बेलगाम नौकरशाह के आगे बौने साबित होते मंत्री! आखिर किस की शह पर चल रहा है ये खेल?
- लगता है भाजपा के अंदर आज भी है गुटबंदी!
- आखिर क्यों तबज्जो दी जा रही है कुछ नौकरशाहों को!
- क्या मुख्यमंत्री को भ्रमजाल में फंसा रहा है उन्हीं का रचा चक्रव्यूह!
- भाजपा की कौन सी लौबी है जो बांधे है मुख्यमंत्री की आँखों में घोड़े वाले पट्टे!
- केदारनाथ जैसी घटनाएँ पहले भी, लेकिन मीडिया की नजर में नहीं आई!
- फोटो में न मुख्यमंत्री ही दिखे और न पर्यटन मंत्री ही.
देहरादून 5 मई (हि. डिस्कवर )
चाहे चार धाम यात्रा के शुभारम्भ की बात हो या फिर केदारनाथ धाम में प्रधानमंत्री के आगमन की तैयारियों की बात! पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को बैकफुट पर रखकर उन्हीं के भाई हंस फाउंडेशन के भोले महाराज को प्रमोट कर मुख्यमंत्री के सलाहकारों या फिर मुख्यमंत्री के आस-पास मंडराने वाले धूर्त नेताओं की मंशा तो साफ़ जाहिर होती है कि वे मुख्यमंत्री की आँखों पर घोड़े वाले पट्टे बाँधने में कामयाब हो गये हैं ताकि मुख्यमंत्री दांये बांये न देख सकें. और ऐसा हो भी क्यों नहीं जब राजकाज ही आजतक चाटुकारिता से चलता आ रहा है तब बेहद भलमानस समझे जाने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भला इस सब से बच कैसे सकते हैं.
विगत दिनों के घटनाक्रम से भाजपा को क्या फायदा नुक्सान हुआ है यह कहना ठीक नहीं है लेकिन जनता के बीच जो कुछ भी सन्देश गया है वह ब्यक्तिगत तौर से मुख्यमंत्री को नुकसान हुआ है ! केदारनाथ में प्रधानमन्त्री को मोमेंटों अधिकारी देते नजर आ रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री गायब हैं. पर्यटन मंत्री व विधान सभा अध्यक्ष को केदारनाथ ही छोडकर नौकरशाह उड़ जाते हैं! क्या यहां नौकरशाह सरकार से बड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केदारनाथ धाम आगमन पर श्री केदारनाथ धाम मंदिर की अनुकृति भेंट करने में अफसरोेंं ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को ही पीछे छोड़ दिया। प्रधानमंत्री को श्री केदारनाथ धाम आने पर भेंट स्वरूप मंदिर की अनुकृति मुख्यमंत्री के हाथों सौंपी जानी थी, लेकिन इसमें अफसरों ने फुर्ती दिखाई। एेसा करके इन अफसरों ने पूरी दुनिया की मीडिया में जगह बना ली और फोटो प्रसारित होने के बाद लोग एक दूसरे से पूछते रहे कि प्रधानमंत्री के साथ इस फोटो में सीएम कहां हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मोदी को केदारधाम के कपाट खुलने के मौके पर आमंत्रित किया था। पीएम मोदी ने इसे स्वीकार भी किया और यहां आए। लेकिन पीएम के इस दौरे पर अफसरशाही सीधे तौर पर हावी दिखी। पीएम मोदी केदारधाम पहुंचे तो परंपरानुसार उन्हें केदार बाबा के मंदिर की एक अऩुकृति (मॉडल) भेंट करने की तैयारी की गई। मीडिया में इस मॉडल को भेंट करने की फोटो प्रसारित हुई है, उससे यह साबित हो रहा है कि सरकार पर अफसरशाही पूरी तरह से हावी है। इस फोटो में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नहीं दिख रहे। इसमें पर्यटन सचिव शैलेश बगौली और मंदिर समिति के मुख्य अधिशासी अधिकारी बीडी सिंह के साथ ही मंदिर के रावल (पुजारी) दिखाई दे रहे हैं। यह फोटो दुनियाभर की मीडिया में प्रचारित हो रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री 2013 की आपदा के बाद पहली बार केदारधाम पहुंचे हैं।
