लोकगायक चंद्र सिंह राही के गीत को भुनाने में नाकाम रहा "राही घराना"!
लोकगायक चंद्र सिंह राही के गीत को भुनाने में नाकाम रहा “राही घराना”!
*परियों पर केंद्रित इस जागर ने रातों-रात अमित सागर को न सिर्फ गायक की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया बल्कि सुपर स्टार भी बना डाला।
(मनोज इष्टवाल)
“शिबजी का बगवाना सचै फूल फुल्यां छना।” नामक यह जागर मुख्यतः परीलोक लोक के उस तिलिस्म को समर्पित है जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड से अवतरित हुई ऐड़ी, आँछरी, परियों का वह आवाह्न है जो दैत्य संहार में शिबजी की सहायक बनी व बाद में देवभूमि उत्तराखण्ड के ताल बुग्यालों और फूल पत्तियों में समावेशित हो गयी। कभी यह जागर बसन्त ऋतु के आगमन में ऐड़ी, परी, आँछरी, जल छाया, थल छाया, गाड़ बोगिं, धार लमड़ी आत्माओं को उतारने के लिए गाई जाती थी। फिर डोली गुड्डी के साथ उनको बांकदार मुर्गा, काली बकरी, पंचमावा पंच मिठाई , श्रीफल के साथ पूजकर विदा किया जाता था। आज यही गीत हर शादी विवाह में आम पब्लिक की मनोरंजन की बानगी भर बन गया है।
सबसे पहले लोकगायक चन्द्र सिंह राही इसे डौंर थाली में आम जनमानस के सामने लाये जबकि यह जागर पुरातन काल से जागरी/धामी/बाजगी कलावन्तों के पास चली आ रही है।
लोकगायक चन्द्र सिंह राही के स्वर्ग सिधारने के पश्चात जब अमित सागर ने इसी जागर को चैत की चैत्वाली के रूप में मार्केट में उन्ही की मिलती कम्पोजिशन पर बाजार में उतारा तब शायद अमित सागर भी नहीं जानते रहे होंगे कि यह जागर उन्हें चन्द महीनों में ही सुपर स्टार बना देगी।
वहीं लोकगायक चन्द्र सिंह राही के बाद विरासत में ही संगीत व गायकी के मर्मज्ञ उनके संगीतकार व गजल गायक पुत्र वीरेंद्र नेगी, गायक संगीतकार राकेश भारद्वाज ने “राही घराना” नाम से उन्हें जीवित रखने का हर सम्भव प्रयास तो किया लेकिन उनसे अभी तक का सबसे बेहतरीन साबित हुआ यह जागर का क्रेडिट अमित सागर छींन ले गए। आज यही गीत अमित सागर को सफलता की बुलंदियों पर ले गया है। आज देश में गढ़वाल की संस्कृति के किसी भी मंच में अमित सागर व उसकी इस जागर की डिमांड न हो ऐसा हो नहीं सकता।
शायद “राही घराना” इस जागर की इतनी लोकप्रियता से हतप्रभ हो और शायद यह तसल्ली भी की यह राही जी ही लोकसमाज के बीच लाये थे। लेकिन आज जब भी इस जागर की बात होती है सिर्फ अमित सागर का नाम ही सुनाई देता है जबकि सुप्रसिद्ध निर्देशक व गायक अनिल बिष्ट भी इस जागर को गाकर काफी ऊंचाइयां दे चुके हैं।
यह ठेठ वैसा ही प्रयोग साबित हुआ जैसे पांडवाज आज “हे जी सारियूं म फूली ग्ये होली फ्योंली…नामक गीत के मुखड़े को केश करने में सफल हुआ है जबकि यह गीत लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का है लेकिन इसमें संगीत के हल्के से प्रयोग ने युवापीढ़ी में नेगी जी की जगह पांडवाज का भी नाम लेना शुरू कर दिया है।
अब देखना यह है कि कला के धनि लोकगायक स्वर्गीय चन्द्र सिंह राही द्वारा गाये गए गीतों जागरों को “राही घराना” क्या मुकाम दे पाएगा। वहीं समीर सागर ने यकीनन इस जागर को प्रमोट कर खलबली तो मचा ही दी है ।