माँ झाली माली की तलाश में गाँववासी अब नेपाल यात्रा पर….!

माँ झाली माली की तलाश में गाँववासी अब नेपाल यात्रा पर….!


विगत कई बर्षों से साहित्यिक व्यक्तित्व के धनि अरुण कुकसाल “हिमालय की लोक देवी झाली माली” पर शोध कर रहे हैं. विगत बर्षों में समय साक्ष्य प्रकाशन उनकी दो पुस्तकों का प्रकाशन भी कर चुका है! उसके बाबजूद भी उन्हें दिली-संतुष्टि नहीं हुई क्योंकि उनका कहना है कि अभी माँ झाली माली पर बहुत कुछ आना बाकी रह गया है. विगत दिनों उत्तराखंड के एक ऐसे संत पुरुष ने भी अपनी कुल देवी झाली माली पर और अधिक जानकारी जुटाने में रूचि जताई है.

भाजपा के पूर्व मंत्री/वरिष्ठ नेता, श्री देवभूमि उत्तराखंड लोक संस्कृति विरस्तरीय यात्रा समिति के अध्यक्ष व वर्तमान में टीएचडीसी के निदेशक माननीय मोहन सिंह रावत गाँववासी जी त्रिवेणी विश्राम गृह ऋषिकेश में एक मुलाक़ात के दौरान उन्होंने अपनी यात्राओं से जुड़े जहाँ कई प्रसंगों पर चर्चा की वहीँ बताया कि उन्हें जानकारी मिली है कि उनकी कुलदेवी माँ झालीमाली का पश्चिमी नेपाल में रणसैणी त्रिपुरासुन्दरी नाम से बिशाल मंदिर है. जहाँ वे आगामी दिनों में जाने की सोच रहे हैं. हिमालयन डिस्कवर के सम्पादक मनोज इष्टवाल से हुई उनकी वार्ता के कुछ अंश:-

प्रश्न- सुना यह जाता है कि आप जिस क्षेत्र की भी यात्रा करते हैं वहां सांप/कोबरा आप पर लिपटने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं आखिर ये सच है क्या?
उत्तर- अभी तक लगभग 47 बार विभिन्न आकार व रंगों प्रजाति के सर्प मुझसे रूबरू हुए हैं. वो कभी बदन में तो कभी पैरों में आकर लिपटकर फिर गायब हो जाते हैं. मैं भी नहीं समझ पाया हूँ कि जिस आकृति को देख मानव यूँही डरने लगता है वही आकर मुझसे इस कदर क्यों लिपटते हैं. अभी हाल ही में पौड़ी जिले के कफोलस्यूं पट्टी स्थित ज्वाल्पा धाम में स्नान के समय एक सांप बदन से गुजरता हुआ सामने सिर उठाकर खड़ा हो गया तो दूसरा मंदिर के गर्भ गृह में पूजा के दौरान काला नाग गोद से गुजरकर वहीँ अलोप हो गया. ज्वाल्पा धाम में यह पहला वाकिया हुआ जब कोई सांप गर्भ गृह में दिखा हो.

