यात्रायें जीवन को विस्तार देती हैं।
यात्रायें जीवन को विस्तार देती हैं।
(सुप्रसिद्ध साहित्कार हेमा उनियाल की कलम से)
पर्यटन के लिए “उत्तराखंड” एक बेहतरीन क्षेत्र है।बर्फ से घिरे पहाड़ों को निहारना हो,किसी समाज विशिष्ट की संस्कृति को जानना-समझना हो, नौकायन, घुड़सवारी, ट्रेकिंग, राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग जिसमें भी रुचि रखते हों उसके लिए सब कुछ उत्तराखंड में मौजूद है।इस बार हमने उत्तराखंड घूमने के लिए एक सप्ताह(20 मई से 26 मई)की एक सुंदर सी योजना निर्धारित की जिसमें पहले दिन 20 मई को हम नोयडा से श्रीनगर गढ़वाल पहुँचते हैं।
बद्री-केदार यात्रा का केंद्र स्थल यह स्थान, इस यात्रा सीजन में यात्रियों से ख़ूब भरा हुआ था।यहाँ की चहलकदमी भी उल्लासमय थी।अगले दिन प्रातः श्रीनगर से रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, जोशीमठ, विष्णुप्रयाग मार्ग से होते हुए हम बद्रीनाथ धाम पहुँचते हैं।हज़ारों तीर्थयात्री इस समय यहां मौजूद थे।नर-नारायण पर्वतों की तलहटी में स्थित भगवान विष्णु के पवित्र धाम में दर्शनों की इच्छा सायंकाल को रखते हुए हम पहले बद्रीनाथ से 4 किमी. दूर माणा गांव की ओर प्रस्थान करते हैं।अनुसूचित भोटिया जनजाति के इस खूबसूरत गांव में यहां की श्रमशील महिलाएं अपने द्वारा निर्मित ऊनी वस्त्रों के साथ प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के साथ अनेक स्थानों पर उपलब्ध मिलीं।
भारत-तिब्बत सीमा से पहले का अंतिम गांव माणा सन 1962 तक तिब्बत व्यापार का मार्ग रहा।सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इस मार्ग को बंद कर दिया गया।यहाँ पर पौराणिक व्यास गुफा,गणेश गुफा,भीमपुल आदि दर्शनीय हैं।प्राकृतिक शिला पर बना भीमपुल भी अद्भुत है।मान्यता है कि महर्षि व्यास ने अष्टादश पुराणों और महाभारत की रचना व्यासगुफ़ा में की थी, बहुत आध्यातत्मिक और सुंदर क्षेत्र है यह।ज्ञान चक्षुओं को खोलने के साथ ही असीम शांति और नेत्रों को सुकून देने वाला।भीमपुल के निकट सरस्वती (वर्तमान में विलुप्त)व अलकनंदा का समागम स्थल भी रहा है।
माणा गांव में स्थित “भारत की अंतिम चाय की दुकान” में चाय पीने का आनंद भी कुछ और ही है।प्रकृति के सुंदर दृश्यों को निहारते हुए बद्रीनाथ धाम में रात्रि दर्शनों का सुंदर अवसर मिलता है और हम स्वयं को धन्य महसूस करते हैं।अगले दिन प्रातः हम 6,30 बजे बद्रीनाथधाम से नीतिघाटी की ओर यात्रा आरंभ होती है।बद्रीनाथ से एक मार्ग तपोवन,रैणी,सलधार(भविष्य बद्री के लिए मार्ग), लाता, जुम्मा होते हुए नीतिघाटी के बड़े ग्राम मलारी पहुँचता है, जहाँ मार्ग में वाहनों की आवाजाही बहुत कम थी।शान्त-सुंदर प्राकृतिक स्थल से गुजरते हुए,धौली नदी के साथ -साथ चलते हुए बहुत आनंद की अनुभूति हो रही थी। भारत-तिब्बत सीमा के निकटवर्ती बसे मलारी गांव में भोटिया अनुसूचित जनजाति निवास करती है।