माँ तू देहरादून आ जा, देहरादून रहना मेरे वश की बात नही! अपने पहाड़ के लिए छटपटाता रुद्रनाथ का पुजारी !

माँ तू देहरादून आ जा, देहरादून रहना मेरे वश की बात नही! अपने पहाड़ के लिए छटपटाता रुद्रनाथ का पुजारी !
(मनोज इष्टवाल)
बचपन में जिसे अपने दादा की पूजा की घंटी से नफरत थी. देवी/देवता क्या हैं इसे सिर्फ लोगों के मन बहलाने का साधन समझता यह व्यक्ति जब जवान हुआ तो कद-काठी से किसी अभिनेता से कम नहीं था! दैवयोग से घर में सब सम्पन्नता भी थी. पिताजी दादा जी की भाँती मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते थे बल्कि सरकारी सेवारत थे. दादा जी प्रकांड विद्वान् मनुषी थे जो गोपेश्वर और रुद्रनाथ दोनों मंदिरों के पुजारी हुआ करते थे. दादी बचपन में बताया करती थी कि किस तरह आदिदेव महादेव उसके दादा की मुरादें 5 माह तक रुद्रनाथ में बिना घर आये ही पूरा कर देते थे और वह था कि इस कान से सुनता था व दुसरे कान से निकाल देता था जैसे उसे पूजा पाठ घंटी मंदिर सबसे नफरत हो!

(योग और कर्म दोनों ही पूजनीय हैं पंडित हरीश भट्ट विभिन्न मुद्राओं में)
जवान हुआ तो उसकी रूचि फिल्मों की ओर बढ़ी. सहपाठी मित्रों ने भी आग में घी डालने का काम किया और आखिर एक दिन वह घर से फरार हो गया! वह व्य्क्ति९ और कोई नहीं बल्कि गोपेश्वर, रुद्रनाथ के पुजारी पंडित हरीश भट्ट हैं! जो स्वयं में एक बहुत अच्छे फोटोग्राफर भी हैं.
बेहद नम्र स्वभाव के साथ उतेजना की भी जोगलट उनकी भाव भंगिमा में आपको दिखने को मिलेगी. सही प्रसंगों पर अमृत सी वाणी व गलत प्रसंगों पर जोगी सा ध्वन्ध ! यह सब आपको उनकी मानसिक तन्द्राओं में दिखने को मिलेगा. आज जब उनसे धरोहर कार्यलय में मुलाक़ात हुई तब उनकी नाराजगी थी कि मैं द्रोणागिरी से लौटते वक्त गोपेश्वर क्यों नहीं आया! मेरा जवाब था कि अब आप देहरादून आ तो गए तब वे तपाक से बोले- भाई साहब मैं तो यहाँ परेशान हो गया हूँ. अभी अभी माँ से ही बात कर रहा था! मैंने माँ को बोला- माँ तू देहरादून आ जा, देहरादून रहना मेरे वश की बात नही!
अभी हमारी बातों की शुरुआत हि हुई थी कि गढ़वाली सिनेमा के जनक कहे जाने वाले पारेश्वर गौड़ व धाद साहित्य एकांश की सचिव कल्पना बहुगुणा ने धरोहर कार्यालय में कदम रखा. शायद उन्हें गोबिंद नेगी से कोई काम था!

(फोटोग्राफर हरीश भट्ट और पुजारी हरीश भट्ट में कितना अंतर है)
मुलाकात हियो और हरीश भट भावुकता में बह गए. उन्हें इस बात का शायद जरा भी ध्यान नहीं रहा कि उनके सामने एक घाघ किस्म का खोजी पत्रकार बैठा है जिसको ऐसे बिषय ढूँढने में हि महारथ है. हरीश भट बोले- सच कहूँ भाई साहब मेरा देहरादून या किसी भी शहर में अब वास्तव में मन नहीं लगता क्योंकि जो आवोहवा बानगी रवानगी हमारे पहाड़ों की फिजाओं घटाओं और प्रकृति में रची बसी है वह भला इन प्र्दूधित शहरों में कहाँ होगी. मजबूरी है कि बेटी यहाँ पढ़ रही है इसलिए कोई गार्जन तो चाहिए ही ना! इसीलिए माँ से शिकायत कर रहा था कि तू आजा… मेरा मन नहीं लग रहा है यहाँ!
प्रसंग बदला और मैंने पारेश्वर गौड़ से हरीश भट्ट का परिचय करवाया! बात गोपीनाथ मंदिर से पहुँचती हुई केव टूरिज्म पर जा पहुंची वहां से होती हुई कब बयार रुद्रनाथ भगवान् के यहाँ हाजिरी लघाने पहुँच गयी पता भी नहीं चला! अगले बर्ष रुद्रनाथ में हरीश भट्ट 5 माह तक पूजा करेंगे! इस दौरान चाहे घर परिवार में कुछ भी हो जाए या फिर रुद्रनाथ में कोई भी आपदा आ जाय उन्हें नियमों के अनुसार मंदिर में ही रहना होता है.

