मेरा पहला प्यार..(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ ) (तीसरा एपिसोड)
मेरा पहला प्यार..(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ ) (तीसरा एपिसोड)
उस दिन से अब मेरी दुनिया ही बदल गयी थी फिर वही मुस्कान वही मिष्ठान चंचलता और चपलता ने मुझे घेर लिया था ! घर में बात-बात पर नाराज होना, गुस्सा दिखाना सब खत्म..! माँ की डांट हो या पिताजी की सब हंसी में टाल देता था. जिन छोटी बहनों के प्रति थोडा सख्त व्यवहार रहता था वह अचानक इस प्यार ने बदल दिया था. सच कहें एक अजीब सी खुशहाली भर गयी थी मनोमस्तिष्क में..! अब फिर क्रिकेट की स्टम्प जेठुंडा (खेत) में गढ़नी शुरू हो गयी थी और ह्रदय का मनोपटल उलारें मारता हुआ हर दिन का जश्न मनाने लगा था. हर रोज एक पत्र उसके लिए लिखता और उसे दूसरे दिन पढता फिर फाड़ देता. मन ही मन बोलता नहीं यार ऐसा लिखूंगा तो कहीं नाराज न हो जाय. अगर किसी और के हाथ लग गया तो फ़ालतू में बदनामी हो जायेगी मेरे घर वाले मुंह दिखाने लायक न रहेंगे और उसके घर में तो जाने क्या होगा?
अब बस एक ही बेचैनी रहती थी कब रविवार आये और शनिवार शाम को मैं कोई न कोई बहाना कर लज्जू के साथ उसके गॉव जाऊं जहाँ से मैं उसके गॉव की कुशल क्षेम ले सकूँ और सिर्फ एक बार बस एक बार उसे करीब से देख सकूँ. इसी अधेड़बुन में मेरे तीन सन्डे यूँही बर्वाद हो गए मुलाकात नहीं हो पायी. मैं मायूस होने लगा. फिर अपने आप को कोसने लगा कि अगर तेरा यह बहम हुआ तो तू जियेगा कैसे. रोज रात्री 10 बजे किशन दयाल भाई जो कि मेरे मकान के पीछे रहा करते थे. शराब के नशे में गम भरे गाने चला दिया करते थे जिनमें खोकर मैं अपनी तन्हाईयों में अक्सर खुद से बातें करता हुआ आँखे मूंदे ऐसा महसूस करता था जैसे वह सामने बैठी हों. किशन भाई के दो तीन गीत जो टेप में बजते थे उनमें 1- बैठ मेरे पास तुझे देखता रहूँ..तू कुछ कहे न मैं कुछ कहूँ, 2- रह गर्दिशों में हरदम मेरे प्यार सितारा..कभी डगमगाए कसती कभी खो गया किनारा…3- तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है ..जहाँ भी जाऊं ये लगता है तेरी महफ़िल है…गीत मुझे बेहद पसंद थे..तब हमारे गॉव में बिजली नहीं थी टेप के सेल अगर वीक हो गए और इनमें से कोई गीत बजना रह गया तो लगता था मेरी जिंदगी ही छिन गयी. फिर मेरा टेप शुरू हो जाता था..लेटे-लेटे अनाज का अदभरा कनस्टर बजाने गोकुल तैयार बैठा रहता था. लज्जू और गोकुल चाहते भी यही थे कि चलो पढाई करते करते थक गए. फिर नीचे से माँ चिल्लाती थी.. अब पढ़ी ल्या रे तुम.. तुमरी मवासी ह्वे जैली त थुक बोली दियां मीकु..द ल्वालों.. घूली पाली स्यु छवा बणयां गितांग ..द ल्वाला गीतांगो….अगर ये साल तुमल नाक नि कटै त शर्त छ…अर वीं दीदिल भी मी ही औळणा देणीन..झणी भैजी क्या बोलला मीकु…(अब पढ़ गए तुम…तुम्हारा जीवन बन गया तो थू बोल देना मुझे ..हे छोरों..खिला पिला के ये बने हो तुम गायक कलाकार…वाह रे गायक कलाकारों..अगर इस साल की परीक्षा में तुमने नाक नहीं कटाई तो शर्त है…और उस दीदी (गोकुल की माँ) ने भी मुझे खरी खोटी ही सुनानी है..पता नहीं भाई जी (लज्जू के पिता जी) भी क्या बोलेंगे मुझे…! माँ के ये उपदेश ऐसा प्रभाव जमाते थे कि हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती थी और फिर होती थी जमकर एक घंटे पढाई..!
