मौसमी चिंतन! विरासत का संरक्षण…!
मौसमी चिंतन: विरासत का संरक्षण!
(वरिष्ठ पत्रकार एलमोहन कोठियाल की कलम से)
कतिपय कारणों से मौसमी चिंतन की अगली कड़ी काफी देर से लिख रहा हूं। इसके कई कारण रहे। इनमें एक कारण था 3 जुलाई को कोटद्वार के पत्रकार साथी कमल जोशी के द्वारा आत्मघात की घटना। 29 अप्रैल को ही कमल भाई से टनकपुर में मुलाकात हुई थी और 2 माह बाद उन्हानें इस दुनिया को अलविदा कहा। फेसबुक पर वह अपने शानदार चित्रों के साथ दिखते थे।
आदमी के जाने के कुछ ही दिनों तक उसकी कमी महसूस होती है और कुछ दिन में सब कुछ सामान्य हो जाता है। कमल भाई ने ऐसा क्यों किया इस पर भी सोचना ही बेकार है क्योंकि जाने वाला कभी वापिस नहीं आया है। पृथ्वी पर कुछ भी अमर नहीं है। यहां तक कि जो सूरज करोडों सालों स चमक रहा है वह भी सदा के लिये नहीं है। फिर हम तो प्राणी है। हर जन्मे वाले प्राणी का जाने का कोई न कोई दिन तय होता है। जीवन एवं मृत्यु की इस पहेली को अभी तक कोई नहंीं समझ सका है। आत्मा के शरीर से निकलने के साथ ही सारे रिश्ते-नाते, सुख-दुख, बड़ा-छोटा, जात-पांत, धर्म-साम्प्रदाय सब कुछ समाप्त हो जाते हंै। साथ ही उस व्यक्ति के सारे विचार, बुद्धि, ज्ञान भी समाप्त हो जाता हैं। बस रह जाते तो उसके कार्य और उसकी अच्छाइयां।
कमल भाई की विरासत उनके शानदार चित्र है जो बोलते हंै। उनमें छांयाकन करने की जो प्रतिभा थी वैसी गिने चुनों में ही होती है। कैमरा पकड़ना अलग बात है और चित्र खींचना अलग। कैमरे की सेटिंग से लेकर किस समय व कब वह चित्र बेहतर लगेगा इसका विजुअलाइजेशन करना होता है। इसमें कमल भाई सिद्धहस्त थे। उनके चित्रों का उपयोग हो सकता है जो संभवतः उनके कम्प्यूटर में संग्रहीत हों। वे एक पत्रकार भी थे और पीटीआई के संवाददाता थे। पंूजीपतियों के समाचार प्रतिष्ठानों में काम करने की उनकी ज्यादा रुचि नहीं रही। कुछ समय पहले ही पौड़ी के खींचे गये कुछ चित्रों को देने की बात हुई थी। पर इससे पहले ही वे अनन्त यात्रा पर चले गये।
इस साल मार्च में जब वे पौड़ी आये थे तो यहां की धारा रोड में जीणशीर्ण हो रहे धारे का एक चित्र उन्होंने अपनी टिप्पणी के साथ डाला था जो आज बेहद उपेक्षित हालत में है जब कि इससे मात्र 200 मीटर दूरी पर क्ष्ेात्रीय पुरातत्व विभाग का कार्यालय है। जब यह चित्र फेसबुक पर आया तो जैसा कि होता ही है कुछ टिप्पणियां करते हैं, कुछ लाईक व कुछ शेयर। कई लोगों ने उनके चित्र पर अपनी टिप्पणियां की। मसलन इस विरासत को बचाया जाना चाहिये और यह होना चाहिये वह होना चाहिये। कइयों ने खण्डहर हालत में पहुंच चुके इस चित्र को लाइक भी किया था। लेकिन फेसबुक से हर बार समस्या हल हो जाये ऐसा नहीं है। मेरे मन में धारे को बचाने को लेकर पहले से ही विचार था सो मैने भी अपनी टिप्पणी धारे को बचाने को लेकर पेल दी। जिसमें यह लिखा कि मैं इसे लेकर एक पत्र पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग को लिखने जा रहा हूं पर वह पत्र मै उनके जीते जी नहीं लिख पाया।
लेकिन कमल भई के देहान्त के बाद उस चित्र को जब मैने उनकी पोस्ट को फेसबुक वाल में खंगाला तो वह मिल गया। धारे के संरक्षण को लेकर एक पत्र भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग देहरादून एवं संस्कृति मन्त्री सतपाल जी महाराज जी को भेज चुका हूं।
दरअसल में इस धारे की बाहरी संरचना डेढ सौ साल से भी पुरानी है जिस पर तत्कालीन असिस्टेन्ट हेनरी हडिल का नाम खुदा है जिन्होंने इसका उदघाटन किया होगा। आज हम जिले के अधिकारी को डीएम कहते हैं लेकिन उस दौर में इस पद का नाम असिस्टेन्ट था इसके बाद यह पद नाम सीनियर असिस्टेन्ट हुआ और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर, एवं उसके बाद कलेक्टर।
इसके अन्दर दो दूसरे शिलालेख है जो ब्राहमी में हैं। इस बारे में पुराविद डाॅ आईएस कठोच का मानना है कि इसमें जो शिलालेख वाले पत्थर है वह कहीं से लाकर इसकी दीवार पर अन्दर से चिनवाये गये होंगे। संभवत यह पौड़ी के निकट किसी ध्वस्त शिवमन्दिर के रहे होगे। उन्होंने इनमे से एक का पाठ भी पढ़ा है। पर उस पर कही समय का उल्लेख है और न नाम ही। हांलकि यह धारा बहुत सामान्य लगता है कि पौड़ी के इस धारे की बाह्य संरचना के संरक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है। इसके अन्दर मौजूद शिलालेखों में ही पौड़ी का प्राचीन इतिहास कहीं न कहीं छिपा है। आशा है उन पत्रों कां संज्ञान लिया जायेगा।
दो माह से बरसात का दौर जारी है। सितम्बर महीने यह दौर कम हो जायेगा। इस बार अपेक्षाकृत कम बारिश दर्ज की गई है। मई माह में पडे भयंकर ओलों का प्रभाव इन दिनों दिख रहा हैं जिससे सारी ही सब्जियां बरबाद हो गई थीं। इसी कारण अभी तक स्थानीय सब्जी बहुत ही कम लगी है। एक दो दिनों से जिस प्रकार बारिश हो रही है उसने पुरानी बसग्याल की याद दिला दी है जो कभी सात-सात दिनों तक जारी रहती थी।
पूर्वानुमान के सही न निकलने से कई बार प्रशासन स्कूल तक बंद करा चुका है पर उन दिनों बारिश देखने को नहीं मिली। इसे तत्कालीन मौसम को देख कर किये जाने की जरूरत है। इस हिसाब से आज रेनी डे का अवकाश होना चाहिये था।