लम्बे अंतराल बाद मुख्यमंत्री को मुस्कराते देखा! उनका आज का संबोधन दिल छू गया..!
लम्बे अंतराल बाद मुख्यमंत्री को मुस्कराते देखा! उनका आज का संबोधन दिल छू गया..!
(मनोज इष्टवाल)
जब से त्रिवेंद्र जी मुख्यमंत्री बने शायद तब से आज तक वे मुस्कराए भी होंगे लेकिन कैसी मुस्कराहट रही जो असहज सी नजर आती थी लेकिन आज कुछ अलग से नजर आये! ठेठ अपने कृषि मंत्री काल के दौरान की वह सौम्य खिली मुस्कराहट आज सचमुच दिल का बोझ हल्का करने को काफी थी! उनका संबोधन भी उसी मुस्कराहट की भांति सम्मोहित करने वाला लगा ! उनका यह कहना कि प्रदेश में निवेश के लिए उद्योगपतियों के लिए हमेशा स्वागत दरवाजे खुले हैं हर जिलाधिकारी को आदेश हैं कि वह अपने स्तर से अपने अपने जिले में उद्योगपत्तियों की हर बात का शीघ्र निस्तारण करें ताकि उन्हें उद्योग स्थापित करने में परेशानी न हो! उन्होंने बहुत ही भोलेपन से यह असहजता भी कबूल ली कि वर्कलोड के कारण उद्योगपत्तियों की पूँजी निवेश सम्बन्धी फाइल्स शासन में काफी समय तक लम्बित रहती थी जिसके फलस्वरूप प्रदेश में बिजनेशमैन आने से कतराते थे अब उन्होंने इस सबकी जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंप दी क्योंकि यों भी अपने जिले में उद्योगों को लेकर उन्हीं का अंतिम निर्णय होता है!
काश….यह चिरपरिचित मुस्कराहट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चेहरे पर हर पल हर दम रहती! काश…उन्हें देखकर प्रदेश वासी भी हंसते हुए उनसे मिलते! काश…उनकी हंसी देखकर उनके विपक्षियों के चेहरों पर सांप लौटते! काश……..! लेकिन यह सम्भव इसलिए नहीं दीखता क्योंकि जहाँ तक जितना मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर से जानता हूँ वह बनावटी नहीं हैं और न ही सहज व सरल ही! धुन के पक्के कर्मयोगी कह सकते हैं ! लेकिन अभी तक लोगों की नजर में आउटपुट देने में विफल!
(सारा सेई प्राइवेट लिमिटेड के वाइस चेयरमैन पी.के. धवन जी के साथ)
क्या हम एक मुखिया जो अपने हर मोर्चे पर अकेला लड़ रहा हो उसके चेहरे की खिलखिलाती हंसी देख सकते हैं! क्या मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उन्हीं के सभी विधायकों, मंत्रियों व विपक्ष का सहयोग मिल रहा है! क्या उनकी घोषणाओं को क्रियान्वयन करने वाली उनकी ही टीम पूरी दक्षता के साथ उसे आम जन तक पहुंचा पा रही है! क्या लोगों के बीच उनके इस तिलिस्म को तोड़ने में उनके इर्द-गिर्द का कॉकस सफल रह पाया है जिसमें उन्हें घमंडी जैसे शब्दों से पुकारते हुए हाशिये पर रखने की कवायद लम्बे समय से चलती आ रही है!
क्या उन्हीं की पार्टी उन्हें या उनके द्वारा स्वीकृत परियोजना को आमजन तक ले जाने का प्रयास कर रही है! क्या मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लोकप्रिय मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनके प्राइवेट स्टाफ ने कभी प्रयास किये हैं! क्या सूचना तंत्र में चार छ: अखबार व दस-बारह चैनल्स को विज्ञापन देकर खुश रखने से प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था व मुख्यमंत्री की छवि सुधारने का जिम्मा लेने वाले उन्हें यह बताने में सफल हैं कि भाजपा कार्यकर्ता, संघ, संगठन व आमजन उनकी योजनाओं परियोजनाओं व जीरो टोलरेंस की नीति पर खुश है और उसका बढ़-चढ़कर प्रसार-प्रचार कर रहा है!
आखिर क्यों उन्हें ऐसे चक्रव्यूह संरचना में रखा गया है कि वे बाहर की दुनिया से बेखबर हैं और सिर्फ कुछ अखबार व टीवी चैनल्स पर गुणगान सुनकर प्रफुलित रहें! आखिर क्यों नहीं उन्हें शराब, खनन जैसे मामलों की पूरी पूरी जानकारी नहीं दी जाती! आखिर एलआईयू के सूचना तंत्र की गोपनीय आख्याओं में उन्हें क्या तस्वीर नजर आ रही है! क्यों नगर निकाय के चुनाव के लिए उन्हें हर बार भ्रमित किया जा रहा है! क्या अपनी पूरी निष्ठा और इमानदारी से काम करने के बाद भी उनका काम आम जनता के बीच हाशिये पर है?
