रवाई लोक महोत्सव की उल्टी गिनती शुरू..! लोक समाज,संस्कृति की पैरवी करने वाले इन युवाओं को सलाम!
रवाई लोक महोत्सव की उल्टी गिनती शुरू..! लोक समाज,संस्कृति की पैरवी करने वाले इन युवाओं को सलाम!
(मनोज इष्टवाल)
लोक समाज और लोक संस्कृति की अगर वर्तमान में बात आती है तब हम अक्सर जनजातीय क्षेत्र के लोगों की ओर मुंह कर देते हैं जुबान पर भी उन्ही की दास्ताँ व उन्हीं के गीत होते हैं! आँखों के आगे थिरकते क़दमों की छाप में ये संस्कृतियाँ ही दिखाई देती हैं जिनमें पिथौरागढ़ की जोहर, सोर घाटी या फिर चमोली जिले की नीति-माणा घाटी और उत्तरकाशी जिले की आराकोट- पर्वतीय, रवाई घाटी, टिहरी की जौनपुर और यह राजधानी देहरादून का भाग्य कि उनसे नसीब में भी जौनसार-बावर क्षेत्र की लोक संस्कृति का सुख मिला हुआ है! बाकी जिलों की स्थिति कठमाली जैसी हो गयी है जिसको ये पता नहीं होता कि वह आंचलिक गढ़वाली बोल रहा है या हिंदी या फिर आंचलिक कुमाउनी बोल रहा है या फिर हिंदी! ठीक उत्तर प्रदेश के उन हिंदी वासियों की तरह जो तुम को तम कहते हैं और ठीक उन भावरी गढ़वालियों की तरह जो मामा को मुमा बोलते नजर आते हैं!
ऐसे में कुछ युवा जी जान से अपनी लोक भाषा लोक संस्कृति में तेजी से आ रहे परिवर्तन को भांपते हुए जागते रहो जैसी आवाज बुलंद कर अपनी गौरवशाली परम्पराओं का इकबाल बुलंद करने में लगे हैं! रवांल्टी बोली-भाषा के लिए मुट्ठी भर साहित्यकार व कलमकार उस विखराव को समेटने में लगे हैं जो उन्हें अपने समाज में तेजी से फैलता दिखाई दे रहा है जिनमें क्षेत्रीय प्रबुद्ध पत्रकार बिजेंद्र रावत से लेकर शुरूआती दौर की पत्रकारिता में जुड़े कई नाम आते हैं!
इन्हीं के मध्य दो तीन युवा बेहद सक्रियता के साथ अपने समाज के लोकोत्सवों की पैरवी करते दिखाई दे रहे हैं! रवाई घाटी के पांचजन्य अखबार से जुड़े शशिमोहन रवांल्टा अपने कुछ मित्रों के साथ बेहद सक्रियता से विगत बर्ष की भाँती इस बर्ष भी रवाई महोत्सव की तैयारी पर युद्ध स्तर से जुटे पड़े हैं!
विगत दिवस साहित्यकार, कवि गीतकार व गायक रतन सिंह जौनसारी की पुण्य तिथि पर मिले रवाई क्षेत्र के पत्रकार प्रेम पंचोली सहित कई अन्य लोगों का मानना भी यही है कि बिना क्षेत्रीय सक्रियता के हम अपनी लोक संस्कृति लोक समाज के मूल रूप को बरकरार नहीं रख सकते इसलिए यह जरुरी हो गया है कि हम अपने पुरातन लोक सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन किये बिना उसे उसी जोश-खरोश के साथ जीवित रखें ताकि हम व हमारा समाज हमेशा ही ज़िंदा रहे!
जौनसार बावर के संस्कृतिकर्मी नन्द लाल भारती अपने बिस्सू मेले में आये प्रारम्भिक बदलाव से नाखुश नजर आते हैं! उनका कहना है कि नयी सभ्यताओं का घाल-मेल मेलों का स्वरूप खराब कर रहा है! मेला मेला ही हो न कि उसमें बेवजह के झमेले डाल उसकी पौराणिकता में बदलाव लाकर उसके स्वरूप को समाप्त किया जाय!
इधर रवाई लोक महोत्सव-2018 के स्वरूप की तैयारियों पर न सिर्फ रवाई के अपितु जौनसार क्षेत्र के समाजिक कार्यकर्ता इंद्र सिंह नेगी भी शशि मोहन रवांल्टा के साथ हाथ बंटाने में लगे हुए नजर आये! किस तरह यह लोक महोत्सव किया जाय कहाँ कहाँ क्या क्या नया हो, पुरानी कमियाँ कहाँ और कैसे हुई, नयी सोच नयी दिशा क्या होगी जैसे वैचारिक मंथन व परदे के पीछे चलने वाली गतिविधियों के मध्य नजर महत्वपूर्ण कार्ययोजनाओं पर कभी शशी मंथन हेतु नौगाँव पहुँच जाते हैं तो कभी इंद्र सिंह नेगी शशि के यहाँ दिल्ली! ऐसे में यह तो तय है कि यह महोत्सव आने वाले समय में भव्यता लेगा और रवाई की लोक संस्कृति का परचम देश दुनिया में लहराएगा वहीँ शशि मोहन रवांल्टा ने स्पष्ट किया है कि रवाई की लोक संस्कृति लोक समाज भौगोलिकता धर्म पर्यटन इत्यादि विभिन्न मुद्दों पर कार्य करने वाले हर व्यक्ति को वे रवाई घाटी के संभ्रात लोगों से सम्मानित करवाएंगे!
इंद्र सिंह नेगी का कहना है कि क्यों न हम अपने को जनजातीय कहने में ही शुकून महसूस करें कम से कम इस बहाने हमारी कोई पहचान तो है वरना अरबों की आबादी के बीच पहचान बनाए रखना सरल नहीं है! इन दोनों ने आवाहन करते हुए कहा है कि हमारी हर कोशिश रहेगी कि अपने समाज लोक परम्पराओं व लोक संस्कृति के लिए हम निरंतर वह प्रयास करते रहेंगे जिससे हमारी पहचान आगामी समय में भी यथावत रहे! अब देखना यह है कि अक्टूबर माह में होने वाले रवाई लोकमहोत्सव का नया स्वरूप कैसा होगा!