ग्रीष्मकाल में 6 माह यह यहां पर खेती करते हैं और जाड़ों में अपने निचले स्थानों चमोली,गोपेश्वर आदि चले जाते हैं।श्रमशील होने के साथ ही आतिथ्यप्रिय,उत्सवप्रिय इस समाज में उनके साथ समय गुजरने के साथ ही जानने-समझने के लिए बहुत कुछ है।दूरस्थ स्थित यह क्षेत्र नीति घाटी (जनपद चमोली) के अंतिम इलाके(सुमना से टोपी ढुंगा) से मिलम (जनपद पिथौरागढ़)में भी प्रवेश करता है।एक रात्रि मलारी में रुकने के बाद अगली प्रातः हम खूबसूरत पहाड़ी स्थल ग्वालदम के लिए निकलते हैं।इसके लिए पहले तपोवन,जोशीमठ से हेलंग(उर्गम घाटी का प्रवेश द्वार,ध्यानबद्री,कल्पेश्वर आदि स्थित) चमोली, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग होते हुए सिमली,थराली होते हुए ग्वालदम पहुँचते हैं।सिमली से ही एक मार्ग आदिबद्री, गैरसैंण, चौखुटिया, द्वाराहाट होते हुए कुमाऊँ में प्रवेश करता है।बहुत समय से प्राकृतिक स्थल ग्वालदम को देखने की इच्छा थी जो इस बार पूर्ण हुई।सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर दृश्यों के साथ ही नंदादेवी,त्रिशूल,नंदाघुंगटी आदि चोटियाँ यहाँ से साफ दिखाई देती हैं।नंदादेवी राजजात मार्ग से जुड़ा यह स्थान, बधानगढ़ी, अंगूरा गोटफार्म, रूपकुंड ट्रेकिंग के लिए भी जाना जाता है।अगले दिन दोपहर तक यहां से आगे की यात्रा पर हम निकलते हैं जिसमें कोटभ्रामरी (प्रसिद्ध धार्मिक स्थल,नंदाराजजात से भी जुड़ा) होते हुए बैजनाथ पहुँचते हैं।इस क्षेत्र की पहचान प्राचीन कत्यूर घाटी से की जाती है। सत्रह मंदिरों के प्राचीन समूह के साथ ही पार्वती की 1.5 मीटर प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है।
यहाँ के जल में मछलियों को निहारना,उनकी गतिविधियों को देखना भी बड़ा सुखद है।बैजनाथ से आगे कौसानी में जब प्रवेश होता है तो धुंध के कारण हिमालय श्रृंखला के दर्शन नहीं हो पाते।सन 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी यहाँ आये थे और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता से अति प्रभावित हुए थे। कौसानी से आगे खूबसूरत घाटी सोमेश्वर (पुरातन शिव मंदिर स्थित) बिंता-गगास पड़ती है जो फसल की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।नौलाकोट भी सोमेश्वर की तरह सुंदर घाटी है।सीढ़ीदार हरे-भरे खेतों के निकट से गुजरना, सुंदर हवा के झौकों के साथ यह क्षेत्र मन को बहुत सुकून व आँखों को बहुत ताज़गी देने वाला था।यहाँ से छावनी क्षेत्र रानीखेत मार्ग को लेते हुए हम कैंची धाम होते हुए नैनीताल पहुँचते हैं।एक रात्रि और एक दिन परिवार के लोगों से मिलते हुए नैनीताल में भ्रमण के बाद हल्द्वानी में परिजनों से मिलते-मिलाते अपनी जन्मभूमि से कर्मभूमि की ओर प्रस्थान करते हैं। लगभग 1300 किमी.की इस यात्रा में उतुंग हिम शिखरों के सुंदर दृश्यावलोकन के साथ ही समतल नदी-घाटियों,समाज-संस्कृति सभी के अवलोकन का अवसर मिलता है।निश्चित ही सपरिवार इस अविस्मरणीय यात्रा की यादें लंबे समय तक जीवंत रहेंगी।