माकूल पर्यावरणीय उर्बरा होने के बाबजूद भी उत्तराखंड सेब उत्पादन में बहुत पीछे!

इस बर्ष सेब उत्पादकों के चेहरे खिले हुए थे क्योंकि मौसम और उसका मिजाज सेब उत्पादन के लिए बेहद माकूल समझा जा रहा था लेकिन प्रकृति भला कब आपकी आशाओं के अनुकूल जीवन जीती है. अभी सेब के फूल खिले ही थे कि विगत माह ओलों और तूफ़ान की मार से लगभग 40 प्रतिशत फूल झड गए. उसके बाद भी बच्चे खुचे सेब के फूलों ने रंगत ला दी थी. उच्च शिखरों पर बर्फ़ गिरने से हिमालयी ढाल की तरफ मुंह किये उत्तरकाशी जनपद के ज्यादातर किसानों के बागीचे खूब मुस्करा रहे थे. लेकिन विगत दो दिन फिर ओलों ने बाल्यावस्था में जी रहे सेब के फलों पर अपना कहर ढाया और 20 प्रतिशत नुक्सान और किसानों को उठाना पडा. सेबों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करती अखिलेश डिमरी की कलम –

(अखिलेश डिमरी)
सेब उत्पादन की सेब उत्पादन में अपने सूबे में आंकड़ों के अनुसार लगभग 35000 हेक्टेयर भूमि पर सेब उत्पादन किया जाता है, वर्ष 2014- 15 में सूबे में 18.25 लाख टन सेब का उत्पादन किया गया जबकि यही उत्पादन वर्ष 2013-14 में 25.02 लाख टन के आस पास था। देश के कुल सेब उपादान में अपने सूबे की भागीदारी महज 4.81% है जबकि जम्मू एवं कश्मीर की भागीदारी 1.61 लाख हेक्टेयर भूमि के साथ 65% उत्पादन की और पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की यही भागीदारी 29% है, अगर आप विश्लेषण करें तो यह उत्पादन जम्मू एंड कश्मीर व् हिमाचल में जोत के अनुसार अपने सूबे से तीन गुना ज्यादा है ।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
इस वर्ष के सेब उत्पादन के पूर्वानुमान के अनुसार जम्मू एंड कश्मीर में पिछले वर्ष के 13.68लाख टन की तुलना में 20.37 लाख टन हिमाचल प्रदेश में पिछले वर्ष के 6.25 लाख टन की तुलना में 7.63 लाख टन सेब उत्पादन का अनुमान है, जबकि अपने सूबे में 4000 टन उत्पादन वृद्धि की मामूली बढ़त का अनुमान था जो कि वर्तमान में ओलावृष्टि से पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में अब 20 % से 40% कम रहेगा।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
अब बात एक और व्यावहारिक तथ्य की सेब उत्पादन के लिए अपने सूबे का राजकीय उद्यान चौबटिया राज्य गठन से पूर्व प्रसिद्ध रहा है, सेब उत्पादकों को ठीक से मालूम होगा कि यह वही संस्थान है जिसने सेब के पेड़ों के लिए चौबटिया पेस्ट की खोज की थी जो आज भी लोकप्रिय है, सेब उत्पादन के लिए मशहूर इस संस्थान की हालत सूबे के गठन के बाद आज देखें तो संस्थान की 107 हेक्टेयर भूमि बंजर पडी है , दो वर्ष पहले सुबह के पौधे रोपे गए थे जो उचित देखभाल के अभाव में लगभग मृतप्रायः ही हैं ये अलग बात कि पडौसी राज्य हिमाचल ने पूर्व में इस संस्थान की सहायता से अपने सेब उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार किया ।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
अब बात सूबे के सोलह सालों में कृषि जोत की , राज्य गठन के समय कुल कृषि भूमि 776191 हेक्टेयर थी जो कि वर्ष 2014 के आंकड़ों के अनुसार 723164 हेक्टेयर ही रह गयी ,याने 53027 हेक्टेयर कृषि भूमि का पतन हुआ है जो प्रतिवर्ष लगभग साढ़े चार हजार हेक्टेयर की दर से दर्ज की जा रही है , दीगर बात यह है कि कृषि से रोजगार की वकालत करने वाले नीति नियंता और नोकरशाहों की मौजूदगी के बावजूद कृषि भूमि का साढ़े चार हजार हेक्टेयर की दर से घटना खुद ही सरकारों और नीति नियंताओं की असल कार्यप्रणाली को आइना दिखा जाता है । इन आंकड़ों में एक तथ्य यह भी है कि यह आंकड़े कृषि भूमि के है कृषि जोत के नहीं, लगातार बढ़ रही फेलो और लांग फेलो जमीन के दृष्टिगत कृषि जोत के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हो सकते हैं , जिसका अंदाजा सामान्य आँखों से गाँवों में बंजर पड़े खेतों से लगाया जा सकता है।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
कृषि भूमि की इस दशा के लिए दोषी भी सरकारें ही है, खेती किसानी की आवश्यक पूर्तियों के लिए निर्धारित विभागों पर अंकुश का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये विभाग किसानों को बीज तक समय पर नहीं दे पाते, जिन जिम्मेदार अधिकारियों को अपनी विशेषज्ञता के आधार पर किसान के खेत में होना चाहिए था वो प्रशाशनिक अधिकारी की तरह व्यवहार कर सरकारी फाइलों में सर गड़ाये कुर्सियों पर ही चिपके रहना पसंद करते हैं। किसान के खेत की छोड़िये राजकीय उद्यानों व् कृषि भूमि के बंजर हालात कार्यप्रणाली को तस्दीक कर जाते हैं।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि आज भी सूबे में अपना कोई भूमि सुधार क़ानून नहीं , जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 ही लागू है , बहुत हुआ तो पर्वतीय जिलों के लिए कुमाऊँ जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1960 (कुजा एक्ट) ही लागू है जबकि सूबे के गठन के बाद सूबे के अपने एक्ट के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए। वहीं पडौसी राज्य हिमाचल ने सूबे के गठन के साथ ही अपने सूबे में कृषि भूमि की खरीद फरोख्त पर तत्काल रोक लगा दी थी और वहां आज भी कृषि भूमि की खरीद फरोख्त वर्जित है और यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में लगातार कृषि और बागवानी के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ रहा है, जबकि अपने सूबे में लगातार कम होने के संकेत हैं।

(फोटो- राखी चौहान, बलावट, बंगाण उत्तरकाशी)
आखिर सोलह साल पूर्व बने इस सूबे के गठन के साथ ही किये गए बड़े बड़े दावों, अपना राज्य अपनी नीतियां, पर्यटन, कृषि बागवानी आदि आदि के दावों में से वो कोउन से दावे हैं जो इस सूबे के हुक्मरान पूरे कर पाएं हों , ये प्रश्न पूछना अब वाजिब है क्योंकि सूबा उम्र के हिसाब से भी अब शैशवकाल से बाहर निकल वयस्क हो चूका है और सामान्य रूप में उम्र की ये वयस्कता प्रश्नों को तो खड़ा करती ही है ………? और इस उम्र में अगर प्रश्न नां खड़े हों तो इसे मन्दबुद्धि ही कहा जाना चाहिए।

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