मेरा पहला प्यार…(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ) पांचवां एपिसोड-
मेरा पहला प्यार…(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ)
पांचवां एपिसोड-
कल स्कूल की विदाई पार्टी थी मैं अपने इंटर कालेज का जनरल मानिटर हुआ करता था और चाहता था हम इंटर वाले सारी स्कूल को ट्रीट दें लेकिन कहाँ संभव था! सभी बच्चों ने अपनी पॉकेट मनी से पैंसे निकालकर मुझे मिठाई लेने पौड़ी भेजा. मुझे आज भी याद है कि मैं तीन किलो चाकलेट वाली मिठाई लेकर आया था. यह विदाई बहुत भावुक रही लड़के और लडकियां पहली बार एक दूसरे को खुलकर अग्रिम भविष्य की योजनाओं के लिए विश कर रहे थे. मैं भी भावुक था आखिर इतने साल इस स्कूल में जो काटे. लड़कों से हाथ मिलाने के बाद लड़कियों की ओर बड़ा सब से बड़े प्यार से अटके हुए शब्दों में बस इतना ही कह पाया- “ तुमरा बिगर अब जिंदगी झणी कन होली पर आस-पास का गॉव छन मेल मुलाकात देर सुबर होणी ही रैली. मी उम्मीद छ कि तुम मेरी गल्ती क्षमा करिल्या किलैकि जनरल मानिटर होण का कारण क्वी”….( तुम्हारे बिना जिंदगी कैसे होगी पता नहीं लेकिन आस-पास के गॉव हैं देर सबेर मुलाक़ात तो होती ही रहेगी..मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी गलतियों को माफ़ करोगे..क्योंकि जी एम होने के कारण कोई….) तब तक एक लड़की जिसकी और मेरी कभी नहीं बनती थी बीच में ही बोली- पागल है क्या ….तेरी इज्जत हम सब करते थे तुझसे शायद ही कोई हो जिसको शिकायत रहेगी..हाँ दुःख रहेगा कि आगे कब मुलाकात होगी ये कालेज के दिन बहुत याद रहेंगे…!
सब ग़मगीन थे लेकिन खुश भी थे कि अब रोज का स्कूल आना बंद तो हुआ.जैसे पिंजरे से आजादी मिली हो..! यही सब चल रहा था कि अचानक ग्रुप की एक लड़की ने कंपकंपाते हाथों से एक कापी मेरी ओर बढाकर कहा कि बहुत पहले मैंने मांगी थी आज लौटा रही हूँ. मैं अकबकाकर उसे खोलते हुए कुछ बोलना ही चाह रहा था कि उसने थरथराते होंठों से फुसफुसाते हुए कहा आपको कसम हैं यहाँ मत खोलिए. और तेजी से आगे बढ़ गयी…!
उहू……ये क्या घर पहुंचकर जब कापी खोली तो सन्न रह गया उसमें पिछले ४ सालों का इतिहास समाया हुआ था! वह जब नौवी कक्षा की छात्रा थी तब से ही मुझे प्यार करती थी..लेकिन मुझे तब प्यार की अ आ तक पता नहीं थी. उसे कभी भी मैंने सिर उठाकर किसी से बात करते नहीं देखा था. सभी गुरुजन कहते थे यह लड़की जितनी सीधी और सुंदर है अगर हर कोई ऐसी हो तो हमारा समाज एक आदर्श समाज बना रहे. लेकिन इन चार सालों के एक-एक क्षण उसने मेरी हर अदा पर लिखे थे. मैं कब गर्दन टेडी करता हूँ. मैं छाती के तीन बटन खोलकर और कालर खड़े कर जब चलता हूँ तब मवाली सा क्यूँ लगता हूँ..! जब हँसता हूँ तो ऐसा क्यूँ लगता है जैसे अँधेरे में अचानक उजाला हो गया हो..जाने क्या-क्या…! उस रात मैंने वह पूरी दास्ताँ पढ़ी! मैं सदमे में था क्योंकि एक दिल मैंने जोड़ा दूसरा तोडा यह अकल्पनीय था. मैं अपने को कोस रहा था कि आखिर उसकी तरफ मेरा ध्यान क्यूँ नहीं गया कभी ? हाँ इतना जरुर था कि वह चोर नजर से जब भी मुझे देखती थी और मैंने देख लिया तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता था, लेकिन तब इन अदाओं का कहाँ पता था कि क्या मतलब होता है..