सारे ऊपर लिखे शब्द बेहद कडुवे और जटिल हैं लेकिन मैं जानता हूँ कि यह मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्रियों से जरा टेड़ा है! जो काम हाँ कह दिया तो बिना किया हटेगा नहीं क्योंकि जितनी बार भी मेरा उनसे मुख्यमंत्री काल से पहले मिलना हुआ या उठना बैठना हुआ उनके कहे कार्य तस्वीर बन प्रदेश में दिखाई भी देते हैं! चाहे वह किसान भवन हो या फिर मंडियों का कायाकल्प! पशुपालन में भी उनके द्वारा कई विलक्षण कार्य किये गए थे लेकिन छपास से दूर इस सबकी कभी ढंग से समीक्षा नहीं की गयी!
इतना वर्क लोड़ इतना बोझ और ऊपर से विश्वशनीयता की कमी आखिर चेहरे पर ही आकर झलकेगी ना! शायद यही कारण भी रहा कि प्रदेश के यह मुखिया बनावटी हंसी हंसना अभी तक नहीं सीखे क्योंकि इनमें कहीं बनावट हो ऐसा मैं कदापि नहीं मानता! यही कारण भी है कि उन्हें सत्ता मद में चूर व्यक्ति समझकर प्रचारित किया गया और प्रचार प्रसार करने वाले बाहर के नहीं बल्कि अपने ही हुए! भाजपा के बिशाल बहुमत से विजयी हुई इस सरकार से जन अपेक्षाएं अधिक होने से भी यह सब दिखाई देता है लेकिन मंत्रियों की कार्यशैली में इतना बड़ा लोच आज तक की सरकारों के कार्यकाल में कभी नहीं दिखाई दिया! मंत्रियों की घोषणाओं की फाइल्स कहाँ दम तोडती हैं और क्यों मंत्री उसका उपयुक्त जवाब नहीं दे पा रहे हैं यह सोचनीय है! क्योंकि इस सबके बाद अंगुली आकर मुख्यमंत्री कार्यालय में उठकर थम जाती है!
यह लेख यूँ तो तबियत से लिखने का मन था क्योंकि आज प्रेम नगर नंदा की चौकी स्थित एक बिशाल होटल में इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल इंडिया द्वारा आयोजित “48वें एक्सपोर्ट एक्सीलेंस अवार्ड” आयोजन में न सिर्फ उनकी बॉडी लैंग्वेज बदली नजर आई बल्कि उनके चेहरे पर खिली सौम्य निश्चल मुस्कराहट देखकर साफ़ लग रहा था कि इस मुस्कराहट में उन्हें प्रदेश के लिए अच्छे सपने बुनने के ताने बाने छिपे हैं!
8 राज्यों से आये लगभग डेढ़ सौ से अधिक उद्योगपतियों के लिए जब मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में उन्हें बड़े सरल शब्दों में प्रदेश में उद्योग लगाने का आमन्त्रण दिया वह सचमुच कानों में मिश्री घोलने जैसा था. जितनी सरलता से उन्होंने बताया कि उद्योग लगाने सम्बन्धी सारी फोर्मलिटीज उनकी सरकार ने जिले के जिलाधिकारियों को सौंप दी हैं उस से तय है कि प्रदेश में उद्योग के लिए उद्योगपत्तियों में रूचि जगेगी! उन्होंने कहा फिल्म उद्योग उनकी इस घोषणा के बाद प्रदेश में तेजी से पैर पसारने लगा है कि प्रदेश में शूटिंग लोकेशन का कोई चार्ज नहीं वसूला जाएगा जिसका परिणाम यह हुआ कि मात्र 6 माह में 6 करोड़ों के बजट की फ़िल्में यहाँ के होटल व्यवसाइयों से लेकर आम नागरिक तक काफी रोजगार दे गयी! उन्होंने कहा भले ही हम अच्छे होटल न दे पा रहे हों लेकिन आप आयेंगे तो व्यवस्था सुधार ली जायेगी! उन्होंने यहाँ हवाई सेवाओं के नियमितीकरण को साझा करते हुए कहा कि किसी भी उद्योगपति को प्रदेश में कहीं भी पहुँचने में दिक्कत नहीं होगी! और अगर कहीं कुछ कमी रह भी गयी तो उसका शीघ्र निस्तारण का वे विश्वास दिलाते हैं! यही नहीं मुख्यमंत्री ने इस दौरान 100 उद्योगपतियों को 48वें एक्सपोर्ट एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित भी किया और जब एक मात्र उत्तराखंड के सहारा सेई कम्पनी का नाम आया और पुरस्कार लेने कम्पनी के वाइस चेयरमैन पी.के.धवन मंच पर पहुंचे तब उन्होंने बेहद गर्मजोशी से उनका स्वागत भी किया!
मुझे लगता है कहीं तो बीच के ऐसे लूप होल्स हैं जिन्हें पाटने में अभी सरकारी तंत्र नाकाम रहा वरना ऐसी सौम्य मुस्कराहट प्रदेश के मुखिया के चेहरे पर हमें रोज देखने को मिल सकती है! बस कुछ हटकर समीखा करनी बहुत आवश्यक है!