रम्माण! — पैनखंडा- सलूड की चौपाल से राजपथ, यूनेस्को के आंगन तक लोकसंस्कृति की गूँज ! 27अप्रैल को होगा विश्व सांस्कृतिक विरासत का भव्य मंचन !

रम्माण! — पैनखंडा- सलूड की चौपाल से राजपथ, यूनेस्को के आंगन तक लोकसंस्कृति की गूँज ! 27अप्रैल को होगा विश्व सांस्कृतिक विरासत का भव्य मंचन !

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
उत्‍तराखंड ने सदियों से लोकसंस्‍कृति, लोककालाओं, लोकगाथाओं को संजोकर रखा है। विश्‍व प्रसिद्ध नौटी की नंदाराजात हो या फिर देवीधुरा का बग्‍गवाल युद्ध, गुप्‍तकाशी के जाख देवता का जलते अंगारों पर हैरतंगैज नृत्‍य, जो यहां की लोकसंस्‍कृति की झलक दिखलाती है। चमोली के पैनखण्‍डा से यूनेस्‍को के विश्‍व धरोहर बनने में रम्‍माण ने लोकसंस्‍कृति की अनूठी छटा पेश की है। पैनखण्‍डा की इस अनूठी संस्‍कृति से रुबरु कराती ग्राउंड जीरो से एक रिपोर्ट –
उत्‍तराखंड में रामायण, महाभारत की सैकड़ों विधाएं मौजूद हैं। जिसमें से कई विधाएं विलुप्‍ती की कगार पर हैं। परंतु कई लोगों के अथक प्रयास व दृढ़ संकल्‍प, निश्‍चय से इनके संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व कार्य कर इस लोकसंस्‍कृति को बचाने के लिए अहम भूमिका निभाई है. जो पीढ़ी-दर- पीढ़ी लोगों व श्रद्धालुओं को यहां की लोकसंस्‍कृति के दर्शन कराते हैं, साथ ही वर्षों पुरानी सांस्‍कृतिक विरासत को संजोए रखने का प्रयास भी करते हैं. ऐसी ही एक लोक संस्‍कृति है रम्‍माण।

माना जाता है कि रम्‍माण का इतिहास लगभग 500 वर्षों से भी पुराना है. जब यहां हिन्‍दू धर्म का प्रभाव समाप्ति पर भा तो आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा हिन्‍दू धर्म के पुनर्जन्‍म हेतु पूरे देश में चार पीठों की स्‍थापना की गई, साथ ही ज्‍योर्तिमठ (जोशीमठ) के आस-पास के इलाकों में हिन्‍दू धर्म के प्रति लोगों को पुन: जागृत करने हेतु अपने शिष्‍यों को हिन्‍दू देवी-देवताओं के मुखौटे पहनाकर रामायण, महाभारत के कुछ अंशों को मुखौटा नृत्‍य के माध्‍यम से गांव-गांव में भेजा गया ताकि लोक हिन्‍दू धर्म को पुन: अपना सकें. शंकराचार्य के शिष्‍यों द्वारा कई सालों तक मुखौटे पहनकर इन गांवों में नृत्‍यों का आयोजन किया जाता रहा, जो बाद में यहां के समाज का अभिन्‍न अंग बनकर रह गई और आज विश्‍व धरोहर बन चुकी है.

पैनखण्‍डा (जोशीमठ) के सलडू-डूंग्रा गांव में रम्‍माण का आयोजन प्रतिवर्ष बैशाख माह में किया जाता है. एक पखवाड़े तक चलने वाली मुखौटा शैली व भल्‍दा परंपरा की यह लोकसंस्‍कृति आज शोध का विषय बन गई है. पांच सौ वर्ष से चली आ रही इस धार्मिक विरासत में राम, लक्ष्‍मण, सीता, हनुमान के पात्रों द्वारा नृत्‍य शैली में रामकथा की प्रस्‍तुति दी जाती है. जिसमें 18 मुखौटे 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, आठ भंकोरे प्रयोग में लाये जाते हैं. इसके अलावा राम जन्‍म, वनगमन, स्‍वर्ण मृग वध, सीता हरण, लंका दहन का मंचन ढोलों की थापों पर किया जाता है. जिसमें कुरू जोगी, बण्‍यां-बण्‍यांण तथा माल के विशेष चरित्र होते हैं जो लोगों को खासे हंसाते हैं, साथ ही जंगली जीवों के आक्रमण का मनमोहक चित्रण म्‍योर-मुरैण नृत्‍य नाटिका भी होती है.

रम्‍माण : एक नजर
इतिहास 500 वर्ष पुराना
आयोजन सलूड-डूंग्रा (पैनखण्‍डा), जोशीमठ, चमोली
तिथि प्रत्‍येक वर्ष बैशाख माह (अप्रैल)
शैली जागर, भल्‍ला
वाद्य यंत्र ढोल, दमाऊं, झांझर, मंजीरे, भंकोरे
परिधान घाघरा, चूड़ीदार पायजामा, रेशमी साफे
नृत्‍य नाटिका 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भौकरे
विशेष चरित्र कुरू जोगी, बण्‍यां–बण्‍यांण, माल, म्‍योर-मुरैण नृत्‍य मंचन गायन शैली,
मुखौटा नृत्‍य विश्‍व सांस्‍कृतिक धरोहर 02 अक्‍टूबर 2009
विशेष सहयोग विश्‍व धरोहर बनाने में डॉ. कुशल सिंह भण्‍डारी (सलूड-डूंग्रा), प्रो: डीआर पुरोहित, निदेशक केंद्रीय गढ़वाल विश्‍वविद्यालय, लोक कला निष्‍पादन केंद्र, थान सिंह नेगी (भविष्‍य बद्री सुंभाई), अरविन्‍द मुदगिल (प्रसिद्ध छायाकार)।