प्रश्न- आप यात्रा दर यात्रा पर ही रहते हैं. क्या आप कभी थकते नहीं हैं?
उत्तर- कुछ इसे प्रभु इच्छा मान लीजिये या फिर संघीय जिम्मेदारी जिसका मैं पूर्ण रूप से निर्वहन कर रहा हूँ!
प्रश्न- आपकी अगली यात्रा कहाँ की है और उसका उद्देश्य है क्या?
उत्तर- पश्चिमी नेपाल में कहीं हमारी कुल देवी माँ झालीमाली का बहुत बिशाल मंदिर है. जिसे वहाँ रणसैणी माँ त्रिपुरा सुन्दरी के नाम से जाना जाता है. सोच रहा हूँ इस बार माँ के दर्शन कर ही आऊं!
प्रश्न- तो आप महाकाली आँचल के बैतडी जिला स्थित देहीमांडो जाने का मन बना रहे हैं जहाँ माँ त्रिपुरासुन्दरी विराजमान है.
उत्तर- (बेहद खुश होते हुए) अरे आप जानते हैं क्या वहां के बारे में! कहाँ कहाँ से जाना होगा मुझे और किस तरह का स्थान है!
(सम्पूर्ण जानकारी लेने के बाद खुश होकर बोले रुकिए मैं आपको कुछ सुनाता हूँ. देखिये हमारे अनपढ़ कालिदास बाजगी/आवजी किस तरह माँ का गुणगान करते हैं और कैसे वे पूरे इतिहास को मुट्ठी में समाये हैं. जिन्होंने अपना जिला पूरा नहीं घुमा वह आपको पूरा कैंतापुरी हाट लखनपुर इत्यादि घुमाते हैं. किस तरह वह कत्युरी सम्राटों का उसमें जिक्र करते हैं. जरा सुनिए तो! फिर मोबाइल ओन करके)
जिसमें कुछ यूँ वर्णित था:- धौला गढ़ की राणी, चार कांठा, पाटल की परी, बिना बाप की लाडुली, जिसकी उत्पति राजा उमा को पुत्र राजा धुमा! राजा धुमा को रजा पतली, राजा पतली को राजा जळ, राजा जळ को रज़ा थल, राजा थल को तत्पमान, राजा तप्तमान को रजा मतिभान, राजा मतिभान को रजा गोकुलकल्याण, राजा गोकुल कल्याण को रजा अर्जुन शाही, राजा अर्जुन शाही को रजा सातशाही, राजा सातशाही को बारहशाही….! रणचुली हाट, कैंतापुरी हाट, गंगावती को लाडुलो, आपभनावंती की चेली, नौ भाई नर्सिंग, अष्टभैरव, गोरिल को ध्यान जाग..! बांठा बंटये ग्येना, कया कैत्युरी बूढो, शालिवान, बरमदेव, धामदेव,पैयडू पराज प्रीतम देब (औतु), कैंतापुर्री हाट, ढोली कालिदास, चौरास बजये दे, डाट को झालो, मायापुरी घाट म डेरा, आसंती देव, बासंती देव, नीली चौरी को पाठ, हसळदेव जोध पुंडीर ….!

(मोहन सिंह रावत गाँव वासी)-वृत्तांत काफी बढ़ा था जिस से साफ़ जाहिर था कि माँ झालीमाली कत्युरी वंश काल से भी पहले से विराजमान है जो नेपाल में रणसैणी या निंगलासैणी नाम से बिख्यात है. रणसैणी अगर झालीमाली है तो निंगलासैणी स्वाभाविक रूप में राजराजेश्वरी है!
प्रश्न- यह तो बड़ा शोधपूर्ण बिषय है आप किस तरह इसको परिभाषित करेंगे?
उत्तर- वास्तव में यही तो परिभाषित करने की जरुरत है. मेरी नेपाल यात्रा का मकसद भी यही है कि मैं इसके मूल तक जा पाऊं! भले ही यह बेहद जटिल कार्य है अब पूर्व में कोटभ्रामरी के पास झाली और माली दो गाँव की बात होती है. कोटभ्रामरी भी रणदेवी है वह भी इसी का रूप है. इस तरह कैसे कैसे इसका नाम बदलता रहा यह देखना होगा. जबकि यह सब इसी के रूप हैं.
प्रश्न- यूँ तो नेपाल के धादिंग में भी त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर है, भारत में अगरतला, बांसवाडा, जबलपुर, राजस्थान इत्यादि में इसे त्रिपुरासुन्दरी के नाम से ही जाना जाता है. फिर यहाँ गढ़वाल कुमाऊं में कैसे विभिन्न नामों से जाणी गयी है. जैसे चम्पावत जिले की कोटभ्रामरी, जैंती के कुंजवालों की कुलदेवी, टिहरी की कुंजा देवी और पौड़ी चमोली इत्यादि में झाली माली!
उत्तर- दरअसल इसकी उत्पति में कुंज नामक झाल या झाडी जिसे पूजा में प्रयुक्त किया जाता है का कहीं न कहीं औचित्य है. शब्दार्थ या भावार्थ सदी बदलते ही बदलते रहे हैं. झाल = झाली माई= माली हो गया हो ऐसा भी हो सकता है. लेकिन माँ की वार्ता में कत्युरी वंशजों के नामों का उद्बोधन सर्वथा एक जैसा रहा है. इसलिए यह तथ्य सटीक है कि झाली माली और त्रिपुरा सुन्दरी एक ही हैं क्योंकि दोनों ही रणदेवी रही हैं. कत्युरी इसी देवी की अगुवाई में कई बर्षों तक अपना राजकाज चलाते रहे. अस्कोट के सुर्यावंशी राजाओं की भी यही देवी रही है.
फिलहाल मैं रणसैणी त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शनों के लिए नेपाल की यात्रा पर जा रहा हूँ वहां से लौटकर कुछ और अधिक जानकारियाँ दे पाऊंगा!

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