मातृशक्ति को ताकतवर बनाते लोकेश नवानी के ये जनगीत!
मातृशक्ति को ताकतवर बनाते लोकेश नवानी के ये जनगीत!
(मनोज इष्टवाल)
लोकेश नवानी….! शायद साहित्य सृजन व लोक समाज, लोक संस्कृति की हर विधा का ब्यक्ति उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश भर में इस नाम से बखूबी परिचित होगा! धाद…! जो पूर्व में एक पत्रिका के फोर्मेट पर लोकेश नवानी ने आज से लगभग 37 बर्ष पूर्व शुरू की थी आज उसके इतने अंकुर निकलकर बेल बन गए हैं कि बिना धाद लगाए ही लोग धाद के गरिमामय कार्यक्रमों में शिरकत करने पहुँच जाते हैं! धाद ने साहित्य, संस्कृति और लोक समाज सहित विभिन्न आयामों को संरक्षित करने की अलग अलग विंग बनाई हुई हैं जो अपने स्तर पर हर सम्भव कार्यक्रम प्रस्तुत करते ही रहते हैं!
एक बड़े आभामंडल का आभास कराती धाद का ध्रुवतारा जाने क्यों इस फोर्मेट से अलोप अदृश्य हो जाता है और लोग समझते हैं कि लोकेश ने अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर ली है लेकिन ऐसा नहीं है! लोकेश नवानी बताते हैं कि धाद उनके घर आँगन से पली बढ़ी है और निरंतर बढती ही जा रही है! मैंने उन्हें जिन हाथों में उसे वर्तमान में सौंपा हुआ है वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे लेकिन जब भी मुझे लगेगा कि हम दिशा भटक रहे हैं तब उतनी ही ताकत से उसे सम्भाल भी लेंगे! फिलहाल उन्होंने धाद के हर फोर्मेट की प्रशंसा करते हुए बिना नाम लिए कहा कि धाद का हर व्यक्ति बेहद वफादारी के साथ अपना कर्तब्य निभा रहा है!
फिर उत्तरजन की उत्पत्ति कैसे हुई ! इस पर लोकेश मुस्कराकर कहते हैं- बर्षों से मेरे मन में एक कसक उत्पन्न हो रही थी कि जो मेरे द्वारा इतने बर्षों में रचा गया है क्या उसे धाद के माध्यम से ही बाहर लाऊं फिर सोचा हो क्यों न अपने इस स्वरूप के लिए एक नया आभामंडल रचूं! मैंने बर्षों पूर्व दर्जनों जनगीत लिखे उन्हें स्वयं कम्पोज भी किया लेकिन प्लेटफोर्म यानि तस्तरी पर सजाकर समाज के सम्मुख नहीं रख पाया! सेवानिवृत्ति के बाद लगा कि अब उपयुक्त समय है इसे बाहर लाने का! उतरजन उपजा और उसी में एक महिला विंग के रूप में महिला उत्तरजन का गठन हुआ! फिर क्या था देखते ही देखते हाथ बढे और मातृशक्ति ने दो कदम आगे बढाकर अपनी सम्भलता को मजबूती देने के लिए मेरे जनगीत उत्कंठ मन से गाने शुरू कर दिए और तो और दो बार यह सार्वजनिक मंच पर आकर लोगों तक पहुँच भी गए हैं!
यकीनन विगत दिनों डीएवी स्कूल डिफेन्स कालोनी के प्रांगण में जब स्कूल की ही छात्राएं “बदलेगी जब तू दुनिया में, बदलेगा तब दुनिया समाज “ जनगीत लेकर मंच में आई तो गीत के बोलों के साथ उनके भाव उनकी मनोदशा उनके मुख मंडल पर साफ़ छलक/झलक रही थी! उसके पश्चात महिला उत्तरजन की महिलाओं ने लोकेश नवानी रचित लगभग 8 जनगीत जिनमें “श्रृष्टि की बेटियाँ, श्रृष्टि की बेटियाँ..!, “हम दुनिया आधी अवाम, हम क्या-क्या आज सवाल करें..!”, ऐ लड़की मुस्करा जरा, फतह कर फतह कर, आधा अम्बर आधी धरती है मेरा आधा अधिकार, धूप में बादल घटा, ठंडी पवन हैं लडकियां, एक किरण मिल जाय मुझको इत्यादि प्रस्तुत किये! दुबारा डीएवी स्कूल की छात्राएं जब मंच पर “उठ खड़ी हो गीत गा तू सर उठाके बात कर..! जनगीत लेकर आई तो मन हुआ अभी जाकर इस गीत को रिकॉर्ड करवाकर बाजार में डाल दूँ ताकि जन चेतना के बढ़ते ये सुर हर व्यक्ति तक पहुंचे!
महिला उत्तरजन की महिलाओं ने यकीनन लोकेश नवानी के जनगीतों के साथ पूरा पूरा इन्साफ करते हुए “ऐ लड़की मुस्करा जरा..!” जिस अंदाज में प्रस्तुत किया वह काबिलेतारीफ था! लोकेश नवानी के सारे जनगीत अगर गौर से सुने जाए तो उनकी तुलना उन जनगीतों से की जा सकती हैं जो उत्तराखंड आन्दोलन से पूर्व और उत्तराखंड आन्दोलन के बाद जन्में लोकप्रिय गीत हुए हैं जिनमें स्व. गिरीश तिवारी “गिर्दा” का “ततुक नी लगा उदैख, घुणन मुनई न टेक, जैता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में!” या फिर हम मैहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,एक खेत नहीं,एक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का ” उठा जागा उत्तराखंडयूँ सौं उठाणओ बगत ऐग्ये, बल्ली सिंह चीमा का “ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के, आज बाजी जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के, या फिर नन्दकिशोर हटवाल का “बोये जाते हैं बेटे.. पर उग जाती हैं बेटियाँ, खाद पानी बेटों को.. पर लहराती हैं बेटियां, जैसे अमर जनगीत आज प्रचलन में हैं!
यकीनन लोकेश नवानी जाने क्यों ऐसे जनगीतों का भंडार अभी तक दबाये बैठे रहे! वो तो शुक्र मनाइए कि महिला उत्तरजन उठ खड़ी हुई और ये गीत तैरते हुए हम तक पहुँचने लगे हैं! अभी भी देर नहीं हुई इन गीतों के संरक्षण हेतु महिला उत्तरजन, धाद या किसी ऐसे धनाढ्य व्यक्ति को आगे आकर हाथ बढ़ाना चाहे जो इनको रिकॉर्ड करवा सके और ये आने वाले महिला सशक्तिकरण हेतु जनगीतों का एक सबल माध्यम बन सकें! यकीन मानिए इन्हें मैं जाने क्यों आने वाले वक्त में महिलाओं के अधिकारों की एक कड़ी मान रहा हूँ और हर आन्दोलन में इनकी सहभागिता उसकी बानगी!