आखिर वह दिन भी आ ही गया जब दुबारा मुलाक़ात होने का मुहूर्त निकला. समय था खैरालिंग का मेला (मुन्डनेश्वर) ! मैं दो दिन पहले ही लज्जू के गॉव आ गया था..अब तक मेरे पूरे गॉव के हमजोली मित्र बन गए थे..पूरे गॉव का जनमानस मुझसे बहुत प्यार करता था. दूसरे मामा जी का बड़ा बेटा मनोज तब मवाधार स्कूल में पढता था उसी के कमरे में हमारी चौपाल बैठती थी. मनोज भाई मुझसे कुछ ही महीने बड़े थे…हमारे ख्वाब थे कि कुछ साल नौकरी करके एक अपनी कम्पनी बनायेंगे और उसमें कई बेरोजगारों को नौकरी देंगे. लेकिन कंपनी किस चीज की होगी इसकी कोई जानकारी नहीं थी…मनोज भाई ने अपने तख्तों से निर्मित कक्ष के बाहर कंपनी का नाम मनोज एंड मनोज का नामकरण कर चौक से मोटे आखरों में लिख दिया था. छोटा भाई डब्बू तब दीदी के यहाँ पढता था..काँता भांजा था वह और मनोज भाई लज्जू, बंदगर का डब्बू, अशोक भाई, रविन्द्र भाई, विपिन भाई, महेंद्र इत्यादि हमारा एक ग्रुप ही बन गया था…अरे बीडी पर एक ऐसी कहानी याद आ गयी कि आप हँसे बिना नहीं रह सकेंगे.
एक दिन शाम के समय अचानक लज्जू और गोकुल का आँखों ही आँखों में इशारा हुआ. वो मुझसे बोले कि हम जरा शौच जा रहे हैं..अभी दस मिनट में आ जायेगें..मैंने कहा ठीक है. उस दिन पता लगा मुझे कि बीडी की तलब क्या होती है..इनके तुडडे भी शायद ख़तम हो रखे थे. गोकुल ने शायद अपने पिताजी को कहीं जाते हुए देख लिया था..उसे पता था कि उसके पिताजी बीडी का बण्डल कहाँ छुपाकर रखते हैं..उनके घर अंगीठी हमेशा जगी रहती थी. ये जब मेरे घर से बाहर निकले तो आपस में खुसुर-पुसुर कर रहे थे. मेरा माथा ठनका और मैं 2 मिनट बाद इनका पीछा करते-करते गोकुल के घर पहुँच गया. इन्होने बीडी पर सुट्टे मारे ही थे कि मेरी आवाज सुनकर हडबडा गए. गोकुल ने बीडी फ़ौरन अंदर के कमरे में फैंक दी. और अंगीठी सुलगाने लगा. ताकि धुंवे का पता न लग सके. ओप्ले का धुंवा फ़ैल गया था..उनकी यह स्कीम कारगर साबित हुई लेकिन वह यह भूल गया कि उसकी बीडी अंदर के कमरे में क्या करामात कर रही है..अभी 10-15 मिनट ही हुए थे कि अंदर के कमरे से धुवें की लपटें उठनी शुरू हो गयी. मैं चौंका अरे ये धुंवा कहाँ से आ रहा है.मैं अंदर की तरफ लपका तो देखा बिस्तर में बिछी रजाई और नीचे लगा भेड की उन का खान्तडा धूं-धूं कर जल रहे थे. अब तक गोकुल के पिता जी भी लौट चुके थे..मैंने पानी भरा पूरा बंठा उसमें उढ़ेल दिया और उसके पिताजी पर गर्म होते हुए बोला- इस तरह अंगीठी जलाकर क्यूँ रखते हो ब्वाड़ा जी..देखा ये क्या हो गया. वो भी शर्मिदा हुए..लेकिन कुछ ही देरी में जब उन्होंने बीडी का बण्डल ढूँढा तो वह उस स्थान पर नहीं मिला बल्कि गोकुल बोला याद तो रहती नहीं है..ये रहा ..अब उनका माथा ठनका उन्होंने बीड़ियाँ गिननी शुरू कर दी.. दो बीडी कम निकली फिर तो गोकुल की शामत ! यह वाकिया आज भी जब याद आता है तो हम इसे आपस में शेयर करके खूब हँसते हैं..लेकिन दोस्तों सबसे बड़ी बात ये देखिये कि हम एक उम्र के थे..दो चार महीने में दोनों से बड़ा था तब बड़े भाई को कितनी इज्जत दिया करते थे..यह सन्देश देती है यह घटना.
