रानी गढ़ का वाइल्ड लाइफ ट्रेक! जब एक ही दिन में मिले बाघ, बारहसिंघा, जंगली सूअर और काला भालू! रोमांच और आलौकिक कर देने वाला शानदार सफर..!
रानी गढ़ का वाइल्ड लाइफ ट्रेक! जब एक ही दिन में मिले बाघ, बारहसिंघा, जंगली सूअर और काला भालू! रोमांच और आलौकिक कर देने वाला शानदार सफर..!
(मनोज इष्टवाल)
शिकारी हर जगह होते हैं और एक दिन मैं भी ऐसे ही शिकारियों की संगत में कांसखेत से गुपचुप निकल पड़ा शिकारियों के दल के साथ रानीगढ़ के जंगल में! तब अक्टूबर समाप्ति पर था और ठंड ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी! मैं अपने मित्र सोहन बिष्ट के गाँव चुरेडगाँव से उसी दिन अपने गाँव के लिए निकला था! तब गाँव प्यार प्रेम की मिशाल हुआ करते थे! और एक ऐसा अपनत्व जहाँ स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती थी! यह लेख अपने उस हंसमुख दोस्त सोहन सिंह बिष्ट को समर्पित जो आज इस दुनिया में नहीं है! उसने क्यों और कैसे अपनी जिन्दगी लील ली मैं नहीं जानता लेकिन जब कई बर्षों बाद मैं अपने गाँव की बरात में शामिल होकर उसके गाँव चुरेडगाँव पहुंचा मन अंदर से मुस्करा रहा था और पैर उस धरती के स्पर्श से स्वयं नृत्य कर रहे थे! तब कांसखेत से यहाँ तक सड़क तो थी लेकिन वाहन चलने योग्य लेकिन अब यानि चार पांच बर्ष पूर्व सड़क बिलकुल गाँव के ऊपर थी!
लगभग 15 बर्षों बाद मेरा दुबारा चुरेडगाँव जाना हो रहा था! उसकी माँ, पिताजी, बहन छोटे भाई सहित गाँव के हर वो अक्स आँखों के आगे आते और मुस्कराते आगे बढ़ जाते! बस बेताबी थी तो सोहन का खुलेमन से आलिन्घन करने की! मन कितना प्रफुल्लित रहा होगा! सड़क से उतरा तो पहले मकान में कोई सज्जन खड़े थे जिन्हें मैं जानता नहीं था बारात थी सोचा अभी नहीं बाद में आकर इन्हें भी प्रफुल्लित करूंगा क्योंकि दो तीन निशायें मैंने इस चद्दरवाले मकान में भी गुजारी थी!
अब बिलकुल सोहन के घर के पिछवाड़े पहुँच गया था लेकिन बारात देखने वहां कोई खड़ा न देख आश्चर्य हुआ! मैं दबे पैर उनके घर की सीढियां चढ़ने लगा तो पाया घर में ताले झूल रहे हैं! अब मुसीबत ये थी कि बैग में मिठाई फल कहाँ रखूं! तब तक एक बुजुर्ग दिखे वो सोहन के पिताजी थे. मैंने पैर छुए तो वे अचकचाकर बोले- मैंने नहीं पहचाना! मैंने कहा फिलहाल आप झोला संभालिये और मैं आकर परिचय देता हूँ! वो बोले- हाँ ब्यटा उन भी सब ताळ हि गयां छन जख ब्यौ हुणुछ! (वैसे भी सब नीचे ही जा रखे हैं जहाँ शादी है)! मैं सिर्फ मुस्कराया और सीढियां उतर गया क्योंकि मुझे पता चल चुका था कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं!
बारात गाँव के आँगन में पहुँच चुकी थी और स्वागत होने के बाद बारातियों को चाय नाश्ता परोसा जा रहा था! ऊपर घर की निमदारी में महिलायें ठसाठस भरी हुई थी! मुझे नजर मारने में एक पल भी शर्म नहीं आई क्योंकि मैं जानता था कि यहाँ के तो सभी मुझे जानते हैं! अचनाक एक आवाज आई- मनोज भैजी! माँss वू देख मनोज भैजी..!
मैंने देख लिया वह जग्गू थी मेरी सोहन की लाडली छोटी बहन जगु! बारातियों की नजर स्वाभाविक थी निमदारी की तरफ उठना ! मेरे सबसे बड़े भाई दरोगा जी(योगम्बर) व छोटे भाई हरीश अचम्भित हुए! स्वाभाविक बात भी रही क्योंकि मैंने किसी को भी नहीं बताया था कि चुरेडगाँव में मेरा पहले से परिचय है वरना सारी बारात पीछे पड़ जाती कि मेरी सोने की व्यवस्था देख लेना!