अनाड़ी थे यार…! पूरी डायरी पढने के बात अंत में उसने जो लिखा था आज भले ही इस बात को लेकर खिलखिलाकर हंस रहा हूँ लेकिन तब बहुत गुस्सा आया था! उसने लिखा था “ द ल्वाळआ कळया, अफुथैंन भारी हीरो समझदी क्य! पर क्य कन यार….त्वे दिख्याँ बिना भि नि रयेंदु! जब क्वी छोरी त्वे दगड बात करदी छई त मन ब्वादु छायो कि वींका भि अर त्यारा भी पळ द्वी आँखा निखोली द्यूं! पर क्य करू यार, त्वे देखिकी हिगमत नि होंदी छई! बस इत्गेही!” (ओ रे कालिये, अपने को बड़ा हीरो समझता है क्या! लेकिन क्या करूँ यार तुझे देखे बिना भी रहा नहीं जाता! जब कोई लडकी तेरे साथ बात करती थी तब मन करता था कि उसकी भी और तेरी भी आँखें निकाल दूँ! लेकिन क्या करूँ यार तुझे देख हिम्मत नहीं होती थी! बस इतना ही)
सच में उस रात वह उथल-पुथल मचाये हुए रही. फिर मुझे उसकी याद आ गयी जिसे पिछले दो साल से मैं चाहता था. मैं और परेशान हो गया क्योंकि मुझे लगा हो न हो उसका प्यार मेरे लिए भी हो न हो ऐसा ही हो जैसा इसका मेरे लिए है क्योंकि मुझे चार साल ब्यतीत होने के बाद आज पता चला है, जब हमें बोर्ड परीक्षा के लिए अब कंडारा स्कूल जाना है. इन दो सालों में मैंने भी तो कभी उसे यह नहीं बताया कि मैं उसे चाहता हूँ. मेरी बेसब्री जवाब देने लगी. मैं अपने को ठगा सा महसूस करने लगा था कि इसने तो आखिर चार साल बाद हिम्मत दिखा कर मुझे अपना दस्तावेज सौंप दिया है कि अब तू जो चाहे तुझ पर निर्भर है….!
कितना पागल होता है यह फर्स्ट अफेयर यानी पहला प्यार भी.! एक है जिसने साफ़ लिख दिया कि वह पिछले चार साल से मुझे जिंदगी की हद से भी ज्यादा चाहती है जबकि दूसरी जिसे मैं चाहता हूँ. वह मुझे भी चाहती है कि नहीं इस बात का मुझे कोई पता ही नहीं है. फिर भी मैं इसके हर शब्द की उससे तुलना कर उसके लिए परेशान हूँ कि कहीं उसने किसी और को पसंद कर रखा होगा तो मेरा क्या होगा…? जो सामने थी वह मुझे सिर्फ तुलना का आभास दे रही थी जबकि उसने अपनी सबसे बड़ी अमानत “शर्म” बेचकर मुझे गिफ्ट कर दी थी. उस जमाने में शर्म ही लड़की का सबसे बड़ा गहना हुआ करता था और वही शर्म उसका उसके परिवार का मान-सम्मान सब कुछ जुदा हुआ करता था. मैं उसके बारे में एक पल ही सोच पाया उसकी पूरी 160 पेजों की कॉपी का एक एक पन्ना में अपने प्यार को समर्पित करता चला गया. जब भी उसका यह लिखा मैं पढता कि तुम पीली कमीज में बहुत खूब लगते हो..तो मैं सोचता हाँ यार वो भी तो पीले सूट में फ्योली सी लग रही थी उस दिन जिस दिन हम पनघट पर मिले थे. अगर वह कहती कि जब तुम पोलवाल्ड जम्प करते हो तो ऐसे लगता है जैसे कोई स्प्रिंग आसमान छूकर नीचे गद्दे में आकर गिरा हो तब भी मैं तुलना करता था- हाँ यार उस दिन जब एक कैच लपकने के लिए मैंने हवा में जम्प कर एक खेत से दूसरे खेत में छलांग लगाकार कैच लपका था और ठीक पोलवाल्ड जम्प की तरह ही अपना संतुलन बनाया था तब दर्शक दीर्घा से ऐसे ही तो तालियाँ पड़ी थी उसने भी खूब बजाई होंगी.
