बढ़ते सरकारी वेतनमान तले मंहगाई में पिसता मजबूर मजदूर!

बढ़ते सरकारी वेतनमान तले मंहगाई में पिसता मजबूर मजदूर!
जयबर्धन डिमरी की कलम से –


मजदूरों के अथक श्रम के बूते ही भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। देश का श्रमिक राष्ट्रीय विकास की कुंजी भी है और समाज को परिपक्व और विकसित करने में सहायक भी। लेकिन विडंबना देखिए अपने देश में अभी तक श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी तक लागू नहीं हो पाई है और वह अपने हक के लिए मोहताज है। भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देने वाले मजदूरों का एक बड़ा भाग असंगठित क्षेत्र के कामगारों का है, जिन तक न तो सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंच पाता है और न ही अपने अधिकारों को लेकर उनमें जागरूकता है, जिसके कारण उनका जीवन-स्तर दिन-ब-दिन नीचे गिरता जा रहा है। ऐसे मजदूरों में रोजी-रोटी के लिए पलायन करने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या है। कार्यस्थल पर मिलने वाली विभिन्न सुविधाओं और अन्य अधिकारों से वंचित इन 40 करोड़ लोगों के लिए श्रम कानून और सरकारी सुविधाओं का तब तक कोई महत्व नहीं है, जब तक कि उनका लाभ इन तक न पहुंचे। आबादी के इस बड़े हिस्से पर जल्दी और बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।

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