" बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है….!

(वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट की कलम से)

मुहम्मद रफी मखमली आवाज में ये गीत कभी पुराना नहीं होता । जितनी बार सुनो हर बार नया तराना लगता है । महबूब और महबूबा के दिल की आवाज और एक दूसरे की जिंदगी में आने के बोल लगते हैं । दोनों की खुशी इतनी कि फूल भी कहें पूरी दौलत इन दोनों की ऊपर उंडेल दें। लुटा दें।

** फिल्म का जिस सीन पर डाइरेक्टर यह सुन्दर गीत फिल्माया और इस गीत का गीतकार और स्वयं मुहम्मद रफी साहब काश इस शुक्रवार को मेरे पहाड़ आते और चमोलीं के चरबंग में दूल्हा दुल्हन के फेरों के वक्त आसमान से ” फूलों की तरह बर्फ की फाहों बरसते ” देखते। तो दिल से कह उठते । ” वाह ! यह गाना कि ” बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है ” लिखना और गाना सचमुच सार्थक हो गया ।

दूल्हा राजेन्द्र और दुल्हन शोभा जब परियण के सूत्र में बंध रहे थे । और एक दूसरे के गले में जय माला डाल रहे थे । तो कुदरत और बहारें भी इस सुन्दर क्षण को साक्षी बने ।और ” आसमान सें बर्फ की सुन्दर फाहों के रूप में श्वेत रंगत लिये बर्फ के खूब फूल बरसाये । पहाड़ का ठेठ गांव , , मिट्टी . पठाल के मकान . चारों तरफ बर्फ ही बर्फ । दादी . ताई . मामी . काकी . नानी के सुरमय कंठ से निकले मांगल गीत । बरात की चखल पखल । चाहे कितनी भी बर्फ हो भला हम पहाड़ी कहां ठहरने वाले ठहरे ।

इस खूबसूरत ब्यौ में ढोल दमौ और मशकबीन की धुन पर कई फरकणी नाचे । जब आयुष्मती शोभा और चिरंजीवी राजेन्द्र दुल्हन और दूल्हे के रुप के रूप में अग्नि को साक्षी मान कर सात फेरे ले रहे थे । और सुर्ख जोड़े में शोभा और क्रीम रंगत की शेरवानी और सेहरा बाधे दूल्हा राजेन्द्र एक दूसरे के गले में जय माला डाल रहे थे । तो मारे खुशी के प्रकृति भी कह उठी ” खुशी मिली इतनी कि दिल में ना समाये — और कुदरत कहें या प्रकृति ने दोनो अंजुलियों से आसमान से बर्फ के सुन्दर फूल खूब बरसाये । इस खूबसूरत शादी के खूबसूरत नजारे देख स्वर्ग की अप्सरायें भी इतरा के कह उठीं होगीं काश हमारी शादी में भी ऐसा नजारा होता । अमीर से अमीर लोंगों की किस्मत में भी नसीब नहीं ऐसी खूबसूरत शादी ।

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