बिना सरकारी इमदाद के राठियों की मदद से बना 35 किमी. लंबा चौन्दकोट जनशक्ति मार्ग!

बिना सरकारी इमदाद के राठियों की मदद से बना 35 किमी. लंबा चौन्दकोट जनशक्ति मार्ग!

(मनोज इष्टवाल)
अभी अभी देश स्वतंत्र होकर खुली सांस ले ही रहा था ! दूसरी ओर पहाड़ भी आजादी के बिगुल में मदमस्त अपने मेले कौथीगों व घर आंगनों में ब्रिटिश साम्राज्य से निजात पाने के बाद अपने पारम्परिक लोक उत्सवों व लोकगीतों में अपनी सांस्कृतिक विविधता का रस घोल रहा था जहाँ घर आंगन गाँव गाँव चौंफला गीतों में सामूहिक नृत्य व गायन में महात्मा गांधी का गुणगान कुछ इस तरह होता था कि- “मातमा गांधी बड़ो भाग चैs, द्वी पैंसा रोज कमांदु चैs” वहीँ दूसरी और ऊँची थातों डाँडो में देवी के मंडाण में पंडों व रिन्गौण के सुरों में पैरों से उड़ती धूल मानों गुलाब बन गढ़वाल के मानुषों का श्रृंगार कर रहा हो! ऐसे में भला चौन्दकोटि कैसे पीछे रह सकते थे!
पूर्वी और पश्चिमी नयार से ज्यादात्तर घिरा चौन्दकोट दो चीजों के लिए बेहद मशहूर था ! एक वहां के रीति रिवाज व दूसरा चौन्दकोटया बांद! चौन्दकोट का नारी सौन्दर्य किसी काल में बेहद सुंदर माना जाता था! और इस क्षेत्र में अन्य इलाकों के लोग रिश्तेदारी करने में फक्र महसूस करते थे!

