मेरा जीवन और महिलाएं – १

मेरा जीवन और महिलाएं – १


(अरण्य रंजन की कलम से)
अक्सर यह कहा जाता है कि पुरुष की कामयाबी के पीछे किसी महिला का हाथ होता है. घर की महिलायें आपके साथ हैं तो क्षमताओं की सीमा के परे जाकर भी काम किया जा सकता है. मेरे पिता अक्सर मुझसे कहते थे कि कभी भी मौलिक चिंतन करना हो तो महिलाओं से बात करनी चाहिए और वे ऐसा करते भी थे.
पिता जी के जाने के बाद उनके पद चिन्हों पर चलता रहा जो आसान तो नहीं था. घर से मिली ताकत के बल पर आज भी अपनी चुनी हुयी भूमिका पर टिका हुआ हूँ, तो घर में मौजूद महिलाओं के द्वारा दिए जा रहे सहयोग और हौसले के कारण। पिता जी के जाने के बाद आज तक भी यह अहसास नहीं हुआ कि दाल रोटी कैसे चलेगी. अधिकांश लोगो को सवाल होता है कि आपकी आजीविका कैसे चलती है. समाज कार्य में लगे किसी भी साथी के लिए अपने परिवार की आजीविका चलाना एक कठिन कार्य है. पिता जी के बाद मुझे आजीविका के लिए कभी सोचना नहीं पड़ा. मेरी माता जी ने मेरे किसी भी पारिवारिक और सामाजिक कार्य के लिए आर्थिक कठिनाई महसूस नहीं होने दी है. इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि उनके पास अकूत धनसम्पद्दा है. वे अवकाश प्राप्त शिक्षिका हैं और पेंशन ही उनकी आजीविका का स्रोत है. माता जी मुश्किल वक़्त में भी कोई न कोई उपाय निकाल कर हमारी आर्थिक दिक्क्तों का समाधान कर देती हैं. उनके दिए हौसले और हिम्मत से ही इस कर्म में लगे हैं.
मै तब भी कुछ नहीं कर पाता यदि मेरी पत्नी कविता का सहयोग नहीं मिल पाता। पारिवारिक पृष्ठभूमि में विभिन्नता होने के कारण मेरे काम को समझने में कविता को समय लगा परन्तु हमारे हर कार्य में कविता ताकत बन कर मेरे साथ रहती हैं. घर खर्च में मेरा सहयोग नहीं होने के बावजूद मुझे मेरी रुचि के काम करने की स्वतन्त्रता मिल रखी है. शादी के डेढ़ दशक में कविता ने कभी भी मेरे ऊपर अपनी अपेक्षाओं और आक्षांकाओं का दबाव नहीं डाला। यही कारण है जिसके कारण मै थोड़ा बहुत काम कर पा रहा हूँ.
पिछले एक दशक से समाज में शिक्षा, आजीविका और जल संरक्षण के प्रयोगों को जागृति संस्थान के माध्यम से कर रहे हैं. मेरी छोटी बहन समीरा इन सभी कार्यो के पीछे ताकत बनकर खड़ी है. इन सभी उद्यमों की बुनियाद से लेकर आगे बढ़ने की यात्राओं में वह हमारी टीम की एक अहम् कड़ी है. अपने स्वयं के संघर्षों को जीते हुए समीरा हमारे कार्यों को अपने कन्धों पर बखूबी सम्हाल रही है.
जो लोग हमारे घर को जानते हैं वे कंचन दीदी को भी जानते है. कंचन दीदी का बंगाल में मायका, बिजनौर में ससुराल है और आज वो हमारे परिवार की एक प्रमुख सदस्य है. कितने ही लोग आएं, कितना ही काम हो कंचन दीदी हँसते हुए चुटकियों में निपटा देती है. मुझे निकम्मा बनाये रखने में कंचन दीदी का भी हाथ है. मेरे हाथ में बर्तन हो या झाड़ू टिकने ही नहीं देती है. कंचन दीदी हमारे सभी कार्यों के पीछे की बुनियाद का पत्थर हैं.
बचपन से जिसके साथ कई यादों को समेटा है वह है पुष्पा फुफु (फुफु को गढ़वाली में बुआ कहा जाता है). पुष्पा फुफु हमेशा ही अपने पुरे जोश और हिम्मत के साथ हमारे सभी कार्यों में दृढ़ता के साथ खड़ी रहती हैं.
दूसरी छोटी बहन सृजना अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए हमारे सभी कार्यों में कभी मन से और कभी स्वयं आकर हमारा हौसला बनती है. तीसरी छोटी बहन अर्चना है जो अपने पारिवारिक दायित्वों में व्यस्त है परन्तु जब भी समय मिलता है तो हमारे कार्यों में हाथ बटाने के लिए तत्पर रहती है.
मेरे जीवन में घर, बाहर और समाज में महिलाओं की मेरे से भी अधिक बड़ी भूमिका है. इन सभी के प्यार, विश्वास, सहयोग, समर्पण और लगन के कारण ही समाज में अपनी भूमिका को निभा पा रहे हैं. इन सभी के सम्मिलित और सहयोगी प्रयासों के रूप में मुझे परिभाषित किया जा सकता है.

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