प्रोटोकाल के लिहाज से पीएम को केदारधाम का मॉडल मुख्यमंत्री और धर्मस्व मंत्री को ही भेंट करना चाहिए था, लेकिन अफसरों ने खुद को बड़ा साबित करते हुए यह कार्य खुद कर दिया। इस फोटो के फ्रेम में खास तौर पर दो अफसर प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने अभी हाल में ही चार धाम यात्रा के प्रचार-प्रसार के लिए लाखों रुपये के विज्ञापन प्रिंट और इलेक्ट्रानिक न्यूज चैनलों को जारी किए हैं। अगर यह मॉडल सरकार के हाथों से प्रधानमंत्री को सौंपा गया होता तो बगैर किसी खर्च के ही दुनियाभर में प्रचार हो जाता। लेकिन यह मौका अफसरों ने सरकार को दिया ही नहीं।
क्या यह सब भाजपा की अंदरखाने चल रही गुटबंदी का नतीजा है या फिर मुख्यमंत्री के हाथ से फिसलते नौकरशाह इसके जिम्मेदार हैं? आखिर ऐसी क्या और क्यों तबज्जो दी जा रही है नौकरशाहों को. क्या कोई अंदरूनी गुटबंदी परदे के पीछे काम कर रही है जो मुख्यमंत्री को भ्रमजाल में फंसा उनकी गुडविशर बन काम कर रही है ताकि उन्हें फेल कर खुद कुर्सी हथिया ली जाय!
पुनर्निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश
केदारधाम के पुनर्निमाण में निम के कर्नल अजय कोठियाल का योगदान किसी से छुपा नहीं है। आपदा के बाद वहां हुए तमाम निर्माण कार्यों और सुविधाओं को बहाल करने में कोठियाल लगातार लगे रहे। तमाम संस्थाओं और सरकार तक ने उनके कामों को सराहा है। पीएम नरेंद्र मोदी का हेलीकाप्टर जिस हेलीपैड पर उतरा उसे भी निम ने ही बनाया है। कायदे से तो केदारधाम यात्रा के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी से कोठियाल को मिलवाना चाहिए था और पीएम को बताना चाहिए था कि किन विषम हालात में कोठियाल ने केदाराधाम यात्रा को बहाल करने का काम किया है। लेकिन अफसरशाही इस कदर हावी रही कि कोठियाल को बुलाया ही नहीं गया। ऐसा करके अफसरशाही ने केदारधाम में तमाम सुविधाएं बहाल करने का श्रेय अप्रत्यक्ष रूप से खुद ही लेने की कोशिश की। इसी का नतीजा है कि बेलगाम अफसरशाही अपना श्रेय बटोरने के लिए यह तक भूल गयी कि उनका प्रोटोकॉल क्या है और कैसे मुख्यमंत्री को प्रमोट करना होता है. मीडिया में जितनी भी फोटो आई उसमें एक जगह भी मुख्यमंत्री नजर नहीं आये !
स्पीकर, मंत्री को छोड़कर हेलीकॉप्टर ले उड़े
केदारनाथ धाम से पीएम और सीएम हेलीकॉप्टर से देहरादून प्रस्थान कर गए।बताया जा रहा है कि स्पीकर प्रेम अग्रवाल और काबीना मंत्री सतपाल महाराज के लिए एक चापर और खड़ा था, लेकिन इससे दो नौकरशाह सीधे देहरादून सहस्त्रधारा हेलीपैड पर पहुंच गए। इस बीच डीजीसीए ने उड़ान पर रोक लगा दी। फिर मौसम खराब हो गया।