बाबा बमराडा का वह कवि हृदय..! दुनिया मा भूचाल ऐ छौ तै दिन।।
बाबा बमराड़ा गढ़वाली के बेहतरीन कवि भी थे। 1966 में उन्होंने हिन्दू कालेज दिल्ली में गढ़वाल भातृ परिषद के द्वारा आयेाजित कवि सम्मेलन में अपने परिचय को लेकर यह कविता सुनाई थी।
मेरो जन्म गढ़वाल मा ह्वे छौ जै दिन।
दुनिया मा भूचाल ऐ छौ तै दिन।।
मेरा जन्म को कैन इतिहास नि लेखी।
निर्भागी छा जौन गढ़वाल नि देखी।।
चैतू, बैसाखु क्वी मंगसिरिया बतौंदा।
रामू, श्यामू क्वी लिंगतु गणौदा।।
नाम मेरू ‘मथुर’ जेठीमा न धारी।
याद आंद बचपन की दुख होंद भारी।।
एक बुडड़ि पर जब कालि आई।
चैंलु कि छपाक तैन लगाई।।
बोलण बैठि बाक एक विधाता सताई।
विधाता सणी बि ऐन चैन नि देई।।
विधाता का वरदान न एकु जन्म होणू।
गढ़वाल गढवाल वख बीछो रोणू।।
तंग ऐ कि विधाता न वरदान देई।
पैदा तु बेटा गढ़वाल होई।।
सराप च मेरू तिन मै सतायूं।
हर बात मा तिन मै रूलायूं।।
सरापन मेरा तु ‘बेचैन’ रौली।
चैबीस घंटा काम कैकी तू रोटी पैली।।
साभार- संघर्षनामा एक राज्य आन्दोलनकारी में प्रकाशित लेख ‘‘बेचैन अर उंकी काव्यधारा” में श्री भगवती प्रसाद नौटियाल के लेख से उद्धृत।