मैं सीढियां चढ़ता ख़ुशी के मारे पगला सा रहा था आखिर एक माँ व बहन जो दिख गयी थी! बस जैसे ही में निमदारी पहुंचा और मैंने पैर छुए! माँ व बेटी जो बिलख बिलख कर प्रलाप करने लगे सारा माहौल गमगीन हो गया! मुझे पहले लगा यह बर्षों की खुद है लेकिन जब माँ बोली- हे म्यारा सोहना, यख दिखदी, तेरु भैs अयूँछ! निर्भागी कन गैs तू हम छोड़ीकि! (हे मेरे सोहन, यहाँ देख तेरा भाई आया है! निरभागी कैसे गया तू हमको छोड़कर!)
मैं….एकदम चौंक पड़ा! बदन का एक एक रोंवा खड़ा हो गया! अगल बगल नजर घुमाई तो आस-पास बैठी ग्रामीण महिलायें भी सुबक रही थी! इसी को तो गाँव कहते हैं! जहाँ सबकी पीड़ा साजी हो सबके सुख दुःख एक से हों! जग्गू तो ऐसे रोई मानों मैं सचमुच सोहन ही हूँ! आँखें सजल होने स्वाभाविक थी यार..! बाराती हतप्रभ थे! तब तक छोटा राजू भी आँखें पोंछते आ गया था! मैं बिना कुछ बोले सब समझ गया था! राजू अब बांका जवान था और शादी शुदा बाल-बच्चे दार! जग्गू की भी शादी हो गयी थी व उसके भी बच्चे थे! जहाँ बाराती पूछते रहे क्या हुआ क्या हुआ वहीँ मेरे मैन में भी हाहाकार था कि आखिर सोहन को क्या हुआ? खैर अब बाराती पंडाल में पहुँचने के बाद चुरेडगाँव के सभी मित्र मुझसे मिलने लगे पूछने पर पता लगा कि सोहन ने आत्मह्त्या की लेकिन किसलिए किसी के पास जबाब नहीं था!
अब इस कहानी का सार बनाकर बर्ष 1996 के उस परिदृश्य पर लौटते हैं जब मैं सोहन व दो तीन शिकारी उसी रास्ते जंगल में प्रवेश कर रहे थे जिस रास्ते पिछले बर्ष मैं जग्गू, उर्मिला व गाँव की अन्य बहनों के साथ काफल तोड़ने जंगल गया था व टोकरी भर काफल अपने गाँव ले गया था! सब अलग अलग दिशा से प्रकट हुए ताकि किसी को कानों-कान खबर न लगे! सांझ की रुमझुम अलसाई आँखों से अँधेरे का संकेत कर रही थी! एक शिकारी बोले- यही सही वक्त होता है क्योंकि इस समय शिकार अपने घोसलों की ओर लौटता है! हमें निर्देश थे कि बात न करें संकेत की भाषा इस्तेमाल करें! गलती से जूते सूखे पतवारों में न रखे क्योंकि इस से शिकार चौकन्ना हो सकता है! एक दो नहीं तीन घंटे बीत गए सिर्फ वन-मुर्गियां, तीत्तर, चकोरों के झुण्ड के अलावा बड़ा जानवर कोई नहीं दिखा! खरगोश दिखा तो सोहन के हाथ की तेज टोर्च उसकी आँखों पर चमक गयी. वह जड़ हो गया बन्दुकची जैसे हि निशाना साधता मैंने झपटा मारकर टोर्च नीचे कर दी! इतने में खरगोश छलांग मारकर ढलान में गम हो गया था! सब ने खुस्पुसाहट की बोले- यार ये किसे ले आया! सोहन बोला- भैजी अच्छा ख़ासा शिकार था ! मैं बोला- यार हम पांच आये हैं वो भी एक खरगोश मारने! सब चुप हो गए क्योंकि सच भी था! लेकिन सच ये था कि खरगोश की आँखों में झलकती दहशत में जो दया की भीख थी वह मुझे द्रवित कर गयी! मैं अंदर से सोचने लगा कि क्या ब्राह्मण दिल से कमजोर होता है या दयालु! क्योंकि चार जो मेरे साथ थे सभी राजपूत ! जिनके शौक में शिकार बर्षों से शामिल था! मुझे ग्लानि हो रही थी कि बेटा तू भी आज इनके साथ पाप का भागीदार है! लेकिन अब ओखली में सर दे दिया तो मूसल से क्या डर! फिर दिल को बहलाया कि बकरे भी तो कटकर आते हैं उनका मांस तो बड़े चाव से खाता है! खैर झंझावत यूँहीं अंतर्मन में चलते रहे और उन चारों की नाराजगी भी! अब हम अदवाणी के शीर्ष रानीगढ़ पहुँच चुके थे! चन्द्रमा हमारे सिर के उपर विराजमान थी जिसकी चिटकती कोमल किरणें हम तक पहुँच रही थी! यहाँ हवा में अजीव सी खुशबु थी! मन में बेइन्तहां शुकून! मन कर रहा था यहीं बाँझ बुरांश के पत्तों का बिछौना लगाऊं और सो जाऊं!
