मूर्तियों के खेल की यह ओछी राजनीति।

मूर्तियों के खेल की यह ओछी राजनीति।


(सोशल एक्टिविस्ट इन्द्रेश मैखुरी की कलम से)
लेनिन की मूर्ति तोड़ी गयी तो देखा-देखी उत्पातियों ने उत्तर प्रदेश में डॉ.बी.आर.अम्बेडकर और तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियां भी तोड़ डाली.इस बीच कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख पोती गयी है. मैं लेनिन,अम्बेडकर और पेरियार के विचारों का समर्थक होते हुए,उनकी मूर्तियां तोड़े जाने का विरोध करता हूँ तो श्या.प्र.मुखर्जी का वैचारिक विरोधी होती हुई भी उनकी मूर्ति पर कालिख पोते जाने का कतई समर्थन नहीं करता.
यह गौरतलब है कि भाजपा ने सत्ता में आते ही पहला काम लेनिन की मूर्ति गिराने का काम किया.उसके बरक्स यह भी ध्यान दिए जाने की बात है कि कल जो श्या.प्र.मुखर्जी की मूर्ति निशाना बनाई गई,वह वामपंथ के 35 साल के शासन के बावजूद, वहां सुरक्षित रही.
वो कह रहे हैं,कि लेनिन की मूर्ति इस लिए तोड़ी क्योंकि विदेशी है.तो भाई जिस जे.सी.बी.को मूर्ति उखाड़ने गए,वो स्वदेशी है,जिस फ़ेसबुक,व्हाट्स एप्प आदि पर उछल-उछल कर तर्क दे रहे हो,इनमें से कौन सा स्वदेशी उत्पाद है?आर.एस.एस.की जो सफेद कमीज,बेल्ट और जो हाफ पैंट अब फुल पैंट हो गयी,इनमें से कौन सा स्वदेशी है?
मसला विदेशी और स्वदेशी का है ही नहीं.मसला तो यह है कि कौन लुटेरों के साथ है,कौन लूट के खिलाफ. आपको लेनिन से,बाबा साहब या पेरियार से इसलिए दिक्कत है कि वे हर तरह की लूट और असमानता के खिलाफ थे.लेकिन विदेशी होने के बावजूद आपको हिटलर से कोई तकलीफ नहीं है.गोलवलकर का लेखन उसकी तारीफ से भरा पड़ा है.मुसोलिनी आपको प्रिय है,जिससे संघ के संस्थापक के गुरु मुंजे जा कर मिले, जिसकी फ़ासिस्ट पार्टी के बल्लिला संगठन का तौर तरीके संघ ने अपनाया.आपको वो ट्रम्प अपना सा लगता है,जिसका उसके देश में पहली दिन से जबरदस्त विरोध हो रहा है.आप उसकी जीत के लिए यज्ञ करते हो,उसकी बेटी यहां आती है तो सत्ता के शिखर पुरुष समेत सभी मोम की तरह पिघलते नजर आते हैं.
बात सिर्फ स्वदेशी और विदेशी की ही होती तो फिर गांधी से इतनी घृणा क्यों होती,उनके हत्यारे के मंदिर बनाने की कोशिश क्यों होती?
सीधी बात करो,मामला तो वैचारिक है, पक्षधरता का है.तर्क जुटाओ,तार्किक बनो. तोड़फोड़,उत्पात,उन्माद गुंडों,लफंगों का तरीका है.गुंडई,लफंगई से देश बढ़ता नहीं टूटता है.

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