वर्ष 2007 तक रम्‍माण सिर्फ पैनखण्‍डा तक ही सीमित था परंतु गांव के ही डॉ. कुशल सिंह भण्‍डारी के मेहनत का ही नतीजा था कि आज रम्‍माण को वो मुकाम हासिल है. कुशल सिंह भण्‍डारी ने रम्‍माण को लिपिबद्ध कर इसे अंग्रेजी में अनुवाद किया, तत्‍पश्‍चात इसे गढ़वाल विश्‍वविद्याल लोक कला निष्‍पादन केंद्र की सहायता से वर्ष 2008 में दिल्‍ली स्थित इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र तक पहुंचाया गया. इस संस्‍थान को रम्‍माण की विशेषता इतनी पसंद आई कि उक्‍त संस्‍थान की पूरी टीम सलूड-डूंग्रा पहुंची और वे लोक इस आयोजन से इतने अभिभूत हुए कि 40 लोगों की एक टीम को दिल्‍ली बुलाया गया, जिन्‍होंने दिल्ली में अपनी शानदार प्रस्‍तुतियां दी. तत्‍पश्‍चात इसे भारत सरकार द्वारा यूनेस्‍को भेजा गया, जिसके बाद 02 अक्‍टूबर 2009 को यूनेस्‍को द्वारा पैनखण्‍डा के रम्‍माण को विश्‍व सांस्‍कृतिक धरोहर घोषित किया गया तथा 11 व 12 दिसंबर 2009 को आईसीएस के दो सदस्‍सीय दल में शामिल जापान मूल के होसिनो हिरोसी तथा यूमिको ने प्रमाण-प्रत्र ग्रामवासियों को सौंपे तो गांव वालों की खुशी का ठिकाना ना रहा.वहीं रम्माण नें गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली राजपथ परेड में दुनिया को लोकसंस्कृति के दीदार कराये।
बण्‍यां-बण्‍यांण नृत्य
इसके बारे में कहा जाता है कि ये तिब्‍बत के व्‍यापारी थे जो व्‍यापार करने गांवों में आते थे, एक बार चोरों ने इनका सबकुछ लूट लिया जिसे इस नृत्‍य के द्वारा प्रस्‍तुत किया जाता है.
म्‍योर-मुरैण नृत्‍य
पहाड़ों में जंगलों में लकड़ी व घास लाने के समय जंगली जानवरों द्वारा आक्रमण किया जात है, जिसका चित्रण म्‍योर-मुरैण नृत्‍य में किया जाता है.माल-मल्‍ल नृत्‍य 1804-14 के समय गोरखा काल में स्‍थानीय लोगों व गोरखाओं के मध्‍य हुए युद्ध का चित्रण इस नृत्‍य में किया जाता है.कुरू-जोगीहास्‍य पात्र जो अपने पूरे शरीर पर कुरू (विशेष प्रकार का घास चिपकने वाला) लगाकर लोगों के मध्‍य जाता है. कुरू चिपकने के भय से लोग इधर-उधर भागते हैं, कुरू जोगी (साधु) अपने शरीर के कुरू को निकालकर लोगों पर फेंकता है.अर्थात कुल मिलाकर रम्‍माण में संस्‍कृति, इतिहास, जीवनशैली की अनूठी झलक देखने को मिलती है.
रम्‍माण के अंत में भूम्‍याल देवता प्रकट होते हैं और समस्‍त गांववासी भूम्‍याल को एक परिवार विशेष के घर विदाई देने पहुंचते हैं, जहां पूरे सालभर उसी परिवार द्वारा भूम्‍याल देवता की पूजा-अर्चना की जाती है. जिसके बाद उस घर के आंगन में प्रसाद वितरण कर इस पौराणिक आयोजन का समापन्‍न होता है. इस आयोजन को देखने के लिए अभूतपूर्व जनसैलाव देखने को उमड़ता है. इसके अलावा हरिद्वार महाकुंभ में स्‍वर गंगा कार्यक्रम के दौरान रम्‍माण में राम, लक्ष्‍मण, सीता के पात्रों द्वारा रामलीला का मंचन किया गया, तथा इंदिरा गांधी कला केंद्र के सहयोग से राम कथा, महाभारत तथा कृष्‍ण लीला के अंश को, साथ ही नृसिंह अवतार, गोरखा आक्रमण, तिब्‍बत व्‍यापार, कत्‍यूरी राजवंश और हास्‍य नाटिकाओं का समावेश भी रम्‍माण में किए जाने से इसका आकर्षण और भी बढ़ गया है.
रम्‍माण के गांव में समस्‍याओं का अम्‍बार
भले ही पैनखण्‍डा के सलूड डूंग्रा गांव के पौराणिक लोकसंस्‍कृति को विश्‍व धरोहर का अहोदा हासिल हो परंतु यह गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है. गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने वाला मार्ग जोशीमठ-सलूड की स्थिति इतनी दयनीय है कि जान हथेली पर रखकर लोग सलूड पहुंचते हैं. यहीं नहीं चारों ओर से जंगल से घिरे होने की यहां जंगली जानवर सारी फसलें चौपट कर देते हैं, जिस कारण ग्रामीणों को भारी आर्थिक संकट से गुजरना।
सरकार को चाहिए कि इस गाँव को पर्यटन ग्राम के रूप में विकसित करने की योजना को अमलीजामा पहनायें। इस साल 27 अप्रैल को रम्माण का आयोजन हो रहा है। जरूर आइऐगा आप विश्व सांस्कृतिक विरासत को देखने।
फोटो साभार – नंदकिशोर हटवाल जी। प्रसिद्ध लोकसाहित्यकार।

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