ब्रह्म कमल…. जिसकी पाँखुरियों से टपकता है अमृत! मध्यरात्री को खिलने वाले इस एकमात्र पुष्प में छुपे हैं जिंदगी के कई राज..!
ब्रह्म कमल…. जिसकी पाँखुरियों से टपकता है अमृत! मध्यरात्री को खिलने वाले इस एकमात्र पुष्प में छुपे हैं जिंदगी के कई राज..!
(मनोज इष्टवाल)
हिमालय सचमुच अद्भुत है और उसमें होने वाले आये दिन नये-नये चमत्कार भी उसी की तरह चमत्कारित हैं जैसे उसकी बिषमताओं में प्रफुल्लित होने वाली विभिन्न औषधि पादप! इन्हीं औषधि पादपों की श्रेणी में हिमालयी के 3000 से 5000 मीटर की उंचाई पर खिलने वाले ब्रह्म कमल की बात हि निराली है. कहते हैं कि किसी भी घर में ब्रह्म कमल का खिलना व दर्शन करना दोनों शुभ होते हैं। यह अत्यंत सुंदर चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है।
अर्द्ध रात्री को खिलने वाले इस पुष्प को अगर किसी ने खिलते हुए देख लिया तो उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होनी मानी जाती हैं. माँ नंदा का सबसे प्रिय यह पुष्प कई धार्मिक अनुष्ठानों में बहुतायत प्रयोग में लाया जाता है. ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है, साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। इस पुष्प को देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है। इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है।
यह साल में एक ही बार जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और एक ही रात रहता है। ब्रह्म कमल मुख्यत: दिखने में पत्ता गोभी सा लगता है लेकिन रात्री प्रहर 9:50 से लेकर 10:45 बजे तक जब ये पुष्प खिलते हैं तब इन्हें देखने के लिए श्रावण मॉस में भी चाँद खूबसूरत बुग्यालों में अपनी छटा बिखेरता है. कई विद्वानों का तो मानना यह भी है कि द्रोणागिरी में हनुमान ने ठीक उसी समय द्रोणागिरी पर्वत को उखाड़ा था जब ये पुष्प प्रफुल्लित हुए थे और इनसे निकलने वाले तेज ने उन्हें भ्रमित किया था. ठीक उसी काल में इसकी पाँखुरियाँ ज्यों ही फैलती हैं उनसे टपकने वाला जल अमृत समान माना जाता है जो जीवनदायक होता है. कहा जाता है कि इन्हें खिलते देखने वाला व्यक्ति परम भाग्यशाली होता है व सुख समृद्धि उसके कदम चूमती है! कमलों की प्रजाति का यह पहला ऐसा अकेला पुष्प है जो बमुश्किल एक घंटा खिलता है एवं उसके बाद पुन: अपनी पूर्व दशा में जाकर सुबह होते ही मुरझा जाता है.यह भाग्योदय पवित्र और शुभता का प्रतीक है जिसकी सुंगध व रंग अद्भुत है. इसे जब पूजा के लिए चुनना पड़ता है तब अनेकोनेक अनुशासन इसमें शामिल होते हैं जैसे इसे चुनने वाले व्यक्ति को शारीरिक रूप से बेहद पवित्रता का ध्यान रखना होता है. कहीं शौच इत्यादि से निवृत्ति के लिए जाना होता है तब भी चुने हुए पुष्पों की टोकरी जमीन पर रखने के लिए शुद्धता देखनी आवश्यक है. शौच निवृत्ति के बाद पुन: स्नान के बाद भी उन्हें उठाया जाता है. साथ हि पूरे रास्ते नंगे पैर यात्रा करनी पड़ती है.
भ्युंड़ार घाटी के पुलना गाँव में देवपूजा के लिए चुने गए ब्रह्म कमल इन्हीं बंदिशों के साथ मंदिर तक पहुँचते हैं. यहाँ के लोगों का मानना है कि जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है। नंदा अष्टमी के दिन देवता पर चढ़े ये फूल प्रसाद रूप में बांटे जाते हैं। मानसून के मौसम में जब यह ऊंचाइयों पर खिलता है।
ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है। आम तौर पर फूलों को भगवान पर चढ़ाया जाता है! लेकिन ब्रह्मकमल ही ऐसा फूल है जिसकी पूजा की जाती है। ब्रह्म कमल ऊंचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है।धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्मकमल कमल की अन्य प्रजातियों के विपरीत पानी में नहीं वरन धरती पर खिलता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3000-5000 मीटर की ऊंचाई में पाया जाता है। इसकी सुंदरता तथा दैवीय गुणों से प्रभावित हो कर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियां हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में यह विशेष तौर पर पिंडारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया लता है और सितंबर-अक्तूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं।
ब्रह्मकमल के लिए यूँ तो सम्पूर्ण हिमालयी भाग अद्भुत माना जाता है लेकिन द्रोणागिरी रूपकुंड, हेमकुंड, फूलों की घाटी, केदारनाथ, हर की दून, देवक्यार, भराडसर ताल, सरू ताल इत्यादि स्थानों में खिलने वाले ब्रह्मकमल औषधीय पादपों के रूप में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिनमें जीवनदायिनी कई अनमोल औषधीयों के लक्षण दिखाई देते हैं. भले ही इनके दोहन को हम वर्तमान में गलत मानते हैं लेकिन सदियों से इनकी पूजा की जाती है और सदियों से ही ये तोड़े जाते रहे हैं. हिमालयी भू-भागों के लोगों की धारणा है कि साल में सिर्फ एक बार खिलने वाला यह फूल जिस घाटी में जिस साल सबसे ज्यादा तोड़ा जाता है उस घाटी में अगले बर्ष उतने ही अधिक ब्रह्म कमल खिलते हैं और जहाँ इनका दोहन नहीं हो पाया वहां इनकी उपज में निरंतर कमी और खामियां आती रही हैं. अब इस पुष्प के दोहन को हम किस दृष्टि से देखें यह हमें सोचना होगा क्योंकि सदियों से धार्मिक मान्यताओं में प्रयुक्त होने वाले इस पुष्प के लिए अगर हमने हिमालयी बुग्यालों में भेड़ बकरियों के चुगने पर पाबंदी लगाईं तो तय मानिए इस प्रजाति का भी वही हश्र होगा जो फूलों की घाटी में खिलने वाले असंख्य फूलों की दर में आ रही निरंतर कमी दर्शाती नजर आ रही है. इस घाटी के लोगों का मानना है कि जब से फूलों की घाटी में भेड़ बकरियों का चुगान बंद हुआ है तब से इस घाटी में खिलने वाले फूलों में निरंतर कमी आई है!
बहुत सुन्दर जानकारी दी माननीय ईष्टवाल जी धन्यवाद।