तब तक एक सरसराहट हुई सब रोके अपने पाने पेड़ों की आड़ में बैठ गए! सोहन टोर्च मारने वाला ही था कि बन्दूक से फायर हुआ! टोर्च उसी दिशा में चमकी एक खूबसूरत मखमली त्वचा पर सफ़ेद चकतों वाला हिरण/चीतल चीखता हुआ नीचे गिरा छटपटाने लगा! सब चिल्लाये जल्दी चलो कहीं गोली की आवाज फारेस्ट बंगले में रह रहे वनकर्मियों तक न पहुंची हो उनके आने से पहले किसी भी हालत में यहाँ से हमें निकलना होगा!
लेकिन जैसे ही वह हिरन पर झपटे वह खड़ा हुआ और छलांग मारकर भाग निकला! सबने उसका पीछा किया बोले –गोली लगी है ज्यादा दूर तक नहीं जाएगा! हम ख़ाक छानते रहे लेकिन यह क्या तेजी से एक बारहसिंघा हमारी तरफ भागता दिखाई दिया! मैंने कहा- बचो! सब भयभीत थे! बंदूकची की बन्दूक हाथ से छिटकी और वह फिसलता हुआ नीचे गया! शुक्र है दूसरे ने उसे सम्भाल लिया!
अब हिरन की जगह टोर्च से बन्दूक ढूंढनी शुरू हुई! फिसलते हुए बंदूकची की कमर छिल गयी थी! अब न हिरन की किसी को परवाह थी न जंगलातियों की! आखिर बन्दूक दिख ही गयी ! हम सबने शकुन की सांस ली! फिर हिरन की तलाश शुरू हुई लेकिन उसका नामो-निशाँ नहीं मिला! खून की जरुर कुछ बूँदें पत्तों पर टपकी हुई मिली! अभी हम बमुश्किल आधा किमी. आगे बढे होंगे कि जंगली सूअरों का झुण्ड दौड़ता दिखाई दिया! इनके सूंघने की शक्ति गजब की होती है! बंदूकची को किसी एक ने बोला भी की लगा निशाना- वह गाली देते हुए बोला! कमीनों मेरी ही बलि चढ़ गयी थी उसकी तुम्हे परवाह नहीं पहले उसे तो ढूंढों जिसे मारा है! तब तक मैं बन्दूक दुबारा भरता हूँ!
डेढ़ घंटे तक हम ख़ाक छानते रहे पसीने पसीने हो गये लेकिन दूर तक कहीं हिरन का पता नहीं लगा ! थक हारकर सबने जंगल से नीचे उतरने का मन बनाया एक सोच रह हुई कि हो न हो वह सड़क में मरा पड़ा हो! लगभग डेढ़ बजे प्रात:काल हम नीचे सड़क पर पहुंचे जो कांसखेत से लगभग एक किमी. दूर रही होगी! सब मुझे ही कोस रहे थे कि इसने पहला शिकार जाने दिया इसलिए यह सब हुआ ! शिकारी अचम्भित थे उनका कहना था कि हिरन गोली लगने के बाद ज्यादा दूर नहीं जा सकता जबकि सूअर काफी दूर तक निकल जाता है! फिर यह मन बना कि कल सुबह लौटकर उसे ढूंढा जाएगा! अभी हम तीखा मोड़ पार करके मुड़े ही थे कि आगे आगे चल रहे शिकारी के कदम थम गए व टोर्च शीशे सड़क के बीचो-बीच लेते बाघ की आँखों पर रेंग गयी! एक साथ दो नहीं चार नहीं छ: लाल सुर्ख आँखें और मुंह से गुर्राहट के फूटते सुरों ने जान सुखा दी! बाघ अपने पूरे परिवार के साथ बिश्राम फरमा रहे थे! इतनी सुबह गए उन्हें अपनी नींद में खलल अच्छी नहीं लगी! हम जडवत थे फिर एक फुसफुसाहट हुई एक साथ टोर्च बंद करो! टोर्च बंद करते ही बेहद लापरवाही लेकिन उतनी ही सतर्कता से वनराज ने परिवार सहित सड़क से नीचे उतरना शुरू किया! शायद वह भी समझ गया था कि ये भलमानस हैं मुझे व मेरे परिवार को इनसे कोई खतरा नहीं! उनके नीचे उतरने के लगभग 10 मिनट बाद हम आगे बढे उतनी ही खामोशी से कि हवा भी चलती तो उसकी आवाज गीत गुनगुनाती सी सुनाई देती! मैं बार बार पीछे मुड़कर देखता कि कहीं आकर बाघ आक्रमण न कर दे! अब हम कांसखेत बाजार की धार में पहुँच चुके थे बाजार दिख रहा था लेकिन मरघट की तरह शांत! क्योंकि 2 बजे भला कौन उठता!
