बलि पुत्र राजा बाणासुर का किला….! जहाँ श्रीकृष्ण और आदिदेव महादेव में भी हुआ था बिनाशक युद्ध..!

बलि पुत्र राजा बाणासुर का किला….! जहाँ श्रीकृष्ण और आदिदेव महादेव में भी हुआ था बिनाशक युद्ध..!

• आज भी बिसंग में क्षेत्र ज़िंदा हैं राजा बाणासुर के नाती..!
• एक कथा में यहीं बाणासुर का कृष्ण भगवान ने किया था वध जबकि दूसरे वर्णन में कृष्ण ने दिया अभयदान व ख़ुशी ख़ुशी हुआ था अनिरुद्ध उषा का विवाह!
(मनोज इष्टवाल)


सचमुच रोमांच और रहस्य की दुनिया का एक और सफ़र खोज भी है और जब आप ऐसी खोज में निकलते हैं तो आपको परेशानियों के बाद जो शुकून प्राप्त होता है उसके लिए आपके पास शब्द नहीं होते.
मैं शुक्रगुजार हूँ जीवन चन्द्र जोशी और उनके उन रिश्तेदार दीपक जोशी का जिन्होंने ऐन बिसंग क्षेत्र में प्रवेश करते समय दिल्ली से उन्हें फ़ोन किया और बताया कि आप राजा बाणासुर की नगरी से गुजर रहे हैं. तब मैं आधी नींद में था क्योंकि नैनीताल से पहले जैन्ती पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोबिंद सिंह कुंजवाल जी के घर और फिर वहां से लोहाघाट तक का सफ़र सचमुच थका देने वाला है. लेकिन टवेरा चालक हमारे मित्र हरीश कैमरामैन नरेंद्र, गोल्जू के निर्माता जीवन चन्द्र जोशी और मैं जब बिसंग के बीस गॉवों की खुशहाली का नयनाभिराम कर रहे थे तब दीपक जोशी जी के फोन ने हमें सिर उठाकर बाणासुर के किले में जाने का न्यौता दे डाला.

खोजी प्रवृत्ति के साथ जुझारू साथ मिल जाय तो हर समस्या का समाधान आपके पास है. जीवन चन्द्र जोशी ने चढ़ाई देखते हुए कहा कि अगर आप आराम करना चाहें तो कोई नहीं आप गाड़ी में आराम करें और मैं कैमरामैन नरेंद्र सिंह के साथ वहां हो आता हूँ.
सड़क मार्ग से लगभग दो किमी. की चढ़ाई पर अपनी उतुंगता का आभास करवाने वाले किले की दीवार गगन को छूती नजर आ रही थी. हम जब किले की सीढ़ियों पर पहुंचे तो लगा हमने संसार की सबसे बड़ी ख़ुशी हासिल कर ली. त्रेता में जगत-जननी सीता माता के स्वयम्बर में बाणासुर रावण संवाद सुना था आज उसी बाणासुर के किले में हम ऐसे खड़े थे मानों स्वयं किला फतह कर दिया हो!
लोहाघाट से मात्र 8 किमी. दूरी पर स्थित बीस गॉव समूह बिसंग क्षेत्र में दूर-दूर तक फैली प्राकृतिक सुन्दरता और किले की चीरों से दिखती त्रिशूल चौखम्बा की हिमालयी उतुंग शिखर मन मोह देने वाली लगती है. वहीँ किले के गर्भ गृह की आभा देखते ही बनती है आज भी किले की दीवारों पर कटे पत्थर उड़द की दाल की चुनाई के साथ हजारों साल से अपना बर्चस्व कायम रखे हुए हैं.
यह किला कत्युरी काल 7 वीं सदी पूर्व का माना जाता है जिसे चंद वंशज राजों ने 16वीं सदी में फिर से बनाने का प्रयत्न किया था लेकिन उन्हें भी इसकी छत्त बनाने में कामयाबी नहीं मिली.

