भ्युंड़ार गाँव नंदा सिंह चौहान हैं सिखों के प्रसिद्ध धाम हेमकुंड साहिब के खोजी!
(मनोज इष्टवाल)
बड़ा अचरच होता है जब पता लगता है कि जुम्मा-जुम्मा दूसरी कक्षा पास फूलों की घाटी की गोद में बसे भ्युंड़ार गाँव के नम्बरदार स्व. रतन सिंह चौहान के पुत्र नंदा सिंह चौहान ने ब्रिटिश काल में पंजाब निवासी पेशे से पत्रकार तारा सिंह नरोत्तम, टिहरी राज के गुरुद्वारा के ग्रंथी सोहन सिंह व मोदन सिंह के साथ मिलकर बर्ष 1932 में गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब की खोज की!

गुरुमुखी व बंगाली सीखकर जहाँ नंदा सिंह चौहान ने 40 बर्ष तक हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा में ग्रन्थी के रूप में कार्यकाल संभाला वहीँ 1960 के दौर में पंजाब सहित भारत के विभिन्न प्रान्तों से आये साहूकार, व्यवसायी सिख सरदारों ने हेमकुंड साहिब की समिति का गठन कर उन्हें समिति की सदस्यता में शामिल तो किया लेकिन ग्रन्थी किसी और को बना दिया गया.
सन 2009 में 95 बर्ष की उम्र में गंगा में जल समाधि लेने वाले नंदा सिंह चौहान के तीन पुत्र क्रमशः भगत सिंह चौहान (हाल निवास –देहरादून), बख्तावर उर्फ़ बसावर सिंह चौहान (भ्युंड़ार गाँव) व आनंद सिंह चौहान (जोशीमठ ) में रह रहे हैं जबकि उनकी दोनों बेटियाँ अपने भाइयों से बड़ी हुई जिनमें एक जोशीमठ व दूसरी लामबगड़ में रहती हैं.
स्व. नंदा सिंह चौहान के पौते सुप्रसिद्ध फोटोग्राफर चन्द्रशेखर चौहान से प्राप्त दस्तावेज व नंदा सिंह चौहान द्वारा हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे में की गयी अरदास, प्रकाश व प्रसाद के वीडियो में उन्होंने बताया कि 1932 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान टिहरी गढ़वाल स्थित टिहरी के प्रसिद्ध गुरुद्वारे से सोहन सिंह व मोदन सिंह (ग्रंथी),(इन्हें सेना का जवान भी बताया गया है जो मेरे ख्याल से निरर्थक तर्क है), पत्रकार तारा सिंह नरोत्तम ब्रिटिश साहिब बहादुर का पत्र लेकर भ्युंडार घाटी पहुंचे थे. जो नंदा सिंह के पिताजी जो तत्कालीन समय में गाँव के नम्बरदार थे के पास आये और बोले- हमें इस क्षेत्र में वह गुरुद्वारा तलाशना है जो फूलों की घाटी क्षेत्र में हिम से ढका हो और उसके पास कुंड हो.
वहीँ दूसरा तर्क यह दिया गया है कि पत्रकार तारा सिंह नरोत्तम बदरीनाथ धाम यात्रा के लिए आये थे तब उन्होंने भ्युंड़ार के नम्बरदार के पुत्र के साथ इस स्थान की खोज की. जिसका वर्णन उन्होने अपने तत्कालीन अखबार “गुरु तीरथ संग्रह” में किया तदोपरान्त सोहन सिंह व मोदन सिंह द्वारा 1933 में पुनः नंदा सिंह को लेकर हेमकुंड साहिब का भ्रमण कर यह खोज पूरी की.
नम्बरदार रतन सिंह चौहान ने उन्हें पूछा कि भला यह सब उन्हें कैसे पता है जबकि वे इस क्षेत्र के नहीं हैं. हम इस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से वाफिक हैं ऐसी ही कुंडनुमा झील तो है क्योंकि अकसर गर्मियों में क्षेत्र की भेड़ बकरियां वहां जाया करती हैं जो दूर से झील सी दिखाई देती है लेकिन आजकल तो वहां कई फिट बर्फ होती है भला आप लोग कैसे बर्फ में चल पाओगे.