खैर यह अनावश्यक सा प्रकरण इसमें जुड़ गया ..मुंडनेश्वर के मेले में जात के दिन आखिर मुलाकात हो ही गयी. शायद उसने भी अपने दिल की बात अपनी सहेलियों में शेयर कर दी थी इसलिए पूरे रास्ते उसकी सहेलियां बस गाहे-बगाहे मुझ पर ही छिन्टाकशी कर रही थी.. दो घंटे का चढ़ाई भरा सफ़र आगे पीछे चलते रहे लेकिन इतनी हिम्मत कहाँ थी कि बात कर सकें. आखिर मेले में पहुंचे.लड़कों को डॉज देना मुश्किल था लेकिन आखिर उसकी एक अन्तरंग सहेली ने बहाना ढूंढ ही लिया. वह बोली –भैजी जलेबी तो खिला ही दो. हद हो गयी…सुना है तुम्हारी पट्टी के लोग बहुत दिलदार होते हैं. मैंने कहाँ क्यूँ नहीं जरुर..!
जेब देखी 20 रुपये पड़े हुए थे..बहुत हुए उस जमाने में बीस रुपये ! 8 रुपये किलो जलेबी लेकर मैं आ गया…सबने आपस में बांटी लड़कों ने कहा यार हम अभी आते हैं जरा एक चक्कर मार आते हैं. मनोज भाई काग खोपड़ी का था शायद उसी ने किसी तरह उन्हें हमसे दूर किया लेकिन मैं फोरमल्टी के लिए बोला कि मैं भी चल रहा हूँ- मनोज भाई ने डपटते हुए कहा- तू यहीं रुक इन्हें जलेबी खिला हम आते हैं.
अब लड़कियों की भी प्लानिंग बनी समझ नहीं आया..वे भी सब घूमने का बहाना कर निकल गयी और वह चिल्लाती रह गयी. जलेबी उसके हाथ में थी और वह उसे लेकर कहाँ घूमती. बस यह एकांत क्या मिला..मुझे मौका था एक महिने से जिस चिट्ठी को लिख रहा था उसे देने का ! आखिर जेब में जो पड़ी थी…मैंने जेब में हाथ डालकर पत्र निकालना चाह तो उसकी पड़-पड़ आवाज उसके कानों में गयी. जाने क्या सोचकर उसने जलेबी मेरी तरफ बढाई..मैंने हाथ बाहर निकालकर एक घिरणी (एक गोला) जलेबी निकालकर उसकी आँखों में झाँका..मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी फ़ैल गयी..सुना था उसके पिताजी बड़े सख्त व्यक्ति हैं..वह भी मेले में आये थे..जाने यह ख़याल अचानक दिमाग में कहाँ से कौंध गया…और दोस्तों एक मिनट में आशिकी का भूत डर में तब्दील हो गया कि अगर उनकी नजर हम पर पड़ गयी तो जाने क्या अनर्थ होगा.मेरी जुबाँ भी गूंगी और वह भी गूंगी. मुझे नहीं पता था कि दूर खड़ी उसकी सहेलियां यही चौकीदारी कर रही हैं कि किसी के आने से पहले वो हम तक पहुन्च जाएँ.उसने नजरें जमीन पर गढ़ा रखी थी और दायें पैर के अंगूठे ने जमीन को ड्रिल करके कुंवा सा बना दिया था. न शब्द उसके मुंह से फूट रहे थे न मेरी गूंगी जुबाँ ही कुछ कह पायी. आज भी वह दिन मुझे बहुत कचोटता है कि काश मैंने वह पत्र उसे पकड़ा दिया होता. करीब 25 मिनट बाद उसकी सहेलियां लौटी तो उसकी अन्तरंग मित्र बोली अरे यह क्या तूने जलेबी के रस से अपना सारा सूट खराब कर दिया. तुमने जलेबी तक नहीं खायी. मैं भी नहीं बोल पाया होंठ सूख रहे थे और माथे पर पसीना मंडरा रहा था, हाथ कांप रहे थे.फिर उनकी “बहे बक्या ब्बात बह्वे”,,भाषा में बात होने लगी..आप भी समझ सकते हैं इस भाषा शैली को? नहीं समझ सकते तो हर शब्द के आगे का ब निकाल दीजिये..पूरी बात समझ आ जायेगी.उन्हें लगा कि मैं कुछ नहीं जानता. लेकिन मैं इस कोड वर्ड भाषा शैली को जानता था..मैंने वहां से खिसकना ही उचित समझा. इसके बाद मेरे गॉव के दोस्त आस-पास के दोस्त मिल गए. उस जमाने में मेले में इतनी भीड़ होती थी कि एक बार बिछुड़े तो मिलना संभव भी नहीं था. हुआ भी ऐसा ही…लज्जू की माँ (मामीजी) मनोज भाई की माँ (फुफुजी) और कांता की माँ (दीदीजी) सबने मुझे जाते वक्त जानबूझकर मजाक में कहा था कि मेले से तर्बूज लेकर आना!
