बिश्वेश्वर सकलानी ने लगाए 50 लाख पेड़…! वीरान धरती का ताउम्र करते रहे श्रृंगार!
बिश्वेश्वर सकलानी ने लगाए 50 लाख पेड़…!
(खोजी पत्रकार संदीप सिंह गुसाईं की कलम से)
यकीन करना मुश्किल है …………….कि कोई इन्सान वृक्ष से इतना लगाव और प्यार कर सकता है।एक ऐसा ग्रीन हीरो जिन्होंने अपना पूरा जीवन धरती मां के लिए समर्पित कर दिया.एक ऐसा तपस्वी जिसकी मेहनत एक पूरी घाटी को हरियाली में बदल चुकी है। एक वनऋषि की कहानी जिन्होनें मात्र 8 साल की उम्र से पेड लगाने शुरु किए और अब तक 50 लाख से अधिक पेड लगा चुके है।ये पहाड का मांझी है जिसने अपनी मेहनत से विशाल जंगल तैयार कर दिया।
ये है विश्वेश्वर दत्त सकलानी जो अपनी उम्र के अंतिम पडाव पर है।आंखो की रोशनी जा चुकी है जबान से लडखडाते हुए केवल यही शब्द निकलते है वृक्ष मेरे माता पिता…..वृक्ष मेरे संतान…….वृक्ष मेरे सगे साथी …………अब जरा सोचिए कि विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने किन परिस्थितियों में अपनी सकलाना घाटी को हरा भरा करने में कितनी मेहनत की।पुजार गांव में जन्मे विश्वेश्वर द्त्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को हुआ था।
बचपन से विश्वेश्वर दत्त को पेड लगाने का शौक था और वे अपने दादा के साथ जंगलों में पेड लगाने जाते रहते थे।इनका जीवन भी माउन्टेंन मैन दशरथ मांझी की तरह है जिन्होंने एक सडक के लिए पूरा पहाड खोद दिया।दरशत मांझी की तरह विश्वेश्वर दत्त सकलानी के जिन्दगी में अहम बदलाव तब आया जब उनकी पत्नी शारदा देवी का देहांत हुआ।1948 को हुई इस घटना के बाद उनका लगाव वृक्षों और जंगलों की होने लगा।अब उनके जीवन का एक ही उद्देश्य बन गया केवल वृक्षारोपण……………….!
विश्वेश्रर दत्त सकलानी ने अपना पूरा जीवन पहाड के लिए दे दिया।पेंड़ों और धरती मां के लिए त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्ता आपने शायद ही कहीं देखी होगी।पुजार गांव के बुजुर्ग बताते है कि जब उनकी बेटी का विवाह था और कन्यादान होने जा रहा था तो उस समय में वो जंगल में वृक्षारोपण करने गए थे।विश्ववेश्वर दत्त सकलानी का जीवन उन पर्यावरविदों के लिए आएना है जो अपने जुगाड के कारण बडे बडे अवार्ड हथिया लेते है लेकिन जमीन में दिखाने के लिए कुछ नही है।
Koti koti naman dakkani jee ko ..???
Saklani jee
जी…