बेहद रोमांचक व अनछुवा है भेकल ताल ट्रेक, जहाँ ताल गैर मंदिर के पुजारी के बदन में पुती मक्खन चाटता है नाग!

  • बेहद रोमांचक व अनछुवा है भेकल ताल ट्रेक, जहाँ ताल गैर मंदिर के पुजारी के बदन में पुती मक्खन चाटता है नाग!
  • ऐसी रहस्यमयी लेकिन सत्य घटनायें जिनको सुनकर ही रौंगटे खड़े हो जाएँ.
  • फिर भी अभी तक धर्म-पर्यटन की दृष्टि से बेहद उपेक्षित.
  • रतगॉव मुन्दोली से पहुंचा जा सकता है भेकल ताल व ब्रह्मताल
  • ऐसे तीर जो आज भी पत्थरों व पेड़ों में बिंदे पड़े हैं!


(मनोज इष्टवाल)
सच कहा हिमालय दूर से दिखने में जितना शांत व सुंदर लगता है उतना ही विकट व वैभवशाली होता है. ठेठ हिमालय की तरह मध्य हिमालयी क्षेत्र के लोग भी हैं. जो बेहद नम्र स्वभाव, अतिथि सत्कारी और बेहद सहासी जीवन यापन करते हैं. आज हम एक ऐसे ट्रेक की बात करते हैं जो साहसिक पर्यटन के चितेरे पर्यटकों की नजरों में अभी तक नहीं आया.
उतराखंड के बदरीनाथ राष्ट्रीय राज मार्ग पर स्थित कर्णप्रयाग से जब आप नारायणबगड थराली पहुँचते हैं तब थराली से एक मार्ग देवाल तो दूसरा सेलडूंगरी के लिए कट जाता है. कर्णप्रयाग से लगभग 81 किमी. दूरी पर सेलडूंगरी मार्ग का अंतिम गॉव रतगॉव कहलाता है. जहाँ पहुंचकर आप प्रकृति के बेहद खूबसूरत नजारों का अवलोकन करना शुरू करते हैं.

(तालगैर के पार इंटर कालेज रतगॉव)
रतगॉव बहुत बड़ा गॉव है. लगभग एक हजार परिवारों के इस गॉव में मात्र एक परिवार ब्राह्मण है जिसे यहाँ के लोग बड़ी धोती के ब्राह्मण के नाम से पुकारते हैं. मिश्रा जाति के ये पंडित यों तो मूलतः देवाल से आये बताये जाते हैं लेकिन इनके पूर्वज अपने को कुमाऊ से आये बताते हैं. कई पीढ़ियों से इस परिवार में सिर्फ एक ही पुत्र होता रहा है इसलिए वंश वृद्धि एक ही परिवार के रूप में आगे पीढ़ियों से चलती आ रहे है. इन सरोला ब्राह्मण के अलावा यहाँ फर्स्वाण, पुजारी बिष्ट, मेहर नेगी व अनुसूचित जाति के लोग निवास करते हैं.
रतगॉव में एक इंटर-कालेज व दो प्राथमिक विद्यालय हैं. आपको जानकर हैरत होगी कि इतने बड़े गॉव में अभी तक बिजली नहीं है. यहाँ के डॉ. केएस फर्स्वाण बताते हैं कि वे राज्य निर्माण के बाद भी कई सालों तक मीलों पैदल चलकर अपने गॉव पहुँचते थे. उन्हें थराली से अपने गॉव पहुँचने के लिए 16 किमी पैदल सन 2000 तक चलना पड़ता था लेकिन राज्य निर्माण के तुरंत बाद थराली से 10 किमी सड़क बन जाने से थोडा राहत मिली फिर भी उन्हें या ग्रामीणों को 6 किमी. पैदल यात्रा करनी पड़ती थी. उन्होंने बताया कि उनकी व ग्रामीणों की व्यक्तिगत कोशिशों के बाद सन 2012 में वे गॉव तक सडक पहुंचाने में कामयाब रहे लेकिन 2013 में आई आपदा से पुल बह जाने से अब बरसात में नदी पार गाड़ियां ले जाना संभव नहीं होता. भले ही आजकल गॉव तक गाडी पहुँच जाती हैं.

