मात्र 700 सौ रुपये में बसा था टिहरी राज्य …!

(मनोज इष्टवाल)

बहुत कम लोगों को शायद यह जानकारी हो कि गोरखा राज्य के अंत के बाद जब अंग्रेजों द्वारा देहरादून व गंगा पार (ब्रिटिश गढ़वाल पौड़ी/चमोली/रूद्रप्रयाग ) हस्तगत किया गया था तब राजा टिहरी के पास मात्र टिहरी रवाई जौनसार व उत्तरकाशी का क्षेत्र ही रह गया था.

(राजा सुदर्शन शाह)

गणेश प्रयाग (भागीरथी नदी) से मात्र 2,328 फीट की उंचाई पर आखिरकार 28 दिसंबर 1815 को महाराजा शाह बहादुर सुदर्शन शाह को अपना किला व राजधानी बनाने की जगह आबंटित की गई जिसमें अंग्रेजो द्वारा रुपये 700 (रुपये सात सौ) मात्र की आर्थिक सहायता भी मुहय्या करवाई गई तथा राजमहल के आस-पास मात्र 30 छोटे-छोटे मकान बनाने की अनुमति दी गई जिसमें राज्य के कर्मी रह सके व राजकाज की देखरेख हो सके.
टिहरी निर्माण के लिए यह सहायता बहुत कम थी और राजा की हालत भी जर्जर थी. बाजार निर्माण से लेकर ब्यवसाय तक सब अंग्रेजों के अधीन था तब तत्कालीन प्रजा ने बढ़-चढ़कर टिहरी निर्माण में अपनी भागीदारी निभायी. सन 1829 के शुरूआती माह तक राजमहल सहित जरूरी आवासीय मकान तैयार तो हो गए थे लेकिन अर्थ-ब्यवस्था की तंगी का दौर था वहीँ ब्रिटिश शासन के सहयोग से बने तीस आवासीय घरों पर सलाना तीन रुपया प्रतेक से टैक्स वसूली भी होती थी.
ऐसे में सकन्याणा के माफीदार सक्लानियों ने 30 अप्रैल 1829 में राजा के प्रति अपनी वफादारी साबित करते हुए राजमहल में 200 रुपये का नजराना पेश किया जिससे राजा सुदर्शन शाह बेहद खुश हुए और उन्होंने सकलानी जाति को माफीदार घोषित कर दिया!
मात्र 700 रुपये में बेस टिहरी शहर का अस्तित्व भले ही आज राजमहल के खंडहरों के साथ उसी भागीरथी में समा गया जिसके तट पर स्थित गणेश प्रयाग में कभी राज-महल के मन्त्र गूंजा करते थे और प्रसिद्ध सिंघोरी मिठाई दिल्ली बैठे ब्रिटिश हुक्मरानों तक पहुंचाई जाति थी. लेकिन उसकी पीड़ा में डूबे शब्द आज भी टिहरी में बने श्रीदेव सुमन जलाशय में गूंजते सुनाई देते हैं. जैसे श्रीदेव सुमन की माँ की फटकार (अभिशाप) का अब अंत हुआ हो!

(पुरानी टिहरी व जलमग्न टिहरी में दीखते राजमहल के स्रोत)


कई लोगों को यह जानने की उत्सुकता रही कि आखिर श्रीदेव सुमन की माँ ने ऐसी कौन सी फटकार मारी थी यानि ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था जो अब प्रभावी हुआ! श्रीदेव सुमन ने जब टिहरी सामंतशाही के खिलाफ खुलकर आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया था तब उन्हें कारागार में डाला गया जहाँ उन्होंने भूख हड़ताल प्रारम्भ कर दी आखिर एक दिन पता लगा कि श्रीदेव सुमन जेल में ही मर गए और उनकी लाश भागीरथी में फैंक दी गई है. यहाँ शक यह था कि श्रीदेव सुमन को जेल में मारा गया था न कि उनकी मौत उनकी भूख हड़ताल की वजह से हुई!
जब श्रीदेव सुमन की लाश न मिली तो उनकी माँ अपनी फ़रियाद लेकर टिहरी दरबार पहुंची जहाँ उनके साथ अभद्र ब्यवहार हुआ जिससे क्रोधित इस माँ ने अभिशाप दिया- कि जिस तरह मेरा सुमन इस भागीरथी में डुबाया गया तो हे देव तूने यह संसार बनाया है अगर तू सच्चा है तो एक दिन यह महल खंडहर होकर पानी में डूबे और आज से इस महल में रहने वाला यह राज परिवार यहाँ कभी सुखी न रहे! कहा जाता है कि तब से ही टिहरी राज महल पर विपदाओं का पहाड़ टूटना शुरू हो गया और राजवंश के राजकुंवर 30 की उम्र से पहले ही स्वर्ग सिधारने लगे!

