राजभवन नैनीताल..यानि छोटा बर्किघम पैलेस! बेहतरीन शिल्प का बेजोड़ नमूना!

राजभवन नैनीताल..यानि छोटा बर्किघम पैलेस! बेहतरीन शिल्प का बेजोड़ नमूना!

(मनोज इष्टवाल)
आप नैनीताल में हैं और राजभवन नहीं गए तब यह कहा जाना लाजिम होगा कि फिर आपने नैनीताल घूमा तो क्या घूमा? आपको अगर ब्रिटिश शासन काल की कोई ईमानदारी देखनी है तो नैनीताल स्थित उन इमारतों पर एक बार जरुर नजर दौडाएं जो लगभग 200 से 250 बर्ष पुरानी हो गयी हैं लेकिन मजाल क्या है कि उनकी शान में कोई शिकन भी आई हो!

27 अप्रैल बर्ष 1897 में 220 एकड़ क्षेत्र में फैले नैनीताल के शिखर पर जब राजभवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ तब तत्कालीन इंजीनियर ऍफ़. ओ. ऑरटेर व स्टेवन्स ने भी नहीं सोचा होगा कि यह सिर्फ नैनीताल की ही नहीं बल्कि भारत बर्ष के लिए एक खूबसूरत नमूना पेश करने वाली इमारत होगी। राजभवन अपने अद्भुद शिल्प के लिये न केवल हिन्दुस्तान में बल्कि विदेशों में भी खासा प्रसिद्ध रहा है। राजभवन की बर्ष  1900 में मात्र तीन बर्ष में बन कर तैयार हुआ। इस भवन का निर्माण लंदन के बकिंघम पैलेस के आधार पर ही हुआ है इसलिये इस भवन को छोटा बकिंघम पैलेस भी कहा जा सकता है।
इस भवन को गौथिक वास्तुकला के आधार पर बनाया गया है जिसे देखने पर अंग्रेजी वाले ई आकार का दिखाई देता है। इसका डिजाइन तैयार करने का श्रेय स्टेवंस और इंजीनियर एफ. ओ. ऑरटेर को जाता है। इस भवन को एच.डी. वाइल्डबल्ड की देखरेख में बनाया गया जो उस समय इसके मुख्य इंजीनियर थे।

राजभवन का क्षेत्र लगभग 220 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 8 एकड़ जमीन पर दो मंजिला मुख्य भवन निर्मित है जिसमें कुल 113 कमरे हैं तथा 50 एकड़ जमीन में गोल्फ फील्ड है। इस गोल्फ ग्राउंड में 18 होल हैं। सन् 1926 में उस समय के गर्वनर मैलकम ने इसमें गोल्फ की शुरूआत की थी। इस फील्ड का डिजाइन ब्रिटिश आर्मी के इंजीनियरों द्वारा तैयार किया गया। इतनी उंचाई पर इतना खूबसूरत गोल्फ फील्ड होना अपने आप में निराली बात है।  यहाँ बर्ष भर में हजारों हजार लोग सिर्फ और सिर्फ नैनीताल गोल्फ क्लब देखने को उत्सुक रहते हैं.

इस इमारत को जनता के लिये सन् 1994 में खोला गया। वहीँ इसके गोल्फ क्लब में  राष्ट्रीय स्तर की  कई चैम्पयनशिप आयोजित की जा चुकी हैं। आपको यह जानकार हैरत भी होगी कि मात्र 60 एकड़ जमीन पर ही राजभवन व मानव गतिविधियाँ संचालित हैं जबकि बाकी 160 एकड़ भूमि पर घना जंगल है जिसमें कई तरह के पेड़-पौंधे और पक्षी देखने को मिल जाते हैं। इस भवन के म्यूजियम में 10वीं व 20वीं सदी के हथियार, हाथी दांत, एन्टीक फर्नीचर, ट्रॉफियां व मेडल्स का भी अच्छा संग्रह है।  भवन के निर्माण में  मिटटी की जगह उड़द की दाल प्रयोग में लाई गयी बताई जाती है जोकि हिन्दुस्तान के शिल्प में राजा महाराजों के युग से होता आया है.
इस भवन पर लगे  शीशे और टाइल्स इंगलेंड से मंगवाये गये थे बाकी अन्य जो भी सामान था वह सब स्थानीय उपलब्धता बताई जाती है। इस भवन में रहने वाले सबसे पहले ब्रिटिश गर्वनर एन्टोनी मैक्डोनल तथा सबसे पहली भारतीय गर्वनर सरोजनी नायडू थी। आज भी यह इमारत अपनी बुलंदियों की इबारत लिखकर वर्तमान में हो रहे अरबों के निर्माण कार्य पर हंसती हुई प्रतीत होती है और ऐसा कहती हुई भी कि क्या कोई ऐसा बिरला इंजीनियर, अफसर और नेता इस देश में है जो मात्र तीन साल में बिना कमीशन के मुझ जैसा कोई स्वरूप खड़ा करने में सक्षम है?

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