(हरीश भट्ट स्वयं व उनकी रुद्रनाथ की वादियों की ली हुई फोटो)
मैंने उनके घर से भागने का प्रसंग पूछा तो वे मुस्करा कर बोले- बात 1985 की है तब मैं अच्चा ख़ासा बांका युवा हुआ करता था ! दोस्तों की फूक व खुद की मर्जी से एक दिन चुपचाप घर से मुंबई के लिए निकल पड़ा था. जिसने चमोली बाजार भी ठीक से नहीं देखा हो वह इतना बड़ा साहस कर रोडवेज से पहले श्रीनगर पहुंचा और वहां से पैडुल जा पहुंचा बाद में पता लगा देहरादून इधर से नहीं बल्कि वापस श्रीनगर से जाना होता है. रात वहीँ बिताकर अगले दिन फिर देहरादून पहुंचा और वहां से दिल्ली जाने वाली रेल में जा बैठा. वहाँ से मुंबई की रेल पकड़ी और जोगेश्वरी जा पहुंचा! टिहरी के एक परिवार ने जब मेरी भेषभूषा देखी तो वे समझ गए कि यह जरुर भागकर आया है. मेरी खुद समझ नहीं आ रहा था कि मुझे कौन सी अदृश्य शक्ति संचालित कर रही है जो मैं मुंबई तक बिना किसी रुकावट के पहुँच गया! रात सपने में मुझे रुद्रनाथ साफ़-साफ़ दिखाई दिए ! वे मुस्कराकर बोले- देख लिया मुंबई ..अब वापस लौट आ! अपने रिश्तेदारों के यहाँ पूरे 21 दिन रहने के बाद मुझे यह आभास हो गया था कि हीरो बनना कोई सरल बात नहीं. अगले दिन रेल पकड़ी और सीधे गोपेश्वर आ पहुंचा! घर में कोहराम मचा था कि जाने किसने गायब कर दिया कहाँ गायब हो गया ! मेरे पिताजी ने मेरी ढूंढ में उस दौरान दो ढाई लाख रूपये खर्च कर दिए थे.
खैर हालत सामन्य हुए और मुझे पंडिताई की दीक्षा देनी शुरू हो गयी! एक श्लोक अभी पूरा भी नहीं समझा था कि रुद्राष्टक के ऐसे श्लोक मुंह में लाने के लिए मेरी जुबान मोती हो गयी. फिर मैंने झोला उठाया और देहरादून भाग आया! रात सपने में दादा-दादी व रुद्रनाथ भगवान् आये बोले- आ हम तुझे वापस लेने आये हैं!

(रुद्रनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार व ध्यान योग में डूबे हरीश भट्ट )
मैं घबराया व वापस गोपेश्वर लौट आया अब मेरी दीक्षा का समय आ गया था. वह बर्ष मेरी जिंदगी में बदलाव की ऐसी बयार लाया कि मैं कह नहीं सकता. सन 2002 में मुझे रुद्रनाथ की पूजा का मौक़ा मिला तब ऐसे साधू संत वहां आये थे कि उसके बाद से वे आजतक मुझे दुबारा नहीं दिखे. उनके ज्ञान भण्डार ने मेरे मनोमस्तिष्क में जाने क्या भरा कि जिस रुद्राष्टक का मैं एक श्लोक नहीं बोल पाता था मात्र 21 दिन में मुझे उसके सम्पूर्ण श्लोक व पाठ विधि मुंह जुबानी याद हो गयी!