उसके चेहरे पर भी ऐसे ही भाव रहे होंगे…! कितना स्वार्थी होता है ये प्यार भी! जो तो दिल जान से मुझे अपने पन्नो में चाहत के मोटी पिरोकर भेज रही है उसकी मुझे परवाह नहीं लेकिन जिसने अभी तक जुबान नहीं खोली है उसके लिए मर मिटने को तैयार है!
सच कहूँ तो आज अपने को धिक्कारता भी हूँ कि काश ..मैंने इस प्यार को भी कभी तबज्जो दी होती तो शायद जिंदगी और हसीं होती लेकिन तब मैं बेवफा भी गिना जाता लेकिन आज भी तो एक की नजर में नहीं हो सकता है दोनों की नजर में बेवफा कहलाता होऊंगा और वो मुझसे घृणा करते होंगे. आखिर क्यों होता है यह प्यार…छि:…!
जो मुझे अपने चार साल के एक-एक पल लिखकर दे चुकी थी उसकी खूबसूरती का आलम यह था कि वह जितनी प्यारी थी उससे कई ज्यादा प्यारी उसकी सादगी हुआ करती थी लेकिन वक्त की बेहरहमी देखो, मेरी नजर कभी इस बात पर गयी ही नहीं जबकि मेरे कई सहपाठी बोलते थे – काश…ये गुस्से में ही दो बोल बोल पाती तो दिल को शुकून मिल जाता!
मैंने यह कॉपी पढने के बाद छुपाकर अपने कमरे की छत जिस पर पत्थर की स्लेट थी वहाँ छुपाकर रख दी और कसम खा ली कि जब तक पेपर नहीं हो जाते इसे छुऊँगा भी नहीं….और सच हुआ भी यही…! हम दूसरे दिन अपना बोरिया बिस्तर उठाकर पेपर देने कंडारा स्कूल चले गए जबकि लड़कियों ने अपने ही स्कूल से बोर्ड परीक्षाएं दी. यहाँ की घटनाएं भी हैं लेकिन लीक से हटकर लिखना ठीक नहीं होगा. पेपर ठीक-ठाक हुए और वहां से लौटते हुए हम एक बार फिर ठकरा गए. वह भी अपने पेपर खत्म कर राशन लेने बाजार आई हुई थी. उसने मुझे देखा तो उसका रंग उड़ गया शायद उसे यह डर था कि कहीं गॉव वालों के सामने इसने यह कह दिया कि तूने उस कॉपी में क्या क्या लिखा था तो मुश्किल हो जाएगा. मुझे भी उस की स्थिति का पता लग चुका था..सच ये भी था कि मैं खुद उस से मिलना ही नहीं चाह रहा था, क्योंकि मेरे पास उसके लिए कोई माकूल जवाब नहीं था…!
अब पेपर खत्म हो गए थे और मैं खुश था कि कल मैं लज्जू के उसके गॉव भी जाऊँगा और दो महीने में जो मुलाक़ात न हुई उसकी खुन्नस मिटाऊंगा. आज रात मैंने भी 8 पन्नों का एक लंबा सा फर्द लिख दिया. ठीक उसी क्लासमेट की तरह, उसी के शब्दों को याद कर-करके कि मुझे उसकी क्या-क्या अदा पसंद आती है वह लिखने के लिए मैंने अपनी उस क्लासमेट की कॉपी उठायी जिसने चार साल तक मुझसे एक तरफ़ा प्यार किया और मुझे खबर भी न लगी..मैंने उससे ही आईडिया लेकर लिखना तय कर दिया. साथ ही यह दृढ निश्चय भी कि अब चाहे कुछ हो जाए यह पत्र उस तक पहुंचाकर रहूँगा …
दूसरे दिन मुझे लज्जू के गॉव जाना था लेकिन माँ बिलकुल तैयार नहीं थी क्योंकि उसका कहना था कि मैं इतने दिनों बाद तो घर लौटा हूँ. परीक्षा की थकावट होगी इसलिए पहले उसे मिटा ले..पिताजी भी शायद उस दिन घर नहीं थे..अब प्यार हो गया हो तो भला आंधी तूफ़ान उसे रोक सकते हैं ! माँ झगडकर खेत चली गयी और बहनों को निर्देश दे दिए कि इसको वहां के लिए ऐसा कुछ बनाकर मत देना वरना यह सचमुच ही चला जाएगा..मुझे कुछ भी पकाना नहीं आता था..न आटा गोंदना..न पूरी पकाना न पकोड़ी इत्यादि..
