बुरांसी गाँव से गोल्डन महाशीर कैंप..! सीला गाँव में हुआ ढाकरी यात्रियों का जोरदार स्वागत!
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 21 मार्च 2020)
*हिमालय दिग्दर्शन यात्रा 2020। ढाकर शोध यात्रा…!
आज सुबह सबेरे जब नींद खुली तो श्रीमती कुसुम बहुगुणा को बाहर भट्टी के पास रोटी/पूडियां बनाते देखा! मैं बोला- आप..! क्या स्वास्थ्य अब ठीक है! बोली- हाँ भाईजी, कल शायद थकान की वजह से बुखार आ गया था, रात गोली खाकर पूरी नींद सोई इसलिए अब तरोताजा हूँ! उनके पति मुकेश बहुगुणा बोले- इष्टवाल जी, एक फोटो तो खींच दीजिये कि आपकी भाभी ने सारी टीम को रोटी बनाकर खिलाई! मैं मुस्कराया व कैमरे से उनकी फोटो खिंची! सोचने लगा वास्तव में मातृशक्ति कब कहाँ काम आ जाए कहा नहीं जा सकता! जहाँ आप की ऊर्जा समाप्त हो गयी हो वहां महिलायें अपनी ऊर्जा से इसे प्रफुलित किये देती हैं! क्योंकि हम लगातार तीन दिन से लगभग 37 किमी. पैदल चल चुके थे उसमें लगभग 116 किमी. का सफर गाडी का अलग जोड़ लीजिये! अब जब थकान चेहरे पर उभरकर अपने भाव बताना शुरू कर रही थी तो लगा श्रीमती बहुगुणा इस समय जिस तरह सबका ब्रेक फास्ट बनाने में जुटी हैं वह ज्यादा ऊर्जा दायक है!

इस यात्रा में सबसे कम अभी तक जिस शख्स का मेरे द्वारा जिक्र हुआ है शायद वह प्रवीन भट्ट हैं! मैं यह सोचकर चला हूँ कि जब अपने सबसे उम्रदराज साथी दिनेश कंडवालजी पर अगली पोस्ट अपने ट्रेवलाग में लिखूं तब उनका जिक्र करूँ तो ज्यादा उचित रहेगा!
विगत दिन ही बुरांसी गाँव के बारे में संक्षेप में लिख चुका हूँ इसलिए इस लेख पर पुनः वह सब दोहराना मुझे उचित नहीं लग रहा है! अत: सीधे अपने आज के सफ़र पर लिखता हूँ!
आज हमें 3 से साढ़े तीन किमी. पैदल दूरी तय कर गोल्डन महाशीर कैंप पहुंचना है जहाँ हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव व विसर्जन भी है! जैसा कि हर यात्रा में अक्सर होता ही है कि जब भी ठाकुर रतन असवाल को कहीं किसी यात्रा पर निकलना होना है वो सबसे पहले अपना रुक्सेक लगाकर खड़े दीखते हैं और जब चलना शुरू करते हैं तो पीछे मुड़कर कभी नहीं देखते कि कौन पीछे छूटा या नहीं! हाँ जब काफी आगे निकलकर उन्हें ध्यान आता है कि कुछ मेम्बर्स पीछे रह गए हैं तो वह सीटियाँ बजाकर उनकी कुशल क्षेम जान लेते हैं या फिर उन्हें तेज चलने को उकसाते हैं! उनकी इस आदत से और कितने दुखी होते होंगे मैं नहीं जानता लेकिन मैं जरुर दुखी रहता हूँ क्योंकि एक तो मेरी देरी से उठने की आदत, ऊपर से किसी अनुशासन को अपने ऊपर थोपना में अपने साथ की जाने वाली सबसे बड़ी अति मानता हूँ और तीसरा मैं ट्रैकर्स की ही भाषा में ट्रैकिंग करना पसंद करता हूँ न कि किसी अन्य तौर तरीके से! मैं संयमित क़दमों से ही चलता हूँ ताकि थकान भी न लगे व आपके शरीर की ऊर्जा बनी रहे इसलिए उनकी हर सीटी पर मैं मुस्करा देता हूँ क्योंकि मुझे सिर्फ यात्रा नहीं करनी होती उनका आउटपुट भी निकालकर चलना होता है!