(पनार बुग्याल के टॉप पर कैम्पिंग व विचरण)
प्रसंग लंबा होता देख मैंने बिषय बदला और मुख्यत: रुद्रनाथ पर फोकस करते  हुए कहा कि आखिर रुद्रनाथ में ऐसा क्या है कि वहां चार धाम से अलग कुछ नया हो! वे मुस्कराए और बोले हर धाम का अपना महत्व है लेकिन आप एक बार वहां आयेंगे तो स्वयं जान जायेंगे कि वहां क्या है. सरकार यदि दृढ इच्छाशक्ति पाल ले तो रुद्रनाथ से खूबसूरत धार्मिक पर्यटन स्थल कोई हो हि नहीं सकता क्योंकि यह धर्म के साथ साहसिक व वैदिक पर्यटन से आपको जोड़ता है. जहाँ यह पञ्च केदार में चौथा केदार कहलाता है वहीँ भगवान् शिब की यहाँ मुख की पूजा होती है न कि लिंग की! यह उत्तरभारत का एकमात्र दक्षिणमुखी शिब है. इसके अलावा दक्षिणमुखी शिब सिर्फ महाकाल उज्जैन में है!
हरीश भट्ट अपनी ही रौ में कहे जा रहे थे कि हम आदिदेव महादेव की आरती में “एकानन, चतुरानन, पंचानन साजे” गाते हैं तो यही रुद्रनाथ आदिदेव महादेव का एकानन स्वरुप है जबकि चतुरानन पशुपतिनाथ नेपाल में व पंचानन इंडोनेशिया में है.

(कस्तुरा मृग व हिम तेंदुआ अक्सर इस क्षेत्र में दिख हि जाते हैं)
आप साहसिक पर्यटन के लिए जहाँ रुद्रनाथ के आस-पास फैले हरित बुग्यालों, तुंग हिमालयी शिखरों, मोनाल, कस्तुरा, भूरा भालू, हिम तेंदुआ, बरड इत्यादि के दर्शन करते हैं वहीँ वैदिक टूरिज्म में जड़ी-बूटियों के अपार भण्डार, योग, व पन्नार से सनसेट का आनंद लेने के साथ यहाँ पैदा होने वाली तरंगों में अपने को व अपने वजूद को सांसारिक उलझनों से हटकर पाते हैं. वे कहते हैं कि यहाँ अक्सर लोगों ने एक दुसरे को अंतर्ध्यान होते देखा है. जो दरवाजे से बाहर निकलता है उसके बारे में पूछो तो बाहर से अंदर आने वाले को पटा नहीं होता कि उसने किसी को जाते भी देखा है या नहीं. जिसका सीधा सा मतलब है कि आज भी यह क्षेत्र देव पुरुषों का वास स्थल है.
हरीश भट्ट की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि धर्म के ठेकेदारों ने जिस तरह इसे धंधा बना दिया अहै उस से मानव मूल्यों का ह्रास तेजी से हो रहा है. वे कहते हैं कि अन्य तीर्थ स्थलों की तरह रुद्रनाथ के ट्रेक पर कहीं कोई लूट आपको दिखने को नहीं मिलेगी क्योंकि सबका पूरा यह देव स्वयं करता है. और सभी दुकानदार जानते हैं कि अगर किसी की शिकायत उन तक पहुँच गयी तो फिर उसकी खैर नहीं है. उनकी पीड़ा यह भी है कि इस क्षेत्र में बन विभाग की बेवजह की दखल होती है जिस से यात्रियों को असुविधा का सामने करना पड़ता है. अत: इस क्षेत्र को ऐसे नियमों से आजाद रखना जरुरी है जिनसे जानवर और मनुष्य दोनों का आपस में प्रकृतितुल्य सामंजस्य हो!