उस जमाने में एक रिवाज था कि खाली किसी के घर जाना बड़ा बुरा सा लगता था हमारे घर भी कोई आता था तो सबसे पहले मैं माँ से यही पूछता था कि लेकर क्या आये हैं. मुझे आईडिया आया…मैंने चीनी और आटा घोला आग जलाई और तवा रखकर लगा लगड़ी (पुवे के आकार में लेकिन रोटी के बराबर) बनाने..! कच्चे तेल को गर्म नहीं होने दिया नतीजा आप जानते ही हैं. बहनें एक तरफ से खडी होकर हंस-हंस कर लोट-पोट हो रही थी और अड़ोसी-पड़ोसियों को भी बता रही थी. मेरे पास उन्हें गाली देने के अलावा चारा कुछ भी नहीं था. थक हारकर आखिर मैं खाली हाथ ही लज्जू के गॉव के लिए लगभग उड़ता सा चला गया. खरगड़ पार करते ही जैसे ही उनकी गॉव की सीमा में पहुंचा तब प्यार का यह भूत उतरा..शर्म और झिझक से मेरे पैर गॉव की ओर नहीं उठ रहे थे क्योंकि यह पहला मौका था जब मैं खाली हाथ किसी गॉव आया होऊंगा. शर्म ज्यादा इस बात की लग रही थी कि कहीं गॉव वालों ने खाली हाथ देख लिया तो क्या होगा…मैंने अँधेरा होने का इन्तजार किया. अभी सूरज ढला भी नहीं था कि जंगल के राजा बाघ की गर्जना सुनाई दी मेरे हिदर (रोंवे) कांप गए. यूँ तो बकरियां चुगाते समय कई बार बाघ से आमने=सामने भी सामना हुआ था लेकिन इस समय वह किस दिशा से हूँ.हूँ हूँ हूँ करके गर्जना कर रहा है पता नहीं लग पा रहा था. मैंने मुट्ठियों पर थूक लगाया और ऐसे दौड़ा कि आँगन में ही सांस ली. तब जाने वह झिझक कहाँ चली गयी थी! घर में कुशल क्षेम हुई तो मामी के मुंह से निकला- “हे ल्वाळआ मनोजा, इन लगणु छ जन तू भाजी ऐ हो! पक्का तू भाजिकी ऐई निथर तेरी माँ त त्वे खाली हाथ भेज नि सकदी छई ! ( हे मनोज, ऐसा लग रहा है जैसे बिन बताये आया होगा वरना तेरी माँ तुझे खाली हाथ तो भेज ही नहीं सकती थी!) मामी के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं था बस शर्म से गर्दन झुक गयी लेकिन लज्जू ने तुरंत मामी को डांट लगा दी! उसके बाद मैं मनोज भाई लज्जू सांध्य शौच के लिए निकल पड़े. बातों-बातों में कुशल क्षेम तो मिल गयी लेकिन पता लगा कि आज सचमुच उनके घर उसका रिश्ता मांगने के लिए कोई आ रखा है.
अब आप भी सोच सकते हैं कि दिल ने क्या-क्या सोचा होगा. मैं एकदम बगावती सा हो गया था. मन किया कि अभी उस गॉव उस घर जाऊं और उन रिश्ता मांगने वालों को वहाँ से खदेड़कर अपना रिश्ता मांगू और उससे ये बोलूं कि ये हो नहीं सकता कि तुम किसी और कि हो जाओ. यह मैं कभी होने ही नहीं दूंगा. दिल वास्तव में पूरी बगावत पर उतर आया था! मैंने तय भी कर लिया लेकिन घर आकर जब यही बात अपनी भांजियों से सुनने को मिली कि उस गॉव की उस घर की वह लड़की कल से लगातार रोये जा रही है उसने अन्न त्याग रखा है क्योंकि उसके घर रिश्ता मांगने वाले आ रखे हैं और वह हाँ ही नहीं कर रही है जबकि लड़का भी सरकारी नौकरी पर है घर परिवार सब संभ्रात है. मुझे जाने क्यूँ आज भी लगता है कि शायद मेरी भांजियों को भी हमारी प्रेम कहानी का कुछ कुछ पता लग गया था और दीदी को भी…!
