महाभारत काल की याद दिलाता जखोल का दुर्योधन मंदिर!
महाभारत काल की याद दिलाता जखोल का दुर्योधन मंदिर!
(मनोज इष्टवाल)
रुपिन और सुपिन नदी के जन्मस्थल व तमसा (टोंस) नदी के संगम स्थल से ऊपरी भू-भाग जनपद उत्तरकाशी का वह क्षेत्र है जो सांकरी से हर की दून व बंगाण तक फैला हुआ है. इसका ज्यादातर क्षेत्र पर्वत क्षेत्र कहलाता है जिन्हें कौरवों का उपासक माना जाता रहा है. यह घाटी बेहद खूबसूरत है एवं इसे ट्रेकर्स का स्वर्ग माना जाता रहा है क्योंकि सांकरी से कई ट्रैकिंग रुट्स निकलते हैं और प्रति बर्ष यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक व ट्रेकिंग के लोग आते हैं.

इस घाटी में कई ऐसे ध्वंध हैं जिन्हें अगर पर्यतन के मानचित्र पर लाया जा सके तो प्रदेश का राजस्व कई गुना बढ़ाया जा सकता है. जैसे रुपिन सुपिन नदियों की उपज की गाथा, उनके परित्याज्य जल से जुड़े मिथक, नैटवाड़ का पोखु देवता (जिन्हें यक्ष का अवतार कहा जाता है और इनकी पूजा उलटे मुंह की जाती है/ यह मुर्दों के धुंवे की धूप लेता है), केदारकांठा की देवजानी थात (जहाँ महासू व कर्ण में संग्राम हुआ था और महासू उनसे हार गए थे), गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क एंड सैंक्चुरी, देवरा गॉव का कर्ण मंदिर, डोंडाघाटी के विषहरी राजा का चौंतरा, कालिया नाग पर्वत, ओसला के हरपु की परीलोक गाथा, हर की दून के बुग्याल व मनिंडा नदी तट सहित अनेकोनेक दर्शनीय व ट्रेकिंग स्थल हैं जो धार्मिंक व साहसिक पर्यटन के लिए स्वर्ग है.

इसी घाटी में जखोल का दुर्योधन मंदिर द्वापर युग के महाभारत काल से लेकर वर्तमान तक अपने आप को जीवंत बनाए हुए है. उत्तरकाशी के पंचगाई पट्टी में पड़ने वाला जखोल गॉव पहुँचने के लिए आपको देहरादून से मसूरी नैनबाग, डामटा, लाखामंडल, नौगाँव, पुरोला, जरमोला, मोरी, नैटवाड़ से सांकरी (प्रथम सड़क मार्ग) व देहरादून, विकासनगर, कालसी, चकराता, त्यूनी, हनोल, मोरी, नैटवाड़ से सांकरी (द्वीतीय सड़क मार्ग), देहरादून, विकास नगर, हरिपुर, कोटि-इच्छाडी, क्व़ाणु, अटाल, त्यूनी, हनोल, मोरी, नैटवाड़ से सांकरी (तृतीय सड़क मार्ग) से पहुंचा जा सकता है.

जबकि उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से चिन्यालीसौड, राड़ी डांडा, बडकोट, नौगॉव, पुरोला, जरमोला, मोरी नैटवाड़ से सांकरी व उत्तरकाशी, धरासू बैंड, ब्रह्मखाल, राड़ी डांडा, बडकोट, राजगढ़ी, से सरनौल तक मोटर मार्ग से व यहाँ से आठ गॉव सरबडियार लांघते हुए आप केदारकांठा ट्रेक करते हुए औरा, जीवाणु (देवजानी) गॉव होकर सांकरी उतर उतर सकते हैं जहाँ से 9 किमी. की दूरी पर जखोल गॉव है.