त्रेता में राम से जुड़े बाणासुर का प्रसंग द्वापर में श्रीकृष्ण से जुड़ा बताया जाता है. कहीं-कहीं बाणासुर को बालिपुत्र भी माना गया है. जनश्रुतियों के अनुसार राजा बाणासुर कृष्ण पुत्र अनिरुद्ध का अपहरण कर इसी किले में कैद कर लाये थे क्योंकि बाणासुर को पता लग चुका था कि उनकी बेटी उषा अनिरुद्ध से बेईन्तहाँ प्यार करती है. तब कृष्ण ने माँ भगवती का स्मरण कर अपने पुत्र की कुशल क्षेम जानी तब कहा जाता है कि माँ कलिंका ने कृष्ण को बताया कि उनका पुत्र उनके पुत्र हरुवा और कलुवा जोकि गोरिल के धर्म भाई हैं के साथ सुरक्षित हैं. कहा जाता है तब श्रीकृष्ण ने राजा बाणासुर के इस अभेद किले की छत्त अपने सुदर्शन चक्र से काटकर बाणासुर का वध किया था. इस किले की छत्त का एक हिस्सा आज भी लोहावती नदी के छोर पर है जहाँ पांडू पुत्र भीम ने अपना जनेऊ संस्कार करवाया था.
यहाँ के स्थानीय जनमानस का मानना है कि राजा बाणासुर का अथाह ख़जाना आज भी इस किले के नीचे दफ़न है क्योंकि पूर्व में बिसंग क्षेत्र के कई लोगों को इस क्षेत्र में सोना प्राप्त हुआ है. उनका मानना है कि आज भी उस सोने की रक्षा कई नाग कर रहे हैं.

मंदिर की ढाल पर माँ कालिंका का झूला व मंदिर है वहीँ मंदिर से पानी लेने के लिए दासियों के जाने के लिए 2000 सीढियां नदी में उतरती थी. आज भी किले के बीचोंबीच एक बीस मीटर के लगभग खाईनुमा रास्ता है जिसमें किले से उतरने के लिए 26 सीढियां हैं. गॉव से आये बच्चे कहते हैं कि बिसंग क्षेत्र का जब भी कहीं नाम आता है तो लोग हमें कह देते हैं कि देखिये बाणासुर के नाती आ गए हैं अब इनसे जरा संभलकर रहिएगा. उन्हें गर्व है कि उन्हें एक ऐसे शक्तिशाली राजा की संतति के रूप में लोग पुकारते हैं जिसने त्रेता में रावण और द्वापर में श्रीकृष्ण से बैर लिया. वे लोहावती नदी के बारे में बताते हैं कि बिसंग में बहने वाली लोहावती नदी राजा बाणासुर के रक्त की नदी मानी जाती है और एक गॉव आज भी वहां ऐसा है जिसकी मिटटी आज भी लाल है! कहते हैं यहाँ श्रीकृष्ण की सेना ने बाणासुर के सैनिकों का वध किया था.
यह मेरे लिए अलग अनुभव था क्योंकि मुझे सचमुच ज्ञान नहीं था कि बाणासुर का वध किसने किया और कब किया, दो युगों को जीने वाला बाणासुर राजा जहाँ त्रेता में अपनी उपस्थिति उत्तरकाशी जनपद के बाणा गॉव या केदारखंड में दर्शाते हैं वहीँ द्वापर में वे चंद वंशी राजाओं की राजधानी क्षेत्र जिला चम्पावत यानि मानसखंड में अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं. मुझे ख़ुशी है कि इस खोज खबर तक एक रोचक प्रसंग आपके समक्ष रख रहा हूँ कि आज भी बिसंग क्षेत्र के निवासी अपने को बाणासुर का नाती कहलाने में गर्भ की अनुभूति करते हैं.
समुद्र से 1,920 मीटर ऊपर स्थित इस किले का निर्माण मध्यकालीन युग में हुआ माना जाता है, यद्यपि बाणासुर की कथा संभवत: किले के निर्माण से पहले ही उस स्थान से संबद्ध था। इसी स्थान से लोहावती नदी का उद्गम हुआ तथा किले से हिमालय का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है जो इसकी खड़ी चढ़ाई को देखने योग्य बना देता है। वाणासुर का क़िला उत्तराखंड में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह क़िला लोहाघाट से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर ‘कर्णरायत’ नामक स्थान के पास स्थित है।

