यूँ ही कोई हरक सिंह नहीं बन जाता! कांग्रेस में कांग्रेसियों का इन्तजार..!

(मनोज इष्टवाल)

हरीश व हरक शब्द में जरा सा अंतर है लेकिन हैं दोनों ही राजनीति के घाघ खिलाड़ी..! ये अलग बात है कि जिस व्यक्ति को आज से 10 बर्ष पूर्व् उत्तराखंड का मुख्यमंत्री होना चाहिए था वह हर बार साजिशों का शिकार होता रहता है! लेकिन जितनी बार उसे दबाने की कोशिश की गयी उतनी ही बार वह दुगनी शक्ति से वापसी कर लौटा जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जब राजनीति के क्षितीज पर रहे तो हर उंचाइयां जी लेकिन जब लुढके तो लुढकते ही चले गए!

डॉ. हरक सिंह रावत चाहे भाजपा में रहे या बसपा या कांग्रेस में! जिस पार्टी में गए वहीँ उन्हें हर बार अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा! उनकी एक कमजोरी उन्हें बार-बार उनके राजतिलक के नजदीक से वापस लौटा देती! लेकिन है पूरा मर्द का बच्चा..! ठेठ राजपूती खस..! जो करना है वो डंके की चोट पर और जो बोलना है वह भी डंके की चोट पर! कई बार तो उन्हें बाद में समझ आता है कि यह उनका कूटनीतिज्ञ भी नहीं और राजनीतिक भी नहीं बल्कि एक साधारण आदमी सा बयान है जो सुर्खियाँ बटोर लेता है लेकिन जब उन्हें राजनीति करनी होती है तब वे बस राजनीति ही करते हैं ! तब चाहे उसके लिए चाणक्यनीति हो या फिर साम-दाम दंड भेद!

इधर हरीश रावत पर गिरफ्तारी की तलवार क्या लटकी उधर भाजपा की अंदरूनी राजनीति ने डॉ. हरक सिंह रावत को ही मोहरा बना दिया! बस फिर वही शह मात का खेल..! लेकिन इस बार पहली बार ऐसी गजब की राजनीति को जन्म लेते हुए देखा गया है कि एक लाठी से सबको हांकने व सबको मापने का चलन तेजी से विकसित हुआ है! अब उसमें क्या पत्रकार व क्या राजनेता! मुखिया की कुर्सी व भाजपा के कुछ निक्कर छाप नेताओं के अलावा नौकरशाहों ने एनी मंत्री विधायक व आम जनता की तरफ तो आँख ही मूँद ली! अब इसमें सर्वोच्च पीठ की शह समझिये या फिर लाचारी..! लेकिन सच यह है कि हर जगह जनता ही बेचारगी झेलती दिखाई दी! पहली बार बहुत समय बाद चपरासी से लेकर राजा तक रावत ही नजर आये! अब यहाँ रावत मतलब मुख्यमंत्री मत समझ लीजिएगा! यह कहावत 17वीं सदी के उस युग से चली आ रही है जब गोर्ला रावत का प्रभुत्व इतना बढ़ गया था कि लोग जहाँ फ़रियाद करें वह भी गोरला रावत, जिसके विरुद्ध फ़रियाद करें वह भी गोरला रावत व जो फ़रियाद का फैसला सुनाये वह भी गोरला रावत ही होता था! तब इन रावतों पर यह कहावत थी:- “भैर गोर्ला भित्तर गोर्ला अर्ज-पुर्ज कैमा कर्ला”!

अब बुरा न माने तो इस समय भी कुछ रावतों का ऐसा ही दौर दिखने को मिल रहा है! चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा! हर तरफ रावत ही रावत! कोर्ट में केस करने वाले भी रावत, गिरफ्तारी का डर भी रावत व प्रदेश का सिंहासन भी रावत! काश….की भार तोलने वाली मशीन लगाईं जाती व जितने भी रावत इस समय प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका में राजनीति व राजनीतिज्ञों की चाकरी में लगे हैं उसके ठीक आधे में बाकी अन्य जाति -समुदाय के लोग!

