वृद्ध बद्री सहित कई मंदिर चढ़े धार्मिक पर्यटन की भेंट! लीपापोती ने बिगाड़ा मंदिरों का वास्तविक स्वरूप

पीपलकोटी 21 जून (हि. डिस्कवर)

(फोटो- जगदम्बा प्रसाद मैठाणी)
स्लेटी पत्थरों के आवरण में जहाँ एक ओर मंदिरों की भव्यता के स्वरूप के प्रति धर्म व्यक्ति को अपने आप से जोड़ता था वहीँ हमारी पुरातन संस्कृति की इस बेजोड़ काष्ठ व पाषाण शिल्प का अद्भुत नमूना पेश कर हिंदुत्व को जीवित रखने का माध्यम भी है. अब अगर आप केदारनाथ मंदिर को सीमेंट का आवरण पहनाकर उसमें भक्ति भाव पैदा करने की चेष्टा करो तो क्या यह संभव है!

(फोटो- जगदम्बा प्रसाद मैठाणी)
उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों की काष्ठ व पाषाण शिल्प में जुड़े भाव स्वाभाविक तौर पर हमें उस पुरातन युग में ले जाते हैं जहाँ देवभूमि ने ईश्वरीय भावनाओं को बेहद करीब से महसूस किया है. अब अपने प्रदेश के पर्यटन विभाग को ही देखिये जिन्होंने वृद्ध बद्री  मंदिर के सुंदर नक्काशीदार पत्थरों, बुर्ज , पिलरों को सीमेंट और रंगों से रंग दिया गया है .

(फोटो- जगदम्बा प्रसाद मैठाणी)
यह पुरातत्व  विभाग या पर्यटन विभाग  का नाकारापन ही  है कि मंदिर का वास्तविक स्वरूप मिटाकर आपने शमशानी चूर्ण (सीमेंट) का घोल व रंगों की पुताई से इसका शिल्प गायब कर दिया है.
समाजसेवी जगदम्बा प्रसाद मैठाणी बताते है कि  ये मंदिर पीपलकोटी से लगभग 24 किलोमीटर आगे पैनी से पहले अनिमठ नामक स्थान पर है ! उन्हें बहुत दुःख है कि मंदिर का वास्तविक स्वरूप इन रंगों ने समाप्त कर दिया है. क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंदिर का स्लेटी पत्थर उसके बुर्ज, इत्यादि पर सीमेंट नहीं लगता. ये विभाग का नाकारापन नहीं तो और क्या है कि वे कमीशनखोरी के लिए आँखें बंद कर अपनी कार्ययोजना परिणित कर रहे हैं. उन्हें उसके ऐतिहासिक स्वरूप से क्या लेना है.

(भदराज मंदिर फोटो- रेणु पॉल)
वहीँ रेणु पॉल कहती हैं कि राजधानी देहरादून में भी यही सब होता आ रहा है. उन्होंने भद्रराज मंदिर का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि उसके स्वरूप को ही जड़ से मिटाकर उसे नए डिजाईन में ढाला गया. उसका वह पत्थर गायब है उसके स्थान पर ईट आ गयी हैं.

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