बुरांसी गाँव से बमुश्किल डेढ़ सौ मीटर नीचे जाते ही एक 10 फुट की सडक हमारा इन्तजार करती दिखाई दी। जैसे मुस्कराकर कह रही हो, बहुत साल लगा दिए इस राजबाट में कदम रखने में। जैसे कह रही हो कि भले ही यह राजबाट आज जंगली जानवरों का रास्ता बन गया हो लेकिन यह कभी सीला-बुरांसी-ग्वीन होकर द्वारीखाल निकलने का सूक्ष्म ढाकरी मार्ग हुआ करता था जो सड़क मार्ग बनते ही कुछ गाँवों का रास्ता ही रह गया व राज्य निर्माण के बाद पलायन की जड़ में आये गाँवों के सूने होते ही जंगली जानवरों का!
हमारी अडवांस टीम काफी आगे निकल चुकी थी! पीछे रह गए थे तो मैं स्वयं, दिनेश कंडवाल जी व प्रवीण भट्ट जी व फोटोजर्नलिस्ट हिमांशु बिष्ट जी..! हमसे लगभग 50 मीटर के फासले पर मुकेश बहुगुणा जी व उनकी श्रीमती कुसुम बहुगुणा हमसे आगे चल रही थी जो इस सर्पाकार रास्ते के किसी मोड़ पर अचानक दीखते व फिर अदृश्य हो जाते थे!
दिनेश कंडवाल जी जहाँ मुझे बता रहे थे कि यहाँ वाइल्ड लाइफ के अलावा बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए यह क्षेत्र बहुत माकूल हैं क्योंकि यहाँ कुछ ऐसे पक्षी हैं जो बहुत कम अन्य स्थानों पर दिखाई देते हैं जबकि प्रवीन भट्ट हिमांशु बिष्ट से फोटोग्राफ खिंचवाने में ब्यस्त थे! शायद इसलिए कि वे इस यात्रा को संस्मरण के रूप में अपनी निजी लाइफ से जोड़ना पसंद करते हैं! आखिर महाकाली आँचल पिथौरागढ़ का यह शख्स भला गंगा घाटी व नयार घाटी के समस्त अनुभवों को जिन्दगी के कीमती लम्हों में क्यों नहीं ढालना पसंद करेगा!

अभी बमुश्किल हमें चले पौन घंटा ही हुआ होगा कि लम्बी-लम्बी सीटियाँ व बुलंद आवाज गूंजने लगी! जल्दी-जल्दी चलो! दिनेश कंडवाल जी बोले- ठाकुर साहब की आवाज है, थोड़ा तेज चलते हैं! मैं सिर्फ मुस्कराया कुछ नहीं बोला क्योंकि मुझे तो पता था उनके सिर्फ अपना टार्गेट दिखाई देता है जहाँ उन्हें पहुंचना होता है! लगभग 10 मिनट बाद जब हम उस मोड़ तक पहुंचे जहाँ सब रुके हुए थे तो किसी ने कहा भालू है अभी अभी ऊपर गया! हम बेहद सतर्क व उत्सुक हो भालू की गतिविधियाँ देखने के लिए आँखें फाड़ने लगे! तो असवाल बोल पड़े- भालू वालू कुछ नहीं यहाँ बकरियां चुग रही हैं, हम इसलिए रुक गए थे ताकि वे कोई पत्थर हमारे ऊपर न गिरा दें इसलिए आगे सम्भलकर बढिए! यहां भालू की तो नहीं लेकिन बाघ की पोट्टी हमें दिखाई दी। मैंने कंडवाल जी को दिखाते हुए कहा कि इसने कुछ ही दिन पहले कोई जानवर खाया होगा क्योंकि इसकी पोट्टी में जो बाल हैं वह यही साबित करते हैं।

सचमुच यहाँ एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों भेड़-बकरियां चुग रही थी! मैं समझ गया कि ये यहाँ की लोकल नहीं बल्कि भेडालों की बकरियां हैं जो सर्दियों में हिमालयी भूभाग से नीचे उतर आती हैं व अब वापसी के लिए चल देंगी! पास ही भेड़-बकरी चुगाने वाले खाना बनाते दिख गए! मैंने प्रश्न किया- कितना माल है! तो उनकी आँखें चमक गयी जैसे ज्ञात हो गया हो कि यह भी हमारी विरादरी का भेडाल ही लगता होगा जिसे उनकी गूढ़ भाषा का पता है! वह मुस्कराते हुए बोले- लगभग 700-750 होगा!