(देव डोली का रुद्रनाथ प्रस्थान)
वैदिक टूरिज्म का एक बहुत बड़ा हिस्सा वह केव टूरिज्म को भी मानते हैं जिसे वैदिक इको टूरिज्म कहा जा सकता है. वे बताते हैं कि इस क्षेत्र में दर्जनों गुफाएं आज भी विदमान हैं जिनमे अक्सर यात्री रुकते भी हैं. उन्होंने पनार व पंच्गुफा का उदाहरण देते हुए कहा कि पनार गुफा में कम से कम 20 से 50 आदमी रह सकते हैं. इसमें पूर्व में एक बाबा रहा करते थे. आज यात्री अक्सर रुद्रनाथ से लौटकर पनार गुफा या उसके आस-पास बनी दुकानों में ठहरते हैं.
रुद्रनाथ तक पहुँचने के लिए चार ट्रेक रूट हैं जिनमें एक गोपेश्वर से गंगोल्गांव –सगर लगभग 5 किमी. सडक मार्ग के बाद पुलना, ल्वींठी, पनार, पितृधार, पंचगंगा होकर रुद्रनाथ पहुँचने के लिए २२ किमी. ट्रेकिंग करनी पड़ती है. पनार व पितृधार के मध्य लट्ठयारा का पाखा के पास लोगों को कभी हिदायत होती थी कि वे नंगे पैर चले व न थूकें न शौच इत्यादि करें क्योंकि उसके ठीक नीचे अमृत गंगा बह रही है!

(तौली ताल व पनार बुग्याल का मनोरम दृश्य)
वहीँ दूसरा ट्रेक रूट गोपेश्वर से मंडल तक सडक मार्ग यानी लगभग १० किमी. दूरी तय करने के बाद आपको मंडल, अनुसूया देवी होते हुए रुद्रनाथ पहुंचना होता है जिसके लिए लगभग 18 से 20 किमी की दूरी पर तय करनी पड़ती है. तीसरा ट्रेक रूट गोपेश्वर से कुंजौ-मैकोट तक लगभग १२ किमी. सडक मार्ग के पश्चात तोलिताल होते हुए आपको रुद्रनाथ तक लगभग 18 किमी. पैदल यात्रा करनी होती है जबकि चौथा रूट जोशीमठ से कल्पेश्वर होते हुए रुद्रनाथ निकलता है. यहाँ से पंचकेदार ट्रेक रूट भी है और यह बदरीनाथ केदारनाथ से भी जोड़कर देखा जाता है!
हरीश भट्ट से मैंने पूछा कि आपको इन 5 माह तक किन किन वर्जनाओं का सामना करना पड़ता है. उनका कहना है कि इस दौरान वे किसी महात्मा की तरह निर्वास करते हैं. तन मन और आत्मा तीनों पर सांसारिक सुखों का कभी असर होने हि नहीं देते. यह रुद्रनाथ की हि कृपा है कि उनकी जब जो इच्छा होती है वह उन्हें रुद्रनाथ की गुफा के द्वार पर हि मिल जाता है. वे 5 माह तक न शीशा देखते हैं न कंघी करते हैं. चाहे कुछ भी हो जाय बस अपना कर्म करना है और निस्वार्थ भाव से आदिदेव महादेव के चरों का वंदन करना होता है! वे कहते हैं इस क्षेत्र में कई ऐसे प्रसंग भी आये हैं कि घुमतु किस्म के व्यक्ति साक्षात याहं एड़ी आछरियों परियों के दर्शन कर लेते हैं. इनमें दो प्रसंग तो ऐसे हैं जिन्होंने साक्षात इनके दर्शन किये हैं जिनमें श्रीनगर के हर्षप्रीत व उत्तरकाशी के मंगल सिंह पंवार हैं. मंगल सिंह पंवार उत्तरकाशी के हरी पर्वत क्षेत्र के हैं व ट्रैकिंग का हि कार्य करते हैं. यहाँ वे पांच दिन तक गायब रहे. ज्यादा जानकारी के लिए आप उनसे मिल लीजिये वे आपको बता देंगे.
बहरहाल हरीश भट्ट चाहते हैं कि पर्यटन विभाग की इस क्षेत्र पर भी नजर पड़े और कार्तिक स्वामी अनुसूया देवी की तरह यहाँ भी ट्राली सेवा प्रारम्भ करे ताकि हमारा व प्रकृति का आपसी प्यार भी बना रहे और श्रद्धालु यहाँ सुगमता से पहुँच सकें. तभी तो हरीश भट्ट आज भी शहरी वैभवता के आडम्बर को पहचानते हुए फोन पर अपनी मान से गुजारिश करते हैं-“माँ तू देहरादून आ जा, देहरादून रहना मेरे वश की बात नही!”
 

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