राजधानी गैरसैंण और काली व सरयू नदी में बनने जा रहे पंचेश्वर बाँध मुद्दे पर प्रवासियों में गर्माहट!
नई दिल्ली 4 फरवरी (हि. डिस्कवर)
देश के जाने माने सहित्यकार, मूर्धन्य पत्रकार एवं प्रतिष्ठित कवि मंगलेश डबराल ने उत्तराखण्ड और राष्ट्र की प्रगतिशील शक्तियों का आवाहन किया है कि उत्तराखण्ड की नयी राजधानी गैरसैंण और काली व सरयू नदी में बनने जा रहे पंचेश्वर बाँध जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर एक जुट हों और और देशभर के पैमाने पर अलख जगायें. उन्होने दिल्ली जैसे महानगर और उत्तराखण्ड में संघर्षरत्त पत्रकारों से एक नियुकलिउस बाडी बनाने का आवाहन करते हुए कहा कि सभी संघर्षरत्त शक्तियों को एकजुट होकर इन दोनो महत्वपूर्ण प्रश्नों पर लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक पहुँचाना होगा. लेकिन साथ ही उन्होने सांप्रदायिक और दलित विरोधी ताकतों से इस आंदोलन से दूरी बनाये रखने की अपील की.
उक्त विचार मंगलेश डबराल ने अखिल भारतीय उत्तराखण्ड महासभा द्वारा पंचेशवर और गैरसेण मुद्दों पर प्रेस क्लब आफ इंडिया, दिल्ली में आहूत बैठक में व्यक्त किये. बैठक में भारी संख्या में पत्रकार , बुद्धिजीवी, आंदोलनकारी, समाजसेवी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे . कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय उत्तराखण्ड महासभा के अध्यक्ष विनोद नौटियाल ने की जबकि मंच संचालन उत्तराखण्ड पत्रकार फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी ने किया.
अपने प्रभावशाली सम्बोधन में मंगलेश डबराल ने कहा कि ये उत्तराखण्ड का दूर्भाग्य रहा कि पिछले साढे सत्रह वर्षों के दौरान राज्य के सभी मुख्यमंत्री नौकरशाही के दबाव और बूते पर चलती रहीं और गैरसैण राजधानी का मुद्दा इनके षड़यन्त्रों का शिकार होता रहा. उन्होने इस बात पर दुख प्रकट किया कि उत्तराखण्ड आंदोलन और पहाड़ के जल, जंगल और जमीन के आंदोलनों से लम्बे समय तक जुड़े प्रकांड विद्वानऔर बुद्धीजीवि जैसे डा. शेखर पाठक और डा. शमशेर सिंह बिष्ट आज पंचेश्वर और राजधानी गैरसैण के प्रश्नों पर मौन हैं जिनसे जनता और आंदोलनकारियों को भारी अपेक्षा है . उन्होने जोर देकर कहा कि नेपाल की काली नदी और उत्तराखण्ड की सरयू नदी का महत्व पवित्र गंगा नदी के समान है और दुर्भाग्य से उन्हें बांधकर अब जड़ से नष्ट किया जा रहा है.
डबराल ने पहाडों से हो रहे निरंतर पलायन और बेतहासा गति से खाली हो रहे गाँवों पर गहन चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन समास्याओं का एक मात्र समाधान अब गैरसेण राजधानी ही है जो सम्पूर्ण समस्याग्रस्त उत्तराखण्ड के विकेन्द्रियकृत विकास का द्योतक बनेगा. इस मौके पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा ने उत्तराखण्ड की तमाम सरकारों पर गैरसैण के सवाल पर प्रदेश की जनता को एक सुनियोजित साजिश के तहत गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस भौंडे तरीके से पिछले 17 वर्षों के दौरान इन बिजनेसमैन नेताओं ने प्रदेश को लूटा है, उससे निजात दिलाने और उत्तराखण्ड को चौतरफा प्रगति के रास्ते की ओर ले लाने का एक ही विकल्प है और वो है अविलम्ब तौर पर गैरसैणराजधानी का निर्माण ! जो वीर चन्द्र सिंह गढवाली जी का सपना भी था. वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र पांडे और व्योमेश जुगराण ने कौशिक समिति का हवाला देते हुए कहा कि राजधानी गैरसैण पर बनी इस संवैधानिक समिति ने भी गैरसैण को हर दृष्टिकोण से उपयुक्त माना और इसके अविलम्भ निर्मांण की संस्तुति दी लेकिन सभी सरकारों ने इस मांग को एक सुनियोजित षडयन्त्र के तहत ठण्डे बस्ते में डाल दिया .
वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखण्ड के सामाजिक सरोकारों में अत्यन्त सक्रिय चारू तिवारी ने अत्यंत जोशिले सम्बोधन में गैरसैंण राजधानी को उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक आवश्यकता बताते हुए कहा कि अगर उत्तराखण्ड की पिछले 17 वर्षों की लूट खसोट से बचाना है, राज्य के गावों को विकास की बुलंदियों तक पहुँचाना है और खस्ताहाल राज्य को आर्थिक दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर बनाना है तो गैरसैण राजधानी का निर्माण आवश्यभावी है ! हमें पूरी ताकत और शक्ति के साथ इसे निर्णायक मोड़ तक पहुँचाना होगा. उन्होने पंचेश्वर बांध की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए बड़े बांधों को हिमालयी राज्यों के लिये गैर प्रासांगिक और जनविरोधी बताया और इनकी हर हाल में मुखाल्फत करने पर जोर दिया .
महासभा के अध्यक्ष विनोद नौटियाल ने घोषणा की की महासभा इन मांगो पर देशव्यापी आंदोलन चालायेगी और इन्हे निरणायक मोड तक पहुँचायेगी साथ ही पंचेशवर बांध के संवेदनशील मुद्दे पर आधिक से अधिक तकनीकि जानकारी जुटाकर इसका व्यापक विरोध करेगी.
संगोष्ठी में वरिष्ट सहित्यकार डा हरिसुमन बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकारगण ज्ञानेन्द्र पांडे , ऊमाकांत लखेड़ा, व्योमेश जुगराण, अवतार नेगी, चारू तिवारी, सुरेश नौटियाल, साहित्यकार पूरण चन्द्र कांडपाल, डा . सूर्य प्रकाश सेंमवाल, शुष्मा जुगराण , कर्नल मोहित डिमरी, मदन मोहन ढौंडियाल, अनिता नौटियाल, हंसा अमोला, कुसुम कण्डवाल भट्ट , उक्रांद नेता प्रताप शाही, उदय ममगाई राठी, शिव प्रसाद गौड, लेखक सुभाष त्राण, जंगवाण, नीरज बावरी, भगत सिंह नेगी आदि ने अपने ओजस्वी विचार व्यक्त किये और गैरसैण की मांग को अंतिम सिरे और निर्णायक मोड़ तक पहुँचाने की प्रतिज्ञा ली .