(सर्दियों में पड़ी बर्फ़ से नहाया ताल गैर )
रतगॉव अपने आप में प्रकृति प्रदत्त एक साधन सम्पन्न गॉव है. इस युग में भी बिना विद्युतीकरण के यहाँ की आवोहवा में ग्रामीण लोक संस्कृति झलकती है. मिठास व आत्मीयता से लवरेज यहाँ के लोग बेहद सरल और सहज व्यक्तित्व के धनि हैं. आवश्यक आवश्यकताओं के लिए गॉव में ही कुछ दुकानें हैं. गॉव में स्थित तालगैर में जब आप पहुँचते हैं तो मखमली बुग्याल का एक बहुत बड़ा मैदान सा आपको दिखाई देगा. जो कभी जल भरा तालाब था और उसकी गहराई का अनुमान लगाना कठिन होता था. इसीलिए इसका नाम तालगैर पड़ा.
तालगैर के एक छोर पर भेकल नाग का मंदिर है. डॉ. के एस फर्स्वाण बताते हैं कि उनके दादा बिशन सिंह उन्हें बताया करते थे कि उस मंदिर के पुजारी उनके समय में जब पूजा के लिए मंदिर में प्रवेश करते थे तब वे अपने पूरे बदन पर मक्खन मलकर जाते थे जिसे मंदिर के अन्दर का नागदेवता चाटा करते थे. वे कहते हैं इसकी पुष्टि उनके पिता जी व अन्य गॉव वाले भी करते हैं. मैंने कहा उनका नाम क्या था तब वे सोचकर एक फोन करते हैं और जिन्हें फोन करते हैं उनसे पूछते हैं – जीजा जी, उन पुजारी का क्या नाम था जो बदन पर मक्खन मलकर पूजा करते थे. तब दूसरी ओर से जवाब मिलता है कि पुजारी जसवंत सिंह!

मुझे अटपटा लगा कि पुजारी वो भी सिंह यानि राजपूत ? मैंने उनसे पूछा कि आपकी बात जिन सज्जन से हुई उनका क्या नाम है तब फर्स्वाण बताते हैं कि वे रिश्ते में उनके जीजा जी लगते हैं और नाम है कुंवर सिंह बिष्ट! यहाँ के मंदिर में पुजारी पंडित नहीं बल्कि बिष्ट लोग ही हैं जिन्हें हम पुजारी बिष्ट के नाम से जानते हैं.वर्तमान में यहाँ के पुजारी अमर सिंह बिष्ट हैं लेकिन वे अपने पिताजी की तरह पूजा करने से संकोच करते हैं. उनका कहना है कि अब न वह समय रहा जब गॉव का पशुधन इतना हो कि वे नित्य बदन पर मक्खन मल कर पूजा कर सकें और न ही उनमें इतना साहस ही है. हाँ दिया बाती नित नियम से करना उनका धर्म है.

सर्दियों में रतगॉव का तालगैर पूरा बर्फ़ से ढक जाता है तब यहाँ का जनजीवन बेहद ठिठुरन भरा होता है. तालगैर से आप को 6 किमी. खड़ी चढ़ाई चढ़कर भेकल ताल पहुंचना होता है. जहाँ पहुंचकर लगता है कि आप एक ऐसे लोक में आ गए हैं जो बेहद रहस्यमयी एवं स्फूर्तिदायक है. इस 6 किमी. की चढ़ाई में आपको जितनी भी थकान लगती है यहाँ पहुँचते ही पल भर में वह थकान दूर हो जाती है. प्रकृति प्रदत्त भेकल ताल की सुन्दरता देखते ही बनती है. यहाँ से उतुंग हिमालय शिखरें ऐसी लगती हैं मानों आप उन्हें तोड़कर अपने झोले में भर लो. भेकल ताल में भेकल नाग का निवास बताया जाता है. ताल के मध्य में एक टापू दिखाई देता है जिसके नीचे भेकल नाग का मंदिर होना बताया गया है. यहाँ के ग्रामीण कहते हैं कि किसी को भी इस बात की उनका समाज इजाजत नहीं देता कि कोई ताल के अन्दर घुसे! उनका कहना है कि पुजारी जसवंत सिंह ने एक बार इस ताल में घुसकर मंदिर तक पहुँचने की कोशिश की थी. उन्हें पूरा विश्वास था कि वे जिस नित नियम से पूजा करते हैं भेकल नाग उन्हें कभी भी दण्डित नहीं कर सकते. क्योंकि ताल गैर में अवस्थित मंदिर में वे नित नाग से मक्खन चटवाया करते थे इसलिए स्वाभाविक है कि ऐसा डर दिमाग में होगा ही नहीं.

