यख्व्टया मसाण अर्थात एक पैर वाला भूत…!
यख्व्टया मसाण अर्थात एक पैर वाला भूत…!
(हिमांशु सुरमैय्या की कलम से)
यूं तो उत्तराखंड के कबीलायी गांवों में मसाण (भूत-प्रेत), बाण, ब्याल (भूतों की टोली), शाकनी , डाकनी , छल-छिद्र , सेध और बारह बिथा आदि के किस्से बड़े- बुजुर्गों से सुनने को मिल जायेंगे l लेकिन कभी आपने यख्व्टया मसाण अर्थात एक पैर वाले भूत की कहानी सुनी है…..? जो एक पैर पर चला करता था, कभी-कभी वो अपनी बैसाखी पर आते जाते लोगों को दिखाई देता, कभी किसी मुसाफिर को महसूस होता और कभी कभी चलते चलते मुसाफिरों की बातचीत का हिस्सा बन जाता ।
यह किस्सात्मक फ़साना है उत्तराखंड, रुद्रप्रयाग जिले में अगस्त्मुनी ब्लॉक के बेंजी-गंगतल गांव का l जिसके सूत्रधार स्वयं मेरे मामा जी हरीश चन्द्र बेंजवाल जी हैं l जो गंगतल- बेंजी गांव से जुड़ी किवदंतियों में से एक कालक्रम बताते हैं, जिसका शीर्षक है #यख्व्टया_मसाण_अर्थात_एक_पैर_वाला_भूत l जो लगभग सौ सालों तक लोगों को परेशान करता रहा, लेकिन गांव के तुमुक़मिज़ाजी पूर्वजों का कुछ नुक्सान न कर सका, ऐसा माना जाता है कि यख्व्टया मसाण सिल्ली वाले रास्ते के डाक बंगले से लेकर ऊपर बड़े आम के पेड़ तक विचरण करता था, हालांकि उस समय डाक बंगले का अस्तित्व नहीं था, लेकिन डाक बँगला बन जाने के कई वर्षों बाद तक भी यह भूत मुसाफिरों का समदर्शी रहा, वह दिन में तो शांत रहता, और देर रात होते ही आने-जाने वाले लोगों के पीछे-पीछे चलता और गाँव की सीमा आते ही वह गायब हो जाता, क्योंकि इष्ट देवी -देवताओं , क्षेत्रपाल आदि के कोप से शायद उसे जीर्ण होने का ख़तरा था l
जब देर रात को आते-जाते समय जब मुसाफिर आपस में बातें करते हुए चलते थे, तो वह भी उनकी बात-चीत का हिस्सा बन जाता, और पीछे से उलटे – सीधे जवाब देता, उस समय रात को कोई साहसी आदमी ही किसी मजबूरी वश आता या जाता था, अन्यथा साधारण, छोटे दिल और डरख्वा किस्म के मन्खियों की तो वो मवसी घाम ही लगा देता, उसके बारे में कहा जाता है कि अगर वो पीछे से आवाज दे तो पीछे मुड़कर नहीं देखना, और अगर कोई देख लेता था तो उसे बहुत नुक्सान होता, भूत महाराज की सारी कोशिश ही यही होती थी, कि आदमी पीछे मुड़कर देख ले बस , लेकिन जानकार लोगों को उसकी शरारत पता थी इसलिए कोई भी पीछे मुड़कर नहीं देखता था, क्योंकि अंजाम सबको पता था, बल्कि कई साहसिक पूर्वज तो उससे बातें भी करते और उसकी बहकी और शरारती बातों का लुफ्त भी उठाते थे l कभी कभी तो शरारती भूत बहुत लालच और उकसाता था कि किसी तरह आदमी पीछे मुड़कर देख ले बस , वह कहता था कि अगर तू पीछे मुड़कर मुझे देख ले तो मैं तुझे मालामाल कर दूंगा, तेरी जिंदगी बदल जायेगी, और तू सौकार (साहूकार) बन जाएगा, वगैरा – वगैरा………….l
लेकिन निडर आदमी कहता था कि अगर तुझमें हिम्मत है तो मेरे सामने क्यों नहीं आता मुझे छूकर दिखा, कुछ नुक्सान पहुंचाकर दिखा, पीछे-पीछे क्यों आ रहा है ? लेकिन वो कभी सामने नहीं आता था, कई बार बुजुर्गों ने मंत्रोच्चारित किये हुए कुछ चावल या अन्य चीजें उस पर डालने की कोशिश की, मगर वह समझ जाता था और तुरंत गायब हो जाता था l फिर दूर से उसके चिल्लाने की आवाज आती थी, जिसमें कि वह दुबारा देख लेने की धमकी देता था कि “ जा बाद मा द्योख्लू त्वेते “………
कुछ लोग डरते भी थे, रात को आते समय अगर भूत उनके पीछे चलता या उनको आवाज देता कि थोड़ा धीरे-धीरे चलो एक पैर का होने के कारण मैं तुम्हारे साथ-साथ नहीं चल पा रहा हूँ, अरे एक बार पीछे मुड़कर तो देखो मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ है, इस प्रकार उसकी बातों से डरता हुआ जब कोई घर पहुंचता था तो अचानक से कडकडकार (बेहोश) हो जाता था, तब किसी पर देवी या देवता आता था और फिर देवता बताते थे कि इसे यख्व्टया मसाण ने डराया है इसलिए यह कडकडकार हुआ है और फिर देवता उसे चावलों के मंत्रोच्चारण से ठीक कर देते थे l
बदलते वक़्त और शायद गांव पर पलायन रूपी भूत का साया पड़ने के साथ-साथ यख्वटया भूत न जाने कहां गायब हो गया….?
शायद हो सकता है कि आज भी हो और आज की स्तिथि समझता हो और सोचता हो कि अब गांव में गिने चुने भोले-भाले लोगों को डरा कर क्या फायदा……..?
लेकिन, गाँव के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि उसके 100 वर्ष पूरे हो चुके थे, और उसे अब मुक्ति मिल गयी होगी, जिस वजह से वो अब………………!
साभार : हरीश चन्द्र बेंजवाल , दीपक बेंजवाल