बुग्यालों को लगता ग्रहण ! कई टन की भैंसोँ के खुर्र बना रही हैं खाईयाँ। गोबर में जन्म ले रही है बुग्यालों को नाश करने वाली घास…। वन गूर्जर के साथ बन्दे मातरम्।

(मनोज इष्टवाल)
दयारा बुग्याल ….! यानी 28 किमी की परिधि का वह क्षेत्र जहाँ प्रकृति ने अपनी नेक ऐसे बरसाई है मानो सारी खुशियां यहीं न्यौछावर कर दी हो। भाँति-भांति के फूल जब उगते हैं और मखमली हरी बुग्याल की कोमल हरी घास आपके पैरों को जब चूमती है तो लगता है हम धरा के ऐसे बिछौने में हों जहाँ देवता रहते हैं।

लेकिन यह क्या एक 6 फिट लंबी एक रेखा जो बर्ष 2008 तक मात्र 2 फिट गहरी भी नहीं थी बर्ष 2016 तक वही लाइन कई सौ मीटर तक न सिर्फ फैली बल्कि 10 से 12 फिट तक गहरी भी हो गयी है। जो अब एक बुग्याली गदेरे का रूप ले चुका है।
जिसके जिम्मेदार हम सभी मनुष्य ही हैं और हमसे भी ज्यादा वो मनुष्य जिन्हें हम वन विभाग के रहनुमा कहते हैं। इस विभाग का आलम यह है कि बुग्यालों को संरक्षित करने लिए इस विभाग के पास कोई प्लानिंग तो है नहीं लेकिन उगाही के भरपूर संसाधन होते हैं।
अगर ऐसा नहीं होता तो गुर्जरो की टनों मोटी सैकड़ो भैंस एक परमिट पर 10000 फिट से ऊपर के बुग्यालों को अपने खुररों से यूं न रौंदते और न ही एक छोटी सी रेखा बुग्याल को कुरूप कर गहरी खाई में तब्दील होती।


बुग्यालों के संरक्षण के लिए बर्षों से कार्य कर रहे हाई फीड के निदेशक व सोशलिस्ट उदित घिल्डियाल का कहना है कि वन गूर्जरों की ये भैंसे सर्दियों में जब मैदानों में लोटती हैं तब वह वहां कई ऐसे पादप खा लेती हैं जो बुग्यालों के लिए बेहद खतरनाक है। और यही कारण भी है क़ि बुग्यालों में तेजी से फैल रहा वही भटकटैया नामक पौधा बुग्यालों की खूबसूरती के लिए जहर बन रहा है। वह सिर्फ दयारा ही नहीं बल्कि वैली ऑफ़ फ्लावर में भी इसलिए फ़ैल रहा है कि भैंसों द्वारा किये गए गोबर से उगे इस पादप को भेड़ बकरियां चुग लेती हैं और भेड बकरियां का चुगान हिमालयी क्षेत्र में मीलों तक फैला है। यह भटकटैया उन्ही के माध्यम से एक बुग्याल से दुसरे बुग्याल तक फैल रहा है और हम सभी तथाकथित पर्यावरणविद्ध मौन हैं और वन विभाग को इस बात से कोई लेना देना नही कि यह जहर समान पौधा हमारे हिमालयी बुग्यालों में फैली औषधीय भण्डार के लिए कितना खतऱनाक हैं।
उदित कहते हैं कि इस बार उन्हें ख़ुशी हुई क़ि अब गूर्जर भी समझने लगे हैं कि 15 अगस्त क्यों मनाया जाता है। उनके साथ खड़ा यह गूर्जर तिरंगा खूब ख़ुशी ख़ुशी दयारा में फहरा रहा था जिससे गर्व की अनुभूति होती है।

नोट- यह लेख 15 अगस्त 2016 में मेरे द्वारा लिखा गया था! सरकार ने इस दिशा में प्रयास तो किया ! वह यह कि बुग्यालों में मानव चहलकदमी बंद कर दी लेकिन गुर्जरों के लिए हर साल परमिट आज भी जारी हो जाते हैं! इस लेख को दुबारा आप तक पहुंचाने का आशय भी यही है!

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