कर्णरायत से वाणासुर क़िले तक लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने के उपरांत पहुँचा जा सकता है।
हजारों वर्ष पूर्व द्वापर युग में पृथ्वी में शोणित पुर राज्य में दानव राज राजा बलि का शासन था। उसके ज्येष्ठ पुत्र का नाम बाणासुर था जो महादेव शिव का परम भक्त था। उसने शिव की कठोर तपस्या की। भगवान ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा। उसने कहा कि भगवान शिव आप मेरे किले की हर परिस्थिति में हमेशा रक्षा करने का वचन दें। शिव जी ने उसे इच्छित वरदान दे दिया। बाणा सुर यह वरदान पाकर अजेय हो गया।
बाणा सुर की एक अत्यंत रूपवती राजकुमारी उषा नामक पुत्री थी। उसे स्वप्न में श्री कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध जो कामदेव के अवतार थे, ने दर्शन देकर मोहित कर दिया। दोनों एक दुसरे से प्रेम करने लगे। एक दिन जब अनिरुद्ध उषा से मिलने शोणित पुर गया तो राज कर्मचारियों ने उसे अनिरुद्ध से प्रेमालाप करते हुए देख लिया। दैत्य राज बाणा सुर ने द्वारिका के राजकुमार अनिरुद्ध को बन्दी बना लिया।
श्रीकृष्ण को जब यह समाचार प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपनी विशाल सेना के साथ बाणा सुर पर आक्रमण कर दिया। महादेव तुरन्त किले की रक्षा हेतु प्रस्तुत हुए। उन्होंने अपने समस्त अवतारों और गणों सहित श्री कृष्ण की सेना पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों के कई वीर युद्ध में मारे गए।

अंत में कृष्ण ने नारायण अस्त्र से शिव पर प्रहार किया। पूर्व काल में शिव ने स्वयं यह अस्त्र नारायण को देकर यह वरदान दिया था कि इस अस्त्र का वार कभी निष्फल नहीं होगा। शिव जी वरदान से बंधे थे। उन्होंने नारायण अस्त्र का वार स्वीकार किया और वह मूर्छित हो गए। तब कृष्ण ने बाणासुर की सेना को गाजर मूली की तरह काटना प्रारम्भ किया। वह बाणासुर को मारने ही वाले थे तभी शिव की मूर्छा टूट गयी। एक बार फिर भयानक युद्ध प्रारम्भ हो गया।
कृष्ण ने जिम्भ्रास्त्र का आवाहन किया तो शिव ने पाशुपात अस्त्र का आवाहन किया। इन महा विनाशक अस्त्रों की परम ज्वाला से समस्त पृथ्वी जलने लगी। देवता दानव मनुष्य सभी हाहाकार करने लगे। ब्रह्मा ने जब अपनी बनाई सृष्टि का अंत निकट देखा तो समस्त देवताओं सहित वह महादेव और कृष्ण को रोकने गए। उन्होंने उनसे कहा कि हम तीनों त्रिदेव एक ही पर ब्रह्म का स्वरूप हैं। सृष्टि की सुरक्षा हम तीनों का दायित्व है।
तब श्रीकृष्ण शिव और ब्रह्मा ने एक होकर योग द्वारा अपने परब्रह्म स्वरूप का साक्षात्कार किया और उन्हें अपने दायित्व का बोध हुआ। शिव ने कृष्ण से कहा कि उन्होंने बाणासुर की रक्षा का वचन लिया है इसलिए आप उसे अभय प्रदान करें। कृष्ण ने कहा कि वह केवल अपने पुत्र की रिहाई चाहते हैं। आपका वचन रखने के लिए मैं बाणासुर का वध नहीं करूंगा। बाणासुर ने द्वारिका के राजकुमार अनिरुद्ध को मुक्त कर दिया।
कृष्ण और बाणासुर ने फिर धूम धाम से अनिरुद्ध और उषा का विवाह किया। त्रिदेवों ने वर वधू को आशीर्वाद दिया। बाद में शिव कृपा से बाणासुर ही महाकाल नाम से प्रसिद्ध हुए।

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