मैं बोला- कहाँ से …! यमुना-टोंस घाटी से या फिर अलकनंदा घाटी से ! बोले- भाई जी, अलकनंदा घाटी से ..! चमोली गढ़वाल के हैं हम! मुझे लगा इनका समय खोटी करने की जगह आगे बढ़ा जाय क्योंकि कुछ बकरियां अभी भी हमारे ऊपरी इलाके में थी जिनके पैरों से पत्थर गिर सकते हैं, थकान से वैसे भी तन-बदन शिथिल था इसलिए इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि ऐसी स्थिति में तेजी-फुर्ती दिखा सकें!
हम फिर पीछे थे व अडवांस टीम को फिर इन्तजार करते पाया! अब जहाँ हम खड़े थे वहां से खंडाखोली गाँव का एक मकान दिख रहा था व राजबाट की चौड़ाई बढ़कर 12 से 18 फुट नजर आने लगी! यहाँ टैक्सी के टायरों के भी छाप थे! आदेश हुआ कि टीम को जलपान के लिए खंडाखोली में जाना है! मैं नहीं जाना चाहता था क्योंकि मेरी दांयी टांग के घुटने में तेज दर्द हो रहा था इसलिए अब कंडवाल जी ने प्रवीण भट्ट का दामन छोड़ा व मेरा दामन थाम लिया! इस दौरान श्रीमती कुसुम बहुगुुुुणा ने मेरे हाथ का बोझ कम करते हुए एक थैला अपने हाथ में ले लिया!

अब हम चार लोग थे जो ऊपर गाँव नहीं गए जिन में मुकेश बहुगुणा जी व श्रीमती बहुगुणा व दिनेश कंडवाल जी शामिल थे! दिनेश कंडवाल बोले- यार इष्टवाल जी, डॉ. सुभाष थलेडी का फोन आया है कि उनके गाँव की एक खूबसूरत सी फोटो खींचकर भेज दें! मैंने कैमरा खोला व बिना सवाल किये फोटो क्लिक कर दी! मोबाइल से कंडवाल जी व मुकेश बहुगुणा जी भी अपने अपने अंदाज में फोटो खींचते आगे बढ़ रहे थे!
सीला गाँव के दर्शन होते ही मैंने धार में खड़े होकर न सिर्फ सीला गाँव के फोटो उतारे बल्कि नीचे बहुत खूबसूरत लोकेशन में दिख रहे गोल्डन महाशीर कैंप की फोटो उतारी! हम लगभग कछुवे की चाल पर आगे बढ़ रहे थे क्योंकि हमारी टीम अभी उपरले गाँव में थी! हम जानते थे कि वहां उन पर अभी घंटा डेढ़ घंटा लगना है!

अब हम रास्ते के उस स्थान पर आ गए थे जहाँ से खंडाखोली का रास्ता नीचे सडक पर मिलता है व वहीँ सडक के एक किनारे से रास्ता नीचे उतरता ही सीला गाँव पहुँचता है! मैं मन ही मन खुश हुआ कि अब लगभग सफर क्त गया है! यहाँ से मुकेश बहुगुणा व उनकी श्रीमती जी हमसे थोड़ा आगे हो गयी थी क्योंकि तीखे ढाल में दिनेश कंडवाल जी बेहद सावधानी से इसलिए उतर रहे थे क्योंकि उन्होंने अपने क्वाचा के जूते की जगह चप्पल डाली हुई थी! वे डायबिटिक भी हैं इसलिए उन्हें यह डर था कि कहीं पैर कट गया तो घाव भरने में बहुत दिन लग जायेगें वहीँ बहुगुणा युगल अभी तक इस रास्ते को पार कर नीचे नहर पर उतर गए थे! मैंने उन्हें आवाज देकर कहा कि वे बायीं ओर मुड़ते हुए कैंप का रास्ता पकड़ें! उन्होंने वैसा ही किया लेकिन जब हम नहर में उतरे तो तीन बच्चे आये और बोले- आपको हमारे साथ गाँव में चलना है! वहां स्कूल के पास गाँववाले आप सभी का इन्तजार कर रहे हैं!
यह अलग सी मनोदशा हो गयी क्योंकि मुकेश बहुगुणा जी व उनकी श्रीमती तो अब तक काफी दूर निकल चुकी थी इसलिए थक हारकर हमने बच्चों का अनुशरण किया व खेत की मुंडेरों से गुजरते हुए हम सभा स्थल तक जा पहुंचे जहाँ गाँव के ही दमाऊ वादक ने हमें देखते ही स्वागत में शबद बजाया! ग्रामीण हम दोनों को अभी कुर्सियों में बैठा ही पाए थे कि हमारी सम्पूर्ण टीम खंडाखोली से यहाँ पहुँच गयी! हम सभी का सीला ग्रामवासियों ने बड़े जोश के साथ स्वागत किया व हमें फूल मालाएं पहनाई!अभी यह कार्यक्रम चल ही रहा था कि हमारे कोटद्वार व दुगड्डा के साथी अजय कुकरेती, जागेश्वर जोशी, चंद्रेश योगी व विवेक नेगी ने भी हें ज्वाइन कर लिया था!