(भेकल ताल का एक छोर व मीलों तक फैले बुग्याल)
बहुत रोकने के बाद भी जब वे नहीं माने और ताल में घुसे तो लापता हो गए. लोगों ने उनके ज़िंदा रहने की आस छोड़ दी. बन्धु बांधवों ने बाल मुंडवाकर तेहरवीं तक कर दी लेकिन ऐन तेहरवीं के दिन वे अपने पूरे बदन पर भोजपत्र के पत्ते आवरण के तौर पर पहनकर लौटे तो सब आश्चर्यचकित हो गए. उन्होंने बताया कि वे इतने दिन तक भेकळ नाग के सानिध्य में रहे और जब घर लौटने लगे तो नागदेवता ने उन्हें वस्त्र स्वरूप सोने के वस्त्र पहनाये व उनसे कहा चाहे कुछ हो जाए पीछे पलटकर मत देखना. व न ही यह बात किसी को बताना. जब वे भेकल ताल से बाहर निकले और गॉव की ओर बढे तो कई जानवरों के दहाड़ने की आवाजें आने लगी. वे डर से थर्र थर्र कांपने लगे और जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उनके स्वर्णवस्त्र इन पत्तों में तब्दील हो गए उन्हें फिर चेतावनी मिली कि अब पीछे मत मुड़ना तो वे भागते हुए गॉव आ पहुंचे लेकिन यह किस्सा सुनाने के बाद जैसे ही उन्होंने अंगुली से यह बताना चाहा कि उनका वे आवाजें वहां तक पीछा करती रही उनकी साँसे उखड़ गयी और उनकी मृत्यु हो गयी.
यही बात समाप्त नहीं होती क्योंकि भेकल ताल पहुँचने से पहले भी आपको एक ऐसे रहस्य से दो चार होना पडेगा जिसके सभी प्रमाण तो मौजूद हैं लेकिन अविश्वसनीय से लगते हैं. चढ़ाई ख़त्म होने के साथ ही ऐन भेकल ताल से पहले आप जब एक ऊँचे नीचे बुग्याल में अपना पदार्पण करते हैं तब आपको पेड़ों व पत्थरों  पर घुसे पौराणिक तीर मिल जायेंगे. ये तीर आकाश तीर कहलाये गए हैं क्योंकि इन्हें चलाने वाला कौन था किसी को नहीं पता. इन तीरों में इतनी शक्ति कैसे आई जिन्होंने पत्थर तक भेद दिए! इसका जवाब मिलता है कि गॉव के पुराने कहते हैं कि गोरखा आक्रमण से जां बचाने के लिए ग्रामीण भेकल ताल स्थित नागदेवता की शरण में छुपते छुपाते पहुंचे. जिन्हें भेकल ताल से ऐन पहले गोरखा सैनिकों ने घेर लिया ! ऐसे में ग्रामीणों के पास सिर्फ मिन्नत के और कुछ नहीं बचा था. भेकल नाग ने मिन्नत सुनी और अदृश्य स्थान से बाणों की बर्षा प्रारम्भ कर दी. सारे गोरखा सैनिक मारे गए. रतगॉव के बूढ़े बुजुर्ग इस स्थान को खौफ़टळयां नाम से जानते हैं जिसका भावार्थ ही खौफ को टालने वाला स्थान है. अब ये तीर गोरखा काल के हैं या फिर उस से पूर्व के इनका परीक्षण होना अति आवश्क है ताकि उस काल का सही सही अनुमान लगाया जा सके जब ये तीर छोड़े गए थे. लेकिन यह आज भी  सत्य हैं कि यहाँ सहस्त्रों तीर इस स्थान पर आपको दिख जायेंगे जो पेड़ या और पत्थरों पर गुदे हुए हैं .
भेकल ताल से जुडी एक और जानकारी यह है कि गर्मियों में बन गुजर अपनी भैंसों को लेकर भेकल ताल जा पहुंचे. लोगों ने लाख समझाया कि ताल के आस-पास गन्दगी मत करना लेकिन बन गुजर नहीं माने. भैंसे घास चुगती हुई एक एक करके भेकल ताल में घुसी और अंतर्ध्यान हो गयी. बाद में उनकी अस्थियाँ मुंडाली गॉव व रतगॉव के पानी के स्रोतों से निकलती गयी. तब ग्रामीणों को आभास हुआ कि भेकल झील के स्रोत कहाँ कहाँ है. बाद में लोगों ने इस ताल व ताल गैर में मछलियां डालनी शुरू कर दी जिस से इसकी महत्तता कम हुई है. आज भी भेकल ताल में चिड़िया पत्ता तक नहीं गिरने देती. जैसे ही कोई पत्ता या घास ताल में गिरती है चिड़िया उसे उठाकर बाहर कर देती है.
भेकल ताल से आप ब्रह्मताल का सफ़र भी कर सकते हैं. यह ट्रेक आपके लिए किसी धार्मिक यात्रा से कम नहीं है लेकिन प्रकृति प्रदत्त ऐसे स्थानों में वैभवशाली वस्तुओं जिनमे मानस मदिरा शबाब इत्यादि प्रमुख हैं का प्रयोग न करें. बस आस्था और विश्वास के साथ प्रकृति के सुंदर लोग का अवलोकन करें चित्रण करें. गंदगी न फैलाएं तो हिमालय का आशीर्वाद मिलना हमारे लिए पुण्यकारी होगा. इस अनछुवे ट्रेक की यात्रा करने के लिए आप इस बात की बिलकुल चिंता न करें कि रतगॉव में आपके रहने की व्यवस्था क्या होगी. यह गॉव आपके स्वागत के लिए बान्हे फैलाए खड़ा मिलेगा और आपके सुनने को मिलेगा- अतिथि देवो भव: !

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