भूखग्रस्त बिमारी से हुई सरिता की मौत! लेकिन मौत का जिम्मेवार है कौन?

भूखग्रस्त बिमारी से हुई सरिता की मौत! लेकिन मौत का जिम्मेवार है कौन?
(मनोज इष्टवाल)
उत्तराखंडी पहाड़ी समाज के सभी लोग व्यथित, चकित और शंकित रहे जब अखबार टीवी पर अल्मोड़ा जिले के खजुरानी गॉव की सरिता उम्र 17 बर्ष की भूख से मरने की खबर द्वाराहाट के विधायक महेश नेगी के माध्यम से प्रकाश में आई.

सडक मार्ग से 12 किमी. दूर इस गॉव में ऐसा कौन सा अकाल आया कि एक परिवार भूख से तडफ तडफ कर मर रहा हो और ग्रामीण संवेदना समाप्त हो गयी हो! क्योंकि उत्तराखंड में ऐसा न भूतो न भविष्यति हुआ या होगा यह बात यहाँ का हर बाशिंदा जानता है. इसलिए सोशल मीडिया पर इस बात में अचरज के साथ पहाड़ी मूल के लोगों की जो प्रतिक्रिया थी वह इस घटना की विश्वसनीयता पर पहले से ही प्रश्न चिन्ह्न लगा रहे थे. और तो और क्षेत्रीय विधायक व जिलाधिकारी अल्मोड़ा पर भी अंगुलियाँ उठनी शुरू हो गयी थी. लेकिन जब सच सामने आया तब विधायक व जिलाधिकारी ने भी राहत की सांस ली होगी.

