मंगशीर बग्वाल ! — ढोलों की थापों और पारम्परिक भैलों, रांसी, तांदी नृत्य के साथ माधो सिंह भंडारी की विजय का उत्सव।

(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!)

उत्तराखंड के कोने कोने में लोग बरसों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए हुये हैं। इसी कड़ी में एक कदम अपनी संस्कृति, परंपराओं को अक्षुण रखने हेतु उत्तरकाशी में लोगों के सहयोग से विगत 12 बरसों से मंगशीर बग्वाल का आयोजन किया जा रहा है जिसमें देश के कोने कोने से लोग ही नहीं बल्कि विदेशी भी हर बरस यहाँ आते हैं। जो यहाँ की लोकसंस्कृति को देख अभिभूत हो जाते हैं।

गौरतलब है कि सीमांत जनपद उत्तरकाशी के विभिन्न क्षेत्रों में दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगसिर बग्वाल का आयोजन किया जाता है। मान्यता है की गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं में घुसकर लूटपाट करते थे। तब राजा ने माधो सिह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी थी। सेना विजय करते हुए दावाघाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी। ऐसे में कार्तिक मास की बग्वाल के लिए माधो सिह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए। सो, उन्होंने घर संदेश भिजवाया कि जब वे जीतकर लौटेंगे, तब ही बग्वाल मनाई जाएगी। युद्ध के मध्य में ही एक माह बाद माधो सिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सवपूर्वक बग्वाल मनाई गई। तब से मंगशीर में इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित हो गई। तब से लेकर आज तक मंगसिर के महीने में उक्त बग्वाल का आयोजन किया जाता है खासतौर पर पूरी यमुना घाटी में।

सामजिक सरोकारों से जुड़े लोकसंस्कृति कर्मी अजय पूरी कहतें हैं की उत्तरकाशी में 2007 से स्थानीय लोगों की पहल पर आजाद मैदान में इस आयोजन को बाडाहाट की बग्वाल के नाम से किया जाता है। जिसमे गढ़भोज में पर्यटकों सहित अन्य लोग गढवाली पारम्परिक भोजन का आनंद ले सकेंगे। इस बार भी गढ़ भोज, गढ़ बाजणा, गढ़ बाजार, गढ़ संग्रहालय, गढ़ भाषण, गढ़ निबंध, गढ़ चित्रण, गढ़ फैशन शौ, वर्ततोड (रस्साकस्सी), मुर्गा झपट बग्वाल का प्रमुख आकर्षण होगा। वहीं भैलों, सामूहिक रांसी, तांदी नृत्य के साथ मंगषीर बग्वाल मनाई जायेगी। इस बार मंगशीर बग्वाल 25-26 नवम्बर को मनाई जा रही है।

फ़ोटो साभार: मयंक आर्य।

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