यह ऐसी गौरा देवी की भूमि जिसने वृक्षों के लिए अपने प्राणों की चिंता नहीं की! – मुख्यमंत्री

देहरादून 5 जून (हि. डिस्कवर)
मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र सिंह रावत विश्व पर्यावरण दिवस(5 जून) के अवसर पर एफ.आर.आई., देहरादून में आयोजित विश्व पर्यावरण दिवस-2017 सेमिनार में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर राज्यपाल डॉ.कृष्णकांत पाल भी उपस्थित थे।  राज्यपाल डाॅ.कृष्णकांत पाल तथा मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस सेमिनार के लिए देहरादून को चुना गया है, यह गर्व का विषय है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें यह सूत्र याद रखना होगा कि समस्या भी हम हैं, तथा समाधान भी हम ही है। पर्यावरण संरक्षण के विषय में हमें ’’Think Globally Act Locally’’ विचार को भी ध्यान रखना होगा। हमें इस सिद्धांत को अपने व्यवहार में लाना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज धरती, आकाश तथा जल सभी प्रदूषित हो चुके हैं। जनसंख्या भी कम नहीं हो सकती है। अतः हमें कुछ ऐसी व्यवस्था करनी होगी, कि प्रकृति में दोष कम हो तथा गुण बढें। उन्होंने कहा कि मात्र वृक्षारोपण से समस्या का हल नहीं निकलेगा। हमें पर्यावरण संरक्षण हेतु व्यापक तथा सभी स्तरों से प्रयास करने होंगे। जल प्रदूषण का कारण मात्र गंदे नदी या नाले ही नहीं है, बल्कि प्रदूषित मिट्टी तथा वायु का प्रभाव भी जल स्रोतों पर पड़ता है।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि आज प्लास्टिक एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। हमारे खेत, नदी व नाले सभी प्लास्टिक से दुष्प्रभावित हो चुके हैं। प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बावजूद यह समस्या समाप्त नहीं हो रही है। इस विषय पर जन-जागरूकता बढ़ानी होगी। पाॅलीथीन के इस्तेमाल में रिसाइक्लिंग पर बल देना होगा।
मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि उत्तराखंड गौरा देवी की भूमि है। जिन्होंने वृक्षों की रक्षा के लिए प्राण तक त्यागने का प्रण लिया। भारत की संस्कृति प्रकृति-प्रेम तथा प्रकृति-पूजा की है। हमारे संस्कारों में प्रकृति के प्रति प्रेम है। हमें अपने संस्कारों को जगाने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि यह सेमिनार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महाअभियान बने, ऐसी मेरी कामना है। उन्होंने कहा कि हम पर्यावरण संरक्षण के प्रति समय पर जाग गए हैं। भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि धरती के कण-कण में ईश्वर का वास है। अतः हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। हमारी संस्कृति में माना जाता है कि यदि हम प्रकृति की रक्षा करते हैं, तो प्रकृति हमारी रक्षा करती है।
इस अवसर पर सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार श्री अजय नारायण झा, महानिदेशक(वन) एवं विशेष सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार श्री सिद्धांत दास, अतिरिक्त सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार डाॅ.अमिता प्रसाद, महानिदेशक भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् डाॅ.एस.सी.गैरोला, निदेशक वन अनुसंधान संस्थान डाॅ.सविता आदि उपस्थित थे।

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