* मैं गैरसैण हूं! कोई बताये! राज्य स्थापना के उत्सव में, मैं कहां हूं ! आजकल राज्य स्थापना उत्सव के नाम पर अनेक कार्यक्रम उराये हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट की कलम से)
अपणू घोर आवा आदि आदि
…… पर गैरसैण कौन आयेगा !

उदास . उपेक्षित ,तिरस्कृत और अपनों छला गया मैं घर का ऐसा बूढा हो गया हूं। जो अपने तिरस्कार से हताश उजाड़ और खोंदारा हो चुके घर की तिबारी में खांसता…. रोता…! अपनों के आने की इंतजारी में टकटकी लगाये बैठा हूं । कि क्या कभी कोई शातिर राजनीती के जूते उतार कर कभी दिल से कोई मुझे दिल से लगायेगा । मैं साक्षी रहा हूं उत्तराखंड राज्य निर्माण की कल्पना और राज्य निर्माण के संघर्ष का । लाखों राज्य आन्दोलन कारियो़ की तरह मेरी पीठ पर भी पड़े हैं सरकारों के अंहकार के डंडे । मै़ भी रोया हूं जब मुज्जफर नगर रामपुर तिराहे…! पर पुलिस की बर्बरता और बंदूकों की गोली से मेरे उत्तराखंड के अंहिसा को व्रत उपासना मानने वाले मेरे अपने शहीद हुये । उनके खून का कतरा कतरा जब जमीन पर गिरा मैं कांप कांप रोया था । मेरी आंखों से खून आंसू के रूप में निकले थे । खटीमा… मसूरी के दर्द को मैं कैसे भूलूं !

मुझ गैरसेण की गोद को मां का आंचल समझ कर इसके साये में राज्य आन्दोलन के संघर्ष को मैं ने पिता की तरह दुलार दिया मां की तरह आशीष दिया ।

मैं गैरसैण आज यकुली यकुली ( अकेला अकेला ) रह गया हूं। टपटप आंसू बहाते हुयें । मेरी सूखी आ़खें अब अधिक दर्द सहन नहीं कर सकती । अपनत्व के दिखावे के नाम पर हे सियासत के बाजीगरो ! तुम कभी-कभी मेरे तिस्कृत शरीर पर विधान सभा सत्र , कैबिनेट आयोजन का रूपहला सा शाल ओढा तो लेते हो। पर कितने शातिरपन से , मैं सब जानता हूं । पर खून के आंसू पी कर अपने कलेजे को अपनी ही हथेलियों में पकड़ लेता हूं कि आज नहीं तो कल कोई मेरे आंसू पोंछेगा । सियासत के शातिरो ! तुम्हे मेरा श्राप आज नहीं तो कल जरूर लगेगा । हे निष्ठुर राजनीति के शातिर खिलाड़ियो ! विधान सभा सत्र, कैबनेट के बहाने तुम “धूल उड़ाते मुझ गैरसैण में आते हो और मेरी भावनाओं से खेल कर धूल झोंक कर ” चले जाते हो । तब मुझे लगता है कि गजनवी और गौरी इसी तरह भारत को लूट कर घोडों की पीठ पर सवार होकर अपनी सैना के साथ आया होगा और वापस गया होगा।

आज मेरे दिल में उमाल आ रहा है । अंदर से ब्यथित हूं । टूट चुका हूं । राज्य स्थापना के उत्सव में मुझे इस लिये तिरस्कृत किया है । और अलग अलग स्थानों पर ईवेन्ट नुमा उत्सव इस लिये किये जा रहे हैं कि “इन उत्सवों के ईवेन्टस में लोग मुझ गैरसैण को बिसार जांय । मैं जानता हूं यह खेल । पर मुझे अपने लोगों उत्तराखंड और शहीदों पर यकीन है कि वे मुझे मरने नहीं देंगे ।


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