तब मोदन सिंह ने अपने उस दिव्य स्वप्न का जिक्र किया जिसमें उन्होंने नम्बरदार रतन सिंह चौहान को बताया कि किस तरह गुरु गोबिंद सिंह उनके सपने में आये और उन्होंने इस क्षेत्र के बारे में उन्हें सपने में जानकारी दी. फिर अमर सिंह बोलते हैं कि सुबह जब वे गुरु ग्रन्थ साहिब के इन शबद को पढने बैठे तब उन्हें गुरु का इशारा पता लगा- “अब मैं अपनी कथा बखानो,ताप साधत जिन्ह बिध मुंह आनो! ….महाकाल कालका अराधि, इह बिध करत तपस्या भाओ!….जिउ तिऊ प्रभ हमको समझायो,इम कह के इन लोक (४) पठायो(५)!
नम्बरदार रतन सिंह चौहान ने वहीँ अमर सिंह व मोदन सिंह का आतिथ्य सत्कार किया व अपने पुत्र नंदा सिंह चौहान को बर्फ से लबालब घाटी में भेजने से पहले इन लोगों को पूछा कि क्या आप बर्फ में चल पाओगे. तब उन्होंने जवाब दिया – गुरु कृपा से यहाँ तक पहुंचे हैं वहां का पता भी कर ही लेंगे चाहे मौत ही क्यों न आ जाए”!
आखिर युवा नंदा सिंह चौहान के नेतृत्व में ये तीनों लोग सुबह तडके ही निकले और रात्री प्रहर के प्रथम सत्र में हेमकुंड साहिब पहुँच गए जहाँ लोकपाल मंदिर आज भी विद्धमान है.
विद्वान जन मानते हैं कि गुरु गोबिंद सिंह ने पूर्व जन्म में यहीं तपस्या की थी. कई किंवदन्तियों में यह भी कहा जाता है कि लोकपाल मंदिर ही इनकी तपस्थली रही और यहाँ उन्होंने दुष्टदमन नाम से तप किया इन्हें यहीं साक्षात महाकाल कालिका के दर्शन हुए. कुछ इन्हें पूर्व जन्म में हिन्दू वैदिक व सनातन पद्धति से जोड़ते ही लक्षमण का अवतार भी मानते हैं.
चन्द्र शेखर चौहान से प्राप्त उनके दादा नंदा सिंह चौहान के वीडियो के अनुसार पंजाब से 1937 में गुरु ग्रन्थ साहिब ऋषिकेश पहुंचा जहाँ से उसे कुली के माध्यम से भ्युन्ड़ार लाया गया और यहाँ पूरे एक माह उसकी पूजा की गयी. फिर गुरु ग्रन्थ साहिब उन्ही के सिर पर रखकर हेमकुंड साहिब पहुंचाया गया जहाँ उन्हें ही प्रथम अरदास, प्रकाश व प्रसाद का अवसर मिला और वे सहायक ग्रन्थी नियुक्त किये गए.
इस दौरान उन्होंने गुरुवाणी व बंगाली दोनों भाषाओं पर विद्वत्तता हासिल कर ली और लगभग 40 बर्ष तक वे यहाँ अरदास व प्रकाश करते रहे. सन 1960 में कमेटी गठित होने के बाद भी गुरुद्वारे की चाबी 15 बर्ष तक उनके पास रही और वे उसके नियमित सदस्य रहे. आज भी पंजाब के कई परिवार हेमकुंड साहिब जाने से पहले उनके घर भ्युंड़ार आना नहीं भूलते. जैसे जैसे हेमकुंड साहिब में दर्शनार्थियों की भीड़ बढती गयी कमेटी नंदा सिंह चौहान को हाशिये पर रखती गयी. और एक समय ऐसा भी आया कि नंदा सिंह चौहान बिन बताये घर से निकल पड़े व 95 बर्ष की उम्र में गंगा जी में जल समाधि लेकर अंतर्ध्यान हो गए. अपनी सम्पूर्ण उम्र विभिन्न नियमों का पालन करते करते नंदा सिंह चौहान के चेहरे का ओज देखते ही बनता था. वर्तमान में भले ही उनके पुत्र गुरुद्वारा कमेटी में शामिल न हों लेकिन नंदा सिंह चौहान का नाम आज भी हेमकुंड साहिबं के बोर्ड पर स्वर्णाक्षरों में चमकता मिलता है.
इस सम्बन्ध में पूर्व मंत्री व साहित्यविद्ध केदारसिंह फोनिया किताब “श्री हेमकुंड साहिब एंड वैली ऑफ़ फ्लावर्स” व हरीश कपाडिया की एक पुस्तक :अक्रोस पीक्स एंड पासेस ऑफ़ गढ़वाल हिमालय” की पुस्तक में भी स्व. नंदा सिंह चौहान के बारे में जानकरी दी गयी है. ऐसे महापुरुष को नमन!