बस इतना होना था जाने मेरे अंदर भरा रोष कहाँ गायब हो गया अब मैं यही सोचने लगा कि हे भगवान् वह खाना खा ले ऐसी जिद न करे! बेवकूफ है किसके नहीं आते रिश्ता मांगने वाले…मना कर दिया तो घर वालों को भी मानना चाहिए न…! प्यार के बशीभूत हुआ मैं सचमुच यह सोचने लग गया था कि वह शायद इसीलिए मना कर रही है कि वह पहले मेरी रजा जानना चाहती होगी. कल मुझे उससे मिलना ही होगा. चाहे कुछ हो जाए मैं किसी भी कीमत पर यह रिश्ता होने नहीं दूंगा….!
फिर रात भर सोचता रहा ..8 पन्नों से भरा वह पत्र जाने कितने शेरो-शायरी से भरा हुआ था जाने किस-किस के शेर टपा-टपाकर उसमें लिखे हुए थे..और उसकी तारीफ़ में कसीदे लिखे हुए थे मुझे लगा यह समय अब तारीफ़ करने का नहीं है..मुझे साफ़ शब्दों में अपने दिल की बात लिखनी होगी…मैंने लिखा- मेरी प्यारी और लिखकर फाड़ दिया.. फिर लिखे प्रिये ..? फिर फाड़ दिया फिर लिखा मेरे दिल की मल्लिका…फिर फाड़ दिया जाने कितनी उपमाएं दी और फाड़ता रहा ..तब तक मनोज भाई खाना खाकर कमरे में पहुँच गया था मैंने बोला किस तरह लव लैटर शुरू किया जाता है बताओ तो..वह ऐसे मामलों में जरा एक्सपर्ट हुआ करते थे भले ही उन्होंने शादी से पहले किसी से प्यार किया भी या नहीं ये मैं नहीं जानता.. उन्होंने मुझ समझाते हुए कहा. बेवकूफ है तू..!
चिट्ठी में ऐसा कोई क्लू मत छोड़ जिससे कल चिट्ठी पकड़ में आ गयी तो लेने के देने पड जाएँ तेरी और उसकी बदनामी तो रही रही दोनों परिवारों और गॉव का नाम बदनाम हो जाएगा..! पता लगा तुम्हारी लव स्टोरी पर किसी ने गीत बना दिया तो उस बेचारी की जिंदगी बर्वाद हो जायेगी और मामा जी (मेरे पिताजी) की कमाई हुई इज्जत ख़ाक में मिल जायेगी.
मुझे लगा वास्तव में यह बात सच है फिर जो चिट्ठी लिखी गयी उसके यह शब्द थे- “ मैं तुम्हे जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ ..जब तक सांस में सांस ज़िंदा रहेगी वह मिटाया नहीं जा सकता..तुम भी करती हो या नहीं ये मैं नहीं जानता ..लेकिन यह सच है कि अगर तुम मुझे पसंद नहीं करोगी तो मैं कभी भी तुम्हारी राह की रुकावट नहीं बनूँगा..मैंने तुम्हे प्यार ही नहीं किया तुम्हे पूजा भी है मैंने…लोग पत्थर की मूरत को पूजते हैं लेकिन मैंने तुम्हे पूजा है…! मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं बता पाऊं कि कितना प्यार करता हूँ तुम ये कहो कि मर जा तो मैं एक सेकण्ड भी नहीं लगाऊंगा…मुझे पता है कि तुम्हारे घर में तुम्हारे मंगेतर आये हैं और तुम पिछले दिन से रो रही हो न खाना खा रही हो..तुम्हे मेरी कसम है कि अगर खाना नहीं खाया तो..! अगर सच में तुम मुझसे प्यार नहीं करती तो मंगनी कर लेना मुझे कोई परेशानी नहीं होगी.. न ही तुम्हे कभी बदनाम होने दूंगा..और अगर तुम सच में मुझसे प्यार करती हो तो पत्र मिलने के तुरंत बाद बेंगनी और लाल फूलदार सूट पहनकर पानी भरने अपने धारे पर आना. आज गागर मत लाना बंठा लाना..ताकि मैं समझ सकूँ कि तुमने मेरे को भी दिल से प्यार किया है..मैं तुम्हारे लिए आगे की पढाई छोडकर दिल्ली जा रहा हूँ…मैं जल्दी से नौकरी लगना चाहता हूँ ताकि तुम्हारा रिश्ता लेकर आ सकूँ..मुझे पता है कि दिल्ली में शांयकालीन कालेज भी चलते हैं जहाँ से मैं अपने आगे की पढाई पूरी करूँगा और दिन में नौकरी भी…! जिस दिन मुझे यह पता लग गया कि मैं इस काबिल हो गया हूँ तो अपने पिताजी को रिश्ता लेकर भेजूंगा..प्लीज मुझे दो साल का समय दे दो..क्योंकि दो साल में मैं बी ए पास भी हो जाऊँगा और कुछ कमा भी लूँगा…तुम्हारा..!