हम कांसखेत बाजार पहुंचे व एक चाय की भट्टी में रात गुजारने के लिए लकडियाँ सुलगाई! वे बीडी सिगरेट शराब पीते रहे और मैं उनकी बातों का मजे लेता रहा. ठण्ड कभी कभी बदन छूकर झुरझुरी पैदा कर देती! मैं मन ही मन सोच रहा था कि कहाँ फंस गया!
सुबह पांच बजे दो चार घरों में चहलकदमी होनी शुरू हुई भट्टी वाले लाला जी तो गाँव से आते थे इसलिए दिक्कत थी ! सोहन ने बगल से कहीं चाय की ब्यवस्था की और चाय पीने के बाद लगभग 6 बजे फिर हम जंगल की तरफ लौट पड़े ! इस आशा में कि जरुर हिरन मरा पडा मिलेगा ! हम तीन दो की श्रेणी में बंटकर कोई चुरेडगाँव की तरफ के उतरते जंगली ढाल पर ढूढ़ते कोई कल्जीखाल की तरफ! 10 बज गए लेकिन कुछ नहीं मिला! सोहन और मैं साथ –साथ थे! मैंने सोहन को बोला – चल यार अदवाणी चलते हैं चाय बंद खाकर फिर देख लेंगे!
जैसे ही हम जंगल से नीचे उतरे गुनगुनी धुप ने स्वागत किया! खपरोली के शिब सिंह पटवाल चाय की दुकान के बाहर पिछले दिन के अखबार के साथ चाय की चुस्कियां लेते दिख गए! मुझे देखते ही बोले- अहो पत्रकार जी, आज सुबह सबेरे वो भी पैदल ! मैं बोला हाँ ठाकुर साहब, बंगानी गए हुए थे कोई गाड़ी मिली नहीं इसलिए पैदल ही निकल आये! आप भी तो आज जल्दी ही…!
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी तो बोल पड़े – अरे ब्याली रात जैकू मोरी होलो! यख कैन फैर करि! (अरे कल रात पता नहीं किसका मरा यहाँ किसी ने फायर किया)! मैं कल यहीं था इसलिए सुबह से ही आकर बैठा हूँ कि आखिर कौन रहे होंगे !
हमने चाय का ऑर्डर दिया मेरी सोहन की आँखों आखों में बात हुई! मैं बोला – ओहो तो आज आपका भी शिकार खाने का मन है! वो लगभग तमतमाए से बोले- शिकार ऊँकी कूडी! अरे इन लोगों को कई बार बता दिया है कि यह क्षेत्र आदेश्वर महादेव का केर क्षेत्र है यहाँ जानवरों को गोली लग भी जाए तो वह मरते नहीं हैं यह राजा भरथरी का प्रताप है !
हमने चाय पी और निराश मन विदा लेकर कांसखेत की ओर थके कदम लौट पड़े! कुछ देर बाद वे शिकारी भी मुंह लटकाए आ पहुंचे ! तब से कसम खा ली कि किसी वन्य जीव के शिकार में कभी सम्मिलित नहीं होऊंगा!
मनोज जी बहुत अच्छा लिखा आपने, पहाडी गांव का चित्रण, वहां की शादी व भले लोगो के बारे में बहुत सुंदर वर्णन किया। जंगल का वृतांत भी बडा रोचक था।
धन्यवाद जी