बारहस्यूं और ढाकर – दुगड्डा मंडी से तिब्बत तक का तिलिस्म! खडीनों से ढोया जाता था माल (पार्ट -3)…!गतांक से आगे….!

ढाकर – दुगड्डा मंडी से तिब्बत तक का तिलिस्म! खडीनों से ढोया जाता था माल (पार्ट -3)…!गतांक से आगे….!

(मनोज इष्टवाल)
 
विगत एपिसोड में मैं आपको ठेठ आज से लगभग सौ बर्ष पूर्व की उस लोक समाज, लोकसंस्कृति की परिकल्पना के चित्र अपनी आँखों में तैरते देख आपकी जुबान का स्वाद बढाने में कितना कामयाब हुआ यह तो कह नहीं सकता लेकिन एक ढाकरी जो गाँव में प्रविष्ट होता था उसके लिए ऐसा जश्न मनाना स्वाभाविक था क्योंकि वह भी किसी योद्धा से कम नहीं था! आखिर 6 माह या सालभर तक के लिए गुड, नमक. कपड़ा इत्यादि की ब्यवस्था जो रखनी होती थी!

क्योंकि यह पूरा इलाका बांघाट के बाद बारहस्यूं परगने का है अत: यहाँ की तत्कालीन स्थित बताती भी जरुरी है! बारहस्यूं में 14 पट्टियां पड़ती हैं जिनमें मनियारस्यूं, असवालस्यूं, बणेलस्यूं, कफोलस्यूं, पटवालस्यूं, पैडूलस्यूं, खातस्यूं, नादलस्यूं, गगवाडस्यूं, सितोंनस्यूं, बनगडस्यूं,  इडवालस्यूं और कंडवालस्यूं, रावतस्यूं इत्यादि प्रमुख हैं! जिनके बारे में जनरल हार्डविक लिखते हैं कि गोरखा शासन ने अपने 12 बर्ष के शासनकाल में इस क्षेत्र को बुरी तरह बर्बाद किया है! यहाँ से कई मंडियों में दास बेचे गए! उनका शासनकाल इनके साथ इतना क्रूर रहा कि अभी तक भी ये लोग सर उठाकर बात करने में सक्षम नहीं हैं! यह क्षेत्र 12 उपखंडों में विभाजित है और इसकी ज्यादात्तर शिखरें बिना पेड़ की हैं! इसके पूर्व व दक्षिण में नयार नदी व पश्चिम में गंगा नदी अन्य पट्टियों से इसकी सीमाएं बांटती हैं! बारहस्यूं की मिटटी खूब उपजाऊ है और यहाँ के लोग ज्यादा परिश्रमी भी हैं लेकिन पूर्व में गोरखा शासन की ज्यादत्तियों ने इन्हें बुरी तरह बिखेर कर रखा था! ब्रिटिश शासनकाल ने इन्हें उभारने का प्रयास किया है और ये तेजी से बंजरों को भी खेती में तब्दील करने पर जुट गए हैं! यहाँ के लोग मुकदमेंबाज हैं क्योंकि यहाँ जमीन की कीमत अधिक है! तम्बाकू का सेवन प्राय: सभी करते हैं लेकिन शराब  यहाँ सिर्फ निम्नवर्ग के लोग खुद बनाकर पीते हैं! चाय भी यहाँ एक आध अपवाद छोड़कर कोई नहीं पीता और इसे भी वे नशा या ब्यश्न ही मानते हैं!
 वाह…और फिर वह समय भी आया जब ब्रिटिशकाल में इसी बारहस्यूं की तूती बोलने लगी! पढ़-लिखकर लोग सरकारी नौकरियों में जाने लगे जिनमें कालोंडांडा (लैंसडाउन) की गढ़वाल राइफल, राजस्व व पुलिस विभाग की नौकरियां प्रमुख हैं लेकिन मिस्टर ट्रेल ने लिखा है कि सम्पूर्ण गढ़वाल को हमें राजस्व पुलिस के हवाले छोड़ देना चाहिए क्योंकि यहाँ अपराध, चोरी डकैती इत्यादि नहीं होती व बंद आँखों से आप यहाँ के लोगों पर विश्वास कर सकते हैं क्योंकि ये देवताओं पर ज्यादा निर्भर हैं व वही उनका रक्षक भी है! इसलिए पूरे ढाकरी मार्ग पर सिर्फ एकमात्र पुलिस चौकी कर वसूली के लिए डाडामंडी में बनाई गयी!
आइये गढ़वाल में दुगड्डा से प्रवेश करने वाले ढाकरी मार्गों की आपको जानकारी दे दें! दुगड्डा पौड़ी ढाकर मार्ग के अलावा दुगड्डा से डाडामंडी पार करने के लिए खोह नदी पर एक रस्सी पुल था जो आपको कांडी-कस्याली इलाके के गाँव ले जाता था! वहीँ सिली नदी यानि सिली गाड़ व खोह नदी के संगम में बसे दुगड्डा शहर से सिल्ली नदी के बांयीं छोर होते हुआ एक ढाकरी मार्ग चौकीसेरा, रतुवाडाब निकलता था तो दूसरा चौकीसेरा, सीला, बरस्वार होकर डेरियाल, लैंसडाउन और डेरियालखाल रैतहोकर मधु गंगा (मैदी गाड़) के साथ तल्ला, मल्ला व बिचला बदलपुर!
ब्रिटिश समय में सन 1909 में लैंसडाउन छावनी तक ठेला सडक आने के कारण फतेहपुर से खड़ी चढ़ाई चढ़ती सडक दुगड्डा से 1 मील 5 फलांग व 25 पोल चलकर फतेहपुर, जहाँ से 3 मील 6 फर्लांग 29 पोल तय करती हुई भदालीखाल/विखाल (देवालखाल), जहाँ से गुमखाल के लिए 2 मील, 5 फलांग, 33 पोल और चढना पड़ता है! यहाँ से फिर ढाल शुरू होती है और आप तिल्सियाधार, कुलाडगाड होकर 3 मील 7 पोल की दूरी तय कर मैदी नदी यानी मेदनी गाड या मधुगंगा पहुँचते हैं जिसके पूर्व में एक पड़ाव है जहाँ से आप आगे का सफर जारी रख सकते हैं! हो न हो तब सतपुली का बर्चस्व न रहा हो और यह मात्र एक पड़ाव के रूप में अव्यस्थित रहा हो!
 (नोट- आज इतना ही क्योंकि गर्दन का दर्द अथाह है जो आगे लिखने की अनुमति नहीं दे रहा है! फिर भी आप बने रहे मेरे साथ इस ढाकरी सफर में ..! निरंतर और लगातार!)

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