हुई जो स्वप्न साकार करने की बात कहे! यूँ वेद विलास उनियाल भी लोक संगीत के चितेरे और मैं स्वयं भी ! यहाँ हमने रात भर लोकगीत सुने तो सही लेकिन वे कंठ कबूतरी देवी जैसी मिरासी के नहीं थे जिनके खानदान की पहचान ही लोकगायन से हुआ करती थी! और जिस कंठ से पिथौरागढ़ की सौर्याली व महाकाली पार डोटी आँचल के खनकते लरजते सुर धारा बनकर संस्कृति का जयगान करते हों उन्हें कान भला क्यों महसूस नहीं करते! मुझे यह पल हमेशा कचोटता रहेगा कि कपोत्री देवी से मिलकर भी मैं कबूतरी देवी को महसूस नहीं कर सका और न अपने हृदय की जिज्ञासा शांत कर सका! लेकिन गर्व से कहूंगा कि हाँ कबूतरी देवी से मेरी मुलाकात हुई!
(धन्यवाद अल्मोड़ा के नीरज व नैनीताल के अनिल कार्की जी, जिन्होंने मौके की नजाकत समझते हुए अपनी राय दी और वह राय उपयुक्त मान मैंने अपनी पोस्ट में क्षणिक संशोधन भी कर डाला)
 
 
 
 

2 thoughts on “लोकगायिका कबूतरी देवी…! जब उस लरजती खनकती आवाज से मिलने पिथौरागढ़ जा पहुंचा!

  • July 9, 2018 at 6:38 am
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    Ye kya galat jaankari publish kar rahe hain aap log..

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    • July 9, 2018 at 9:30 am
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      आप दुबारा पढ़ो। संशोधन के बाद। फोन पर आप ही ने बात की थी मुझसे

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