जानबूझकर नाम नहीं लिखा…चिट्ठी पकडी जाती तो….बेचारे आठ पन्ने मनोज भाई ने लेम्प की रौशनी में धुप-धुप बत्ती धुप-धुप बत्ती बोलते हुए जला डाले.
सुबह हुई और मैं चल दिया अपने मुकाम की ओर ! मैं आया हूँ भला ऐसा कभी हो सकता है कि उसको खबर न हुई हो…कहते हैं भगवान् जब देता है तो छप्पर फाडकर देता है…पीछे से चहलकदमी की आवाज सुनाई दी साथ ही छोटे से पत्थर गिरने की ..पलटकर देखा तो पाया कि वह मुश्किल से 15 कदम पीछे गागर लिए पानी भरने ही आ रही थी…अभी भोर का उजाला दूर पहाड़ियों को नहला रहा था और लोग घरों से निकलकर मुंह हाथ धो रहे थे..किसी के जोर से खांसने की तो किसी के ऊ ऊ ऊ कर कुल्ला करने की आवाज आ रही थी..कोई जोर से मुंह छप्पाक मार कर नींद की खुमारी मिटाने के लिए अपने चेहरे से मल-युद्ध कर रहा था..बस मुझे लगा यह मौका स्वर्णिम है मैंने पलक झपकते ही चिट्ठी निकाली पलटकर देखा हमारी आँखें चार हुई और मैंने रास्ते के किनारे एक पत्थर के नीचे पत्र छुपाकर दुडकी लगाई और तेजी से 50 कदम की दूरी बना दी..हे भगवान् यह क्या जैसे ही वह पत्थर के पास पहुँच थी पीछे से आवाज लगी तो मैं भी पलटा .”.हे रुक जा ये मी भी ऐ ग्यों..लोळी कत्गा तेज भगणी छई रप-रप..” (हे रुक जा मैं भी आ गयी…कितनी तेज भाग रही है फटा-फट) किसी महिला की आवाज ने मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम कर दी..मुझे लगा कि बेटा अब तू पकड़ा गया वहाँ से में इतनी तेजी से चीते की फुर्ती से भागा कि क्या बताऊँ…उसने वह पत्र उठाया भी कि नहीं ..मैं नहीं जान पाया..!
अब बस एक ही इन्तजार था कि वह घर से लौटकर क्या मेरी शर्तों को पूरा करेगी…मैंने दूर से ही देखा उसने वही सूट अब पहन लिया था हाथ में निर्मुन्डया (जिसका उपरी सिरा गायब हो) बंठा पकड़ रखा था जिसे वह छुपाने की कोशिश में लगी हुई थी ..बंठे पर दो चार पील भी पड़े हुए थे…और उसका पीतल अजीब सी किस्म की काई से सन्ना हुआ था..किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा – हे क्या मेहमान चले गए..आज ही मिला तुझे यह बंठा निकालने का समय! वो भी क्या सोच रहे होंगे. उसकी आवाज मेरे कानों में मिश्री के घोल की तरह पड़ी..जिसे जो सोचना है सोच ले ! कौन से मैंने उनसे रिश्तेदारी करनी है..अरे दादी ये बंठा तो बस बीज रखने के काम आ रहा था आज सोच जरा मांज धोकर ले आऊँ…!
मेरा ख़ुशी का ठिकाना न रहा शाम तक खबर मिल गयी कि उसके रिश्ते वाले बिना रिश्ता किये ही चले गए बदले में उसकी माँ ने उसकी पिटाई भी की..! मैं दुखी भी हुआ अब जाने उसकी कितनी पिटाई हुई होगी मुझे नहीं पता लेकिन मुझे लगा जैसे मुझ पर किसी ने कई कोड़े बरसाए हों…(contd..6)
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