मंगशीर बग्वाल/देवलांग!- बीर माधो सिंह भंडारी की विजयगाथा और सांस्कृतिक विरासत की अनूठी मिशाल।

मंगषीर बग्वाल / देवलांग! — बीर भड माधो सिंह भंडारी की विजयगाथा और सांस्कृतिक विरासत की अनूठी मिशाल!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
उत्तराखंड के कोने कोने में लोग बरसों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए हुये हैं। इसी कड़ी में इस बार ग्राउंड जीरो से आपको रूबरू करवाते हैं मंगसिर की बग्वाल / देबलांग उत्सव के बारे में।

सीमांत जनपद उत्तरकाशी के नौगांव, पुरोला, मोरी, टिहरी जनपद के थत्युड , देहरादून के चकराता, कालसी, हिमांचल के कुल्लू, शिमला, सिरमौर, में दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगसिर बग्वाल का आयोजन किया जाता है। वहीँ उत्तरकाशी के नौगांव के बनाल पट्टी में देवलांग उत्त्सव मनाया जाता है। गौरतलब है की बनाल पट्टी में देवलांग उत्त्सव मंगसिर महीने की अमावस्य को मनाया जाता है जिसे लोग साक्षात् ज्योतिर्लिंग के रूप में मानतें हैं। जिसमे देवदार के एक पेड़ को जड़ सहित उखाड़कर एक निश्चित स्थान पर लाया जाता है जहां इसे जमीन में स्थापित किया जाता है। यह दृश्य सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र होता है क्योंकि इस पेड़ को बिना हाथ लगाये केवल डंडों के सहारे जमीन में स्थापित किया जाता है। बनाल के गांव साठी व पानशाही दो थोकों में बंटे है। दोनों थोकों के समस्त ग्रामीण अपने- अपने गांव से पारम्पारिक परिधानों में सझ धजकर ढोल, दमाऊं, रणसिंगो के साथ नाचते- गाते हुये हाथों में मशाल लेकर अपने- अपने रास्तों से जो कि पूर्व से ही निर्धारित हैं से होते हुये मन्दिर पहुंचते हैं। जहां पर देवदार का पेड़ स्थापित किया जाता है। जिसके बाद पेड़ की चोटी को छूने की कोशिस की जाती है। चोटी को छूते ही हाथ में लिए मशाल से देवलांग में आग लगा दी जाती है जिसके बाद शुरू होता है देवलांग उत्सव जिसमे मशाल रूपी भेल्लो पर आग लगाकर चारों और जोर जोर से घुमाया जाता है और ढोलों की थापों पर रातभर लोग रांसों, हारुल, तांदी लोकनृत्य प्रस्तुत करतें है तथा आपस में गुड, तिल, चुडा का प्रसाद वितरण करतें हैं। इस उत्त्सव को देखने दूर दूर से लोग यहाँ पहुँचते हैं। पूरी यमुना घाटी के सैकड़ों गांवो के लोग देवलांग के गवाह बनतें हैं।

वहीँ दूसरी और मान्यता है की १४ वीं शताब्दी में गढ़वाल के वीर भड माधो सिंह भंडारी जब तिब्बत पर विजय प्राप्त करके वापस लौटे थे तो तिब्बत विजय की ख़ुशी में पूरे गढ़वाल में बग्वाल का आयोजन किया गया। तब से लेकर आज तक मंगसिर के महीने में उक्त बग्वाल का आयोजन किया जाता है खासतौर पर पूरी यमुना घाटी में।
 
रवाई की सांस्कृतिक विरासत को बेहद करीब से जानने वाले साहित्यकार दिनेश रावत कहते हैं की देवलांग रवाई घाटी की अनमोल सांस्कृतिक धरोहर है, यह यमुना घाटी का लोकपर्व है। इस बार इसका आयोजन अमावस्या के दिन 18 नवम्बर को किया जायेगा।
सामजिक सरोकारों से जुड़े लोकसंस्कृति कर्मी अजय पूरी कहतें हैं की उत्तरकाशी में 2007 से स्थानीय लोगों की पहल पर आजाद मैदान में इस आयोजन को बाडाहाट की बग्वाल के नाम से किया जाता है। जिसमे 17 को गढ़भोज और 18 को बग्वाल का आयोजन होगा। इस बार गढ़ भोज 17 नवंबर को होगा जिसमें पर्यटकों सहित अन्य लोग गढवाली पारम्परिक भोजन का आनंद ले सकेंगे। जबकि 18 नवम्बर को 101 भैलों के साथ मंगषीर बग्वाल मनाई जायेगी और सामूहिक रांसी, तांदी नृत्य बग्वाल का प्रमुख आकर्षण होगा।
वास्तव में यमुना घाटी, बनाल, गंगा घाटी सहित प्रदेश के अन्य हिस्सों में मनाई जाने वाली मंगसिर बग्वाल / देवलांग देवभूमि की अनमोल सांस्कृतिक धरोहर है। अगर आपके पास भी समय हो तो जरुर हिस्सा लीजिये इस लोकोत्सव में।

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