सभी जानते हैं कि उत्तराखंड क्रान्ति दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी यह प्रकरण पिछली सरकार के समक्ष रख चुके थे और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को सरिता के परिवार की आर्थिक स्थिति को सबल बनाने हेतु पत्र लिखकर मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से सहायता की बात कह चुके थे लेकिन राजनीति के गलियारों में जहाँ एक पार्टी दूसरी पार्टी हो जाती है तब वहां मानवीय संवेदनाएं यूँहीं दम तोडती हैं.
अब जबकि शासन प्रशासन का पूरा महकमा खजुरानी गॉव पहुंचा. स्वास्थ्य विभाग की टीम और मीडियाकर्मी भी लाव-लश्कर के साथ गॉव पहुंचे तो पता लगा इस गॉव के लगभग 80 लोगों ने आजतक शहर कैसा होता है. यह तक नहीं देखा.
सरिता की माँ जानकी देवी कहती है मेरी किस्मत ही ख़राब है. मायके से गरीब थी इसलिए जल्दी ही शादी हुई. बच्चे हुए तो उन्हें ऐसी बिमारी लगी जिसका कोई इलाज ही नहीं है. यह ऐसी बिमारी है कि 11 साल जैसे ही बच्चे के पूरे होते हैं उन्हें भूख की ऐसी बिमारी लगती है कि उनका पेट ही नहीं भरता. इसी कारण बेटों ने भी स्कूल जाना छोड़ दिया. सरिता की भूख थी कि शांत नहीं होती थी. गॉव आले भी कब तक कितना कुछ करें. पिछले हफ्ते तक घर में एक पाई नहीं थी. राशन भी होती तो सरिता कि जां बच जाती.
विधायक महेश नेगी व एसडीएम गौरव चटवाल को जब जानकी देवी यह सब दास्ताँ सुना रही थी तब सभी का ह्रदय पसीजने लगा था. आंसू रोके नहीं रुक रहे थे. जानकी देवी यहीं चुप नहीं हुई बोली- एक बेटा आठवीं पास है और 11 वीं पास! उन्होंने भी स्कूल इसीलिए छोडा कि बार-बार उन्हें भूख लगती है और स्कूल में इसका कोई इलाज नहीं है. वह कहती हैं एक तो गरीबी ऊपर से यह अजीब बिमारी! आखिर कब तक मैं मजबूती से खडी रहूँ कहीं कोई गुजर बसर का और साधन भी तो नहीं. वो कहती हैं कि उनके ससुर लाल सिंह की मौत के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई. 6 माह पहले उसके पास एक पाई भी नहीं थी. कुछ समय पहले उसके मायकेवाले  आये थे जो उसे 2000 रूपये दे गए अब उसमे भी 200 रुपये बचे हैं, जब घर में खाना पर्याप्त नहीं मिल पाया तो बेटी ने बिस्तर पकड़ लिया. वह दो माह से बिस्तर में थी. भूख के कारण चल फिर भी नहीं पा रही थी. मैं भी असहाय निराश थी कहाँ जाऊं क्या करूँ! कोई चारा भी नहीं था. आखिर बेटी भूख से यूँहीं तडफ तडफ कर मर गयी.
आँखों के पोर पर बहुत साल बाद बहे आंसू पोंछती जानकी देवी की दास्ताँ दिल चीर देने वाली थी वो कहती हैं-” मेरे ससुर लाल सिंह फ़ौज से सेवानिवृत थे. जब तक ज़िंदा रहे परिवार का गुजर बसर उनकी पेंशन से चल जाता था उनकी मौत के बाद तो जैसे घर पर कहर टूटा हो. उसके बाद ननद लछिमा और अब बेटी इसी भूख से भूख भूख करती मर गयी. अब यही बिमारी उसके बेटों हर सिंह और दीवान सिंह तथा देवर अर्जुन सिंह को लग गयी है. ऐसे में कोई अगर ये कहे कि हमारी मानसिक हालत ठीक नहीं तो आप ही बताओ मानसिक हालत ठीक कैसे होगी जब घर में अन्न का दाना न हो और सब भूख भूख कर रहे हों.”
सचमुच जानकी देवी का गॉव इस सूचनाक्रान्ति के दौर में आज भी इतना पिछड़ा होगा यह किसी ने सोचा भी न होगा. यहाँ सरकार का अब क्या स्टैंड रहता है कुछ कहा नहीं जा सकता बहरहाल विभिन्न संगठनों ने  27 हजार रुपये नगद जानकी देवी को दिए हैं . केन्द्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने प्रकरण की जांच की मांग राखी है. वहीँ विधायक महेश नेगी ने एसडीएम व जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि जो बेटी स्कूल पड़ रही है उसे मुफ्त शिक्षा मिले. दोनों बेटों व देवर को विकलांग पेंशन व जानकी देवी को विधवा पेंशन मुहैय्या करवाई जायेगी.
यहाँ हंसी इस बात की आती है कि सरकारी आंकड़े आये दिन विधवा विकलांग गरीबी इत्यादि की पेंशन योजनायें बर्षों से चलाती आ रही है. तब यहाँ का सरकारी महकमा कहाँ सोया रहा जिसने इस घर या गॉव की ओर कभी रुख नहीं किया. अगर यह सब पहले ही हो जाता तो न लाछिमा की जान जाती और न सरिता की.
यह विधायक महेश नेगी का साहस ही कहा जाएगा जो उन्होंने यह बात उठाई और खुद गॉव तक पहुंचे. जनप्रतिनिधि का दायित्व भी यही है. अब कपड़ा मंत्री अजय टम्टा ने सख्ती से आदेश दिए हैं कि इस पूरे प्रकरण पर आज तक संज्ञान न लेने वाले प्रशासनिक जामे को बख्शा नहीं जाएगा. यह घटना सचमुच पूरे पहाड़ को झकझोर देने वाली कही जा सकती है क्योंकि यह पहला प्रकरण है जब पहाड़ में ऐसी भूख से मरने का मामला प्रकाश में आया हो. कहीं न कहीं पूर्ववर्ती सरकार इस मामले में दोषी है क्योंकि मामला संज्ञान में लाने के बाद भी इसे पार्टी पॉलिटिक्स के रूप में लेकर दरकिनार किया जाना अपने आप में किसी अपराध से कम नहीं समझा जाना चाहिए. वहीँ जिलाधिकारी का बयान आया है कि भूख से नहीं बल्कि इलाज न हो पाना रहा मौत की वजह!

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