यहीं दुर्योधन का मंदिर है जिसकी पूजा पर्वत क्षेत्र के लगभग सभी गॉवों में होती है. यह मंदिर तीन पट्टियों अडोर, पंचगायी और बड़ासू में से अडोर का मुख्य मंदिर है! तीन पट्टियों के अंतर्गत शामिल 21-22 गावो में भी इस देवता के अधिकांश स्थानों पर प्राचीन मंदिर है ! जिनमें तल्ला पाँव, मल्ला गॉव, सुनकुंदी, जखोल, सावडी, सटटूडी, धारा, सिरगा, फिताड़ी, राला, कसाला, लिवाड़ी, हेरुपुर इत्यादि प्रमुख हैं.
कहा जाता है कि जखोल गॉव के आस-पास सात गॉव क्रमशः संथल, प्याऊळ, कोटोडिया, नताणीया, बरडिया थे जो एक समय आई महामारी के प्रकोप से तबाह हो गए थे मात्र जखोल गॉव में मंदिर का पुजारी ही जीवित रह गया था जो देव पालकी की पूजा करता था लेकिन पुजारी भी इस महामारी के कारण भागकर जौनसार के लखवाड़ गॉव आ बसा. लेकिन दुबारा जखोल के बस जाने पर वापस दुर्योधन की पूजा के लिए गॉव आ गया. किंवदती है कि पर्वत क्षेत्र के लोगों ने दुर्योधन को पूजने से इनकार कर दिया था जिस से क्रुद्ध होकर दुर्योधन ने यह महामारी फैलाई. लेकिन इस किंवदंती के कहीं कोई साक्ष्य नहीं हैं. यह सिर्फ लोक प्रचलित गाथाओं और कहानियों तक ही सीमित है.

गांव के मंदिर में सोने की परत वाला एक कुल्हाड़ी भी है, जो इसी कौरव राजकुमार का माना जाता है। रिवाजों के अनुसार, गांव वाले अब भी स्थानीय देवता की पूजा के दौरान दुर्योधन के उस सोने की कुल्हाड़ी को लेकर पारंपरिक अनुष्ठान, नृत्य आदि करते हैं। जिसका कारण यह बताया जाता है कि दुर्योधन चाहे जैसे हों, वे आज भी यहां के क्षेत्रपाल हैं।

जखोल का दुर्योधन मंदिर छत्र शैली का माना जाता है जिसमे त्रिरथ हैं. जखोल से 1 किमी दूरी पर धारा गॉव व वहां से 1 किमी. दूरी पर उयाघाटी, जीवट घाटी, खेडा घाटी इत्यादि बेहद दर्शनीय स्थल हैं. यहीं से आप लेवादी गॉव के पास मांझी गॉव बुग्याल जा सकते हैं जो लगभग 10 हजार फीट की उंचाई पर स्थित है. लेवाडी गॉव पंचगाई पट्टी का वह गॉव है जहाँ जखोल देवता के खुंद रहते हैं. जिन्हें दुर्योधन का अंगरक्षक कहा जाता है. यहाँ के निवासी लेव/डंकवाण जाति के माने जाते हैं जबकि कामरूकोट की आठवीं खूँद की यहाँ ठकुराई है.

