रिख्यड (उदयपुर ) के पधानुं तिबारी और खोळी में काष्ठ कला अंकन ।

*रिख्यड में तल मंजिल की खोळी में भव्य कला अंकन  नक्कासी!  

संकलन – भीष्म कुकरेती 

रिख्यड  उदयपुर पट्टी में यमकेश्वर ब्लॉक का मुख्य गाँव है और साथ ढांगू , डबरालस्यूं  वालों हेतु भी महत्वपूर्ण गाँव माना  जाता है।   रिख्यड  को प्राचीन काल में ऋषि अड्डा  भी कहा जाता था।  महाभारत में कनखल के निकटवर्ती स्थल भृगु श्रृंखल व निकटवर्ती स्थ्लों में ऋषियों के आश्रमों की चर्चा है तो लगता है तब    रिख्यड का स्तित्व  था।  वैसे भी   रिख्यड एक खस नाम है जो संकेत देता है महभारत रचना  कला (2500 साल पहले ) के समय इस स्थल का नामकरण अवश्य ही हो गया था।  

   रिख्यड  हिंवल नदी तट का गाँव है और हिंवल  होने से  गाँव  ढांगू  और डबराल स्यूं की सीमाओं से जुड़ा गाँव है ,  रिख्यड  के सीमाओं पर निकटवर्ती गाँवों में बणचुरि , सौर , ढांगळ  प्रमुख गाँव हैं।    रिख्यड में मुख्यतया  लखेड़ा जाति परिवार रहते थे।  रिख्यड  से अभी तक इस लेखक को पधानुं  तिबारी व एक तल मंजिल पर भव्य खोली की ही सूचना  मिल सकी है। 

जैसे कि डबरालस्यूं , ढांगू , उदयपुर , अजमे व लंगूर का आम दस्तूर रहा है ,   रिख्यड के पधानुं तिबारी भी पहली मंजिल पर है व तिभित्या कूड़ के तल मजिल में आगे (front ) के दो कमरों के ऊपर बरामदा जैसा है और बरामदा बाहर की ओर कलयुक्त काष्ठ स्तंभों से घिरा है।   रिख्यड  के पधानुं तिबारी दो कमरों से बनी  एक सामन्य प्रकार की तिबारी है (Normal Type of Tibari ) . 

तिबारी में चार स्तम्भ हैं जो पहली मंजिल पर छज्जे (balcony ) हैं और स्तम्भ आधार उप छज्जे पर टिके हैं।  किनारे के दो स्तम्भ दीवार से एक काष्ठ कड़ी के सहारे  जुड़े हैं।  सभी स्तम्भों पर कला अंकन ज्यामितीय ही दिख रही है व तिबारी  में  कोइ मेहराब (arch ) नहीं है। चार स्तम्भ तीन खोली /द्वार / मोरी बनाते हैं।  स्तम्भ के सभी शीर्ष ऊपर छत के नीचे की एक पट्टी से जुड़ जाते हैं।  स्तम्भों के ऊपर शीर्ष पट्टी में भी अभी कोई विशेष कला अंकन के छाप तो नहीं दिखाई दिए हैं।  किन्तु अनुभव से कहा जा सकता है कि स्तम्भों व स्तम्भ शीर्ष में भू समानंतर पट्टी में ज्यामितीय कला अंकन ही है।  भवन के तल मंजिल व पहली मंजिल के सभी कमरों के द्वारों पर भी ज्यामितीय नक्कासी के दर्शन होते हैं।  भवन में काष्ठ पर प्राकृतिक , या मानवीय कला के दर्शन नहीं होते हैं। 

रिख्यड में तल मंजिल में खोली पर  भव्य  काष्ठ कला अंकन

 रिख्यड के प्रशांत लखेड़ा पधानुं ख्वाळ के हैं व उन्होंने तल मंजिल पर एक भव्य खोळी  की सूचना दी है।  तल मंजिल पर खोळी का अर्थ  है तल मंजिल से पहले मजिल तक जाने का अंदर से रास्ते  का द्वार। इस द्वार को अधिकतर खोळी  कहा जाता है।  बोली में क्षेत्रीय भेद हो सकते हैं  . 

    रिख्यड की इस भव्य खोळी में द्वार से सीढ़ियां खुलती हैं।  द्वार पर दोनों किनारे काष्ठ स्तम्भ हैं व पत्थर की दीवार  से जुड़े हैं।  देहरी भी पाषाण की हैं व देहरी के बगल  में ऊँची चौकी (बैठवाक ) भी हैं याने कुल दो पशन की चौकियां हैं। द्वार के चारों  काष्ठ स्तम्भ ऊपर छज्जे के नीचे की काष्ठ पट्टी से मिलती हैं व स्तम्भ के शीर्ष पर भू समांतर कड़ी पर कुछ  प्राकृतिक (फूल ) कला के दर्शन होते हैं।  

 इस खोळी  की विशेषता है कि पाषाण दीवार पर छत के निकट विशेष काष्ठ कला दर्शन होते हैं।  दोनों दीवारों के मध्य भाग से स्तम्भों के समांतर  (bracket on Stone  Wall ) ही दो दो काष्ठ आकृति निकलकर छज्जे की पट्टी से मिलते हैं याने इस तरह चार आकृतियां हैं। प्रत्येक आकृति bracket पर कमल फूल व घट (पथ्वड़ आकृति ) आकृति साफ़ दिखती हैं, बीच में गुटके भी हैं ।  वास्तव में ये चार आकृतियां वैसी ही हैं जैसे अन्य गाँवों की तिबारियों के स्तम्भ पर नक्कासी है याने यह आकृति दूसरी तिबारियों के  मिनिएचर स्तम्भ दीखते हैं ।  छज्जे के काष्ठ पट्टी से शंकुनुमा काष्ठ आकृतियाँ ऊपर से नीचे की और लटकी हैं।  छज्जे की पट्टी से ही नीचे शगुन हेतु कुछ आकृति भी लटकती हैं 

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि पधानुं  तिबारी सामन्य प्रकार की कलायुक्त (केवल ज्यामितीय ) तिबारी है किन्तु तल मंजिल पर खोळी में भव्य कला (ज्यामितीय , प्राकृतिक व प्रतीकात्मक  ) अंकन हुआ है हाँ मानवीय या पशु पक्षी अंकन नहीं दिखा है ।  

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