मेला खत्म हुआ मैं सबके साथ तरबूज का एक बड़ा सा दाना कंधे पर उठाकर उतराई उतर रहा था अचानक ही दिखा कि वो लोग हमसे कुछ ही आगे हैं. मैंने मनोज भाई से कहा इनसे आगे निकलेंगे. बस फिर क्या था ये दौड़ और वो दौड़…!
जैसे ही नजदीक पहुचे मैंने पीछे से गाना गाना शुरू कर दिया. मेले से लिया 1 रुपये का चस्मा आँखों पर लगाए मैं अपने को किसी हीरो से कम नहीं समझ रहा था. कमीज के कालर खड़े और छाती के तीन बटन खुले. भले ही दांये कंधे में तरबूज ही क्यों न रखा हो. लेकिन गाना न गायें ऐसा हो नहीं सकता था…शायद उस समय का यह लड़की पटाने का एक ट्रेंड था. मैं जोर जोर से गा रहा था. पत्थर के सनम तुझे हमने मुहब्बत का खुदा जाना बड़ी भूल हुयी अरे हमने ये क्या समझा ये क्या जाना. उसका प्रभाव भी पड़ा…उसके क़दमों में अब हलके-हलके पुश ब्रेक से लगने लगे थे. मानो गाडी रिवर्स गेयर पर चल रही हो. जाने किस कमीने इंसान का मरा मेरी पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया..मेरे कंधे में रखे तरबूज को किसी के जोर से धक्का दिया. ढालनुमा रास्ते पर लुढकता तरबूज टुकड़ों में बंटता हुआ उस तक भी जा पहुंचा. पलटकर देखा तो सारे लड़के हंसने लगे. मैंने गुस्से में एक आध को घुरा भी. लेकिन क्या मजाल जो कोई सॉरी बोल दे. उधर जब लड़कियों के हंसने की बारी आई तो मेरा बुरा हाल था. मेरे मुंह से जाने क्यूँ ये शब्द निकले..अबे कमीनो अच्छा लगा मेरे दिल के इतने टुकड़े करने में तुम्हे. देखो कैसा बिखरा हुआ है. अब इसे संभालूँगा कैसे? घर में क्या बोलेंगे.!.फिर क्या था जब वह खिलखिलाकर हंसी तो लगा मानो जंगल के सारे पुष्प एक होकर बुरांस हो गए हों…लगा मानो सभी पेड़ों के रख्तिम काफल एक टोकरी में भरकर मुस्करा रहे हों…लगा हिमालय का चमचमाता हिम- चांदी में बदलकर उसकी दंतपट्टिका बन गयी हो. मेरी स्थिति काटो तो खून नहीं ..मैं बहुत नर्वस था..मुझे लगा कि कहीं न कहीं मुझसे गलती हुई, तब तक लज्जू ही बोल पड़ा अरे भाई वह तरबूज था तेरा दिल नहीं जो टुकड़े होकर बिखरा है…?
एक लड़की ने कमेन्ट किया अरे यार खून भी संभल लो कफोलस्यूं के जीव का है. फिर सब खिलखिला पड़े! उसकी हंसी को तब ब्रेक लगा जब उसने मेरे चेहरे पर ग्लानी के भाव देखे. वह एकदम खामोश हो गयी जैसे उसने कोई अक्षम्य अपराध कर दिया हो..मैंने फिर अपने को कोसा..साले तेरा क्या जाता था ..थोड़ा और हंस लेती तो..कम से कम उसके हँसते मुखमंडल के साथ उसकी खिलखिलाई काया का वह रूप जिसमें यौवन का बसंत लहलहा रहा था उसके थोड़ी देर और दर्शन तो होते…(contd..4)