जखोल गॉव देवदार मोरू के खूबसूरत जंगल से घिरा प्रकृति का सौन्दर्य बिखेरता ऐसा गॉव है जहाँ वह दुर्योधन के मंदिर के कारण कौरववंशी जनमानस का गॉव कहलाता है. और आज भी यहाँ की लोक संस्कृति व समाज में कौरवी परम्पराएं आपको दिखाई देंगीं.
प्रश्न यह भी उठता है कि रुपिन सुपिन घाटी के कौरव और टोंस यमुना के बीच के जौनसार बावर क्षेत्र के पांडवों को महाभारत से जोड़ते हुए उसे धार्मिक और साहसिक पर्यटन से कैसे जोड़ा जाय जिसका बहुत सरल सा जवाब है कि आप यमुना घाटी का 10 से 15 दिन का भ्रमण कार्यक्रम यथावत व लगभग 5 दिन का कार्यक्रम सिर्फ चलती चाल बना सकते हैं जिसमें आप एक साथ महाभारत काल के एक ही घर के दो वंशजों (कौरव / पांडव ) के समग्र इतिहास और पृष्ठभूमि पर जानकारी जुटा सकते हैं. लेकिन उसके लिए आपको रूट परिक्रमा कुछ यों बनानी होगी-
सडक मार्ग से यात्रा-
1-देहरादून, सहसपुर, हरबर्टपुर, विकास नगर, जीवन गढ़ से जगतग्राम (जगत ग्राम वह गॉव है जहाँ राजा युधिष्टर ने राजसूय यज्ञ किया था आज भी वहां राजसूय यज्ञ शाळा के अवशेष हैं.
2-जगत ग्राम से अशोक आश्रम, कटापत्थर (कटापत्थर में आज भी पौराणिक पांडव कालीन मंदिर अवस्थित है जहाँ यमुना किनारे भीम ने कीचड का वध किया था)
3- कटा पत्थर से यमुना पुल, नैनबाग़, डामटा, लाखामंडल (लाखामंडल में आज भी पांडवों के लाक्षा गृह के अवशेष व वह गुफा जहाँ से पांडवों ने सुरंग से निकलकर अपनी जां बचाई थी).
4- लाखामंडल, नौगाँव (यहाँ यमुना किनारे अवस्थित मुंगरा गढ़ किले के अवशेष मौजूद हैं जिसे गोरखा आक्रान्ता भी विजयी नहीं कर पाए )
5- नौगाँव से पुरोला होकर जरमोला धार ( जहाँ से ट्रेक कर केदारकांठा व परी गढ़ पहुंचा जा सकता है. दोनों का ही ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्व.
6- जरमोला से मोरी, नैटवाड़ (जहाँ 11वीं सदी का पोखु मंदिर है जिसे यक्ष देवता भी कहा जाता है . यहाँ रुपिन सुपिन नदी का संगम भी है.
7- नैटवाट से देवरा कर्ण मंदिर जाने के बाद आप गोबिंद वन्य पशु विहार अभ्यारण में भी वाइल्ड लाइफ का मजा लेकर सांकरी जा सकते हैं जहाँ से आप जखोल पहुँचते हैं.
लौटते समय का मार्ग –
1-सांकरी से मोरी होकर हनोल (महासू देवता का सुप्रसिद्ध मंदिर )
हनोल से मैन्द्रथ ( महासू देवता की माँ का मंदिर)
2-मैन्द्रथ से त्यूनी, त्यूनी से कोटि-कनासर, लोहखन्डी होकर बुधेर गुफा (जिसे परीलोक भी कहा जाता है.
3-लोहखंडी से चकराता, देवबन (बेहद खूबसूरत बुग्यालों का क्षेत्र जहाँ आप वाइल्ड लाइफ का मजा ले सकते है)
4- चकराता से ठाणा डांडा (यहाँ का बिस्सू मेला बेहद प्रसिद्ध है), नवीन चकराता से रामताल गार्डन घुमने के पश्चात आप वैराट गढ़ पहुँचते हैं बैराट गढ़ के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं. यही पांडवों ने गुप्तवास काटा था.
5- यहाँ से बैराटखाई होकर आप नागथात पहुँच सकते हैं जहाँ नाग देवता का पौराणिक मंदिर व बिसोई गॉव में महासू मंदिर हाही जिसकी कलाशिल्प अतुलनीय है.
6- नागथात से जाड़ी के काली मंदिर, का महासू मंदिर होकर आप लखवाड पहुँच सकते हैं जहाँ भेत्रीन शिल्प कि मिशाल महासू मंदिर के दर्शन करने के पश्चात आप यमुना पुळ होकर मसूरी लौट सकते हैं या फिर कालसी में अशोक स्तम्भ देखकर विकास नागर होते हुए देहरादून लौट सकते हैं जहाँ से आप अंतर्राज्यीय बस अड्डे या जौलीग्रांट एयरपोर्ट आसानी से पहुँच सकते हैं.