ब्रिटिश काल में सडक पौड़ी पहुँच गयी थी जिसमें सबके अपने अपने मतभेद हैं क्योंकि कोई पौड़ी सडक मार्ग को सन 1940 के बाद मानता है तो कोई 1938 के बाद! फिलहाल पौड़ी कोटद्वार मार्ग पर गेट सिस्टम से सवारी गाडी का आगमन जारी हो गया था! तब बारहस्यूं के हिसाब से जिला पंचायत अध्यक्ष मनोनीत होते थे व उस काल में रिंगवाड़स्यूं के रिंगवाड़ा रौतों (रावत) का पूरा क्षेत्र में बड़ा बर्चस्व था  और यही कारण भी था कि थोकदार हरेन्द्र सिंह रिंगवाडा ग्राम रिंगवाडी सन 1935 से लेकर 1945 तक लगातार 10 साल ब्रिटिश काल में जिला पंचायत अध्यक्ष रहे!
हरेन्द्र सिंह रिंगवाडा के दिमाग में बस एक ही बिषाद रहता कि काश…मैं अपने जीते जी चौन्दकोट को सडक मार्ग से जोड़ पाता! आखिर उनका दृढ निश्चय तब सफल हुआ जब 15 अप्रैल 1950 को इगासर (एकेश्वर) मेले के दिन रिंगवाडस्यूं, मौंदाडस्यूं, गुराड़स्यूं व जैन्तोलस्यूं द्वारा चौन्दकोट जनशक्ति मार्ग की रूपरेखा बनाई गयी व एक समिति का गठन किया गया जिसमें लैंसडाउन मुंसिफ कोर्ट के पहले अधिवक्ता रिंगवाड़ी गाँव के मनवर सिंह रावत, ग्राम गुराड़ के सीताराम सेमवाल, ईडा मल्ला के दर्शन सिंह सिपाही नेगी व ग्राम डीब के पंचम सिंह आर्य को सर्वसम्मति से हरेन्द्र सिंह रिंगवाडा की अध्यक्षता में सदस्य मनोनीत कर विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी गयी!
प्रथम दौर के समरेखण में ही विवाद खड़ा हो गया क्योंकि कणमोठलिया पुल से जणदा देवी तक 13मील (20 किमी.) रोड पैमाइश पर गुराड़स्यूं व मौंदाडस्यूं के लोगों ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि इस सडक के निर्माण से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलने वाला इसलिए समिति दो फाड़ हो गयी ! अब एक ने यह रोड तो दूसरे ने मलेठी बैंड, एकेश्वर जणदादेवी जनशक्ति मार्ग का समरेखण शुरू कर दिया! इस मार्ग की लम्बाई लगभग 20 मील यानि (35 किमी.) आंकी गयी!
आखिर सभी पट्टी के थोकदारों ने इसे अपनी अपनी इज्जत का प्रश्न बना दिया और आखिर तय यह हुआ कि दोनों सड़कों पर काम एक साथ शुरू होगा! हर पट्टी के ढोल दमौ के साथ सुबह महिला पुरुष सडक निर्माण को आते उनके लिए सामूहिक खाना पकता और रोड खुदने लगती! बुजुर्ग बताते थे कि ढोल दमौ में उत्साह भरने व क्षत्रीय हुंकार जगाने के लिए आवजी लोग रणबाजा बजाया करते थे ताकि जोश में कोई कमी न आये! और कभी अगर ऐसा नजर भी आया तो फिर कुछ नेता भाषणों में जोश फूंककर कहते कि यह चौन्दकोट वासियों के लिए डूब मरने की बात है कि हम आजाद देश में भी सडक व गाडी से दूर हैं!  इस सडक के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका अगर किसी की रही तो वह थी राठ वासियों की! बुजुर्गों का मानना है कि राठवासियों ने इस सडक पर दिन रात इसलिए काम किया क्योंकि उन्हें यह भरोंसा दिलाया गया था कि शीघ्र ही यहाँ सन्तुधार से एक सडक चिपलघाट तक सामूहिक जनशक्ति मार्ग के रूप में तैयार की जायेगी और आनन फानन उसका सर्वे भी कर लिया गया जो पुराने राजबाट अर्थात ढाकरी मार्ग के साथ कहीं समांतर तो कहीं ऊपर होकर कागजों में दर्ज हुई! जिसका स्वरूप राठ वासियों ने इस जनशक्ति मार्ग के निर्माण में खून पसीना खूब बहाया लेकिन अफ़सोस कि उनमें से वर्तमान में एक का नाम भी कहीं किसी दस्तावेज में दर्ज नहीं हैं! कहते हैं सडक यूँ तो बनकर मात्र 6 माह में तैयार हो गयी थी लेकिन इस पर गाड़ी लाना बड़ा दूभर कार्य था जिसे आखिरकार ठा. हरेन्द्र सिंह रावत ने जैसे तैसे स्वीकृत करवाया!
इसी दौर में कुछ बर्ष तक जब राठ क्षेत्र के लिए खुदने वाली सड़क पर बात नहीं हुई तब राठवासियों द्वारा आवाज उठाई जाने लगी लेकिन हरेन्द्र सिंह रावत के स्वर्ग सिधारने व सन 1960 में यह जनशक्ति मार्ग लोक निर्माण विभाग लैंसडाउन द्वारा हस्तगत करने के कारण चिपलघाट सडक निर्माण के सपने चकनाचूर हो गए! यह आश्चर्यजनक रूप से सत्य है कि राठवासियों ने सिर्फ अन्न लेकर इस जनशक्ति मार्ग के निर्माण में सहयोग किया!
सन 1960 में यह सडक लोक निर्माण विभाग लैंसडाउन के सुपुर्द होने पर जब इसकी खबर तत्कालीन देश विदेश के अखबारों में प्रकाशित हुई तब चेकोस्लाविया के एक शिष्ट मंडल द्वारा इस सडक का निरक्षण किया गया जिसे मामूली से सुधार के बाद विश्व की बिना इंजीनियरिंग की बनी सबसे बेस्ट जनशक्ति मार्ग के नाम से जाना जाने लगा! आज भी यह सडक कभी भी किसी बरसात में बंद नहीं होती जिस से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बिना सरकारी सहायता के आम जन परिश्रम से बनी यह सडक उस काल में कितनी ईमानदारी के साथ बनाई गयी होगी!
 

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