सीला गाँव मेरा हमेशा से प्रशंसनीय इसलिए रहा क्योंकि यह गाँव नयार घाटी के अडवांस गाँवों में से एक गाँव गिना जाता रहा है! हमारे क्षेत्र में यहाँ के भलमानस को चकडैतों का गाँव माना जाता रहा है! उसके पीछे कारण यह भी रहा होगा क्योंकि ढाकर काल से ही यह स्थान दुगड्डा के बाद दूसरा सबसे बड़ा ढाकरी बिश्राम स्थल रहा है! यहाँ के लोग तभी से पढ़े-लिखे कहे जाते रहे हैं! ऊपर से यह गाँव पंडित बाहुल्य भी है, अत: आम व्यक्ति ने इसे चकडैत नाम का संबोधन दे डाला! जब हमने यहाँ के छोटे-छोटे नौनिहालों को हमें पानी सर्व करते देखा तो हमारी आँखें आपस में मिलनी लाजिम थी क्योंकि इन सभी बच्चों ने मुंह व नाक मास्क से ढके हुए थे!
ये ग्रामीण कम और शहरी बच्चे ज्यादा दिख रहे थे! यह इनकी परवरिश का नतीजा था या फिर जन चेतना का ..कहा नहीं जा सकता लेकिन एक बिटिया को पूछा तो वह बोली- अंकल आपको पता होना चाहिए विश्व भर में लोग कोरोना वायरस झेल रहे हैं! हमें अपनी सुरक्षा का ध्यान खुद ही रखना होगा!
सचमुच तबियत खुश कर दी इस बिटिया ने! जलपान, चायपान व मंडुवे के बने लड्डुओं के साथ हमारा जिस गर्मजोशी से स्वागत किया गया वह भुलाने वाला नहीं था! दमाऊं वादक सोहन लाल/त्रिपति लाल भी गर्मजोशी से अपना काम कर रहे थे! इस बीच ग्राम प्रधान सहित ग्रामीण महिलाओं ने ढाकर यात्रा के माध्यम से जनचेतना व जनजागरूकता पैदा करने के लिए पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल को गणेश प्रतिमा मोमेंटों के रूप में भेंट की! साहित्यकार/लेखक व अध्यापक जागेश्वर जोशी जी ने सभी ग्रामीणों का हिमालय दिग्दर्शन टीम की तरफ से धन्यवाद करते हुए ढाकर काल से वर्तमान तक सीला गाँव की उपलब्धियों का जिक्र किया व कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले साल तक जो बाकी बचे बंजर खेत हैं उनमें भी हम सबके मेहनत श्रम की फसल लहलहाएगी!
अडवांस टीम जो खंडाखोली गाँव गयी थी उसके सदस्य नितिन काला से जब मैंने जानकारी प्राप्त की कि वहां कौन लोग थे जिन्होंने टीम की इस यात्रा पर हम सबका स्वागत किया तो उन्होंने बताया कि वहां के ग्रामीणों में गजेन्द्र सिंह रावत, दिनेश सिंह रावत, श्रीमती अर्चना देवी व श्रीमती रामी देवी ने अपने घर पर पूरी टीम का स्वागत सत्कार किया और मनोबल बढ़ाया है वहीँ ग्राम प्रधान सीलागाँव श्रीमती प्रीती काला के नेतृत्व में वहां की महिला मंगल की टीम जिनमें श्रीमती दुलारी देवी, दीपा देवी, ज्योति देवी, कलावती देवी, सम्मा देवी, सरोजनी देवी व सरस्वती देवी तथा पूर्व प्रधान महेंद्र काला, अरुण काला, शम्भु प्रसाद डोभाल, बिरेन्द्र डोबरियाल, दिनेश काला, दीपक काला, शिवम् काला, आयुष, आशु इत्यादि शामिल थे ने बेहद गर्मजोशी के साथ अपने गाँव में पूरे सम्मान के साथ हमें विदाई दी! इस दौरान टीम के साथ पौड़ी से वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा, घंडियाल से अजय रावत अजय व कोटद्वार से गणेश काला इत्यादि भी जुड़ गए! यहाँ से ढाकर टीम अपने अंतिम पड़ाव गोल्डन महाशीर पहुंची जहाँ यात्रा विसर्जन के समय गोल्डन महाशीर कैंप में सभी का तिलक लगाकार स्वागत हुआ!