इसे कतई इस नजर से न देखा जाय कि यह जातिगत लेख है बल्कि इसे उस चश्में के फोकल लेंस से पढ़ा जाना चाहिए जो 6×6 हो! यह तो तय है कि भाजपा के अंदर खाने की घमासान आये दिन सुर्खियाँ बटोरती दिखाई देती है! कभी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की कुर्सी का खतरा तो कभी मंत्रियों का मंत्रिपद छोड़ने का खतरा लेकिन इस बात की प्रशंसा करनी होगी कि प्रदेश के मुखिया ऐसा वरदान प्राप्त क्र चुके हैं कि जो भी उस कुर्सी की तरफ देखे भस्म हो जाय! इससे सबसे ज्यादा दिक्कत में कांग्रेस छोडकर भाजपा में शामिल हुए मंत्री विधायकों की बेचारगी दिखने को मिलती है व चेहरे पर वह कलुषित भाव भी कि जाने किस घड़ी में वे यह निर्णय लिए कि भाजपा में शामिल हो जाएँ! क्योंकि हर तरफ षड्यंत्रों की तलवार..! जो कभी म्यान में जाती है तो लगता है कुछ हुआ ही नहीं है और जब म्यान से बाहर आती है तो उसकी सरसराहट की आवाज तक साफ़ सुनाई देती है!

इधर कांग्रेस के गिरते ग्राफ ने जैसे ही इस बार त्रिस्तरीय पंचायती चुनावों में अपना आंकडा सुधारा वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस के बिखराव को भी पार्टी नेताओं ने समेटकर प्लेटफॉर्म पर लाना शुरू कर दिया है! अंदरखाने हर वह कोशिश जारी है जिससे पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए दिग्गज पुनः कांग्रेस में लौट आयें और इस मामले में परदे के पीछे की सफलता कहीं न कहीं दिखाई भी देने लेगी है!

हाल ही के दिनों में जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की गिरफ्तारी की तलवार पार्टी राजनीति के एक धड़े को खुश करने में जुटी हुई दिखाई दी वहीँ बेहद घाघ हरीश रावत भला कैसे हार मानने वाले होते! उन्होंने पासा डाला! दाना फैंका और भाजपा की उस कमजोर डोर को पकड़ लिया जो सेतु का काम करती दिखाई दे रही थी! डॉ. हरक सिंह रावत जैसा कद्दावर राजनेता भला कहाँ जल्दी से कोई पार्टी पचा सकती है! इधर जैसे ही उन्हें इस केस में लपेटकर सीबीआई जांच की बात सामने आई वह समझ गए कि यह सब क्यों होना शुरू हो गया है! उन्होंने फ़ौरन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर दर्ज किया हुआ अपना केस वापस लेने की घोषणा कर दी! अब यह तय हो गया कि गणित “उल्टे बांस बरेली के” जैसी हो गयी!

भले ही उन्होंने साफ़ कहा कि हरीश रावत पर दर्ज केस का मकसद अब पूरा हो गया है इसलिए वह केस वापस ले रहे हैं लेकिन यह सच है कि अपने पर सीबीआई जांच आती देख यह उनका बड़ा पलटवार कहा जा सकता है ! न सिर्फ कांग्रेस पर बल्कि भाजपा के आने वाले भविष्य पर भी इसे चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि यह राजनीति का एकलौता ऐसा खलीफा है जो जब चाहे जहाँ चाहे पूरे राजनीतिक समीकरण ही बदलकर रख देता है! मुझे लगता है कांग्रेस की जगह भाजपा को अब बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि 2022 की आंधी से पूर्व की यह शान्ति साफ़-साफ़ दिखाई देती है! मुझे यह भी आभास है कि सत्ता की हनक व खुमार जब सिर चढ़कर बोले तो समझो सत्ता रेत की मानिंद मुट्ठी से फिसलकर दूर निकल गयी!

यहाँ एक बात अभी तक समझ नहीं आ रही है कि प्रदेश में आरएसएस कुछ काम भी कर रहा है या फिर सिर्फ सूचनाएं जुटाकर उन्हें बोरे में बंद कर सिलने का काम कर रहा है क्योंकि जिस हिसाब से वर्तमान राजनीति का परिदृश्य दिखाई दे रहा है उसमें मात्र दो या तीन चेहरों के अलावा दूर दूर तक कहीं कोई और चेहरा हो यह दिवाली के पताकों की धुंध से भी धुंधला नहीं दिखाई देता है! सीबीआई जांच व हरीश रावत के विरुद्ध दर्ज केस वापस लेना डॉ. हरक सिंह की मजबूरी हो सकती है लेकिन इसकी गूँज कब सुनाई देगी इसका हर राजनीतिक बिशेषज्ञ तय मानिए इन्तजार कर रहा होगा क्योंकि यह सच है कि यूँहीं कोई हरक सिंह नहीं बन जाता! कांग्रेस की बाहर दिखने वाली शान्ति का सीधा सा अर्थ है कि अभी अंदरखाने काम में तेजी है और 2022 की चुनावी रणनीति में पार्टी में उन दिग्गजों का इन्तजार जो देर आये दुरस्त आये की आस में हैं!

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