(फाइल फोटो टिहरी राजमहल)

ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सच हुई ! 
टिहरी के राजा सुदर्शन शाह के दरवार के ज्योतिषी पंडितों ने जब 24 दिसम्बर 1815 को नई राजधानी टिहरी बनाई गई थी भविष्यवाणी की थी कि यह शहर 200 वर्षों बाद जल में डूब जायेगा (जो आज सच साबित हुई क्योंकि अब टिहरी शहर पूर्ण जलमग्न हो गया है) तथा राजा सुदर्शन शाह के उत्तराधिकारी 59वें शासक राजा नरेन्द्र शाह से आग्रह किया कि वे अपनी राजधानी बदलें। दरबार की सलाह पर राजा नरेन्द्र शाह ने नए नगर नरेन्द्र नगर को वर्ष 1919 में अपनी राजधानी बनाया।

शहर का नाम इसके संस्थापक नरेन्द्र शाह के नाम पर रखा गया। नई राजधानी स्थापित करने के कई कारण थे। कई पीढ़ियों तक शाह वंश के शासक 30 वर्ष की आयु से पहले ही चल बसे थे। राजा नरेन्द्र शाह ने समझा कि अपनी राजधानी बदलकर वे इससे बच सकते हैं, फिर वह वक्त भी आया जब ।

विकिपीडिया अपनी जानकारी में संसोधन करे-

विकिपीडिया के अनुसार यह 1358 ई. में स्थापित एक राजसी राज्य था जिस पर गोरखाओं द्वारा 1803 में कब्जा कर लिया गया था, एंग्लो नेपाली युद्ध और 1815 की सुगौली संधि के बाद टिहरी गढ़वाल राज्य के गठन के साथ गढ़वाल राज्य को बहाल कर दिया गया, जोकि 1949 में भारत में सम्मिलित कर लिया गया।

यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि गढ़वाल राज्य की स्थापना बर्ष 15वीं सदी में श्रीनगर राजधानी के बाद हुई थी । और उसके प्रथम राजा अजयपाल हुए जबकि यह सत्य है कि 52 गढ़ विजय के बाद ही गढ़वाल राज्य की स्थापना की गई! नकि 1815 के बाद बसा टिहरी गढ़वाल राज्य कहलाया क्योंकि ब्रिटिश गढ़वाल जिसमें पौड़ी गढ़वाल चमोली व वर्त्तमान में रुद्रप्रयाग दो अन्य जिले शामिल हैं कभी भी टिहरी राजा के अधीन नहीं रहे बल्कि इस क्षेत्र पर ब्रिटिश शासन ने हुकूमत की! अत: विकिपीडिया को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि 1815 की सुगौली संधि के बाद राजा सुदर्शनशाह व उनके आने वाले वंशज सिर्फ टिहरी रियासत के राजा कहलाये न कि सम्पूर्ण गढ़वाल के राजा! इसीलिए चमोली, रूद्रप्रयाग (कुछ भू-भाग ), व पौड़ी गढ़वाल जिले की जनता ने 1815 के बाद राजशाही पर यह आरोप मढ़ा कि उसने अपने मतलब के लिए उन्हें अंग्रेजों को बेच दिया इसलिए टिहरी रियासत के राजा उनके राजा कहाँ से हुए ! अत: यह सर्वथा सत्य है कि टिहरी नरेश को इन तीनों जिलों की जनता ने कभी अपना राजा नहीं माना जबकि आज भी बदरीनाथ के कपाट खुलने पर बद्रीनाथ की जोत जलाने के लिए टिहरी राजा के यहाँ से गाडू घड़े का तेल जाता है! बहरहाल करीब ज्योतिषियों की भविष्यवाणी या फिर एक माँ के श्राप का कारण (जो भी रहा हो),
24 दिसम्बर 1815 को बसाई गई टिहरी 28 जुलाई 2004 को पूर्ण रूप से जलमग्न हुई!

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